मैथिली भाषा एवं मैथिल संस्कृतिक गप सम्प्रति विभिन्न सांस्कृतिक मंच सं साहित्यक अनेक विधा मे यथा कविता, गीत ,कथा आदि मे होइत अछि। यदि एहि मे आसानी सं अभिनीत होइ बला एकांकी सेहो जुड़ि जाय त’ केहन रहै? किछु एहने प्रयास सहृदय पाठकक सदाशयताक अपेक्षा रखैत छैक। एक बेर देखल जाउ
नेपथ्य में गीत चलि रहल अछि-
हम पतझड़ केर कोकिल उदास, लोपित वैभव केर रानी छी
हम अति समृद्ध हिमशैल तटक ,विस्मृत भेल स्वप्न कहानी छी।
अप्पन मायक हम वाम भृकुटि, गरिमाक बनल धूमिल छाया
हम विकल सांध्य रागिनी करुण,मौलायल सुषमा केर माया ।
हम क्षीण- प्रभा ,हम हत-आभा ,संप्रति उन्मत्त भिखारिणी छी
खंडहर मे ताकि रहल अप्पन, उजड़ल सुहाग केर लाली छी।
हम जनक कपिल केर पुण्य जननि, हम्मर संतानक महा ज्ञान
धीया सीता हम्मर देलनि,सौभाग्यवती कें अमिट दान ।
वैशाली में स्थान न अछि,हम बैसल खंडहर में अजान
सूनै छी साश्रुनयन ,विह्वल, लिच्छवि वीरक हम कीर्तिगान।
नीरव निशि मे गंडकी विमल, विचलित करैत अछि हमर प्राण
ओकरे तट पर हम सूनै छी विद्यापति कवि केर मधुर गान।
नीलम घन गरजि- गरजि बरसय, रिमझिम- रिमझिम रिमझिम अथोर
सरिताक हिलोर गबैछ राग ,हे हे सखि हमर दु:खक नहिं ओर।।
(राष्ट्र कवि दिनकरक कविताक अनुवाद, एहि लेखिका द्वारा)
पथिक : देवि, अहां के छी? एहन विकल स्वर मे की गाबि रहल छी? अहांक स्वर मे हमरा बहुत वेदनाक अनुभव भ’ रहल अछि। अहांक मनोदशा सेहो हमरा ठीक नञि लागि रहल अछि। जं उचित बूझी, त’ अपना विषय मे किछु कहू।
स्त्री : बौआ, बुझना जा रहल अछि जे अहां एतुका निवासी नञि छी, तैं हमर दशा सं द्रवित भय सहानुभूति पूर्ण स्वर मे हमर दुरवस्थाक कारण पूछि रहल छी। हमर अप्पन संतति त’ अपन अहम् आ रागद्वेष में ओझरायल हमरा दिशि नजरि फेरबो उचित नञि बुझै छथि।
पथिक : हं ,माता!हम दोसर राज्यक निवासी छी,एकटा पथिक छी।अहांक ई दुर्दशा हमरा देखल नञि जा रहल अछि। कृपया अपन कष्टक कारण कहू।
स्त्री-
निज दु:खिया जीवन केर , अतिशय हम करुण कथा कोना कहि दी
की ई उचित न हैत,भोगि पीड़ा अपार, चुपचाप रही
सुनियो क’ की करब अहां,हम्मर असह्य पीड़ा-गाथा
समय सेहो नहिं अछि, हम्मर थाकल सूतल अछि मौन व्यथा।।
(जयशंकर प्रसादक कविता ‘छोटे से जीवन की कैसे’ केर अनुवाद
एहि लेखिका द्वारा)
पथिक : भ’ सकैछ हम अहांक किछु मदति क’ सकी!नहिंयो क’ सकब तैंयो अहांक मोनक भार त’ हल्लुक होयत।
