सामान्यत: बूझल जाइत छै जे महिला सभ मे राजनीतिक चेतना कत’? हुनका सभ के राजनीति स’ की मतलब? बेसी स’ बेसी वोट खसाब’ चलि जेतीह, सेहो घरक लोक सभक निदेशानुसार। राजनीति मे जौं जेतीह त’ पुरुष आधिपत्यक नीचां बनल रहतीह। अपन फैसला लेबाक अधिकार स’ वंचित। ईहो मानि लेल जाइत छै जे महिला सभ मे सामाजिक चेतनाक अभाव छै। बल्कि हुनका सभ के ई समझाओल- बुझाओल जाइत छै जे समाज मे जे सभ घटि रहल अछि, तकरा सभ स’ हुनका आओरक की मतलब? ओ सभ त’ बस तौला- तौला भात उसीनथु, घर भरक सेवा करथु, बाल- बच्चा सभ के पोसथु, घर लेल सदा समर्पित रहथु। बाहर आगि लागय, ठनका ठनकय- हुनका आओर लेखे धन सन! वाणिज्यिक या आर्थिक पहलू सभ पर त’ हुनका सभ मे आगि आ पानिक संबंध। घर- खर्ची ले जे भेंटि जाए, सएह हुनक दुनिया! ओकरा मे स’ जे खा- बचा ली। कोनो सरकारी नियम आबि जाए त’ तुरंत चोरनी सन पदवी स’ सेहो विभूषित!
मानि लेल जाइत छै जे खूब पढ़ल- लिखल महिलेटा लिखबा- पढ़बाक काज क’ सकै छथि। ईहो मानल जाइत छै जे महिला सभ मे वैश्विक सोच कत’? लिखतीह त’ व्रत- पाबनि अथवा ओकर महामात्य पर। बेसी बढतीह त’ घरक गुण- गाथा अथवा जनी- मजूरनी सभक कथा लिख सकै छथि। महिला आ बोल्ड विषय! छिया- छिया! स्त्री भ’ क’ एहेन लेखन? जी। हमरा लेल कहल गेल छल, जहन हम कथा लिखने छलहुं- ‘आऊ कनेक प्रेम करी माने बुझौअल जिनगीक’। माने अहां स्त्री स’ प्रेम करी त, बड्ड नीक! हम प्रेमक अभिव्यक्ति पर लिखी त’ अनर्थ!
त’ ई सोच ओहि मैथिल समाजक छै, जाहि समाज मे मल्लिनाथा भ’ गेलीह। जाहि समाज मे शस्त्र- शास्त्र और गृह- कार्यक ज्ञान स’ सुसज्जित सीता भ’ गेलीह। जाहि समाज मे भारती मिश्र सन विदुषी भेलीह, जे सेक्स सनक विषय पर आदिगुरु शंकराचार्य स’ शास्त्रार्थ केलीह। जाहि समाज में मैत्रेयी, गार्गी, भामती सन महिला भ’ गेलीह। ओहि समाजक आजुक आश्चर्यजनक जड़ता हुनकरे अहि ढोल पीटब के नकारै छै जे हमर मैथिल समाज के अपना अतीत पर गर्व छै।
मुदा, हमरा सभ के गर्व स’ तनि के ठाढ हेबाक अवसर दैत आ समाज मे पसरल सभटा पाखंड के ध्वस्त करैत अपन लेखन स’ चहुं दिस सभ के चकभौंर करैत छथि, प्रगतिशीलताक ज्वलंत अहर्निश टेमी बनि क’ लिली रे। लिली रे आश्चर्यजनक तरीका स’ अजुका जड़ मैथिल समाजक सभटा मिथक के धांगैत आ भांगैत छथि आ सेहो मैथिली मे लिखि क’। अपन व्यापक अनुभव संसार स’ ओ समाजक खोहि- दोगी मे जा- जा क’ विष्य आनलन्हि आ लिखलन्हि। हमरा ई कहबा मे कनिको संकोच नहिं अछि जे लिली रे अपन लेखनी मे कम स’ कम सय वर्ष आगां छथि।
सहज व्यक्तित्व
लिली रे बहुत मृदुल, सौम्य आ आकर्षक छथि। हुनकर एक गोट भगिना श्रीरमण झा कहै छथि- ‘लिली मामी के जाहि स्वरूप मे हम देखल, ओहेन स्वरूप ओहि समय मे अत्यंत दुर्लभ छल, कियैक त’ लिली मामी अत्यंत समृद्ध आ शिक्षित परिवार स’ आएल छलीह। हुनक व्यवहारक खुलापन, उदारता, प्यार आ सभ पर समान रूप से ध्यान राखब, दुर्लभ छल। मात्र हमरे लेल नहीं, अपितु सभ लेल, छोट- पैघ, जरूरतमन्द कि आन किओ। हमरा लेल त’ हुनका जानब, देखब हुनका से बतियाएब- सभ किछु जेना स्वप्न मे देखल आ यथार्थ मे भेटल दुर्लभ खजाना सन छल। एक गोट हंसमुख, प्यार करयवाली आ सदिखन सभक लेल अपस्यांत रहयवाली एक गोट मैथिल स्त्री- हमर लिली मामी!’
