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कक्का प्रणाम!

अहाँ अपना घरक बेटी-पुतोहू केर श्रम कें सोझे स्तरहीन घोषित करैत छी। नीक गप। अहाँ कहैत छी जे प्रकाशक सभ आँखि मूनी अधोगामी रचना सब छापि दैत छथि। बेश! महत्वपूर्ण अछि जे अहाँक ई विपद्य विचार ओहि अखबार मे प्रकाशित भेल अछि जे किछुए दिन पहिने अपन सम्पादकीय पृष्ठ पर एकटा स्वनामधन्य लेखकक लेखनीसँ एहि बातक घोषणा कएने छल जे मिथिलाक समाज स्वाभाविक रूपें सामंती, स्त्री विरोधी आ दलित विरोधी रहल अछि। वएह अखबार अहाँक एहि विचार पर मोहर लगा रहल अछि जे मैथिलीक सभ नवलेखिका अकर्मके छथि। ने त ओहि सामंती घोषणा बला लेख केर प्रतिपक्षमे कोनो लेख हमरा एहि अखबारमे आइ धरि भेटल आ ने अहाँक विपद्य विचारक समानान्तर कोनो महिलाक पक्ष देखबाक भेटल।

हमर जिज्ञासा अछि जे जतेक प्रश्न सभ उठाओल गेल ‘आजुक स्त्री लेखन’ पर, ताहिमे कोन एहन प्रश्न अछि जाहिसँ मैथिली साहित्यक नवतुरिया लेखन सामान्यत: ऊपर अछि? सभटा पुरुष लेखक सभ की ओहि प्रश्न सबहक परिधि सँ दूर छथि? कोनो गणितीय आधार अछि ई कहबाक जे ‘अधोगामी’ हेबाक ई प्रवृत्ति स्त्री लोकनिक बीच बेशी अछि पुरुख रचनाकार लोकनिक बनिस्पत?

आ.. मैथिलिए टा किएक, कोन भाषा-साहित्य एहन अछि जाहिमे नीक-बजाए नहि। कोन भाषा-साहित्य एहन अछि जाहिमे श्रेष्ठ आ हीन सभ तरहक साहित्य प्रकाशक लोकनिक छापि नहि रहलाह आ कि स्तरहीन रचना सभ मंच-मचान-पुरस्कार केर जोड़-तोड़मे लिप्त नहि रहल अछि। एकरो कोनो तुलनात्मक अध्ययन भेल अछि की? अंग्रेजीक सभ रचनाकार इलियट आ शेक्सपीयर केर बराबर छथि की? हिंदी मे सभ दिनकरे-निराला भ गेल छथि? मैथिलीक सभ पुरुख लेखक ज्योतिरीश्वर आ विद्यापति सँ प्रतियोगिता क रहल छथि की? दिनकर-निरालाक समकक्ष जे सभ पुरखा छलाह हमरा सबहक हुनको सँ आजुक पुरुख लेखक लोकनि कोनो प्रतियोगिता मे छथि की?

एकटा गप इहो जे ‘अधोगामी’ आ ‘स्तरहीन’ हेबाक मानक की? व्याकरण? वा ओ भाषा जे पढाबय बचैत रहला एहि नवतुरिया लेखिका लोकनिक बाप-पित्ती? वा ओ राजनीतिक-दार्शनिक चिंतन जे एहि लेखिका सबहक माए-पितियाइन धरि पहुँचब कल्पनातीत रहल? वा ओ मानसकिता जे ‘कनभेंट’ मे नहि पढ़इ चलते मिथिलाक धी-बेटी मे नहि पनपि सकल? दू-चारि वा दस-बीस मानक जं तय कइये ली त की ‘श्रेष्ठता’ वा ‘हीनता’ सार्वत्रिक सत्य भ गेल?

