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डॉ. आभा झा

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मैथिली साहित्यमे स्त्री लेखिकाक विरल संख्या सेहो झमटगर गाछक रूप लेलक अछि, किन्तु कतोक चुनौतीसॅं स्त्री- लेखिकाकेॅं नित्य  सोझां-सोझी होइत छनि। ओ की पहिरथि जकाॅं ओ की लिखथि,एकर घमर्थन पितृसत्तात्मक समाजक ठेकेदारक बीच होइत रहल अछि।एहन स्थितिमे  स्त्रीक लेखन अस्मिताक संघर्षक चुनौतीक रूपमे ठाढ़ भ’ जाइछ।

समाजक संरचनामे पितृसत्ता सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक व्यवस्था , मूल्य ,मर्यादा, आदर्श तथा संस्कारक विभिन्न रूपमे बड़ मेही ढंगसॅं बुनल गेल अछि। एहि सुनियोजित शोषण-उत्पीड़नक विरुद्ध विश्व भरिक वैचारिक चिंतनमे नारीवादी विमर्शक नव आयाम बनाओल गेल अछि। पश्चिममे स्त्री विमर्श शुरू करबाक श्रेय “सीमोन द बोउवार” केॅं छनि जे ‘ द सेकेंड सेक्स’ लिखि कए समाज मे तहलका मचा देलनि तथा परंपरागत सामाजिक संरचनाकेॅं झिंझोरि देलनि।

भारतमे सेहो एहि आंदोलनक आंच  पजरल आ विभिन्न भाषामे  महिलाक अस्मिता- रक्षणक गप कहल-सुनल, लिखल-पढ़ल जाइत रहल, जाहिमे पुरुष- लेखकक सहभागिता सेहो रहल। महिला-लेखनक केंद्रमे स्त्री अस्मिताक संघर्ष, अदम्य जिजीविषा, स्त्री स्वातंत्र्य, यौन उत्पीड़नक प्रति विद्रोह तथा अपन पहिचानक प्रति जागरूकताक संग सामाजिक यथार्थक अवलोकन आ ओकर बेलाग अभिव्यक्ति अछि आओर ओ  समकालीन साहित्यमे सशक्त हस्तक्षेपक माद्दा रखैत अछि।

वर्तमानमे मैथिली भाषामे सेहो बहुत रास स्त्री लेखिका स्वतंत्रता, समानता , न्याय आदि मूलभूत अधिकारक लेल संघर्षरत एवं सक्रिय छथि। लेखनक माध्यमसॅं ओ समाजक संकीर्ण मानसिकताक ऐना देखबैत छथि, समाजसॅं प्रश्न करैत छथि, आत्मविश्वाससॅं अपन सुख-दुख, आक्रोश आ असहमति व्यक्त करैत छथि,स्त्रीवादक वैचारिक साहित्यमे सतत समृद्धि आनि रहल छथि।

आइ हम दीपा मिश्र जीक जाहि पुस्तकक पाठकीय प्रतिक्रिया लिखि रहल छी ओकर शीर्षके वैचारिक घमासान मचब’ लेल पर्याप्त अछि। ई नाम किऐक? झांपल- तोपल नामो देल जा सकैत छलै! कथ्यक संप्रेषण लेल की देह उघाड़ब आ ओकर संपुट करब उचित! ओना एहि प्रश्नक उत्तरमे प्रतिप्रश्न कएल जा सकैछ जे कैशोर्यमे होमए बला हार्मोनल परिवर्तन देहक संग- संग भावनात्मक परिवर्तनक कारण सेहो बनैत छैक,तखन ओहिसॅं उद्वेलित भए ओहि अनुभूतिक वर्णन अग्राह्य किऐक?

विभिन्न भाषाक साहित्यमे कामविह्वला स्त्रीक मनोभावक खुलल वर्णन भेल अछि, महाकविक उपाधिसॅं विभूषित महाकवि कालिदास त’ उमा-महेश्वरक समागमक बखान सेहो कएलनि अछि, तखन दिक्कत कत’ छै? दिक्कत छैक जे स्त्रीक गर्भमे पलि, ओकर रक्तमज्जा सॅं विनिर्मित शिशु जाहि बाटें धरती पर अबै अछि, वयस्क भेला उत्तर अपर स्त्रीक ओहि अंगविशेषमे अपन पुरुषत्वक सार्थकता पबितो ओकरा मात्र अपन संपत्ति मानैत रहल अछि। अस्तु,ई जटिल विषय अछि, अनेक अतंर्विरोधक परिधि मे ओझरायल अछि, तैं एकरा छाड़ि हमर एतबहि कहब अछि जे जहिना अपन संतानक नामकरणक  अधिकार माए-बापक होइछ, ओहिना अपन साहित्यिक कृतिक नामकरणक अधिकार साहित्यकारक। एहि अधिकार पर प्रश्न उठाएब सर्वथा अनुचित।

दीपाजीक चेतना मात्र भावनात्मक नहिॅं अपितु बौद्धिकताक मानदंड पर आधारित अछि आ ओ निरंतर यथार्थवादी दृष्टिकोण, गहनता आ आत्मविश्वासक संग लिखि रहल छथि। यद्यपि “योनिक आत्मबोध” शीर्षक कविता छाड़ि देल जाइ  त’ अन्यान्य विषय पर गोटेक टापर रचना पहिनहुॅं भेल अछि आ आबहु आन रचनाकार लिखि रहल छथि। किन्तु एक ठाम प्राय: स्त्री-संबद्ध दैहिक,मानसिक आ सामाजिक स्थितिक स्वाभाविक आ मुक्त अभिव्यक्ति लेल दीपाजीक साहस प्रशंसनीय अछि।

मासिकधर्मक आरंभसॅं रजोनिवृत्तिक क्रममे होमएबला शारीरिक-मानसिक परिवर्तन, यौवनक आरंभमे विपरीतलिङ्गीक प्रति सहज आकर्षण, स्त्री-पुरुषक मध्य सामाजिक भेद-भाव, पढ़ल-लिखल स्त्रीक शिक्षाक अनुपयोग आ तज्जन्य स्त्रीक पीड़ा, वैवाहिक बलात्कार आदि ओहि सभ विषय पर दीपा खुलिक’ कलम चलौलनि, जाहि पर लिखबासॅं स्त्री स्वयं बचैत रहैत अछि। हुनक रचना कोनो तरहेॅं पुरुष विरोधी रचना नहिॅं थिक, जकरा  एहि पोथीक परिप्रेक्ष्य मे देखबाक क्रममे किछु पांती उद्धृत कए रहल छी-

हमर युद्ध त’ हमरा स्वयंसॅं अछि
हम रोज लड़ै छी
कियैक त’ शब्द छोड़ि हमरा लग कोनो अस्त्र नहिॅं।
हमर युद्ध ओहि हमरासॅं
जे सभ किछु बुझितो
हमरासॅं बाहर नहिॅं निकलैये।

गहना- गुड़ियाक मोहक जालमे ओझरायलस्त्रीक स्थिति हुनका सीदित करैत छनि आ कवयित्री कहि उठैत छथि-

कतेको ओझरायल रहि गेलीह
एहि गहनाक बीच
आ सीपक मोती कहिया हेरा गेलनि
बुझबो नहिॅं केलैथ।

बहुत पहिने महादेवी वर्मा  स्त्रीकेॅं सावधान करैत कहने छलीह-

जाग तुझको दूर जाना
बांध लेंगे क्या तुझे ये मोम के बंधन सजीले
 पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले
विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन..

मानव-मात्रक सर्वोपरि इच्छा होइत छैक अपन इच्छाक, अपन स्वतंत्र अस्तित्वक,अपन आत्मसम्मानक रक्षा कएल जाए। किन्तु स्त्रीक एहि निजताक कहियो सम्मान नहिॅं भेटलै आ तैं ओकर अन्तर्मनमे धधड़ा धधकैत छै,जकर अभिव्यक्ति भेल अछि एहितरहेॅं-

जीवन व्यक्ति विशेषक अपन थिक
ओ कोनो नैहर सासुरसॅं नहिॅं
हमर गाम हम अपनहि चुनब
समाजसॅं बाध्य भ’ क’ नहिॅं।
भीतरक धधड़ा
ई आगि हमर थिक
ई भीतरक धधड़ा हमर
हम आब डाहब अपन सबटा
मान अपमान पीड़ा उलहन
निकलब तपैत सोन सन
हम जरब की बचब
ओकर उत्तरदायित्व हमर रहत।

कतोक बंधन,कतोक जकड़न स्त्रीकेॅं कोना रक्तरंजित करैत छैक, ओकर छटपटाहटि कवयित्रीकेॅं उद्वेलित करैत छनि आ ओ प्रतिकारक बाट देखबैत कहि उठैत छथि-

सोनाक हो वा लोहा के
चटपटाहटि त’ एके छल ने
परंपराक रूढ़िवादिताक
ओ दंभ जे बाध्य करैत अछि
ओ दंभ जे बाध्य करैत अछि
ओ हमरा मान्य नहिॅं
अपन सामर्थ्य अपने बुझब आब आवश्यक
नहिॅं कहब सेहो सीखब आब जरूरी।

एत’  मोन पड़त अहाॅंकेॅं शिवमंगल सिंह सुमन जीक कवितांश-

हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजर पिंजरबद्ध न गा पाएंगे
 कनक तीलियों से टकराकर
 पुलकित पंख टूट जाएंगे।

कजरी लागल परंपराक खंडनक ओकालति करैतो हुनक लेखन विध्वंसक नहिॅं अपितु योजक छनि,व्रत-उपासक संस्कृतिक पोषक छनि,गामक भाषा-संस्कृतिक अनुरागी छनि, प्राचीन परंपराक नीक तत्वक आधुनिकताक संग समन्वयक आग्रही छनि।ओ स्वयं कहैत छथि-

लेकिन हमर कहब
 जे नब घर उठय आ पुरान घर फेरो बसय
हमरा पुराने घरके नव करबाक अछि
ओकरे मजगूत नींव पर
 नव मिथिला बसेबाक अछि।

अंतमे एतबहि कहब जे एहि निर्भीक स्वरक स्वागत हयबाक चाही। अनुप्रास प्रकाशनसॅं छपल एहि पोथीमे 64 गोट सशक्त आ सार्थक कविता अछि,जे पढ़ल जयबाक चाही।

जाहि दिन स्त्रीकेॅं ओकर स्वयंकेर नामसॅं चीन्हब आ स्वीकारब सहज क्रम बनि जायत,ओकर परिचय लेल पिता, पति, पुत्र किंवा आन सम्बन्धीक उपसर्ग आवश्यक नहिॅं रहत, ताधरि ओकर herself प्रश्नांकित रहत आ ओ प्रत्यय जकाॅं संयुक्त होइतो, परिवार आओर समाजक अर्थवत्ताक विस्तारक हेतु होइतो संपूर्ण शब्द नहिॅं बनि, शब्दांश मात्र रहतीह।

लिली रे के प्रखर व्यक्तित्वक साक्षी आ प्रशंसक समग्र मिथिला अछि। किन्तु हुनकहु परिचयमे वरीय अधिकारी भीमनाथ मिश्रक पुत्री हयबाक आ प्रतिष्ठित परिवारक कुलवधू हयबाक उपसर्ग रहरहाॅं जोड़ल जाइत रहल। तथापि, लिली रे अपन व्यक्तित्वक आ कृतित्वक बलेॅं फराक परिचिति बनौलनि आ मनबौलनि ,ई हुनक विशिष्ट  उपलब्धि रहल।

आइ जाहि स्त्रीक सामाजिक-आर्थिक- राजनीतिक समानताक आवश्यकता राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय  स्तरपर स्वीकारल जाइत अछि,ओहि  लेल आवाज उठयबाक जरूरति आइयो अनुभव कएल जाइत अछि,ओहि स्वतंत्रताकेॅं सहजतया बाल्यकाल सॅं उपभोग करइत, यावज्जीवन अपना हिसाबेॅं   निर्बन्ध जीवन जिबैत आ अपन साहित्यहुमे ओहि स्वतंत्रताक ओकालति आक्रामक नहिॅं अपितु सहजरूपेॅं करैत लिली रे बहुआयामी व्यक्तित्वक स्वामिनी छलीह।

दिव्य गौर मुखमंडल, गरिमामय कान्ति, लक्ष्मी,सरस्वती आ शक्तिक(पद-प्रतिष्ठा) कृपासॅं आप्लावित लिली रे केर कुण्ठारहित जीवन ऊपरसॅं  जतेक समतल बुझाइत छनि, ओतेक समतल वस्तुत: रहलनि नहिॅं जे अपन लेखनक हेतु बतबैत अपन शोधच्छात्रा  शिष्या ममता कुमारीकेॅं लिखल सुदीर्घ पत्रसॅं स्पष्ट होइत अछि।आइ ओ अपन नश्वर काया तजि गोलोकवासिनी भेलीह, किन्तु हुनक यश:शरीर सदैव हमरा सभहक बीच रहत।

परिवर्तिनि संसारेSस्मिन् मृत: को वा न जायते
स जातो येन जातेन याति वंश: समुन्नतिम्।।

हुनक देहावसान पर श्रद्धांजलि-सुमन अर्पित करैत हुनक जीवन पर संक्षिप्त दृष्टिपात करब हमर ध्येय अछि-