वरिष्ठ पत्रकार मदन झा लिखै छथि- ‘लगभग तीस साल पहिने हम एक पारिवारिक समारोह में आयल रही। मिथिला समाजक दिल्ली में रहनिहार बहुत लोक सभ स’ मेल- जोल में व्यस्त रही। एक कार्यक्रम मे हमर ध्यान एक़ टा प्रभावशाली आ भव्य महिला दिस गेल, ज़े अपना से बुज़ुर्ग लोक सबहक संग बैसल छलीह। सभ किओ हुनके स’ मुख़ातिब छलन्हि। हुनक परिधान ओहि समयक हिसाब से बहुत एडवान्स लागि रहल छलै। इंटर्नेटक ज़माना नहिं छल। ताही हेतु जेनरली फ़ोटो देखबाक अपेक्षाकृत कम मौक़ा होइत छलै।
ख़ैर! ओहि बुज़ुर्गक मण्डली लग जेबाक साहस कएल। हर्ष भेल जे हम मैथिलीक सुप्रसिद्ध साहित्यकार लिली रेक सामने छी। हुनका प्रणाम करबाक आ अपन परिचय देबाक प्रयास कएल। ओहि समय में आदरणीय हरिमोहन झा, यात्री जी आ सुमन जीक़ संग एकमात्र महिला मैथिली साहित्यकारक नाम, जिनका स’ नीक जकां परिचित छलहुं त’ ओ छलीह लिली रे। …. ओ सभ स’ प्रोग्रेसिव साहित्यकार छलीह आ हुनक रचना ‘मरीचिका’ सभ से पॉप्युलर उपन्यास अछि, जेकरा नॉन- लिटरेचरबला लोक सभ सेहो पढ़ने हेताह।‘
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फिल्म मेकर आ हुनक भगिना ब्रह्मानंद सिंह लगभग बीस बर्ष पहिने हमरा फोन केने छलाह- ‘अहां लिली रे के जनै छियै?’
हमरा अपन आश्चर्य भेल- ‘हम हुनकर ट्रांसलेटर छी। मुदा अहां हुनका कोना जनै छियै?’