जखन अहाँ कहैत छी जे पुरस्कार आ मंच मचान जोगाड़े से भेटैत छैक त की ई बुझल जाए जे महिला लोकनिक मंच-मचान आ पुरस्कार लेल पहिल आ अंतिम शर्त जोगाड़े टा थिक। पछिला बरख चेतना समितिक दू गोट मुख्य सम्मान आ दू गोट ताम्रपत्र महिला रचनाकार/गायिका कें समर्पित कएल गेल छल।साल 2021 मे महिला रचनाकार कम सँ कम 20 गोट मैथिली पोथी बहराएल छल। अहाँक वक्तव्य केर आधार पर की ई बुझल जाए जे ई सभटा उपलब्धि जोगाड़े टा सँ भेल। आ की अहाँ ई दावा सँ कहि सकैत छी जे पुरुख लोकनिक सभ मंच-मचान-पुरस्कार जोगाड़-रहित छनि। एहने प्रश्न श्रीधरम जी आ रोमिषा केने छलथि मान्य रचनाकार रमण कुमार सिंह जीक ओहि आलेख पर जकरा अपने उद्धृत केलहुँ। रमण कक्का अपन अगिला आलेख मे स्पष्ट केलथि जे नव पीढ़ीक महिला लेखन पर लिखल गेल हुनक गप सब पुरुख लेखन पर सेहो लागू होइत अछि। सन्दर्भ धरि मे ई सेलेक्टिवज्म कोना। एहि स्पष्टीकरणक लगभग हफ्ता भरि बाद अहाँक लेख आबैत अछि, महिलाक प्रति वएह पूर्वाग्रहक सङ्ग, आ फेर ओ हू-ब-हू छपि जाइत अछि अखबार मे।

जज बनब सहज अछि जखन निर्णय अनका पर देबाक होइ। ‘स्त्री’ आन अछि अहाँ लेल, तें अहाँ सहज निर्णय क सकैत छी। निवेदन एतबहि जे कखनो मैथिली मे दिनानुदिन छपैत-बहराइत भइया-बउआ-कक्का सबहक रचना सबहक सेहो छिद्रान्वेषण ओहि मानक आ ओहि मानस सङ्ग करब जाहि मनोस्थितिमे सभ मिथिलानीक लेखन एकहि हांकमे नकारल अछि। आशा अछि जे अहाँक एहन कोनो ईमानदार पोस्ट भेटत आ हमरा सभकेँ ई कहय पड़त जे अहाँ लेल हम सभ आन नहि छी, अहाँ स्वभावतः एहिना लिखैत छी।

सादर

स्वाती शाकम्भरी

 

अहाँ भारतमे नहि,
ओहि इंडियामे रहैत छी,
जतय रहैक लेल अहाँ
स्वतंत्र नागरिक नहि भ’
विदेशी आक्रांता कंपनी सभक ब्रैंड
अपन छातीपर साटिकेँ चलैत छी।
केकरो गिनीपिग बनि क’ अहाँकेँ
जे गर्वित हेबाक आभास होइत अछि
ओ अहाँक मरल आत्मा क’ गंध अछि।
अहाँ जाहि कन्वेंट स्कूलमे
लाखों रुपया दस्तूरी द’ क’
अपना बच्चा सभकेँ घुसियबैत छी,
दरअसल से त’ कत्लगाह छैक
जतय अहाँक विमल-बुद्धि शिशुकेँ
आत्मिक संस्कार
आ पारिवारिक संबंध सभकेँ
नाभि-नाल केँ तेज धार वाला छुरिसँ
हलाल कएल जाइत अछि।

तेकर बाद मात्र डीएनए छोड़ि
ओकर सभ किछु बदलि जाइत छैक।
घुरिकेँ अहाँ लग जे गोश्त अबैत अछि
ओ गुरुकुल क स्नातक नहि
मात्र प्लास्टिक क एटीएम कार्ड होइत अछि
जाहिसँ पाइ त’ निकसि सकैत अछि,
मुदा मानसकेँ संवाद नहि।
अपन लायक बेटाकेँ नालायक बनेबाक उन्मादमे
अहाँ जाहि माँ-बाप केँ वृद्धाश्रममे
फेंकि आएल रही,
हुनक छोड़ल कंबल
अहाँक प्रतीक्षा क’ रहल अछि
जाउ आ ओतहिए एकटा स्लमडॉग जकाँ मरू
किएक त’ अहाँक मरल मुँहमे आगि द दइवाला बेटा
फारेन में डालर क गरदामी मे गला फँसाक’
दिन-राति खटि रहल अछि,
आ परदेसी तिजोरी भरि रहल अछि।
ओकरा फुर्सत कतय छैक
जे ओ अहाँक लहासकेँ देखैक लेल आओत ?
आ लहास तँ जिबैत शरीर क होइत अछि
अहाँ त’ नहि जानि कहिए मुर्दा भ’ गेल छलहुँ!

