सामा हमरा सबहक अति प्राचीन परंपरा में सँओ एक अछि, मिथिला में अधिकतर मैथिलानी एहि भाई-बहिनक पाबैन कें हृदय सं मनबैत छथि। सामा -चकेबा छठि के खरना सं लए क कार्तिक पूर्णिमा तक हर्षोल्लास सं दादी-मैंया, माँ -बहिन, सासु-ननैद सबमिलि जोतल खेत में खेलाईत छथि।
सबसं पहिने चिकनि माटि सं श्री सामा बनाओल जाईत छथि, तकर उपरांत सतभईयाँ, सुग्गा,पौती,कुकुर, मयुर, ढोलकिया, ई सब बनैत अछि । काछु,माँछ , चुगला,वृन्दावन ईहो सब बनैत अछि।
नित्य सामा के शीत चटाओल जाईत छन्हि संगहि नवका धान सिसोहि क आ दूबि संग चढ़ाओल जाईत छन्हि। सबदिन चुगला के गाड़ि पढ़ि झड़काओल जाईत अछि आ अपन सहोदर संग जतेक भाई छथि सबहक लेल गीत-नाद गाओल जाईत अछि।
कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर भाई सब फांफड़ बन्हैत छथि भगवती के चिनवार पर जाहि में नवका चुड़ा, गुड़, मधुर मखान पान सब नब गमछा में, बान्हैत श्री सामा के ठेहुन सं लगा फोड़ि दैत छथिन आ तकर उपरांत बहिन सब डाला लए जोतल-तामल खेत में सब मिलि गीत गाबि सामा के भसान करैत छथि। जेकरा बहुतो ठाम सामा सासूर जाईत छथि सेहो कहल जाय ये ।
सांब आ सामा दुनु कृष्ण आ जामवंती के बेटा-बेटी रहथिन्ह, जे श्राप पाबि चिड़ै-चुनमुन्नी जोनि में जन्म भ गेलैन,फेर भाई हुनिका उद्दार केने रहथिन्ह। जेना एकटा बेटी के बिदाई में साज-बाज संग बिदाई देल जाई छलै तहिना सामा के सासुर जाइत काल या ओहि उपलक्ष्य में सब सामा बनाओल जाईत छै, जेना लड्डु बेचनी, ढोलकिया, बाटो बहिना जे भसाओन सं पहिने रास्ता पर राखल जाईत छै।
असल में सतभईयाँ, सामा, चकेबा, वृन्दावन कजरौटी,पौती, ई सब बनए छै, आ मयुर सब सुग्गा सब त चिड़ै-चुनमुन्नी जोनि में जन्म लेलखिन तें बनाओल जाईत छै।
पहिल दिन गे माई गंगा -यमुना के ईहो चिक्कन माटि गीत सं आरम्भ कयल जाय छैक:
(१)
गे माई कोने भईया लओता आलड़ि-झालड़ि,
कोने भईया लओता पटोर ।
गे माई कोने भईया लओता झिलमिल केचुआ,
कोने भईया कामी सेनुर।।
(२)
सामा खेलए गेलऊं भाई के आंगन
भाउज लेलनि लुलुआई गे माई।।
तेकर बाद बहुत रास गीत गएला के बाद फकड़ा सेहो पढ़ल जाइ छैक। जेना :
(१)
साम चके-साम चके अबिह हे, अबिह हे,
जोतला खेत में बैसिह हे बैसिह हे,
ढेपा फोड़ि -फोड़ि खैहहे खईहहे।
सबरंग पटिया ओछबिअह हे, ओछबिअह हे,
ताहि पटिया पर कए-कए जना, कए-कए जना।
छोटे बड़े सभे जना।
(२)
वृन्दावन में आगि लगलै कियो नै मिझाबै हे
हमर भईया अमित भईया दौड़-दौड़ मिझाबै हे।
(३)
चाऊर-चाऊर, चाऊर भैया कोठी चाऊर
छाऊर, छाऊर चुगला कोठी छाऊर।
(४)
चुगला करे चुगलपन बिलाई करे मियाऊ ,
एकसरे चुगला फॉसी जाऊ।
एहि सब तरहें छोट छिन फकड़ा पढ़ि चुगला-वृन्दावन के जराओल जाइत अछि। एहि पाबनिक सम्बन्ध मे अनेक तरहक किवदंती प्रचलित अछि आ अनेक कथा कहल जाइछ। ओकर वासतविकता जे किछ होइ, एतेक धरि सत्य जे मिथिलामे ई पाबनि भाइ-बहिनक बीच स्नेहक अनुपम प्रतीक बनल अछि।