‘ओ हमर मामी छथि। हुनका स’ भेंट भेला पर हमरा स’ पूछलन्हि जे अहां त’ मुंबई मे रहै छी। अहां विभा रानी के जानै छियै? ओ हमर किताब सभक अनुवाद क’ रहल छथि।‘
ब्रह्मानंद सिंह कहलन्हि- ‘लिली मामीक पूरा पर्सनैलिटी एकदम अलग छलन्हि। एतेक तेज आ गरिमा हुनका चेहरा पर रहैत छलै जकर वर्णन नहिं कएल जा सकैये।‘
लिली रे केर साहित्यिक कैनवास
एहेन लिली रे स’ साधारण रचनाक अपेक्षा नहिं कएल जा सकै छलै आ ओ केबो नहिं केलीह। एक दिसि ओ ‘उपसंहार’ सनक उपन्यास लिखै छथि। स्त्री आ कन्या मोनक कोमल तंतु प्रेमक निरीहता आ ओकरा स’ भेंटल दंड पर त’ दोसर दिस ‘पटाक्षेप’ लिखै छथि- घनघोर नक्सल आंदोलनक खोह मे जा क’।
डॉ. बिभा कुमारी लिली रेक उपन्यास ‘उपसंहार’ पर लिखै छथि- ‘लिली रेक उपन्यास ‘उपसंहार’ स्त्री- पुरुष विभेद, लैंगिक असमानता, समाज में स्त्री आओर पुरुष लेल निर्धारित अलग- अलग मानदंड पर प्रश्न ठाढ़ करैत अछि। …. समाजक व्यवस्था एतेक दुरंगा किएक अछि? पुरुषक दोष कें नहि देखल जायत अछि आ स्त्रीक दोषकें भरि जिनगी लेल कारिख बना क’ ओकर मुँह पर औंस देल जायत अछि। पुरुषक दोष सेहो स्त्रीक माथ पर ध देल जायत अछि।‘
‘पटाक्षेप’ पर समाजशास्त्री डॉ. कैलाश कुमार मिश्र लिखै छथि- ‘ई उपन्यास कतौ यथार्थक समाज वैज्ञानिक विश्लेषण आ एथनोग्राफिक परिचय प्रशस्त करबमे पाछा नहि रहल अछि।‘
हमरा एखनो लागैये जे की तहिया मैथिली मे चारू मजुमदार, कानू सान्याल सभक चर्च होइत छलै? मार्क्स आ लेनिनक नाम पर विचार-विमर्श होइत छलै? ‘पटाक्षेप’ मे अहां के ई सभ टा जानकारी भेंटत। डॉ. कैलाश कुमार मिश्र ‘पटाक्षेप’ स’ कोट करै छथि- “सभ जानय चाहैत छल चारू मजुमदार, कानू सान्याल आ जंगली संतालक विषय मे। नक्सलबाड़ी किशनगंजसँ दूर नहि छल। किशनगंज पूर्णियासँ दूर नहि छल। एक गामसँ दोसर गाम, दोसरसँ तेसर, समस्त अंचलमे नक्सलबाड़ीक गप्प उड़िया रहल छल। मार्क्स आ लेनिनक नाम प्रत्येक गामक युवावर्ग सुनि चुकल छल। क्रान्तिक महँ स्वप्नकेँ पूर्ण करबा ले सभक मोन आलोड़ित भऽ रहल छलैक। बुढ़बा सभकेँ बुझबामे नहि अबे, मुदा सुनबामे नीक लगै। ओसभ किछु नहि बाजय, मुदा ओकर मूक आँखिमे हँसी डबडबा गेलै, जेना दिलीपकेँ कहैत होइनि, “बाबू हमहूँ कम नहि देखने छी। कहब सहज छै, करब नहि।”
समीक्षक अरबिंद दास लिखै छथि- ‘वर्ष 1960 के दशक में उनका लेखन मंद रहा, लेकिन फिर ‘पटाक्षेप’ (मिथिला मिहिर पत्रिका में धारावाहिक प्रकाशन) से लेखन ने जोर पकड़ा। मेरी जानकारी में नक्सलबाड़ी आंदोलन को केंद्र में रखकर मैथिली में शायद ही कोई और उपन्यास लिखा गया है। बांग्ला की चर्चित रचनाकार महाश्वेता देवी ने भी ‘हजार चौरासी की मां’ उपन्यास लिखा, बाद में इसको आधार बनाकर इसी नाम से गोविंद