लिली रेक जन्म 26.01.1933 क’  स्व. भीमनाथ मिश्रजीक पहिल सन्तानक रूपमे भेलनि। पिताक व्यक्तित्वक प्रखरता, विद्यानुरागक नैसर्गिकता ओ संस्कारक निर्मलता  हुनका परंपरासॅं भेटलनि। शिक्षा- दीक्षा मिशन स्कूलमे भेलनि जतए मानवमात्रक समानता तथा  मानवीय करुणाक भावना हुनक मन: प्राणकेॅं आप्लावित कएलकनि। संगहिं अङरेजी शिक्षासँ उत्पन्न पाश्चात्य जीवन-दर्शन  सेहो उद्भावित- अनुप्राणित कएलकनि। तैं ओ पुरातन-सनातन ओ आधुनिक-अत्याधुनिक दुहू पक्षक सामंजस्यक उदात्त बिन्दुकेँ अपन जीवनमे ग्रहण करबाक क्षमतासॅं संयुक्त छलीह।

हुनक कथनानुसार ओ अपन ‘जीवनक पहिल कथा ‘‘चण्डी’’ बारह वर्षक अवस्थामे लिखने रहथि,जे  प्रकाशित नहि भए सकलैन्हि।दरभंगाक ‘वैदेही’ नामक पत्रिकामे (1955 ई. मे) पहिल कथा ‘रोगिणी’ छपितहिं हिनक नाम चर्चित भए गेलैन्हि। सबकेँ बुझले छैक जे मैथिलीक ई प्रसिद्ध लेखिका अपन लेखनीसँ हिन्दीक सेवा सेहो निष्ठाक संग करैत रहलीहि अछि।

‘आत्महत्या’, ‘आठवर्ष’, ‘अपमान’ आदि शीर्षकसँ कतोक कथा ई हिन्दीक प्रसिद्ध पत्रिका ‘माया’ मे कल्पनाशरणक नामसँ प्रकाशित करओलनि। हिनक मैथिली कथा ‘रंगीन परदा’ अत्यधिक प्रसिद्धि प्राप्त कएलक। स्त्रीक अस्मिता आ ओहि संस्कारक तीव्र स्वर मुखरित भेल अछि ‘जिद’, ‘चन्द्रमुखी’, ‘माया’, ‘चक्र’, ‘अन्तराल’, ‘रानूदेवी राणा’, ‘अन्तः सलिला’ आदि कथा आओर ‘पटाक्षेप’, ‘मरीचिका’ एवं ‘अवैध’ (अप्रकाशित) नामक औपन्यासिक काव्यकृतिमे। विशाखन नामक प्रतिनिधि कथा, उपसंहार एवं बड्ड पुरान गप,लाली गुरांस,नीक लोक, आत्मकथा समयकेॅं धंङैत आदि हिनक रचना- संसार थिकनि।

लिली रेकेँ 1982 मे साहित्य अकादमीक पुरस्कार हिनक औपन्यासिक कृति ‘मरीचिका’केँ भेटलनि।वस्तुतः नारीमुक्ति-आन्दोलनक प्रतीक रूपमे एहि उपन्यासकेॅं देखल जा सकैछ। पहिल ‘प्रबोध सम्मान’ (2004) स’ सेहो सम्मानित भेल रहथि।

एतेक रचनाक उपहार संसारकेॅं देनिहारि आदरणीया श्रीमती लिली रेकेॅं हुनक  आधुनिक उन्मुक्त जीवन-शैलीक कारण एकटा मुक्त महिला (Liberated woman) मानल जाइत रहलनि,अल्ट्रामाॅडर्न महिलाक व्यंग्य ओ कटाक्षक अनवरत प्रहार कएल जाइत रहलनि । तथापि, “लीक छाड़ि  तीनू चलए शायर, शेर, सपूत”  केर ध्वनि सॅं अभिप्रेरित ओ चलैत रहलीह,अपन बहुआयामी व्यक्तित्वक सकारात्मक चिंतन तथा साहित्यिक कृतिक उपहार समाजकेॅं दैत रहलीह।

आइ ओ हमरा सभहक संग नहिॅं छथि, किन्तु अपन साहित्यक माध्यमसॅं सदैव रहतीह। हुनका लेल वास्तविक श्रद्धांजलि होएत स्त्री आ पुरुषकेॅं फराक नहिॅं, अपितु मात्र मनुष्यक कोटिमे राखल जाइ,ओकर व्यक्तिगत जीवन पर टीका-टिप्पणीक प्रवृत्ति छाड़ि समाजक लेल देल गेल अवदान पर विवेचना कएल जाय।

प्रत्येक वर्ष अपना संग किछु सम-विषम सनेश आनैत अछि आ जाइत-जाइत हमरा सभ लेल आत्ममंथनक अवसर छोड़ि जाइत अछि। तहिना आइ वर्ष 2020 आ 2021 केर ई संक्रमण बेला हमरा सभकें बीतल बरख केर पाओल-गमाओल पर मंथन करबाक अवसर द रहल अछि। एहि वर्षमे की सभ उपलब्धि भेल,ताहिपर गर्व करबाक अछि,जे किछु अप्राप्त रहल तकरा प्राप्त करबा लेल योजना बनयबाक अछि।

तैं ,आइ एहि लेखक माध्यमसॅं हम मिथिलाक सीमित भौगोलिक परिधिमे, ताहूमे ओकर आधा आबादी यानी मैथिल ललनाक स्थिति आ उपलब्धि पर गप करब-कोनाक’ ओ सभ एहन निराशाजनक परिस्थितिमे, अनिश्चित शारीरिक, सामाजिक, आर्थिक परिस्थितिक संग संतुलन बनौलनि, कोना घरमे सकारात्मकताक बसात बहैबामे  एक सीमाधरि सफल रहलीह?

कोनो सभ्यता आ सांस्कृतिक धरोहरकेॅं आगू ल’ जयबामे स्त्रिगण सदति प्रत्यक्षतः वा परोक्षत: महत्वपूर्ण भूमिका निभबैत रहलीह अछि।२०२१ मे जॅं साहित्यक समृद्धिक दृष्टि सॅं  विचार कएल जाय त’ ई मिथिलाक महिला लेखिकाक लेल  अभूतपूर्व उपलब्धिक बर्ख रहल अछि। जे स्त्रिगण अपन भावनाकेॅं डायरीक पन्नामे अभिव्यक्त कए स्वयंकेॅं कृतकृत्य मानैत छलीह, हुनका सभमेसॅं बहुतो गोटेकेॅं अपन रचना प्रकाशित करयबाक इच्छा मात्र जागृतेटा नहिॅं भेलनि अपितु व्यवहारमे सेहो प्रतिफलित भेलनि।

एहि बाट पर मात्र युवा लेखिका नहिॅं, अपितु हमरा सभ सन प्रौढ़ महिला लोकनि सेहो मजगूत डेग बढ़ौलनि। अवश्य गद्यक तुलनामे कविता, गीत आदिक रचना-संग्रह बेशी छपल, तथापि जे छपल ओ महिलाक रचनाधर्मिताक गवाही दैत रहल। जे रचनाकर्त्री सभ अपन- अपन मातृभाषामे पोथी ल’क’ उपस्थित भेलीह आ अपन सार्थक तथा सशक्त उपस्थिति देखौलनि,ताहिमे छथि-

श्रीमती कल्पना झा – निनियां (बाल-गीत)
डॉ.आभा झा- चिनबार (काव्य- संग्रह)
 प्रोफ़ेसर गौरी चौधरी – चेतनाक स्वर (निबंध- संग्रह)
श्रीमती सुनीता झा-जीवनक रंग (कथा संग्रह)
 श्रीमती प्रो. उषा किरण खान-सदति यात्रा (कथा संग्रह)
श्रीमती पूनम झा सुधा- मिनतीमे विश्वास (गीत-संग्रह)
श्रीमती सविता झा सोनी- मिथिलामे सियाराम (गीत-संग्रह)
श्रीमती दीपिका झा- मैथिली गीतमाला (गीत-संग्रह)
श्रीमती विजेता चौधरी- चुप्पी चिकरैछ नि:शब्द  नि:शब्द  (काव्य संग्रह)
 सुश्री संस्कृति मिश्रा- जीतब हम (नाटक)
श्रीमती सोनी नीलू झा- औनी पथारी ( काव्य- संग्रह)
श्रीमती जयंती कुमारी-अभिसारिका (काव्य- संग्रह)
 सुश्री अंजली कुमारी- मुट्ठी भरि संवेदना (काव्य- संग्रह)
श्रीमती रोमिशा झा- आंजुर भरि इजोत (काव्य- संग्रह)
श्रीमती स्वाती शाकम्भरी- धिया कहए (काव्य- संग्रह)
श्रीमती  नेहा झा मणि- अंगनामे अकाश (काव्य-संग्रह)
श्रीमती  लक्ष्मी सिंह ठाकुर- उधिआइत अदहनक कथा (कथा-संग्रह)
श्रीमती  दीपिका झा- अन्तिम स्त्री (कथा-संग्रह)
श्रीमती  करुणा झा- फाटल हृदय (गजल-संग्रह)
श्रीमती रूपम झा – चान ओलती ठाढ़ अछि (दोहा-संग्रह)
श्रीमती  मेनका मलिक- स्त्री,राति आ प्लेटफार्म नं 13 (कथा-संग्रह)
डॉ.  निक्की प्रियदर्शिनी – मैथिली अनुवाद: सिद्धांत ओ विवेचन (अकादमिक) 

संगहि अनेक मिथिलानी लोकनि हिन्दी वा आन भाषामे सेहो अपन कृतिसं अपन नांव जगजियार केलनि। किछु मुख्य कृति जे एहि लेखिकाक दृष्टिमे आओल, से छैक:

श्रीमती  बिभा कुमारी- एक समूह ऐसा भी (काव्य- संग्रह)
श्रीमती समता मिश्रा- मन का विहग आ अल्फाजों की जुर्रत (दुनु काव्य संग्रह)
श्रीमती खुशबू मिश्रा – सत्य की अस्मिता (काव्य संग्रह)
श्रीमती नेहा झा मणि- झंकृत एहसास (काव्य-संग्रह)
श्रीमती रीना चौधरी (काव्य संग्रह) 
अनुवाद साहित्य 
श्रीमती विभा रानी- शकुन सैमुराई (उषा किरण खां केर मैथिली कथा सबहक हिन्दी अनुवाद)
श्रीमती कल्पना झा –  यायावरी (डॉ. शेफालिका वर्मा केर मैथिली यात्रा संस्मरणक हिन्दी अनुवाद)  

 एकर अतिरिक्त जॅं वैयक्तिक रूप सॅं कोनो मैथिल स्त्रीक उपलब्धिक गप करी त’ श्रीमती आभा झाक नाम लेब जरूरी बुझना जाइछ।ओ अपन समृद्ध कवित्व तथा मोहक प्रस्तुतीकरण-शैलीक दम पर मिथिला आ मिथिलेतर क्षेत्रोमे होमय बला कवि-सम्मेलनमे आदरक संग स्थान पबैत रहलीह अछि आ लोकक प्रशंसा पबैत रहलीह अछि।

 जॅं कोनो साहित्यकारक उपलब्धि ओकरा देल गेल पारितोषिकसॅं नापल जाय,त’ ओहूमे चयनकर्ताक मानस- परिवर्तनक झांकी देखबामे आयल अछि। चेतना समिति, पटना द्वारा एहि बरखक ज्योत्स्ना- पुरस्कार विजेता चौधरीजीकेॅं आ माहेश्वरी सिंह महेश पुरस्कार युवा लेखिका सुश्री संस्कृति मिश्रकेॅं भेटब एकटा सुखद संकेत अछि आ न’ब लेखिका लेल प्रेरणास्पद सेहो। चेतना समिति द्वारा एहि बरख साहित्य अकादमी आवार्डी लेखिका डॉ.  शेफालिका वर्मा आ प्रसिद्ध गायिका डॉ. रंजना झा कें ताम्रपत्रसं सम्मानित सेहो कएल गेल।   

मिथिला पेंटिंग लेल श्रीमती दुलारी देवीकेॅं देल गेल पद्म पुरस्कार आ हिन्दी भाषा लेल साहित्य अकादमी पुरस्कार श्रीमती अनामिकाकेॅं भेटब संपूर्ण मिथिला लेल गौरवक विषय थिक। एहि साल शिक्षाक क्षेत्रमे रांटी  (मधुबनी) केर शिक्षिका श्रीमती चन्दना दत्तकेॅं राष्ट्रपति सम्मान भेटलनि। चित्रकार नूतन बाला सेहो बिहार सरकार द्वारा राज्य स्तरीय कला पुरस्कार सं सम्मानित भेलीह।  

मीडियाक क्षेत्रमे सुश्री स्नेहा झाकेॅं देल गेल शेखर-सम्मान निस्संदेह मीलक पाथर सिद्ध होयत। मैथिली मीडियामे काज कर’ बला लोक सेहो प्रसिद्धि आ पुरस्कार पाबि सकैत अछि ई विश्वास भेने आन- आन बालिका सभ एहि दिसि अपन उपस्थिति देखैबा लेल प्रेरित होइतीह। युवा गायिका सुश्री मैथिली ठाकुरकेॅं २०२१के लोकमत सुर ज्योत्स्ना पुरस्कार भेटब सेहो एकटा अभूतपूर्व उपलब्धि रहल।

