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बिहनि कथा

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“हे यै आई वेलेन्टाइन डे छै ।”
“हूं.. त .. ?”
“नै बुझलियै ? आई प्रेम दिवस छै ?”
“हं यौ बुझलियै । जकरा में प्रेम छै, ई ओकरा लेल छै ।”
“किया हमरा अहां में प्रेम नहि अछि ?”
“हूंह ..प्रेम अछि हमरा सब में । भरि दिन त झगड़े होईत अछि । आ किदन कहै छै जे प्रेम अहि …।”
“हं हं ! आब बुझए में आबि गेल अहांक मोनक बात .. जे हमरा लेल किछु नै ..।”
“हं ! बुझि गेलियै न ? आ ई कहू जे ब्लडप्रेशर के दवाई खेनाई अहां किया बिसरि गेलियै ?”
“हं बिसरि गेलियै , त कोनो पहाड़ टूटि गेलै ?”
“ठीक छै ! काल्हि सं हमहूं दवाई नै खायब । फेर हमरा जं किछु कहलौं त देख लबै ..।”

“ऐं यौ ! आई काल्हि अहांक मीत नहि अबै छथि ।” घरवाली सज्जन बाबू के चाह दैत बजलीह ।…

मीना कुकुर सबके शोर पारति, मोरी लगमे टोकना भरि भात-दालि आ सब्जी उझिल देखीन। चारि-पाॅंच टा कुकुर आबिकऽ नांगरि…

सुनू,एकटा गप सत बाजब।अहांकें हमरा स’ कहियो कनियों प्रेम भेल? मतलब? सदति तुरछल बोल,छिटकल देह-मन,मशीन जकां काज… काज.. काज..…

“ऐं यै गिरथाईन ! कतए छथीन ?” बजैत डुमरी बाली धोबिन ओसारा पर इस्त्री बला मोटरी राखि नीचा में…

चित्र : डॉ सुनीता  –“हे यै! सुनू कतेक नीक रचना लिखलौं एखने, अहीं सब स्त्रगण पर ।” घरबला अपन…

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