‘‘सुनै छी, तखन हम जा रहल छी।’’
‘‘हँ, जाउ।’’
‘‘पूरे पूर पचीस टाका हाथ लागत।’’ हम हुनका कान लग जा केँ नहुँए सँ बजलहुँ।
‘‘बिना कोनो काजक?’’ ओ बिहुँसलीह।
‘‘ च…च…च..।’’ हम हुनका मुहपर हाथ धरैत बजलहुँ, ‘‘राजरोगक इलाज करै छी।’’ गृहणी खूब जोरसँ हँसलीह। हमरो हँसी लागि गेल।
‘‘डाक्टर बाबू!’’ बाहरसँ एक अपरिचित स्वर आएल।
‘‘की थिक?’’ हम कोठलीसँ बहराइत पुछलिअइक। एक दस वर्षक बालक उज्जर कमीज पहिरने छल, जे ठेहुन तक झुलैत रहैक। पएरमे एक जोड़ पुरान चट्टी ओकर आर्थिक दशाक पूर्ण परिचय दऽ रहल छल। ओकर रंग पिंडश्याम रहैक, खर-खर चाम, चिक्कनताक कतहु दरश नहि। ओकर आँखि डबडबाएल आर स्वर भारी रहैक।
‘‘हमर बहिनि दुखित छथि।’’ ओ बाजल।
‘‘मुदा हम तँ बाहर जा रहल छी।’’
‘‘मुदा हमर बहिनिकेँ आखिरी हालति छैक।’’
‘‘तँ कोनो दोसर डाक्टरक कतय कियैक नहि जाइ छी? हम तँ पहिनहि दोसर केस गछि चुकल छी।’’
‘‘डाक्टर बाबू अहाँ मैथिल छी ने?’’
हमर मोन कबदि गेल। फीससँ उद्धार पएबा लेल ई लोकनि चट दऽ ‘मैथिल छी’क अस्त्र प्रहार कऽ दैत छथि। हम कइएक बेर ठका चुकलहुँ। फेर डाक्टरक जीविका तँ फीसहि पर निर्भर करैछ। अतः दृढ़ स्वरमे बजलहुँ, ‘‘मैथिल छी, अथवा बंगाली चाहे उड़िया छी, तै सँ अहाँक कोन लाभ? हमर पेशा थिक डाक्टरी।’’
ओ चुपचाप ठाढ़ रहल। हम फेर बजलहुँ, ‘‘अहीठाम बहुत डाक्टर रहै छथि, हुनकालोकनिक ओतय गेलासँ प्रायः फीसहु कम लागत।’’
‘‘मुदा बहिनि जे अहीं केँ बजाबय कहलक अछि?’’
‘‘मुदा हम की कऽ सकैत छी?’’
‘‘डाक्टर बाबू अहाँ की सोचैत छी, जे हम फीस नहि देब?’’
मोनक दुर्बलता पकड़ा गेलापर हमर क्रोध बढ़ि गेल। चिचिआ केँ कहलिऐक, ‘‘अहाँ हमरा बुझै छी की? हम अपन रोगीसँ वचनबद्ध भऽ चुकल छी। जाउ! व्यर्थ हमर समय नष्ट नहि करू।’’ कहि हम आगू बढ़ि गेलहुँ।
ओ लपकि केँ हमर दूनू पैर पकड़ि लेलक।
‘‘डाक्टर बाबू! हमरा क्षमा करू। हमर बहिनि मृत्यु शय्यापर पड़ल छथि। आ हुनक इच्छा छन्हि, आखरी इच्छा जे अहीं हुनका देखिअन्हि। डाक्टर बाबू अहाँकेँ एक्के बेर, मुदा जाए पड़त। हमरापर दया करू डाक्टर बाबू! हमहूँ मैथिले छी।’’
ओ हकन्न कऽ केँ कानय लागल। हम भारी दुविधामे पड़ि गेलहुँ।
ओकर रुदन सुनि केँ हमर गृहिणी आबि गेलीह।
‘‘एतेक कहैत अछि तँ चल ने जाउ।’’ पत्नीक स्वर सेहो गह्वरित छलैन्ह।
हम – ‘‘मुदा राय बहादुरक बेटा जे दुखित छथिन्ह?’’
‘‘हुनका कतय जाएब शतरंज खेलाइ लेल, आर एकरा ओतय यथार्थमे दुःखित छैक।’’
‘‘एकर माने की?’’ हमर जरल हृदयपर नोनक वर्षा हुअऽ लागल।
‘‘माने किछु नहि। अहाँ अपने कहलहुँ अछि हुनका किछु होइ-तोइ नहि छन्हि। फुसिए पेट-दर्दक बहाना कऽ केँ कालेज नहि जाइ छथि आ शतरंज खेलाइ छथि।’’
हम दाँत किटकिटबैत बजलहुँ, ‘‘अहाँ भितरी जायब की नहि?’’
‘‘हम चलि जायब, मुदा अहाँ पहिने ई गरीबकेँ देखि अबिअउ।’’ हुनकर स्वरमे याचना रहन्हि।
‘‘बऽड़नी! कहिओ जँ हमरा कहलहुँ अछि जे हमरा साड़ी चाही, ब्लाउज चाही, सिनेमा जा…।’’ बजैत-बजैत हम चुप्प भऽ गेलहुँ। रामाक आँखिसँ झर-झर नोर बहैत रहनि।
‘‘अहाँ कनैत कियैक छी?’’ ओ तइओ कनैत रहली। हम सभ किछु सहि सकै छी, मुदा पत्नीक कानब नहि। हम विचलित भऽ गेलहुँ।
‘‘अहाँ चाहै छी जे हम पहिने एकरे ओतय जाइ?’’