 एकटा विलक्षण  उपलब्धि पर अवश्य दृष्टिपात कर’ चाहब जे अपन अवधारणा, योजना- निर्माण,सफल कार्यान्वयन सॅं अत्यधिक चर्चित भेल। हम गप क रहल छी 12 दिसंबरसॅं 15 दिसंबर धरि चल’  बला चतुर्दिवसीय मधुबनी लिटरेचर फेस्टिवल केर, जे मिथिलाक हृदय- प्रदेश दरभंगामे आयोजित भेल। एहिमे मात्र देशभरिक मैथिल विद्वान्, कवि, गायक, कलाकार, चित्रकार, अभिनेता नहिॅं अपितु विदेशक लोक सेहो उपस्थित भेलाह आ एहितरहेॅं  मिथिला आ मैथिलीक गौरव- गाथाकेॅं विस्तृत  करबामे ई फेस्टिवल सक्षम भेल।

श्रीलंकाक राजदूत सपत्नीक, काडमांडू सँ आयल विश्वप्रसिद्ध भाषाशास्त्री रामावतार यादव , महान रंगकर्मी रामगोपाल बजाज, महान् लेखिका उषाकिरण खान, ‘वैदेही’ विषय पर विश्व भरिक 122 पेंटिंग कें एकठाम आर्टगैलरी रूप मे सजौनिहार मनीषा झा, सुप्रसिद्ध रंगकर्मी कनुप्रिया शंकर पंडित, सहित सुप्रसिद्ध नृत्यांगना वीणा सी शेषाद्रि (बैंगलोर), राग सुधा (लंदन), एस सुमन (नेपाल).लोकगीत मर्मज्ञा रंजू मिश्र, असमीभाषी मैथिली विदुषी दीपामणि हलई महंत, सोपर आइआइटी सँ लिंग्युस्टिक पर काज क’ रहलि देवांशी, अतिरिक्त एकर देश-विदेश सभ सँ आयल अनेक विद्वज्जन एहि फेस्टिवलकेॅं ग्लोबल रूप देबामे सफल भेलाह।

मिथिलाक चित्रकला, अभिनय, गीत- संगीत, कविता, गीत- नृत्य आदिक प्राचीन परंपराक गौरवमय प्रदर्शनक संग आधुनिक कैटवॉक तक एहि फेस्टिवलक विशिष्टता छल।  एकर परिकल्पना,संयोजन, आ व्यवहार- भूमिमे अननिहारि छथि श्रीमती सविता झा खान जे चारिम बेर एतेक पैघ आयोजन सफलतापूर्वक संपन्न  कय  स्त्रीक असीम शक्तिक उद्घोषणा मुंहसॅं नहिॅं अपितु काजसॅं करैत छथि।

 संपादनक क्षेत्रमे श्रीमती दीपा मिश्रा मजगूतीसॅं पाएर रखलनि आ “वाची“नामसॅं त्रैमासिक पत्रिका निकाललनि जकर स्तर, विविधता आ आकर्षक साज- सज्जा लोकप्रियताक प्रतिमान बना रहल अछि। एकर सफलतासॅं उत्साहित ओ स्वतंत्ररूपेॅं हिन्दी आ मैथिलीमे लेखनक संग हिंदीमे एकटा साझा- संग्रह “दोस्तियां, यारियां मनमर्जियां” बहार कएलनि। अगिला महिला- दिवस पर प्राय: 165 महिला- लेखिकाक रचनासॅं सज्जित काव्य- संग्रह “मैथिली” अनबालेल उद्यमरत छथि।

मैथिली-भाषा एवं संस्कृतिक प्रसार लेल “सखी बहिनपा मैथिलानी समूह“क नाम सेहो लेल जा सकैछ जे अपन फराक शैली में काज करैत अछि, किन्तु स्त्री-सशक्तीकरणक दिशामे महत्वपूर्ण पहिचान बनौलक अछि।देश- विदेश मे रहैत लोक एहि समूहक अंतर्गत एकटा मालामे बन्हायल छथि आ अपन -अपन स्तर पर परंपरा- संरक्षणक संग मैथिल स्त्रीकेॅं जागरूक,सबल आ आत्मनिर्भर बनयबाक दिशामे आगू बढ़ि रहल छथि।

तेरह नवंबर क’ वर्चुअल माध्यमसॅं भेल इंटरनेशनल वीमेंस समिट सेहो उल्लेखनीय अछि जाहिमे विभिन्न क्षेत्रमे उल्लेखनीय काज कैनिहारि प्रायः चारिसै महिला एक प्लेटफार्म पर उपस्थित भए मिथिला- क्षेत्रक उन्नति लेल विमर्श कएलनि। एकर अतिरिक्त अनेक धी-बेटी शैक्षणिक एवं आजीविकाक क्षेत्रमे विशिष्ट उपलब्धि प्राप्त कएलनि अछि जे गौरवक विषय थिक।

एहि तरहेॅं कहल जा सकैछ जे २०२१ सृजनात्मकता, प्रसिद्धि आ पुरस्कारक  दृष्टिएं मैथिल-स्त्री लेल गौरवशाली रहल अछि।ई सृजनशीलता अनवरत बनल रहौ,एहि कामनाक संग एहि वर्षकेॅं विदा करबाक उपक्रम कएल जाए आ नववर्षक स्वागतक मनोभूमि बनाओल जाय।

नोट– उपरोक्त उल्लेख सभ वर्तमान परिदृश्य मे मिथिलानी लोकनिक कीर्तिक सांकेतिक प्रतिबिंब मात्र अछि। भए सकैछ जे कोनो रचना, लेखिका वा कोनो मिथिलानीक उपलब्धि एहि लेखिकाक नजरिसॅं छूटि गेल हो अथवा नहिॅं बूझल होए, तैं ओहि अनुपस्थिति कें अन्यथा नहि लेल जाए।  

राजर्षि जनकक प्राणप्यारी दुहिता मैथिली,शक्तिक अजस्र स्रोत वैदेही,असुर-त्रास सं सज्जन लोकनिक त्राणक हेतु सीता, आसुरी शक्तिक बन्दिनी होइतहुं अपन कर्त्तव्यपथ पर अविचलित -अकम्पित ठाढ़ जनकात्मजाक स्मरण -मात्र सॅं हृदय श्रद्धा सं नत भ’ जाइत अछि। हुनक स्मरण मात्र सॅं हृदयकेॅं चहुॅं दिसि सॅं करुणा घेरै अछि,हुनक उत्पत्ति सॅं ल’ क’ भूमिसात हयबा धरिक जीवन यात्रा नोर सॅं भीजल देखना जाइछ,अथाह वेदनाक जलधि मे ऊमडूम होइत प्रश्नांकित स्त्री-अस्मिता विचलित करैत अछि, तथापि प्रतिकूलतम परिस्थितियो मे हुनकर अविचल धैर्य आ  पातिव्रत्यक आदर्श तथा निर्भीक स्वाभिमान हृदय केॅं श्रद्धावनत करैत अछि।

वैदिक काल कें छोड़ि देल जाइ,त’ स्त्रीक लेल समाज कहियो बहुत उदार नञि रहल अछि।ओकर दृष्टिकोण स्त्रीक संबंध मे निर्मम शंकाशीलताक रहल अछि,कनेको निर्धारित पथ सॅं स्खलित भेला पर, खाहे ओहि स्खलनक हेतु ओ स्वयं होथि वा क्यो आन, निठुर-निदारुण परित्याग हुनक नियति बनल छल।एखन एहि प्रसंगक करुण-ध्वनि केॅं कात राखि, सीताक व्यक्तित्वक आ चरित्रक सबल पक्ष पर दृष्टिपात करब आ एहि चिंतन लेल आधार- भूमि रहत परम आदरणीया पद्मश्री श्रीमती उषा किरण खान जी द्वारा विरचित काव्य-“जाइ सॅं पहिने”।

अपन काव्यक दिशाक निर्देशन करैत लेखिका भूमिका मे लिखैत छथिन-

“अनकर अपराधक दण्ड भोगयबाली जानकी आजिज आबि गेल छलीह करुणा विगलित दयालु प्रेम सॅं।कोन विधियें रहितथि एहि असार संसार मे? आर कतेक बेर शंकित घुरघुराइत मनक शान्ति केॅं अपन सतीत्वक परिचय रूपी चानन सॅं शीतल करितथि?”

एत’ मोन पड़ि जाइत अछि स्टीफन ज्विग(Stefan Zweig) महोदयक बिवेयर ऑफ पिटी

“Sympathy is a double edged sword. If you don’t know how to use it, don’t even touch it, and more importantly, you have to harden your heart against it.”

स्वाभिमानिनी सीता ई सहानुभूति किंवा दया स्वीकार करबा लेल तैयार नञि छथि अपात्र राजकुल सॅं !

गुरु,ऋषि वा पितृव्य वाल्मीकिक लव-कुशक प्रबोधनक क्रम मे सीताक निरपराधिताक, पवित्रताक आ चारित्रिक उन्नतिक प्रमाणपत्र सन ई उक्ति ध्यातव्य अछि-

बाउ, निरपराध मृगशाविका, भयातुर कपोती
परित्यज्या रमणीय,वर्षाक भू-लुंठित बुन्नी
मौलिश्रीक तूबल पुष्प,पिरौंछ खसल पत्र
एक्कहि होइछ सर्वत्र!
बाउ लोकनि ओ आइयो सिय सुकुमारी छथि
युगे युगे रहतीह,अहिंक माय सन निस्संदेह रहतीह।

प्रसंगवश कविक कर्म आ धर्मकेॅं निर्धारित करैत जकाॅं लेखिका कहैत छथि-

“कवि कत्तहु सॅं पात्र नहिं गढ़त
जॅं गढ़त त’ तकर प्रत्यक्ष रूपाकार होयत।”

सीताक आहत अभिमानक पीड़ा केओ नहिं बुझैत अछि, मात्र बुझैत छथि कवि,रामक प्रति एकनिष्ठ पवित्र प्रेम सेहो कविक अतिरिक्त केओ नहिं देखि पबैत छनि-

“कविक जन्म पीड़ा सॅं होयत
कविक मोन मे प्रेम रहैत अछि तलफैत
जेना जल बिनु मछरी
रेह बिनु बिजुरी
आंखि नोर बिनु
नदी कोर बिनु “

तैं एकठाम कवयित्री महर्षि वाल्मीकिक प्रति अपन कृतज्ञता ज्ञापित करैत कहैत छथि-

कविकर्महुॅं सॅं पैघ होइत अछि
मनुज- धर्मकेॅं बूझब मर्म
काव्य लिखै सॅं पैघ
 होइत अछि लोकचेतना
अहा,सिया केॅं मोन पड़ैत छनि
आशीषक ओ हाथ।।

सीताक सहनशीलता टूटि गेल छनि राजधर्मक निठुरता देखि,राजाक रूप मे स्थापित रामक आदर्शक कुत्सित कदर्यता देखि-

आब नहिं सहल जाइत अछि
आतप सॅं झुराइत जजाति
टटाइत सीत, निर्वीर्य जन
दलित दलमलित जनीजाति
ई छोड़- बाड़,ई लागि- लपटि
हाड़ हाड़ हड्डी भेल देह
कठुआयल ठेहुन
ऐंचैत डांड़,सन- पटुआ होइत केश
पिअरायल चाम,बिसरायल निन्न

ओहि सात्विको वातावरण मे पालन- पोषण पौनिहार लव-कुशक मोन मे बहुत रास प्रश्न, बहुत रास जिज्ञासा छैन जे संभवतः टूटल परिवारक शिशुक स्वाभाविक अन्तर्द्वन्द्व थिक। लेखिका सहानुभूतिपूर्वक एहि असमंजस केॅं शब्द मे रूपायित केलखिन अछि-

औनाइत रहैत छथि प्रश्नाकुल भेल लव
सुनगैत रहैत छथि कुश,हुनक तापेॅं
मद्धिम- मद्धिम।

सीता बुझैत रहैत छथि हुनक मन: स्थिति,तैंयों बुझबैत छथि-

बहुत रास प्रश्न एहन होइछ,जकर उत्तर नहिं
ढेरी खेरहा एहन छैक जकर प्रश्न नहिं बनय
अपन लक्ष्य पर ध्यान धरी
राजा राम केर गरिमा राखी।।

पुरुषक प्रेमक स्वार्थपरता आ स्त्री- प्रेमक दिव्यता व्याख्यायित होइत अछि एहि तरहेॅं-

बसल छी रन्ध्र- रन्ध्र मे अहाॅं
अहाॅंक लेल हम धनुर्विद्याक श्रेय होइक
लंकाविजयक निमित्त होइक
राजैषणा पर लोकैषणाक विजय गाथा होइक
हमरा लेल अहाॅं प्राणहरि छी-
ने साध्य न साधन।
अहाॅं साक्षात विजय थिकहुॅं
हम मुदा पराजय नहिं थिकहुॅं।

“हम मुदा पराजय नहिं थिकहुॅं” ई वाक्य स्त्रीक सबल अस्मिताक आख्यान थिक जे सभ स्त्रिगण लेल आइयो उपादेय अछि।समर्पणक अर्थ अपन अस्तित्वक विलयन नहिं, परिवार बचयबाक लेल दैन्यक स्वीकृति नहिं।