स्त्री : बौआ,हमर नाम मिथिला अछि। हमर घर उत्तरी बिहार मे हिमालय आ गंगा नदीक बीच में अछि। दरभंगा, मधुबनी, पूर्णिया,सहरसा, मुंगेर, बेगुसराय, मुजफ्फरपुर, भागलपुर आदि जिलाक संग संग नेपाल मे सेहो हमर संतान रहैत अछि। हमर आजुक दशा देखि ई नञि बूझह जे हम सब दिन एहने रही।
हमर एकटा गौरवशाली इतिहास रहल अछि। हमर सभ्यता आ संस्कृति उज्ज्वल रहल अछि।हमर सन्तानक विद्या -वैभवक संपूर्ण वसुधा मे मान सम्मान छलैये। हमरा राज्य मे विदेह सनक राजा भेलाह जे राजा होइतो तपस्वीक जीवन जिबै छलाह,जे जनता कें कष्ट दूर करबा लेल स्वयं ह’र जोतबा लेल उद्यत भेलाह,जत’ राजा सल्हेशक उपस्थिति ई मिथक तोड़ि रहल अछि जे मात्र क्षत्रियवंशोत्पन्न व्यक्तिये राजा भ’ सकैछ। जत’ स्वयं मां जानकी जन्म लय एहि भूमि कें पवित्र कैलनि आ पृथ्वी कें अनाचारी राक्षस सभक अत्याचार सं मुक्त करयबाक हेतु बनलीह-
…..सीता के देखि देखि झखथि जनक ऋषि मोती जकां झहरनि नोर
सीता जुगुत वर कतऽ भेटत, ओतहि सऽ लायब जमाय यो
सीता जुगुत वर अवधपुर भेटत, ओतहि सऽ लाउ जमाय यो
राजा दशरथ जी के चारि बालक छनि, एक श्यामल तीन गोर यो
गोरहि देखि नहि भूलबै यो बाबा, श्यामल के मुकुट चढ़ायब यो
देशहि देश केर वीरलोक आओल, सभ छूबि चलि गेल यो
वशिष्ठ मुनि संग आए दुइ बालक, धनुष देखि करय उतफाल यो
जखनहि रामचन्द्र धनुष उठाओल, सीया गले डालू जयमाल यो
जखनहि उठाओल मचि गेल जय जयकार यो
(संग्रहीत)
एतबहि नञि, राजकुमार सिद्धार्थक वैराग्यक विषय मे त’ जनितहिं हैबह।लोक राज्यप्राप्ति लेल कोन- कोन कुकर्म नञि करै अछि, मुदा हिनका भोग सं कोनो आसक्ति नञि छलनि,अनकर कष्ट हिनका अपन कष्ट बुझना जाइ छलनि, तैं सब सुख वैभव त्यागि लोककल्याणक मार्ग तकै लेल बिदा भेलाह आ बुद्ध बनि संसार कें मध्यमार्गक उपदेश देलनि।
जतय छल धन वैभव ऐश्वर्यक भण्डार
जतय पग पग सुख,पल पल छल शृंगार
बहय छल रूप -रस- यौवन केर अविरल धार
मुदा छल व्यर्थ अहां लेल मधुमय ई संसार
कियै उपजल मन मे ई वैराग्य,हे गौतम,बाजू न..
अहां लेल राग- रंग छल त्याज्य
संयमक जीवन छल स्वीकार्य
स्वर्ग नरकक नञि लिलसा व्यर्थ
प्राणि दु:ख वारण केवल लक्ष्य
पूज्य करुणा सागर हे बुद्ध, हमर नति लिय’ न….
राग रंग तजि,संयमपथ पर निर्भय बढ़ू मनुज हे
स्नेह -नीर सं सभ भीजय,किछु एहने कर्म करू हे
जाति,धर्म केर भीत खसा,बस मानवता परसू हे
मोक्षक मार्ग त्याग केवल अछि,एकरे शरण गहू हे
मानवक देह विष्णु अवतार,सन्मति दिय’ न….
आ वर्धमान महावीर सेहो हमर सन्तति छलाह,जे मनुक्ख त’ मनुक्ख, सामान्य कीड़ा मकोड़ाक कष्ट नञि देखि सकै छलाह…..