निहलानी ने फिल्म भी बनायी। ‘पटाक्षेप’ में बिहार के पूर्णिया इलाके में दिलीप, अनिल, सुजीत जैसे पात्रों की मौजूदगी, संघर्ष और सशस्त्र क्रांति के लिए किसानों- मजदूरों को तैयार करने की कार्रवाई पढ़ने पर यह समझना मुश्किल नहीं होता कि यह रबिंद्र रे और उनके साथियों की कहानी है। रबिंद्र लिली रे के पुत्र थे, जिनका वर्ष 2019 में निधन हो गया। अपनी आत्मकथा में भी लिली रे नक्सलबाड़ी आंदोलन में पुत्र रबिंद्र रे (लल्लू) के भाग लेने का जिक्र करती हैं कि किस तरह लल्लू हताश होकर आंदोलन से लौट आए और फिर अकादमिक दुनिया से जुड़े।’
अपन निजी जीवन में लिली रे बहुत भ्रमण केलीह। श्रीरमण झा लिखै छथि- एक बेर हमर पोटिंग कलकत्ता मे भेल छल। हम ओहि ठाँ दुखित भ’ क’ कलकता के बेलिव्यू अस्पताल में भर्ती रही। अस्पताल में सभ स’ पहिने पहुंचयवाला जे व्यक्ति छल, ओ छलीह लिली मामी- भरि- भरि झोरा फल- फलहरी आ फूल सभ ल’ क’। कह’ लेल लोक आओर कहि सकैत छथि जे ई कोन बड़का बात! मुदा, अस्पतालक बेड पर पड़ल एक गोट बेराम व्यक्ति लेल ई अत्यंत जीवनदाई। लिली मामीक भव्यता आ महानता पर बहुत किछु लिखल जा सकैए। एक गोट चुम्बकीय आकर्षण छै हुनक सम्पूर्ण व्यक्तित्व में।‘
यथार्थ लिखनिहारि लेखिका
लिली रे जत’- जत’ रहलीह, ओतुक्का जिंदगी लिखैत रहलीह आ एवंप्रकारे मैथिली के बहुविध अनुभव संसार स’ समृद्ध करैत रहलीह। हुनक छोट- छोट वाक्य, बिहारीक दोहा जकां छै- ‘देखन में छोटन लगे घाव करे गंभीर’। श्रीधरम लिखै छथि- ‘कथा- साहित्य ओ विधा थिक जे साहित्य मे तथाकथित धीरोदात्त नायक कें पदच्युत क’ हाशियाक शोषित पीड़ित स्त्री- दलित- किसान- मजदूर आदि पात्र कें साहित्यक केंद्र मे स्थापित क’ देलक। तकर प्रमाण लिली रेक कथा- साहित्य सेहो थिक।‘
अपन पहिल कथा ‘रोगिणी’ये स’ लिली रे कहि देलखिन्ह जे ‘यौ मैथिल सभ- उठू कि भोर होबय छै।‘ श्रीधरम लिखै छथि- ‘ई (रोगिणी) कथा मिथिलाक बिधवा जीवनक शोकगीत सन अछि। पुरुष द्वारा एकटा स्त्री आकि विधवाक दैहिक-मानसिक शोषणक जे मैथिल परंपरा रहल अछि तकरा अभिव्यक्त कर’ मे पूर्णतः सफल अछि ई कथा। लिली रे अपन पहिले कथा मे जाहि धमक संग उपस्थित होइत छथि, से अहि कहावत कें दुरुस्त करैत अछि जे अवसर भेटै त’ पूते नहि पुत्रीक पएर सेहो पालना मे देखल जा सकैत छै।‘
मोपासां आ चेखव सं छलीह प्रेरित
लिली रेक रचना सभक अंत अत्यंत अप्रत्याशित होइत छै- मोपासां वा चेखवक कथा सभ सनक। हुनका स’ अहि बाबत पूछला पर ओ बहुत सहजता स’ हमरा स’ कहने छलीह- ‘मोपासां आ चेखव हमर बहुत प्रिय रचनाकार छथि। हम हुनका बहुत पढै छी। तैं, यदि हुनका आओरक लेखन शैली हमर लिखब मे आबि गेल अछि त’ ई कोनो हैरानीक गप्प नहिं। भ’ सकै छै। एना होबैत रहैत छै। प्रेरणा आ सीख त’ कतहु स’ लेल जा सकैये।’
