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परिधि (नियमित स्तम्भ)

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भगवती अपन स्नेह सँ अपन माधुर्य सँ मिथिलाक भूमि के रचना कयलन्हि अछि । जाहि सँ मिथिलाक भूमि बड रसगर अछि । एकर कण-कण में रस माधुर्य व्याप्त अछि । मिथिला में पानिक बहुलता अछि, पग पग पोखरि मांछ मखानक लोकोक्ति एहिठामक ह्दय में रचल बसल अछि ।

कोशी, कमला, बलान आदि क़रीब सात-आठ टा नदी मिथिला में बहति अछि। आ क़रीब प्रत्येक गाम में दू टा, चारि टा पोखरि विद्यमान अछि । आ सब मीठ पानि।  तैं कहलऊँ, मिथिलाक भूमि रसगर आ मीठगर अछि । पानिक एहन प्रभाव अछि अहिठाम, जे सब किछु में पानि दृष्टिगत अछि।

कोनो मैथिल सँ गप क कय, हुनका देख कs बुझि सकय छी। बोली में, भाषा में, व्यक्तित्व में, रूप-लावण्य में सब किछ में जलतत्व के बहुलता, एकटा स्निग्धता अछि ।

जल में सब किछु के नम रखवाक क्षमता होइत अछि । तैं मिथिलानी सासु-पुतौहक सम्बन्ध में सेहो नमी होइत अछि, आर्द्रता होइत अछि, सौहार्द होइत अछि । आपस में बड मीठ सम्बन्ध होइत अछि । सासु- माय संगहि सभ पावनि-तिहार मनाओल जाइत अछि।

अपन घरक विधी- व्यवहार पुतौहु अपन सासु सँ निरन्तर सीखति रहति छथि। दुनुक व्यवहार आपस में सम्पूर्ण घर में रचि- बसि जाइत अछि। संस्कारे किछु एहन अछि मिथिलाक कि घरक बुजुर्ग अनादि काल तक घरक प्रमुख स्तंभ रहति छथि।

अहिठाम वृद्धाश्रमक कोनो आवश्यकता नहि अछि, कारण मिथिलानीक स्वभाव में नमी होइत अछि। जतय स्त्रीक आँखिक पानि मरि जायत अछि, ओतहि वृद्धाश्रम खुजति अछि। धनि छी हम मिथिलानी, जिनकर चारूये कात नहि, आँखि आ चरित्र में सेहो पानिक बहुलता अछि । पानिक धन सँ भगवती हमरा सब परिपूर्ण केने छथि ।

आइ पुन: मिथिला भूमि गौरवान्वित अछि, शिक्षण क्षेत्रमे एकटा मिथिलानीक उपलब्धि सँ। प्रखर शिक्षिका चंदना दत्त अपन शिक्षिका धर्म…

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