जीबू स्वयं आन सभ जीबय यैह घोष जिनकर छल
सम गति,सम अवसर सभ पाबय,ध्येय मात्र जिनकर छल
सत्य- अहिंसा धर्म सगर वसुधा पसरय भय अविरल
वैर -विरोधक लेश न कत्तहु ,प्रणयक वायु बहय निर्मल।
क्षमा करब,मांगब विनीत भय,उत्कर्षक परिचायक
दीन -हीन -निर्बल- पीड़ित केर सेवा मन-उन्नायक
मनक शुद्धि,आत्मिक विकास संग त्यागक जे उद्घोषक
हमर विनीत प्रणति अर्पित अछि मानवता केर नायक।
…..आ एतुका भाषा. …आ: . कान मे अमृत घोरय बाली मैथिली….आर्यभाषापरिवारक भाषा मैथिली…। जाहि समय विश्वक आन भाग मे मानव पशुवत् जीबि रहल छल यानी आन भाग में सभ्यताक विकास नञि भेल छलै,तखन संस्कृतक बाद मैथिली भाषाक चरम विकास भेल छलै। मैथिली भाषाक उपलब्ध साहित्य मे सर्वप्रथम नाम कविशेखराचार्य ज्योतिरीश्वरक वर्णरत्नाकरक लेल जा सकैछ।हिनकर अवस्थितिक काल संभवतः 1290—1350 मानल जा सकै छनि।ई कर्नाट वंशक अन्तिम राजा हरिसिंह देवक काल मे भेल छलाह ,ई जनश्रुति छै।हिनकर लिखल तीन टा ग्रन्थ प्रसिद्ध छैक-वर्णरत्नाकर,धूर्तसमागम आ पंचशायक।
एत’ सं आगू बढ़बह त’ मैथिल कवि कोकिल विद्यापतिक साहित्य देदीप्यमान अछि,जे मात्र मिथिले धरि नैं, संपूर्ण भारत मे अपन प्रखर आभाक संचार कय रहल अति।हिनकर समय प्राय:1350-1450 मानल जाइ छनि।ई संस्कृत, मैथिली आ अवहट्ट तीनू भाषा मे समानरूप सं काव्य लिखलन्हि अछि।हिनकहिं सं मैथिलीक गीत -परंपरा अस्तित्व मे आयल।शक्तिक उपासनाक अप्रतिम रूप देखबाक हो त’ ई गीत देखि सकै छी-
कनक-भूधर-शिखर-बासिनी
चंद्रिका-चय-चारु-हासिनि
दशन-कोटि-विकास-बंकिम-
तुलित-चंद्रकले ।।
क्रुद्ध-सुररिपु-बलनिपातिनि
महिष- शुम्भ-निशुम्भघातिनि
भीत-भक्त-भयापनोदन –
पाटव -प्रबले।।
जय देवि दुर्गे दुरिततारिणि
दुर्गामारी – विमर्द -कारिणि
भक्ति – नम्र – सुरासुराधिप –
मंगलप्रवरे ।।
गगन – मंडल – गर्भगाहिनि
समर – भूमिषु – सिंहवाहिनि
परशु – पाश – कृपाण – सायक –
संख -चक्र-धरे ।।
अष्ट – भैरवी – सँग – शालिनी
स्वकर – कृत – कपाल- मालिनि
दनुज – शोणित -पिशित – वर्द्धित-
पारणा-रभसे।।
संसारबन्ध – निदानमोचिनी
चन्द्र – भानु – कृशानु – लोचनि
योगिनी – गण – गीत – शोभित –
नित्यभूमि – रसे ।।
जगति पालन – जन्म – मारण –
रूप – कार्य – सहस्त्र – कारण –
हरि – विरंचि – महेश – शेखर –
चुम्ब्यमान – पदे। ।
सकल – पापकला – परिच्युति-
सुकवि – विद्यापति – कृतस्तुति
तोषिते – शिवसिंह – भूपति –
कामना – फलदे।।
(विद्यापति)
आ हुनकर शिवभक्ति कोनो व्याख्याक मोहताज नैं।हुनक नचारीक शब्द आ भाव हुनक अजस्र शिवभक्तिक प्रतीक छल,जकरा सुनि महादेव हुनकर सेवक भय धरती पर आयल छलाह- …
.अगे माई जोगिया मोर जगत सुखदायक।
दुख ककरो नहिं देल महादेव, दुख ककरो नहिं देल।
अहि जोगिया के भाँग भुलैलक।
धथुर खुआइ धन लेल।।
आगे माई कार्तिक गणपति दुइ छनि बालक।
जगभर के नहिं जान।।
तिनकहँ अमरन किछुओं न थिकइन।
रत्ती एक सोन नहिं कान।।
अगे माई, सोन रुप अनका सुत अमरन।।
अधन रुद्रक माल।
अप्पन पुत लेल किछुओ ने जुड़ैलन।।
अनका लेल जंजाल।
अगे माई छन में हेरथि कोटि धन बकसथि।।
ताहि दबा नहिं थोर।
भनहि बिद्यापति सुनु ए मनाईनि
थिकाह दिगम्बर मोर।।
(विद्यापति)