मुस्काइत ओ हमरा कहलीह- ‘आइ धरि मुदा किओ अहि मादे हमरा स’ किछु कहल वा पूछल नहिं। पहिल बेर अहां स’ सुनल। तैं आब हमहूं एक बेर सोच मे पडि गेलहुं। मुदा अहां के ई कोना लागल?’ हम विनत एतेब कहल जे ‘चेखव आ मोपासां हमरो बहुत प्रिय लेखक छथि।’
सरल, सहज, प्रवाहमयी भाषा आ गूढ भाव संगे वर्णित रचना सभक कएक टा लेयरक अर्थ आ बोध सृजित भ’ सकै छै, ई जान’ आ बूझ’ लेल लिली रे के पढ़ब अनिवार्य छै। मैथिली मे पढू, हिंदी मे पढू, मुदा पढू अवश्य। हमरा द्वारा मैथिली से हिन्दी में अनूदित एखनि धरि आठ टा किताब छै- ‘पटाक्षेप’ (भारतीय ज्ञानपीठ), ‘जिजीविषा’ (रेमाधव पब्लिकेशन्स), ‘बिल टेलर की डायरी’, ‘संबंध’ (वाणी प्रकाशन) ‘विशाखन व अबूझ’ तथा ‘प्रवास चयन व उपसंहार’ आ नाटक ‘गांधारी’ आ ‘द्वंद्व’।
त’ एहेन लिली रे स’ आम रचनाक अपेक्षा त’ कएले नहिं जा सकै छै। ‘उपसंहार’ में ओ प्रेम पर लिखै छथि त’ ‘जिजीविषा’ मे मिल आ मजदूर पर। मजदूर यूनियन, राजनीति, मजदूरक स्थिति- अहि सभक बहुत महीन चित्रण अहि मे भेंटै छै।
सत्य लिखबाक साहस
लिली रे तथाकथित बोल्ड रचनाक रूप मे ‘रोगिणी’, ‘रंगीन परदा’, ‘बिहाडि एबा स’ पहिनही’ लिखै छथि, कियैक त’ प्रेम अपना ओहिठां सदिखन स’ वर्जित विषय रहल अछि। मुदा, ई सभ स्थिति समाज मे मौजूद छै। लिली रे मात्र ओकरा उघार क’ देलखिन्ह। तैं एकरा आब बोल्ड कथा स’ इतर समाजक पर्दाफाश करैत रचना सभ कहबाक चाही। अही क्रम मे ‘अबूझ’ उपन्यास छै- प्रवासी मजदूरक जीवनक विभिन्न घटना स लदबद होइत प्रवासी मजूर स्त्रीक त्रासदी, ओकर इच्छा, आकांक्षाक मद्धिम बोरसी पर सुनगैत कथा।
श्रीरमण झा लिखै छथि- ‘ई सत्य छै जे ओहि समय मे मैथिल परिवार में, विशेषत: स्त्रीगण सामाजिक मान्यताक कारणे अत्यधिक दबाव मे जिबैत छलीह। एखनो स्थिति कोनो बहुत नहि बदललइए। एकरा पर त’ जतेक लिखल जाए, कम छै, कियैकक त’ जा धरि हम सभ अपना के नहि बदलबै, कोनो बदलाव संभव नहि छै।‘
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‘मुदा लिली मामी एकर ठीक उलटा छलीह। हमरा ओहि समय मे आश्चर्यक ठेकान नहीं रहल, जहन हम हुनका शर्ट आ पैंट, जकरा ओहि समय मे स्लैक्स कहल जाइत छलै, ओहि मे हुनका देखल। घुड़सवारी करयवाली लिली मामी। जेना, कोनो सिनेमा के पर्दा से उतरि के हमरा सोझा मे ठाढ़ भ’ गेली। हम बेगम अख्तर लेल सुनने छलहूँ जे ओ घुड़सवारी करैत छलीह। एम्हर हम लिली मामी के देखल। अपन मिथिला मे सेहो एहेन स्त्री! हम गर्व स’ भरि उठल। हम अपना जनितब एकर उमेद किन्नहु नहीं केने छलहूँ। ई फराक गप्प, जे हमरा ई पहिने से कहल गेल छल जे ओ कनेक ‘डिफरेंट’ छथिन्ह, तइयो।‘
अहि ‘डिफरेंट’ मैथिलीक चेखव आ मोपासां के हमर नमन! ###