लंकाविजयक उपरांत सीता- रामक प्रथम भेंटक क्षण रामक उक्ति निष्ठुरताक पराकाष्ठा थिक-

सीता हम अहाॅंक लेल नहि कएलहुॅं
युद्ध
रावण केॅं करक परास्त
देवसत्ता केॅं स्थापित करक
पत्नी जनिकर हरण भेल
ताहि राजाक कलंक मेटब
छल अभीष्ट
से भेल सिद्ध
सीते! कएलहुॅं मुक्त पत्नीधर्म सॅं।

तथापि लंका- विजयक उपरांत जन-मानस में बसल स्त्री -विरोधी -मानसिकताक तुष्टिक लेल आ  रामक निष्कलंक छवि केॅं  सुरक्षित रखबा लेल सानंद अग्नि में पैसि  गेलीह आ अपन सच्चरित्रता प्रमाणित कयलनि।  अग्नि- परीक्षा मे तपिक’ कुन्दन भेल हुनक शील, किन्तु किछु दिन सुख नञि,सुखाभास!फेर निर्मम परित्याग! किन्तु लव-कुश सन बालकद्वयक वीरता देखि,मुनि वाल्मीकि सॅं हुनक परिचय पाबि अपन उत्तराधिकारीक स्वीकृति मे कोनो संशय नहिं, किन्तु,सीताक स्वीकृति लेल पुनः शर्त-

राम-“कने बाजि दियौ अवध केर निर्मम जन केर सोझाॅं
अहाॅ छी निर्दोष जनकनन्दिनी ,चलू”
हुनक मौनक उपरांत फेर प्रश्न-
“कने थम्हू,एकबेर फेर कहू
अहाॅं आद्यन्त पवित्र छी”

तखन अबैत अछि सोझां ऊपर सॅं कोमल किन्तु मजगूत सीताक असल रूप-

वज्रादपि कठोराणि मृदूनि कुसुमादपि
लोकोत्तराणां चेतांसि को नु विज्ञातुमर्हति।।

ओ कहैत छथि-

“हम छी सशक्त स्वयंपूर्ण सीता
बसल वाल्मीकिक आश्रम मे।”
अहाॅं ओझरायल छी
अमतीक झाड़ मे प्राण
गड़ैत अछि कांट
अनेकानेक हीन-भावना केर
अधैर्यक
संशयक आ अंततः
अस्तित्वक राजा राम!
आइ हम करैत छी मुक्त
बिलाइत छी माटि मे
हिलकोरैत जल मे
लहकैत आगि मे
पसरैत नभ-आंगन मे।
जाउ प्रिय
लए जाउ लदबद
फलित गाछ
बीज जे देने छलहुॅं
घुराओल हे बीजी पुरुष!

स्त्रीक स्वभाव मे ग्रहण नञि,अर्पण होइत छैक।एहि मनोभाव केॅं बहुत नीक जकाॅं रूपायित कएने छथि कवयित्री।

एकठाम ओ “पुरुष- अहम्” के सेहो इंगित करबाबैत छथिन सीताक मुख सॅं सहस्रबाहुक प्रसंग मे-

पलक मूनथि त’ सोझाॅं आबनि कालीरूप
कोना कटत दिवा- रात्रि
दाम्पत्यक स्वाद हरि लेल सहस्रबाहु- वध!

एत’ सद्य: मोन पड़ि जाइत अछि महाकवि जयशंकर प्रसादक कामायनीक ई अंश-

यह जलन नहीं सह सकता मैं चाहिए मुझे मेरा ममत्व
इस पंचभूत की रचना में, मैं रमण करूं पर एक तत्व।।

महनीया कवयित्री मात्र सीताक अथवा उर्मिलाक नहिं, अपितु भरतपत्नी मांडवीक सशक्त  चरित्रक झांकी सेहो देखबैत छथिन,जे राजभवनक कूटनीति आ स्वार्थपरता सॅं विकल भेल छथि-

“हमरो संगे नेने चलू बहिन दाइ
की राखल छैक एहि महल अटारी मे
चेथरी-चेथरी करैत लोक-बरियारी मे।”

कवयित्री अयोनिजा सीता केॅं, सैकड़ों सूर्यक आभा सॅं दीप्तिमती सीता केॅं, शिवक धनुष केॅं बामा हाथ सॅं सरलतया उठा लेबाक अप्रतिम शक्ति सं संयुक्ता जानकी केॅं,भरल सभा मे रामराज्यक तथाकथित मर्यादाक सत्य सभहक सोझाॅं निर्भीक स्वर मे उपस्थित कर’ बाली वैदेहीकेॅं, साक्षात् शक्ति,साकार शील आ सहिष्णुताक त्रिवेणी  सीता केॅं आजुक स्त्रीक स्वर बना प्रस्तुत करबाक स्तुत्य प्रयास कएने छथि।

समग्र विषय- प्रस्तुति मे मैथिलीक टिपिकल शब्दक सोहाओन प्रयोग आह्लादित करैत अछि,कतौ-कतौ कोश देखबा लेल सेहो विवश करैत अछि। जॅं शैलीक गप करी त’ लेखिकाक शब्द मे ई कथा-काव्य थिक, किन्तु कएक ठाम एकर सहज सरल उद्दाम प्रवाह वेगवती धारा जकाॅं देखाइत अछि, आनठाम कथानक रुचिकर शब्द-संयोजनक संग आगां बढ़ैत अछि।

एकटा प्रश्न अवश्य अछि- भूमिका मे लेखिका स्वयं एकरा कथाकाव्य कहैत छथि, मुदा अंतिम पृष्ठ पर गद्यात्मक खण्ड काव्य लिखल अछि।जीवनक कोनो घटना विशेष पर आधारित प्रबन्धात्मक काव्य खण्डकाव्य कहबैछ। साहित्य दर्पण  मे एकर परिभाषा दैत आचार्य विश्वनाथ कहैत छथि-

भाषा- विभाषा नियमात् काव्यं सर्गसमुत्थितम्।
एकार्थप्रवणै: पद्यै: संधि-सामग्र्यवर्जितम्।
खंड काव्यं भवेत् काव्यस्यैक देशानुसारि च।

एहि परिभाषाक अनुसार सर्गबद्ध एवं एक कथाक निरूपक एहन पद्यात्मक ग्रंथ जाहि मे सभ  संधि नञि हो ,जकर कथानक मे एकात्मक अन्विति हो, कथा मे एकदेशीयता हो, कथाविन्यास- क्रम मे आरंभ, विकास, चरम सीमा आ निश्चित उद्देश्य मे परिणति हो आ ओ आकार मे लघु हो, ओ खंडकाव्य थिक।

सर्गबद्धताक अभाव मे की एहि काव्य केॅं खण्ड- काव्य कहबै? एहि पर जॅं विमर्श होमए आ मैथिली काव्यक भेदादि  लेल किछु भिन्न आधार सर्वसम्मति सॅं निर्धारित हो त’ भविष्यक लेखक लेल स्पष्ट दिशा भेटतै।

अंत मे, स्त्री-अस्मिताक स्वस्थ- मुखर पोषिका लेखिकाक चरणवन्दन संग भूरिश: अभिनन्दन।

साहित्य मानवीय परिवेशगत मूल्यक उद्घाटनक प्रयत्न थिक। ई मानव मे शुभ आ अशुभ, सुंदर आ असुंदर,ग्राह्य आ त्याज्यक  चेतना जागृत कए मनुष्यक मूल्यदृष्टि केॅं शिक्षित आ परिष्कृत करैत अछि। एहि प्रकारक साहित्य मनुष्यक सभ्यता आ संस्कृति सॅं सीधा संबंध रखैत अछि आ तैं ओ परिवेश तथा वातावरण सॅं कटि नहिॅं सकैत अछि। साहित्यक सर्जक केॅं अपन युगक सत्य , स्थिति- परिस्थिति तथा ओहेन परिस्थितियो मे काम्य परिवर्तनक शब्दबद्ध व्याख्या करबाक चाही।

एहि निकष पर जखन युवा कवयित्री श्रीमती रोमिशा जीक आंजुर भरि इजोत नामक काव्य -संग्रह पर दृष्टि देल, त’ पाओल जे ओ कविताक माध्यम सॅं स्त्रीक स्थितिकेॅं मानवीय संवेदनाक चश्मा सॅं देखबाक नेहोरा करैत अछि, सामाजिक विषमताक भीत हटयबाक ओकालति करैत अछि, स्वतंत्रताक नाम पर पसारल जा रहल अनेकानेक बंधन दिस आंखि खोलि देखबाक  आग्रह करैत अछि आ  प्रेम आ व्यापार मे अंतर दिस पाठकक ध्यान आकृष्ट करैत छथि।ओ स्त्रीकेॅं प्रेमक पर्याय आ प्रेमकेॅं जीवनक प्राणवायु बुझैत छथि।

स्त्रीक जीवनक विडंबना, अन्याय आ उपेक्षाक परत दर परतक नीचां दबल यात्रा, प्रत्येक यात्रा मे जीवनक कोनो न कोनो त्रासदी केर वर्णन, तथापि ओकर मोन मे बांचल प्रेम, सामंजस्य आ हानि-लाभ-विवेचनरहित समर्पण कविता सभहुक कथ्य अछि। यद्यपि आधुनिक समाजक स्त्री अपेक्षाकृत शिक्षित आ सशक्त भेल अछि परंच वेदना आ ओझराहटि  रूप बदलि- बदलि क’  सोझां अबैत छैक।

स्त्री- जीवनक अनेक यात्रा, उतार-चढ़ाव, स्त्रीक पराधीनताक संग स्वच्छंदताक हद पार कए अपना लेल आर कठिन बाट चुनब, ओकर दुर्बलता आ ओकर सामर्थ्य, ओकर स्वाभिमान आ ओकर समझौता आदि भावनाक  सशक्त भाषा मे मनोवैज्ञानिक चित्रण एहि कविता संग्रहक विशेषता थिक। रोमिशा जीक स्त्री पात्र विशाल मानव- प्रवाह मे बहैतो अपन अस्तित्व केॅं स्थापित कर’ चाहैत अछि, दायित्वक निर्वाह कर’ चाहैत अछि, परिवार आ समाजकेॅं जोड़िक’ राख’ चाहैत अछि।

हुनक कवितामे स्त्री- जीवन- दर्शनक  प्रकृति संग साम्य अनेक रूप मे,सुललित उपमाक संग सुंदर शब्द मे अभिव्यक्त भेल अछि।एक गोट सुंदर कवितांश द्रष्टव्य अछि-

धरती आ अकाशक होइत छैक मिलन
जाहि में मौन दैत अछि प्रेम केॅं नव अर्थ
जकरा सुरुजक ललौन भोरक संग
बुझैत अछि चिड़ै- चुनमुनीक कलरव
आ एहि कलरवक संग
जखन चिड़ै उड़ैत अछि  अकाश दिस
स्त्री घुरैत अछि अपन घरक बाट पर
सुरुज बनैत अछि ओकर यात्राक साक्षी

समाज द्वारा उपेक्षित स्त्रीक मनोभाव कवयित्रीकेॅं कचोटैत छनि,ओकर इच्छा- अनिच्छा हृदयक कोन मे नुकायल रहि जाइत अछि आ तैंयो आनन पर स्मित हास्य रखने ओ सभटा दायित्व निभबैत छथि-

किनको कहियो ई सुधि कहाॅं रहलै
कि एहन निष्कम्प शिखा बनि
अपनहि इच्छाकेॅं बाती बना
ओ कोना पसारैत अछि
भरि आंगन इजोत

स्त्री- जीवनक विसंगति आ प्रेमक विविध रूप सॅं इतर एहि संग्रह मे बहुत कम कविता छैक, किन्तु जे छैक ओ चिंतन करबा लेल विवश करैत छैक- तथाकथित विवेकी व्यक्तियो,नीक आ बेजाय सैद्धांतिक रूपेॅं बुझितो, मात्र स्वार्थक सिद्धि लेल अधलाहकेॅं अधलाह कहबाक साहस नहिॅं क’ पबै अछि,जकर परिणाम संपूर्ण समाज आ राष्ट्र भोगबा लेल अभिशप्त होइछ-

सभ कवि कलाकारक
आत्माक गहबर मे
उठैत अछि अगबे टीस
मुदा भोर होइतहि
ओ बनि जाइत अति
व्यवस्थापक सभसॅं पैघ खबास।

समाजक नीति-नियन्ता द्वारा स्थापित किंवा आदर्शक खांचा सॅं बाहर स्त्रीक निजताक ओकालति करैत कवयित्री जखन कहैत छथि-

अन्हार आ इजोतक बीच
कतेक काल खण्ड सॅं हेरि रहल अछि स्त्री
अप्पन निज अकाश
जाहि परहक चान सुरुज तरेगन
सभ ओकर होइ आ
जकरा देखि सकय ओ अपन दृष्टि सॅं…

एत’ मोन पड़ि जाइत अछि रोम्या रोलांक ई पांती-

“A man’s first duty is to be himself, to remain himself at the cost of self sacrifice.”

ई me आ myself कतेक जरूरी होइत छैक,ओ ओएह बुझि सकैत छथि जनिका एहि लेल संघर्ष कर’ पड़ैत छनि। जनिका लेल स्वतंत्र आकाश सहज सुलभ छनि ओ परवशताक पीड़ा कोना बुझि सकैत छथि?