आ हे बौआ. .. मैथिली नञि अबै हैतह, मुदा संस्कृत त’ अबितहिं हैतह?भामतीक नाम सुनने छह?हं हं ओएह आदि शंकराचार्य विरचित ब्रह्मसूत्रक भाष्यक प्रसिद्ध टीका! जनै छह ओ मिथिलाक ठाढ़ी गामक निवासी प्रख्यात लेखक वाचस्पति मिश्र (900-980ई.)लिखने छलाह।अपन एहि साहित्य- साधनाक एकाग्रता मे ओ अपन नवोढ़ा पत्नीक उपेक्षा अवश्य क’ बैसलाह, मुदा भक्क टुटिते ओ एकर प्रायश्चित केलनि आ एहि ऐतिहासिक ग्रन्थक नाम पत्नीक नाम पर राखि हुनका अमर क’ देलखिन-
देश,जाति,धर्मक रक्षा हित निज निधि ग्रन्थक व्याख्या
करब,सुबोध बना जन सम्मुख आनब लय अभिलाषा
वाचस्पतिक कठिन साधना बर्ख अठारह चललनि
छाया बनलि भामती तप केर अद्भुत रूप देखौलनि।
निज कर्तव्यविमुखता मार्जन नामकरण सं करइत
अमर भामती नाम आइ, त्यागक फल पत्नी पौलनि।
न्यायक,दर्शन केर अनुपम निधि मिथिला भू क धरोहर
मसकल,फाटल,मलिन कियै अछि मायक हरियर आंचर।।
…बौआ अपन बौद्धिक सम्पदाक कतेक नाम गिनबिअह..कण्ठ सूखय लागल अछि.. कविवर चन्दा झाक मैथिली रामायण अपन सरल,सरस , प्रांजल भाषाक संग आइयो हमर छाती गर्व सं भरि दैत अछि। ओ स्वयं मिथिलाक सीमाक विषय मे लिखने छथि
गंगा बहथि जनिक दक्षिण दिशि पूब कौशिकी धारा।
पश्चिम बहथि गंडकी उत्तर हिमवत वन विस्तारा॥
चंदा झा
लालदास, रामजी चौधरी,महिनाथ ठाकुर, लोचन झा,हर्षनाथ झा….कतेक नाम कहिअह… आ की बुझै छहक आइ मैथिलीक साहित्य नञि लिखल जा रहल छै?ई भ्रम तोड़ह… राघवाचार्य,भुवन जी,सुमन जी,यात्रीजी,अमर जी, हरिमोहन झा,राजकमल,आरसी प्रसाद सिंह,मधुप जी,मणिपद्म,किरण जी, सोमदेव,जीवन झा….अनन्त नाम छै हौ!
बौआ…तैंयों देखह.
ओझरायल केश,सूखल मुंह,भीजल नयनें हम बौआइत छी
माटिक कण कण मे हेरा चुकल,ओ निधि अमूल्य हम ताकै छी
हम उजड़ल उपवन केर मालिन,उठैछ हमर हिय विषम शूल
कोकिला न कत्तहु कुंज बीच,रहि रहि अतीत सुधि करैछ कूक…
(राष्ट्र कवि दिनकरक कविताक अनुवाद, एहि लेखिका द्वारा)
हमर भाषा समृद्ध,हमर लिपि वैज्ञानिक,हमर माटिक कण -कण में प्रतिभाक अम्बार, मुदा तैंयों हम चिर उपेक्षित-दरिद्रताक जाल मे फंसल, राजनीतिक कुचक्र मे आकण्ठ डूबल….हमर संतान हमरा तजि दूर बसै अछि,हमर आंचरक त’र रहै बला बच्चा सभ विद्यालय मे मैथिली पढ़त,तकर व्यवस्था नञि,एतेक समृद्ध भाषा जे उत्तर में नेपाल यानी हिमालयक पादप्रदेश सं ल’ क’ दक्षिण मे गंगानदीक प्रवाहक्षेत्र तक,पूर्व में कोशी सं ल’क’पश्चिम में गंडक तक बाजल जाइ अछि,से कोनो राज्यक आधिकारिक राजभाषा नञि. ..(कनै छथि)
पथिक मां अहां नञि कानू, हम कोनो अनठीया नञि,हमर मूल एत्तहि अछि।ई भिन्न गप जे हमर बाबू हमरा कहियो गाम नञि अनलनि,एहि बेर त’ हम जिद कय एसकर अपन मातृभूमिक दर्शनक इच्छा मे आबि गेलहुं आ अहां संग भेंट भ’ गेल।अहां चिंता जुनि करू,हम युवा वर्ग कें जागृत करब, संगठित करब आ अपन विगत गौरव कें वापस आनब, मातृभाषा कें उचित स्थान दिआयब….
हम आनब गत- गौरव पुनि,एहि वसुधाक ललाट सजायब हम
छी मिथिला- सुत,मायक भाषा कें विद्यालय मे पहुंचायब हम
प्रतिभाक श्रमक संतुलित मेल सं अज्ञान- अन्हार मिटायब हम
भौतिक,आत्मिक,सांस्कृतिक सूर्य केर प्रखर प्रकाश देखायब हम
पर्दा खसैत अछि.
(जाहि कविता सबहक संदर्भ नहि देल अछि, से एहि लेखिका द्वारा रचित अछि)