किछु उत्तर नहि। हमर पाथर मोन मोम जकाँ पघिल गेल। हुनक आँखि पोछैत बजलहुँ, ‘‘रामा, अहाँकेँ हमरे शपथ। कानूऽ जुनि। हम जाइ छी, एकरा संगे।’’
आर रामाक मुखारबिन्दुपर प्रसन्नताक आभास नुका-चोरी करय लगलन्हि। हम कृतकृत्य भऽ गेलहुँ।
रोगिणीक अवस्था सत्ते शोचनीय रहैक। हमरा देखितहिं बाजलि, ‘‘आबि गेलौं अहाँ? हमरा विश्वास छल जे अहाँ अवश्य आयब।’’
हम गम्भीर भावसँ ओकर पूर्णतया निरीक्षण करैमे संलग्न भऽ गेलौं। ओ बाइक जोरपर बड़बड़ा रहल छलि, ‘‘हम अहाँक नाम हँसाइ नहि देखि सकितहुँ तेँ गंगाकातमे नुआ राखि विदा भऽ गेलौं। सब बुझलक जे हम डूबि गेलौं। मुदा, एतेक साहस हमरामे नहि छल। हम एतय राय बहादुरक माइक ओतय नौकरी कऽ केँ भोलाकेँ एखन तक पोसि सकलिअइक अछि। मुदा, आब एकरा के देखतैक? ओहि दिन राय बहादुरक ओतय अहाँक दर्शन भेल। हम तँ लगले चिन्हि गेलौं। आब अहाँ भोलाकेँ देखबैक!’’
‘‘मुदा भोला….?’’
भोला, जे हमरा अनने रहय, ओत्तहि सिरमा लग ठाढ़ छल। ओकरा दिस ताकि रोगिणी फेर बाजलि, ‘‘भोला! भोला तों बाहर जा, आ केबाड़ बन्द कऽ दहक।’’ आर भोला चुपचाप चल गेल। ओ तखनहु कानि रहल छली।
हम अपन सिरिंजमे औषध भरैत छलहुँ। मुदा, एहिसँ लाभक कोनो सम्भावना नहि छल, तैओ अन्तिम चेष्टा।
‘‘मुदा भोलाकेँ नहि जानल छलैक जे ओ हमरालोकनिक सन्तान थिक।’’
‘‘की?’’ हम अपन हाथसँ खसैत सिरिंजकेँ सम्हारलहुँ।
‘‘नहि, तखन ओ हमरासँ घृणा करिते। हमरा खातिर ओकरा नहि कहबै जे ओकर ‘माए-बाप’ हम-अहाँ छियैक।’’
‘‘दाइ! अहाँ की बजै छी?’’ पहिले बेर हम मुह खोललहुँ।
‘‘हम?’’ ओ आश्चर्यसँ हमरा दिस तकैत बजली।
‘‘हम की बजै छी? अहाँ हमरा चिन्हलौं नै? मुदा अहाँ तँ कहने रही जे अहाँ हमरा बिसरि नहि सकै छी?’’
‘‘होशमे नै छथि?’’ हम अपनेमे बड़बड़ेलौं, मुदा ओ सुनि गेली।
अपन समस्त शक्ति लगा केँ बजलीह, ‘‘हऽमरे….ए…नू….ओझा ओतय अहाँक मामा…।’’
मुदा ओकर बोली लागय लगलैक। ओ निःचेष्ट भऽ आँखि मुनि लेलक।
हमर आँखिक आगाँ अन्धकार भए गेल। क्रमशः ओ अन्धकार दूर भऽ गेल आ ओहिमेसँ प्रकट भेल मामाक मकान। हम मेडिकल काॅलेजमे पढ़ैत रही। ओहि समयमे मामाक ओतय केओ आन रहैत छल। के? एक मूर्ति फेर प्रकट भेल। विधवा तरुणीक। गौर वर्ण, कोसासँ चीरल आँखि, गोल नाक आर पातर गुलाबी ठोर। सब मिला केँ एक अद्भुत आकर्षण शक्ति रहै ओइमे जे हमरा अनायासे घींचि लेलक अपनामे।
रोगिणीक मुह देखलियै – श्याम, रेनूक रंगसँ कोनो समानता नहि रहै। गाल पचकि केँ एक दोसरामे सटबा-सटबापर। आँखि एक आङुर तऽर दिस, ओकर नीचामे कारी दाग। अः नहि, रेनूसँ कोनो समानता नहि छलैक। रोगिणी अपन आँखि खोललक। हँ! वैह चिर परिचित ताकब। वैह थिकीह, वैह, कोनो सन्देह नहि।
‘रेनू?’’ हमरा मुहसँ बहरायल।
‘‘अहाँ हमरा चिन्हलौं?’’
ओकर अधरपर एक क्षीण मुस्कान दौड़ि गेलै। वैह चिर परिचत मुस्कान जे हमरा संसारसँ पृथक कऽ केँ अपनामे समेटि लैत रहै। मुदा, आइ अपन मुस्कानक भार ओ स्वयं नहि सहि सकलि। ओकर ठोर बिचकि गेलै। ओ अपन आँखि बन्द कऽ लेलक, सब दिनक लेल…..।