कवयित्री प्राचीन अरुआयल, फुफड़ी लागल परम्पराक निर्वहण मे अपसियांत स्त्रीक आंखि खोलबाक प्रयासक संग आधुनिक सभ्यताक अन्धानुकरणक दुष्प्रभाव सेहो देखबैत छथि-

सत्य चुपचाप कोनो दोग मे
नुकायल रहैत अछि
अपनहि घर मे बेघर भेल
देखैत रहैत अछि
आधुनिकताक सेन्ह लागल
अपन घरक देबाल

कल्पनाजीवी कवयित्री भौतिकताक व्यामोह मे अन्हरायल, हानि-लाभक तराजू पर तोलायल जाइत व्यवसाय बनल प्रेम केॅं देखैत खिन्न त’ छथि, किन्तु पूर्णतःनिराश नहिॅं-

ओहने कोमल स्त्री सभ
जीवनक माटि कोड़ि
पुनः रोपैत छथि स्नेहक बीआ
स्त्रियेटा बुझैत छथि
कि युगक आंखिक पानि
बचाओल जा सकैत अछि
मात्र नि: स्वार्थ प्रेम मे विलीन भ’

किन्तु एत्तहि हुनक किछु वैचारिक विरोधाभास देखना जाइछ,जत’ एकदिस ओ नि: स्वार्थ प्रेमक गुणधर्म  केॅं नीक बुझैत छथि,दोसर दिस ओ लोकक परवाहि नहिॅं करबाक निर्देश सेहो दैत छथि जखन ओ कहैत छथि-

आब नहि डेराइ कलंक सॅं
नहिॅं धकाइ बताहि बनय सॅं
नहिॅं लड़ब आ खाली साहब
त’ जीतब कोना
हारले रहत मान
कियो नहिॅं देत कोनो ध्यान

कवयित्री यथार्थक कठोर धरातल पर ठोकर खेलो उत्तर विश्वासहीनताक शिकार नहिॅं बनैत छथि,ओ स्त्री-प्रेमक शाश्वतताक आख्यान लिखैत छथि-

विश्वास जे अहूॅं मे
हम होयब बचल कतहु न कतहु
प्रेम एतेक सहजता सॅं
नहिॅं बिला सकैत अछि शून्य मे

साहित्यकारक मर्यादा आजुक समय मे बांचल नहिॅं रहि गेल अछि, ओकर कलम विश्वप्रेमक कथा नहिॅं,मात्र मनोरम वाग्जाल पसारैत अछि, स्वार्थ सिद्धिक जोगाड़ करैत रहैत अछि,ई देखि कवयित्रीक हृदय मे कचोट होइत छनि आ ओ कविकेॅं सावधान करैत छथि-

“मंचक खबास बनि
पुरस्कारक ओरियान करैत
देखैत रहय साहित्यक सभ प्रपंच
नहिॅं,ई कवि होयब नहिॅं थिक
कवि माने
जीवन सॅं
मृत्यु दिस बढ़ैत समाजकेॅं
युवा आ स्वस्थ राखब”

कतेको ठाम अनुप्रासक छटा सॅं सत्यक कुरूपताकेॅं झांपि मात्र बाह्यमनोहर काल्पनिक संसारक सृजन कएनिहार केॅं देखि स्पष्टत: बजैत छथि-

मुदा जीवन सॅं फराक
किन्नहुॅं नहिॅं होइत अछि कविता
आ कविता सॅं फराक
कोना भ’ सकैत अछि जीवन

धर्मक नाम पर पसारल जाइत पाखण्ड दिस, कुत्सित होइत जीवन- दर्शन दिस इंगित करैत छथि कवयित्री “कनैत अछि गंगा” कविता मे-

सभहक आंखि मे पसरल अछि मोहक लाली
धर्मक पाखण्ड चिल्हा जकाॅं डेन पसारने
मंडरा रहल अछि मोक्षक मार्ग केर महत्त्व बतबैत
पूरा शहरक आंखि मे चलि रहल ठेकेदारी
पाप पुण्य मुक्ति आ मोक्षक

एकर सभहक अतिरिक्त हुनक कविता मातृत्वकेॅं स्त्रीक अधिकार बुझैत सामाजिक अनुशासनक बेड़ी तोड़ब स्वाभाविक बुझैत अछि,पुरुषत्वक मिथ्यादंभक मुंह पर थापड़ मारैत अछि, किंतु एत्तहु ओहि घेर सॅं नहिॅं बहराइत अछि। तैं कहल जा सकैत अछि एहि संग्रहक कविता विभिन्न परिस्थिति मे  स्त्री- हृदय मे उठय बला भावनाक बेलाग अभिव्यक्ति अछि। कवयित्री कोनो निष्कर्ष पर पहुंचबाक अथवा आदर्श स्थिति थोपबाक हड़बड़ी मे नहिॅं छथि।

कविताक संबंध मे अनुभूतिक गप बेर बेर कहल जाइत अछि, मुदा ओ अनुभूति ककर? कविक किंवा समाजक? जॅं समाजक अनुभूति कविक अनुभूति  बनि व्यक्त होइछ, ओकर परिमार्जनक खगताक मुनादी करैछ, परिवर्तनक बाट देखबैत अछि, तखने कविता अपन अर्थवत्ता प्राप्त करैछ।

रोमिशाजीक कविता मे यथार्थ अछि, प्रेम अछि,स्त्रीक अंतर्द्वंद्व आ आत्मविश्लेषण अछि, किन्तु जे नहिॅं अछि ओ अछि निराकरणक बाटक दिग्दर्शन! एकटा सामान्य पाठक जकाॅं हम चाहब जे अगिला संग्रह मे इहो तथ्य आबय आ अपन सबल उपस्थिति देखा सकय।तखनहिॅं महादेवी वर्माक स्वर मे स्वर मिलबैत हम सभ बाजि सकब

“भारतीय नारी जाहि दिन अपन संपूर्ण प्राण-प्रवेग सॅं जागि सकत, ओहि दिन ओकर गति रोकब ककरो लेल संभव नहिॅं।”

संपूर्ण संग्रह मे मैथिलीक टिपिकल शब्द-प्रयोगक लालित्य प्रशंसनीय अछि, किंतु  कतौ-कतौ केर अर्थ मे केॅं के प्रयोग( कोनो खराब भाव केॅं हृदय मे बचबाक संभावना)

(कोनोटा सामर्थ्य कहाॅं होइत छैक दिमाग केॅं) अखरैत अछि।

संक्षेप मे “आंजुर भरि इजोत” संग्रह- योग्य पोथी अछि,एकर स्वागत प्रबुद्ध पाठकवर्ग द्वारा  हयबाक चाही।रोमिशा जीक सशक्त लेखनी केॅं साधुवाद आ अशेष शुभकामना।

” वाक्यं रसात्मकम्   काव्यम्” अर्थात् रसयुक्त वाक्य  काव्य कहबैछ। काव्य सुनला वा पढ़ला सॅं जे अलौकिक आनन्द प्राप्त होइत छैक, ओ काव्य मे रस मानल जाइत छैक। रसक  शाब्दिक अर्थ होइछ – आनन्द।

रस अन्त:करणक ओ शक्ति थिक जाहि सॅं मनुक्खक इन्द्रिय अपन कार्य करैछ, मोन कल्पना करैछ, ब्रह्मास्वादसहोदर आनंदक अनुभव करैछ, संसारक सभ मायाजाल सॅं मुक्त भए काव्यक भावभूमि मे जिबैछ,पात्रक सुख सॅं सुखी आओर ओकर दु:ख सॅं दुःखी होइछ।  ई रस नौ प्रकारक होइत अछि,जाहि मे शृंगार केॅं रसराजक उपाधि देल गेल अछि। संयोग आ विप्लम्भक रूप मे एकर दू भेद होइछ।

एहि आलोक मे आइ गप करबाक अछि शृंगाररसक विलक्षण अभिव्यक्ति-क्षमता सॅं संपन्न ऊर्जस्वित कवयित्री श्रीमती जयन्ती कुमारीक प्रथम मैथिली काव्य- संग्रह “अभिसारिका” पर। अभिसारिका ओ स्त्री कहल जाइत अछि जे स्वयं अपन प्रियकेॅं मिलनक उद्देश्य सॅं संकेतस्थल पर बजबैत अछि वा ओकरा लग जाइत अछि ।

“अभिसारयते कान्तं या मन्मथवशंवदा ।
स्वयं वाभिसरत्येषा धीरैरुक्ताभिसारिका।।”
सभ भाषाक साहित्य जकाॅं मैथिलीओ मे पुरुष-स्त्रीक मिलनक अथवा विरहदशाक रुचिर वर्णन पर्याप्त मात्रा मे भेटैत अछि। आधुनिक कवयित्री जयन्ती जीक एहि काव्यसंग्रह मे मुख्यरूप सॅं शृंगारिक कविता छनि,जकर संख्यात्मक प्रमाण 80 गोट कविता मे 36 टा शृंगारिक कविताक रूप मे भेटैत अछि।
एकर अतिरिक्त सामाजिक कुव्यवस्था, व्यक्तिगत अनुभव, स्त्री जाति द्वारा पग- पग पर अनुभव कयल गेल बंधन ,आत्मीय संबंधक क्षरण आदि अनेक तरहक विषय -वस्तु पर आधारित कविता सभ सेहो अपन मजगूत उपस्थिति देखा रहल छनि । जेकि एकटा महिला अनेक तरहक सामाजिक एवं व्यक्तिगत भूमिका निभाबैत अछि,सभ भूमिका मे अपन दक्षता प्रमाणित करैत अछि, ऊबड़-खाबड़ परिस्थितिकेॅं समतल बनैबा लेल सतत प्रयत्नशील रहैत अछि, तैं जखन ओकर हाथ कलम पकड़ैत छैक त’ ओकर कविता सहज-स्वाभाविक रूपेॅं विविधवर्णी होइछ, ओकर भावभूमि भिन्न विषयाधारित होइछ, ओहि मे यथार्थक वर्णनक संग ओकर सहजात सौंदर्य- बोध तथा आशावादी दृष्टि ओकरा भीड़ सॅं फराक करैछ।
त’ सभ सॅं पहिने केन्द्रीय कविताक शब्द-सौष्ठव पर दृष्टिपात कएल जाय–
ठाढ़ि तटिनी तीर कामिनि
चकित चित्त चकुआयल मानिनि
जानि कत घनश्याम बिलमल
भेल मोन उचाट,हरि हो!
पलटि हेरथि बाट!
“कविकनियाॅं” शीर्षक कविताक ई अंश कविकर्म कएनिहार लोकनिक आर्थिक विपन्नावस्थाक करुण वर्णन करैत अछि-
अलंकार- उपयोग सॅं कहियो
 देह अलंकृत होइत अगर
रान्हि-पका कविता खेला सॅं
 भरैत यदि परिवार- उदर।
हमहूॅं तखन काव्य- धारा मे
कवि संग हेलैत रहितहुॅं।
 स’ख- मनोरथ नहिॅं करितहुॅं बरु
 मंचे- मंच बुलैत रहितहुॅं।
ई कवितांश पढ़ैत काल “एक भारतीय आत्मा” कविश्रेष्ठ माखन लाल चतुर्वेदी जीक एकटा वाक्य मोन पड़ैत अछि-
“काश अपना एक छोटा सा घर होता और उसमें बाथरूम भी होता।”
“वृद्धक मोनक बात” कविताक अंश देखल जाय-
काया सुगढ़ काया भेलै जर्जर
अभरलै अस्थि आ पंजर
नयन भेल क्षीण ज्योति सॅं
 श्रवण सेहो भेलै कमतर।।
किन्तु वार्धक्यो मे स्त्रिगणक सेवानिवृत्ति नहिॅं होइत छैक,ई गप “वृद्धाक मोनक बात में” कोना रूपायित होइत छैक, दृष्टि देल जाइ-
जरा सॅं ग्रस्त दूनू छी
मुदा हमरा कहाॅं पलखति
जे सोची मुंह लटकौने
जीवन की थिक,मरण की थिक?
महिला लेखिका लोकनिक समक्ष कोन कोन तरहक आक्षेप अबैत छैक,तकरा शब्द दैत प्रश्नात्मक कविता लिखैत छथि-
जौं चित्त अशांत त’ लिखलहुॅं जे
बनल ओ विद्रोहक नव गीत
ओह! इहो भाव ने भावल ककरो
 रुष्ट भेल सब हीत ओ मीत
आब अहीं कहू हम की लिखी?
“नारिक मोन” कविता मे स्त्रीप्रकृतिक कोमलता बहुत सुंदर शब्द मे अभिव्यक्त भेल अछि-
  नारिक मोन, जनु करुणाक धार
 बहबैत चलैछ करुणा अजस्र
बिनु कएने फराक,अपन परार।।
नारिक मोन, जनु दयाक खान
हरैछ आधि- व्याधि सब किछु
नहिॅं चाह करै मिसिया प्रतिदान ।।
“आत्मबोधन” कविता मानवजाति लेल आवश्यक साहसक ओकालति करैत अछि-
 कायर बैसय भाग्य भरोसे
कर्मक पथ पर चलैये वीर
 पाछु ने ताकय घुरिक’ कखनो,
कतबो पीठ पर लागय तीर
हाथ विजय केर माल भविष्यक
 डेग कियै नहिॅं उठा रहल छी
 भेटल मानुख- जन्म किएक फेर
 काहि कटने जा रहल छी ।।
चाहक चाह,आधुनिक वरेच्छा, गोरकी दाइ, गुट के महिमा, कहबा लेल मुखियाइन, फेसबुकिया, इनबॉक्स मे, फकर कविता आदि हास्यप्रधान होइतहु सामाजिक मनोवृत्तिक रूढ़ि पर व्यंग्यात्मक प्रहार करैत अछि।
 बालिकाक दमित अभिलाषा अभिव्यक्ति पबैत अछि एहि तरहेॅं, “पवन हिलोरा”  शीर्षक कविता मे-
 घन छूबै लेल मन व्याकुल अछि
क्षितिज चुमै लेल मन आकुल अछि
खगकेॅं आइ खिहारि  मिलक’
 लोल सॅं लोल लड़ेबै बहिना ।।
“विचलित अभिलाषा” कविता मे वर्तमानक हताशाकेॅं अभिव्यक्ति देलनि अछि कवयित्री, परञ्च संगहिं उज्ज्वल भविष्यक उमेद सेहो ध्वनित व्यञ्जित क’ रहल छथि-
धीरे-धीरे पसरल सगरो बड़वानल सम द्वेषक आगि
 देखि तमाशा थोपड़ि पाड़य, अपनहु कहियो जरतै लोक।
 खसला पर हंसिते छै दुनिया, तक्कर नहिॅं कनियो परवाह
 की कहियो एहनो दिन औतय, खसिते बांहि पकड़तै लोक।।
 “गृहयंत्री”  शब्दक स्थान पर जॅं कोनो दोसर शब्दक प्रयोग हो त’ बेशी नीक। संभवतः ई कोनो सार्थक शब्द नहिॅं अछि।
कविता-सभक माध्यम सॅं कवयित्रीक चिन्तन- वैविध्य, समृद्ध शब्दभंडार, अभिव्यक्तिक रुचिर विन्यास परिलक्षित होइत अछि।हिनक मैथिलीक साहित्य-संसार मे नीक परिचिति आ लोकप्रियता छनि। यद्यपि संग्रह मे टंकण-अशुद्धि  कम अछि, तथापि
अंतर्द्वंद, द्वंद, (द्वन्द्व)घबरा रहल(औना रहल) आदि शब्द एक बेर दृष्टिनिक्षेपक अपेक्षा रखैछ।
ई संग्रह बहुत नीक, किन्तु मैथिली जगत केॅं हिनका सॅं अधिक अपेक्षा छैक। शृंगारिक कविता वा गीत अवश्य तात्कालिक प्रशंसा दैत छैक, किन्तु कालजयी  रचना ओएह होइछ जे कोनो भाषा एवं ओहि भाषाक साहित्य केॅं समयानुरूप गुणवत्ता  एवं प्रभविष्णुता सॅं संपन्न बनबैत अछि। कालक संग लोक -रुचि, लोक- दृष्टि एवं आवश्यकता -बोध सेहो बदलैत छै। इयैह परिवर्तनशीलता जीवनक लक्षण छैक। तैं,कालानुरूप चिंतन,लेखन, स्वभाषाक प्रति गौरव-बोध , सामाजिक चेतनाक उन्नयनक स्वस्थ दृष्टि जॅं साहित्यक माध्यम सॅं समाज मे आबि सकय, त’  सोन मे सुगन्धिक आधान होएत।
तैं कवयित्री जॅं-
“हुनक सुगंध सॅं मातल तन-मन
सुधि-बुधि गेल हेराइ
खन कोनटा सॅं हुलकि निहारी
खन रही घोघ नुकाइ
पहु दरस भेल,नयन सफल भेल
उर नहिॅं हरष समाइ हे
पाहुन आयल आइ।”
एहि तरक गीत सॅं आगू बढ़ि आजुक बालक- बालिकाक  कल्पनाक उड़ान, ओकर महत्वाकांक्षा, बंधनहीन पंख आओर लिंगभेद-मुक्त  मन: स्थिति केॅं अभिव्यक्ति देबा मे अपन प्रतिभाक उपयोग क’ सकथि, विज्ञान आओर साहित्यक संगम कए अपन काव्य अथवा साहित्यक विषय वस्तु बनाबथि त’ अधिक प्रासंगिक आ प्रशंसित होएतीह, कारण आजुक साहित्य भविष्यक प्रमुख दस्तावेज होइत छैक।
ई काज कवयित्री नीक जकाॅं  क’ सकैत  छथि।  हुनका अनन्त शुभकामना
(बरसाइत विशेष) (चित्र : श्रेया श्रेयसी)

भारत उत्सव-प्रधान देश  अछि। सभ वर्ण आ संप्रदायक लोक अपन परंपराक अनुसार उत्सवक, धार्मिक- उपासनाक,पूजा पाठ आदिक आयोजनक मादेॅं एक दिस परंपरा-संरक्षण करैत आनंदक अनुभव करैत अछि, दोसर दिस ईश्वरक उपासना-प्रार्थनाक माध्यम सॅं भगवान केॅं प्रसन्न कय अनिष्ट -निवारणक उपक्रम करैत अछि।

यद्यपि हम सभ जनैत छी जे ईश्वर एक छथि , किन्तु अपन- अपन आस्थानुसार हम सभ हुनक एकटा स्वरूप निश्चित कय ,ओहि रूप केॅं मन मे स्थापित कय एकाग्र करबाक चेष्टा करैत छी-“एकोSहं बहुस्यां प्रजायेय

आइ हम सभ बिहार मे,विशेष कय मिथिला क्षेत्र मे धूमधाम सॅं मनाओल जा रहल बटसावित्री पावनिक ऊपर किछु विचार करब।बटसावित्री एकटा त्रिदिवसीय अनुष्ठान अछि,जे ज्येष्ठ मासक त्रयोदशी स’  अमावस्या तिथि धरि मनाओल जाइत छैक। प्रत्येक विवाहिता स्त्री अखंड सौभाग्यक लेल ई व्रत करैत छथि। नारद पुराण मे उल्लेख अबै छै-

दिवाभागे त्रयोदश्यां यदा चतुर्दशी भवेत्
तत्र पूज्या सहासाध्वी देवी सत्यवता सह

लिङ्गपुराण मे उल्लेख अबै छै-

“शिवाऽघोरा तथा प्रेता सावित्री च चतुर्दशी ।
कुहूयुक्तैव कर्त्तव्या कुह्वामेव हि पारणम्” ।।
दत्त्वा जलाञ्जलीन् सप्त कृष्णपक्षे चतुर्दशीम् ।
 धर्मराजं समुद्दिश्य सर्वपापैः प्रमुच्यते।।”
 “ज्यैष्ठे कृष्णचतुर्दश्यां सावित्रीमर्चयन्ति याः ।
 वटमूले सोपवासा न ता वैधव्यमाप्नुयुः”।

एहि सभ उद्धरणक तात्पर्य ई जे जेना राजा अश्वपतिक कन्या आ सत्यवानक पत्नी अपन त्याग आ तपस्या स’ ,दृढ़ संकल्प स’,अनुपम पतिभक्ति स’ यमराजक सोझां ठाढ़ भ’ गेलीह,हुनका अपन तर्कशक्ति स’ मनेलनि आ सत्यवानक औरदा वापिस अनलन्हि,ओही तरहेॅं  विषम परिस्थिति मे सभ पतिव्रता स्त्री केॅं अपन प्रत्युत्पन्नमतित्व स’ निर्णय लेबाक चाही, कातरता आ दीनता क आश्रय नञि ल’ विपत्ति दूर करबाक यत्न करबाक चाही।

शाल्वदेशीयसत्यवद्राजपत्नी ।
सा तु मद्रदेशीयाश्वपतिराजकन्या ॥
                                         -महाभारत वनपर्व

बटसावित्री व्रत कोना कयल जाइत अछि आ कोन कोन बिध- बाध होइत छैक,एहि सभ विषयक चर्चा छाड़ि आजुक परिप्रेक्ष्य मे एहि पावनिक अर्थवत्ता पर किछु विचार करबाक खगता अछि:

बदलैत समयक संग लोकक रुचि, प्रवृत्ति आ प्राथमिकता सेहो बदलैत रहल अछि, तदनरूप धार्मिक आस्था आ पूजा पद्धति मे समयानुसार परिवर्तन होइत छैक।ई एकटा सामान्य धारणा अछि जे अपन सभ्यता, संस्कृतिक निर्वाह आ अगिला पीढ़ी मे ओकर संप्रसारणक संग तरहक परंपरा- निर्वहणक दायित्व  स्त्रिगणक छैक। यथाशक्ति स्त्रिगण ई दायित्व निभाबैतो छथि,  अपन सहज सौंदर्य- बोधक संग पूजा- पाठ मे व्रतक कठिनता केॅं अरिपन, फूल-पत्ती सॅं सजावट , गीत नादक संग रमणगर सेहो बनबैत छथि।

किन्तु कोनो आस्था वा परंपराक पालन करबाक क्रम मे ई अवश्य मोन मे रखबाक चाही जे ई कोना शुरू भेल,आइ ओकर अर्थवत्ता छैक वा नञि?छैक त’ कोन सीमा धरि?व्रतक तात्पर्य केवल अन्न-जलक त्याग नञि, अपितु पवित्र संकल्प होइत अछि। सावित्रीक संकल्प छलनि जे घुरब त’ पतिक संग, अन्यथा प्राण त्याग करब(यमराजक पाछां जयबाक इयैह भावार्थ छैक)। सावित्री सफल मनोरथ भेलीह, तैं हम सभ आइयो हुनका स्मरण करैत छियैन,हुनक अविचल निष्ठाक प्रति नमन करैत छियैन।

आउ,आइ हमरा सभ मिलि क’ विचार करी, सावित्रीक आख्यानक कोन कोन बिन्दु अपना सभकें मोन मे रखबाक चाही-

1.वैचारिक परिपक्वता: सावित्री राजपुत्री छलीह, किन्तु हुनक सहजता, भौतिक समृद्धि केॅं तृणवत् बुझबाक प्रवृत्ति आजुक समय मे उपादेय अछि।ओ जखन सत्यवान केॅं पसिन्न केलनि,तखन ओ राज्यच्युत छलाह,जंगल मे आरामक नञि, कठिन तपस्याक जीवन बिता रहल छलाह।

धन अवश्य सुविधापूर्ण जीवन जीबाक लेल आवश्यक होइत छैक, किन्तु धनार्जन मात्र जीवनक उद्देश्य नञि हयबाक चाही।अध्यवसायी व्यक्ति जखन चाहत,अपन बाहुबल स’ धन कमा सकैत अछि। जीवनसाथीक चुनावक समय व्यक्तिक चरित्र, संस्कार, शिक्षा-दीक्षा आदि केॅं वरीयता देबाक चाही।आइ स्त्री- पुरुष दूनूक दृष्टिकोण अत्यधिक बाह्यसुखापेक्षी भ’ गेल अछि। तैं एहन समय मे सावित्रीक पूजाक व्याजेॅं भौतिक सुख जीवनक ध्येय नञि,माध्यम अछि,ई विश्वास राखि अपन चिंतन स्तर मे सुधारक आवश्यकता अछि।

2.पारिवारिक जीवन-मूल्य:  एकटा राजपुत्री होइतो सावित्री तन-मन स’ सासु-ससुरक सेवा करैत छथि, यमराजक प्रसन्न भेला पर मात्र पतिक औरदा नञि, सासु- ससुर लेल राज्य,आंखिक ज्योति आ अपन पिताक उत्तराधिकारी सेहो मांगि अपन संतुलित चिन्तनक परिचय दैत छथि।आइ हमरा सभ केॅं बरसाति पावनि करैत पारिवारिक सौहार्द बनयबाक आ बढ़यबाक अपन संकल्प केॅं क्रियान्वित करबाक चाही-

श्रेय प्रीतिक बाट,संबंधक उचित निर्वाह
सभक बखरा मान बिलही,सार्थ भेल उद्वाह।
अनुकरण कय सकी मिसियो, स्मरण तखनहिं काम्य
 मूल्य जे स्थापित  केलनि ओ प्रति युगक लेल श्लाघ्य।।

3.दृढ़ संकल्प- शक्ति:  सावित्रीक कथा प्रतिवर्ष सुनला स’  अपना सभक चरित्र मे हुनकर सन संकल्प- शक्ति आबि सकय, तखने ई पूजा सफल मानल जायत। सावित्री केॅं बूझल छलनि सत्यवान अल्पायु छथि,वर्ष पुरैत देरी वैधव्यक दंश हुनका सह’ पड़तनि, किन्तु” जा धरि सांस,ता धरि आस” ई उक्ति चरितार्थ करैत ओ यमराजक पाछां चलैत छथि,चलैत रहैत छथि,अपन तर्कपूर्ण गप स’ हुनका मनयबाक प्रयास करैत छथि आ अन्त मे लक्ष्य प्राप्त करैत छथि।

ई प्रश्न उठि सकैत छैक जे की आजुक समय मे यमराज स’ ककरो वापिस आनल जा सकैत छैक? नञि, किन्तु जॅं एहि कथाकेॅं प्रतीकक रूप मे ली,त’ गंभीर स’ गंभीर बिमारीक समुचित चिकित्सा आ सेवा-सुश्रूषाक द्वारा पराजित करबाक कतेको उदाहरण अहाॅंकेॅं भेंटि जायत।एहि तरहक आत्मविश्वास आ परिश्रम स’ आनो असंभव सन बुझाइत काज संभव भ’ सकैत छैक।एहि प्रसंग मे हम हिन्दी भाषाक एकटा पांती उद्धृत कर’ चाहब-

हैं बंधे नर के करों में वारि, विद्युत,भाप
हुक्म पर चढ़ता उतरता है पवन का ताप।।
(नरक वश मे आइ सरिपहुॅं वारि, विद्युत भाप
ओकर आज्ञा सॅं  चलै अछि वायु केर उत्ताप।।)

4. सरलता:  सावित्री-व्रत तखनहिं सार्थक होयत,जखन हुनक व्यक्तित्वक सरलता हमरा सभक व्यक्तित्व मे समाहित भ’ सकय। ” भावमिच्छन्ति देवता:”-भगवान मात्र भावक भूखल होइ छथिन,उपकरणकक नञि। किन्तु,आडंबर आइ काल्हि मात्र जीवनेक नञि, पावनि- तिहारक सेहो अनिवार्य अंग बनि गेल अछि।साड़ी, गहना, फल -फलिहरी,पूजाक अन्य उपादानक व्यवस्था पावनिक मूल भावना के गौण बना देने अछि, प्रदर्शनप्रियता आ उपभोक्तावादक संस्कृति कम स’ कम पूजाक शुचिता पर हावी नञि हो,एहि लेल प्रयत्नशील हयबाक संकल्प लैत हम सभ अपन व्यक्तित्व के मजगूत बना सकैत छी, अनुकरणीय बना सकैत छी।

5.समर्पण: सावित्रीक अपन हृदय समर्पित केलनि सत्यवान् केॅं।बाद मे नारद मुनि कहलखिन सत्यवानक अल्पायुक विषय मे,निर्णय बदलबाक आग्रह केलखिन माता-पिता, किन्तु सावित्री अपन निश्चय सॅं विचलित नञि भेलीह। सुख-दु:ख मे समान रूप स’ संग देबे त’ प्रेमक पहिल पहिचान होइत छैक। जॅं एहि तरहक समर्पण-भाव स्त्री-पुरुष दूनू मे भ’ जाय,तखन वैवाहिक जीवन मे मात्र सुख हेतै,प्रेम हेतै, विश्वास हेतै आ सहजहिॅं स्वर्ग धरती पर अवतरित भ’ जेतै।

मम-पर भेदक जखन विलोपन तखने बुझू प्रेम
बांचल अहम् रहय जॅं, कोना धय, कनैत अछि प्रेम ।।

उपरोक्त गपक तात्पर्य इयैह जे कोनो महान् व्यक्तिक स्मरण,पूजन तखनहिं सार्थक मानल जायत जखन हम हुनका द्वारा स्थापित जीवन-मूल्यक प्रति अनुराग राखी, ओकरा यथासंभव जीवन-व्यवहार मे उतारबाक प्रयास करी।कहलो गेल छैक-“देवो भूत्वा देवं यजेत्“- यानी देवक गुणधर्मक लगीच जाइए क’ हुनक उपासना करबाक चाही।

त’ आउ, सावित्रीक पातिव्रत्य आ तपस्या केॅं हृदय स’ मोन पाड़ी,हुनक व्यक्तित्वक विशेषता अपना चरित्र मे समाहित करबाक प्रयत्न करी,सौभाग्यक कामना करी।सभ गोटे के बरसाति पावनिक बहुत बहुत शुभकामना।

 

करुणरसक मंदाकिनी केॅं जनमानसक भूमि मे वेग सॅं बहा क’ ओकरा सम- शीतल  बनयबाक सामर्थ्य एकमात्र भवभूति मे छनि। अपन उत्तररामचरित मे करुण -रस सॅं आप्लावित उक्तिक मर्मस्पर्शिता आ बेधकताक एहन  करुण- मनोरम  निदर्शन उपस्थित  केने छथि जकरा पढ़लाक बाद मोन ई मानबा लेल विवश भ’ जाइत छैक  जे महाकवि भवभूति करुणरसक सम्राट् छथि।राजशेखर भवभूति केॅं आदिकवि वाल्मीकिक अभिनव संस्करण मानै छथिन।वाल्मीकिक करुणाक स्रोत बनल छल कामाविष्ट  क्रौंचक निदारुण वध।इयैह करुण घटनाक आधार पर ठाढ़ कयल जाइत छैक रामायणक महाप्रासाद,जे फेर अकारण अग्निपूता,विवशा, राक्षसगृहगता सीताक हृदयहीन जनापवादक कारण निर्मम  निर्वासनक कारण बनैत अछि।रामायणी कथाक आखिरी छोर सॅं उत्तररामचरितक करुण भारती प्रवृत्त प्रवाहित होइत छैक। से “कारणगुणा:  कार्यगुणान् आरभन्ते” न्यायक अनुसार एकरा करुण त’ हयबाके छैक।भवभूतिक कृतित्व एहि गप मे छनि जे ओ ओहि करुणाधारा केॅं बहुत मनोरम घाटीक बीच सॅं ल’ जा क’  मार्मिकता एवं हृदयग्राहिताक कूलक बीच सॅं भावुक लोकनिक एहन अश्रुप्रवाह करौने छथिन जकर पवित्रता गंगाजलो सॅं बढ़ि क’ छैक। महाकवि भवभूति अपन करुणाक आधार ठाढ़ करैत ध्वनि- निर्देश करैत  छथि-

“नैसर्गिकी सुरभिन: कुसुमस्य  मूर्ध्नि स्थितिर्न चरणैरवताडनानि।”
 सुगंधित फूलक पाएर स’  ताड़न आ सीताक  निर्वासन!

वन मे सीताक हरण भेला पर रामक व्याकुलताक छोर नञि!रामक सुधि -बुधि हेरा गेल छनि,ओ कनैत-कनैत न केवल पशु -पक्षी , बल्कि गाछ-वृच्छ तक स’ सीताक पता पुछैत छथिन। हुनक बेचैनी आ छटपटाहटि देखिक’ पाथरो कनैत छल, बज्रक छाती सेहो दलित- विदीर्ण भ’ गेल छल ।ओएह सीता जखन भेटलखिन आ रामक हृदयक घाव भरब शुरू भेले छलनि कि  वियोगक पीड़ा फेर स’ दूनूक हृदय केॅं  मसलि देलकनि। एहन नञि छलै जे  रामक अपने चित्त सीताक विषय मे शंकाकुल भय विरक्त भ’ गेल छलनि, सीताक कलुषित हयबाक धारणा हुनक अपनहिं हृदय मे बद्धमूल भ’ गेल छलनि। नञि, हुनक हृदय सीताक तजबाक संभावना स’ कातर- विकल छनि, किन्तु तथापि त्यागक विवशता! जरल पर नोन कि लोकरंजनक नाम पर!

भवभूति करुणाक धार मे विधाताक  निर्मम कराघात स’ उत्पन्न भेल  रामक मनोव्यथा केॅं बहा देने छथिन।

स्त्रीक संबंध मे समाजक निर्मम शंकाशीलता आ  निठुर-निदारुण त्यागवृत्ति देखि क’ भवभूतिक अंत:करण कनैत छलनि आ अपन उत्तररामचरित मे ओ  समाजक अही संकीर्ण दृष्टि पर अपन क्षोभ व्यक्त केने छथि। हुनक  वाणी मे करुणाक असीम धार बहि रहल छनि। ई उक्ति कतेक सटीक अछि-

 त्वं जीवितं त्वमसि मे हृदयं द्वितीयं त्वं कौमुदी नयनयोरमृतं त्वमङ्गे

इत्यादिभि: प्रियशतैरनुरुध्य मुग्धां तामेव शान्तमथवा किमिहोत्तरेण।।

“शान्तमथवा किमिहोत्तरेण”- वक्तव्यक ओ सीमा अछि,जाहि स’ आगू निष्ठुरताक अभिव्यञ्जना भइये नञि सकैत छैक।समाजक एहि पापमय शुद्धाचारी कपटाचार स’ भवभूतिक हृदय आहत- जर्जर छलनि आ ओहि आहत हृदय केॅं अपन करुण वाणीक सहज लेप लगाक’ किछु शांत आश्वस्त करवाकर सफल चेष्टा केने छथि कवि। सीता केॅं कोनो गृहाचारक ब्याज सॅं आनि, राम सॅं हुनका अदृश्य राखि रामक तड़प देखायब एक दिश सीताक अपमान स’ आहत हृदय केॅं किछु शांत- आश्वस्त करबाक उद्योग अछि, दोसर दिश ई कविकृत दंडविधान(Poetic justice)

सेहो अछि।

केहन असहाय विवश वेदनाक अंत:स्पर्शिनी अभिव्यंजना थिक-

 उपायानां भावादविरतविनोद- व्यतिकरै:

विमर्दैर्वीराणां जगति जनितात्यद्भुत् रस:

 वियोगो मुगधाक्ष्या:  स खलु रिपुघातावधिरभूत्

 कथं तूष्णीं सह्यो निरधिरयं त्वप्रतिविध:।।

चुप रहि क’  सहब अशक्य, किंतु वैह करबाक विवशता !

 

अनिर्भिन्नो गभीरत्वात् अंतर्गूढ़ घनव्यथ:

 पुटपाक प्रतीकाशो रामस्य करुणो रस:।।

आ करुणाधाराक अजस्र गंगोत्तरी अछि बिनु छटपटेने असह्य वेदना सहबाक विवशता-

व्यर्थं यत्र कपीन्द्रसख्यमपि मे वीर्यं हरीणां वृथा

प्रज्ञा जाम्बवतो न यत्र ,यत्र न गति: पुत्रस्य वायोरपि

 मार्गं यत्र न  विश्वकर्मतनय: कर्त्तुं नलोSपि क्षम:

 सौमित्रेरपि परिणामविषये तत्र प्रिये! क्वासि मे?

 ई हृदयक हाहाकार करुणाक परम करुण पारावार  अछि आ एहि घावक पीड़ाकेॅं खुलि क’ बजबाक स्थिति नहिं।

रे हस्तदक्षिण! मृतस्य शिशोर्द्विजस्य जीवातवे विसृज शूद्रमुनौ कृपाणम्

रामस्य बाहुरसि दुर्भरगर्भखिन्न सीता विवासनपटो! करुणा कुतस्ते?

समाजक विधानक ई निष्करुणता महाकविक हृदय मे करुणाक अन्त:सलिला सरस्वती केॅं प्रवाहित कयने छल, तैं हिनक वाणी अक्लान्त भाव स’ हृदयरसक करुण धार बहबैत अछि।

अयि कठोर!यश: किल ते प्रियं किमयशो ननु घोरमत: परम्

 किमभवत् विपिने हरिणीदृश: कथय नाथ कथं वत् मन्यसे?

एहि किमभवत् मे की नञि ध्वनित- व्यंजित अछि?

महाकवि अपन उत्तररामचरित  मे एहन करुण,एहन वेधक अभिव्यंजनाक माध्यम स’ रामक हृदयक पश्चातापक एहन करुण मन्दिर बनौने छथि,जाहि मे मात्र एक बेर प्रवेश मनक संपूर्ण कलुष केॅं पश्चात्तापक आंच मे जरा शिवपथ पर बढ़बाक निर्देश दैत अछि ।सीताक संग अन्याय रामक संग सेहो अन्याय छल, किन्तु राजधर्मक नाम पर तलवारक नोक पर चललीह सीते टा नञि,रामो।एहिठाम समष्टिहितक लेल व्यष्टिहितक परित्याग करैत रामक मनोव्यथा कविक दृष्टि स’ नुकायल नञि रहल आ ओ अपन कविधर्मक निर्वाह करैत राम केॅं अपन अन्त:करणक अदालत मे ठाढ़ करैत छथिन्ह आ नेपथ्य मे ठाढ़ सीताक तप्त हृदय पर करुणाक लेप लगबैत छथिन्ह।

संक्षेप मे कहल जा सकैछ जे सीताक पीड़ा आ रामक पश्चात्तापक संगम पर ठाढ़ अछि उत्तररामचरित आ महाकवि भवभूति अपन तीक्ष्ण करुणाक मन्दाकिनी मे सभ क्षोभ,सभ पीड़ा,सभ मानापमान बहाक’ समाजक लेल काम्यपथक निर्देश करैत छथि,कविक धर्मो त’ ओएह!

(रामनवमी विशेष)

राम अपना सभहक जनमानस मे विद्यमान ओ आनंद -तत्त्व छथि जे उन्नत मानव- धर्मक स्थापना लेल,विश्रृंखल समाज केॅं एकरूपता देबा लेल,ऊंच नीचक भेद सॅं मुक्त करबा लेल, भौगोलिक दृष्टि सॅं बांटल-बिखरल भूमि केॅं संपूर्ण आर्यावर्त बनयबा लेल, समष्टि- सुख लेल व्यष्टि -सुखक परित्याग करबा लेल,एक टा मनुष्य आ खास कय राजाक लेल अपेक्षित गुणक निदर्शन ठाढ़ करबा लेल एहि धरा पर अवतरित भेल छलाह। सर्वप्रथम  जनैत छी रामक  नाम सॅं प्रसिद्ध के सभ छलाह,हुनका विषय मे-

1.जमदग्निक पुत्र परशुराम
2.वसुदेवक पुत्र बलराम
3.दशरथ आ कौशल्याक पुत्र श्रीराम

एहि ठाम हमर विवेच्य विषयक केन्द्र मे छथि भगवान् श्री राम जे भगवान् विष्णुक सातम अवतार मानल जाइत छथि। महाकवि जयदेव अपन गीतगोविन्द मे कहैत छथि-

वितरसि दिक्षु रणे दिक्पति कमनीयम्
दशमुखमौलिबलिं रमणीयम्
केशव!धृत रघुपति रूप!जय जगदीश हरे!

महाकवि तुलसीदास कहैत छथि-

जेहि इमि गावहिं वेद-बुध जाहि धरहिं मुनि ध्यान
सोइ दशरथ सुत भगत हित कोशलपति भगवान्।।

मर्यादा- विहीन समाज बिखरि जाइत छैक,समाज केॅं मर्यादित आचरण सिखयबा लेल, अनुशासनक शिक्षा देबा लेल, अन्यायी -अनाचारी सॅं मुक्ति दिअयबा लेल,  निर्गुण निराकार भगवान धरती पर अवतरित होइत रहैत छथि। किन्तु अन्य अवतारक अपेक्षा रामक विशेषता छनि हुनक सहज मानवीय व्यवहार-ओ सामान्य बालक जकाॅं बालसुलभ क्रियाकलाप सॅं माता- पिताक सुखक  कारण बनैत छथि।

वएह राम सामान्य विद्यार्थी जकाॅं ऋषि वशिष्ठ सॅं शिक्षा प्राप्त  करैत छथि,आज्ञाकारी अनुयायी जकाॅं ऋषि विश्वामित्रक अनुसरण करैत बाट मे असुरक संहार करैत छथि, सहज युवा प्रणयी जकाॅं पुष्पवाटिका मे  सीताक देखि हृदय मे  विचलन अनुभव करैत छथि, विश्वामित्रक आज्ञा सॅं शिवधनुष तोड़ि अपन क्षत्रियत्व प्रमाणित करैत छथि।

अपन संपूर्ण व्यवहार मे ओ कत्तहु स’ महामानव हयबाक घोषणा नञि करैत छथि।हुनक सभ आचार आ व्यवहार मानवजाति के ई सीख देबा लेल पर्याप्त अछि जे एहन परिस्थिति जॅं आबि जाय त’ की करबाक चाही? तैत्तिरीय-उपनिषदक एकटा प्रसंग ध्यातव्य अछि-

“यदि ते कर्मविचिकित्सा वृत्तविचिकित्सा वा स्यात् तदा ये तत्र ब्राह्मणा: सम्मर्शिन:,युक्ता आयुक्ता:,अलूक्षा धर्मकामा स्यु:,यथा ते तत्र वर्तेरन् तथा तत्र वर्तेथा:।”

अर्थात् किंकर्तव्यविमूढ़ताक स्थिति मे ओहने व्यवहार करबाक चाही जेहन विचारशील, ज्ञान विज्ञान सॅं युक्त, स्वतंत्र निर्णय  लेबा मे समर्थ, कोमल स्वभाव बला आ  कर्तव्यपरायण पूर्वज नेने छथि।एहि कसौटी पर रामक आचरण पूर्णतः उपयुक्त।

आइ रामनवमीक अवसर पर रामक विभिन्न रूप केॅं बुझबा गुनबाक प्रयास क’ रहल छी-

राम : एकटा आदर्श पुत्रक रूपमे

राम पिता दशरथ आ जननी कौशल्याक संग विमाता सभक समान रूप स’  प्रिय छथि,माता -पिताक प्रसन्नताक लेल  हुनक सभ आदेश हंसि क’ स्वीकार करब ओ धर्म  बुझैत छथि। वनवासक आज्ञा मे ओ कोनो हित निहित बूझि कञ्चुकी केॅं  कैकेयीक प्रति अवज्ञात्मक वचन कहबा सॅं मना करैत छथि-

“किमम्बाया:,तर्हि उदर्केण गुणेनात्र भवितव्यम्।”
आ माताक आज्ञा मे कोन गुण देखैत छथि-
वनगमननिवृत्ति: पार्थिवस्यैव तावन्मम
पितृपरवत्ता बालभाव: स एव
नवनृपतिविमर्शे नास्ति शंका प्रजानामथ
च परिभोगैर्वञ्चिता भ्रातरो मे।।
(प्रतिमा नाटक- महाकवि भास)

अर्थात् हमरा वन गेला स’ सभटा लाभे छैक-पिताजी वानप्रस्थ आश्रम मे नञि जेताह,हम राजाक गुरुतर भार स’ मुक्त रहब,हमर बालभाव बांचल रहते,हमर भाइ सभ कोनो तरहें हमरा स’ हीन नञि रहत आदि आदि।

राम : एकटा आदर्श क्षत्रिय राजाक रूपमे

राम धरती आ धरतीवासी केॅं असुरक अत्याचार सॅं मुक्त करबा लेल राम मारीच,ताड़का,रावण कुंभकर्ण आदिक वध कय अपन क्षत्रिय- धर्मक निर्वाह करैत छथि।असंभव के संभव करबा लेल जाहि दृढ़ता आ आत्मबलक आवश्यकता होइत छैक,ओहि सॅं युक्त राम अगम अथाह सागर पर नल -नीलक सहायता स’ पुल बनबाबै छथि, सुग्रीव,अंगद,हनुमान् आदिक मदति स’ रणनीति बना रावण सन पराक्रमी असुरक संहार करैत छथि। एहि प्रसंग मे भोजप्रबन्धक ई श्लोक ध्यातव्य अछि-

विजेतव्या लंका,चरणतरणीयो जलनिधि:
विपक्ष: पौलस्त्य:,रणनिधिसहायाश्च कपय:
पदातिर्मर्त्योSसौ सकलमवधीत् राक्षसकुलं
क्रिया सिद्धि: सत्त्वे भवति मस्तान नोपकरणै:।।

अर्थात् लंका जितबाक छैक, समुद्र पार करबाक छैक,विपक्ष मे रावण सन शक्तिशाली अछि, सहयोगी वानर सभ अछि,स्वयं पैदल छथि,मर्त्य छथि, किन्तु राक्षसकुलक संहार क’ सकलाह,कारण एतबहि जे सफलता आत्मबलक मोहताज होइ छैक,उपकरणक नञि

राम : फलाफल नि:स्पृह कर्तव्यक प्रतीकक रूप मे

स्वर्णनगरी लंकाविजयक उपरांत राम ओत’ स्थित  अतुल धन- वैभव किंवा राज्य स्वेच्छा स’ रावणक अनुज विभीषण केॅं सौंपि अयोध्या घुरबाक उपक्रम करैत छथि। ओ कर्तव्यनिर्वहण लेल रावणक वध कयने छलाह,पत्नीक मुक्तिक संग समस्त जनता कें ओकर अत्याचार सॅं त्राण दिअयबा लेल युद्ध कयने छलाह,न कि राज्य पयबाक लालसा मे।

राम : मानवीय करुणाक प्रतीकक रूपमे

रामक मानवीय रूपक दर्शन होइत अछि सीताहरणक उपरांत हुनक विह्वलता मे,एक एक गाछ वृच्छ स’ सीताक पता पुछबा मे।

तुलसीदास जी कहैत छथि-

कहेउ राम वियोग तब सीता मो कहुं सकल भए विपरीता
नव तरु किसलय मनहुं कृशानू कालनिशा सम निशि शशि भानू।।
रामक करुणाक दर्शन होइत अछि गिलहरीक प्रयास केॅं स्वीकृति देबा मे सेहो।

उत्तररामचरित मे महाकवि भवभूति रामक संताप के अद्भुत मूर्त रूप देने छथिन्ह-

रे हस्तदक्षिण! मृतस्य शिशोर्द्विजस्य
जीवातवे विसृज शूद्रमुनौ कृपाणम्
रामस्य बाहुरसि दुर्भरगर्भखिन्न
सीताविवासनपटो,करुणा कुतस्ते!

राम :  स्त्रीक प्रति सामाजिक दृष्टि परिवर्तकक प्रतीकक रूपमे

रामक द्वारा शिला मे परिवर्तित अहिल्याक उद्धार ई स्पष्ट निदर्शित करैत अछि जे राम समाजक एहि कुरीति के दूर करबाक हिमायती छलाह जे अनकर दोषक भागी स्त्री कें मानैत अछि। सामाजिक लोकापवाद कोनो मनुष्य कें पाथरे त’ बना दैत छैक- दोष इन्द्रक आ पतिक कोपभाजिनी बनलीह अहिल्या।ओहि तिरस्कृता,बहिष्कृता स्त्री कें दोषमुक्त प्रमाणित कय राम स्त्रीक प्रति अपन दृष्टिकोण स्पष्ट करैत छथि।अहिल्याक कृतज्ञता कें तुलसीदास जी केहन दीब निरूपित करैत छथि-

परसत पद पावन शोकनसावन प्रगट भई तपपुंज सही
देखत रघुनायक जन सुखदायक सनमुख होइ कर जोरि रही
अति प्रेम अधीरा पुलक शरीरा मुख नहिं आबइ वचन कही
अतिशय बड़भागी चरणन्हि लागी जुगल नयन जलधार बही।।

राम : मानवमात्रक समानताक प्रतीकक रूपमे

शबरीक हाथ सॅं ऐंठ बेर प्रेम पूर्वक ग्रहण कय राम ऊंच नीचक भेद केॅं समाज स’ दूर करबाक स्पष्ट निर्देश दैत छथि-

जाति पांति कुल धर्म बड़ाई धनबल परिजन गुन चतुराई
भगतिहीन जन सोहइ कैसा बिनु जल वारिद देखिअ जैसा।।

कंद मूल फल सुरस अति दिए राम कहुं आनि
प्रेम सहित प्रभु खाए बारंबार बखानि।।
-तुलसीदास

केवटक निहोरा -प्रसंग सेहो रामक विशाल हृदय आ समत्वदृष्टिक परिचय दैत अछि-

जासु नाम सुमिरत एक बारा उतरहिं नर भवसिंधु अपारा
सोइ कृपाल केवटहि निहोरा जेहि जगु किय तिहु पगहु ते थोरा।।

राम : आदर्श राजाक रूपमे

रञ्जयति इति राजा”- जे प्रजाक प्रसन्नताक लेल सभकिछु उत्सर्ग करै लेल तत्पर होइत अछि सएह वस्तुत: राजा होइत अछि,राम एहि तथ्य कें स्वीकारैत अपन सुखक हेतु प्राणप्रिया पत्नी तक के परित्याग क’ दैत छथि। हॅं, अवश्य आइ- काल्हुक परिस्थितिमे रामक एहि निर्णय के न्यायसंगत नञि मानल जा सकैत छैक, किन्तु कोनो कालक साहित्य ओहि समयक सामाजिक चिंतनक प्रतिनिधित्व करैत छैक। राम आसन्नप्रसवा सीता कें निर्वासित कय  मात्र दुष्कर राजधर्मक निर्वाह करैत छथि। महाकवि भवभूति अपन पोएटिक जस्टिसक निर्वाह करैत कहैत छथिन्ह-

अयि कठोर! यश: किल ते प्रियं किमयशो ननु घोरमत: परम्
किमभवत् विपिने हरिणीदृश: कथय नाथ! कथं वत् मन्यसे।।

संक्षेप मे एतबहि जे रामनवमी के मात्र एकटा पाबनिक रूप मे नञि मनाबी, मात्र श्रीरामक गुणगान कय अपन कर्त्तव्यक इतिश्री नञि करी,राम आनन्दक हेतु छथि,आनन्दप्रदाता छथि, हमहूं सभ समाज मे प्रसन्नता बंटबाक प्रयास करी, करुणा आ त्यागक गुण आत्मसात करी, अनुशासन आ नियम स’ बन्हायल रही, समरसता प्रवाहित करबा लेल प्रयत्नशील रही।

सभ में राम,राम सभहक छथि, मूर्त रुप प्रभु आदर्शक छथि
सकल भेद केर शूल मिटौबैत दृष्टि समत्वक उद्घोषक छथि
अनुशासन,संयम, शुचिता आ प्रेम भाव केर ओ पोषक छथि
संभव जे मूल्यक रक्षण हो, ताहि सुकर्मक ओ  नायक छथि।।

सुनू,एकटा गप सत बाजब।अहांकें हमरा स’ कहियो कनियों प्रेम भेल?

मतलब?

सदति तुरछल बोल,छिटकल देह-मन,मशीन जकां काज… काज.. काज..

आ ओ मोने मोन सोचैत रहलीह- ओकर नचार मायक तलता मे, ओकर विधवा बहिनक धिया पुताक जिम्मेदारी स्वेच्छा सॅं निभयबा मे, ओकर आर्थिक भार कम करबा लेल दिन राति मशीन पर झुकि  मोहल्लाक लोकक कपड़ा सीबा मे, कखनो ओकर कम कमाइक उलहन नञि देबा मे हमर प्रेम नञि देखैलै?

धुर!एहन भावना सॅं आन्हरक लेल कियैक शब्दक अपव्यय करी?

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