सामान्यत: बूझल जाइत छै जे महिला सभ मे राजनीतिक चेतना कत’? हुनका सभ के राजनीति स’ की मतलब? बेसी स’ बेसी वोट खसाब’ चलि जेतीह, सेहो घरक लोक सभक निदेशानुसार। राजनीति मे जौं जेतीह त’ पुरुष आधिपत्यक नीचां बनल रहतीह। अपन फैसला लेबाक अधिकार स’ वंचित। ईहो मानि लेल जाइत छै जे महिला सभ मे सामाजिक चेतनाक अभाव छै। बल्कि हुनका सभ के ई समझाओल- बुझाओल जाइत छै जे समाज मे जे सभ घटि रहल अछि, तकरा सभ स’ हुनका आओरक की मतलब? ओ सभ त’ बस तौला- तौला भात उसीनथु, घर भरक सेवा करथु, बाल- बच्चा सभ के पोसथु, घर लेल सदा समर्पित रहथु। बाहर आगि लागय, ठनका ठनकय- हुनका आओर लेखे धन सन! वाणिज्यिक या आर्थिक पहलू सभ पर त’ हुनका सभ मे आगि आ पानिक संबंध। घर- खर्ची ले जे भेंटि जाए, सएह हुनक दुनिया! ओकरा मे स’ जे खा- बचा ली। कोनो सरकारी नियम आबि जाए त’ तुरंत चोरनी सन पदवी स’ सेहो विभूषित!

मानि लेल जाइत छै जे खूब पढ़ल- लिखल महिलेटा लिखबा- पढ़बाक काज क’ सकै छथि। ईहो मानल जाइत छै जे महिला सभ मे वैश्विक सोच कत’? लिखतीह त’ व्रत- पाबनि अथवा ओकर महामात्य पर। बेसी बढतीह त’ घरक गुण- गाथा अथवा जनी- मजूरनी सभक कथा लिख सकै छथि। महिला आ बोल्ड विषय! छिया- छिया! स्त्री भ’ क’ एहेन लेखन? जी। हमरा लेल कहल गेल छल, जहन हम कथा लिखने छलहुं- ‘आऊ कनेक प्रेम करी माने बुझौअल जिनगीक’। माने अहां स्त्री स’ प्रेम करी त, बड्ड नीक! हम प्रेमक अभिव्यक्ति पर लिखी त’ अनर्थ!

त’ ई सोच ओहि मैथिल समाजक छै, जाहि समाज मे मल्लिनाथा भ’ गेलीह। जाहि समाज मे शस्त्र- शास्त्र और गृह- कार्यक ज्ञान स’ सुसज्जित सीता भ’ गेलीह। जाहि समाज मे भारती मिश्र सन विदुषी भेलीह, जे सेक्स सनक विषय पर आदिगुरु शंकराचार्य स’ शास्त्रार्थ केलीह। जाहि समाज में मैत्रेयी, गार्गी, भामती सन महिला भ’ गेलीह। ओहि समाजक आजुक आश्चर्यजनक जड़ता हुनकरे अहि ढोल पीटब के नकारै छै जे हमर मैथिल समाज के अपना  अतीत पर गर्व छै।

मुदा, हमरा सभ के गर्व स’ तनि के ठाढ हेबाक अवसर दैत आ समाज मे पसरल सभटा पाखंड के ध्वस्त करैत अपन लेखन स’ चहुं दिस सभ के चकभौंर करैत छथि, प्रगतिशीलताक ज्वलंत अहर्निश टेमी बनि क’ लिली रे। लिली रे आश्चर्यजनक तरीका स’ अजुका जड़ मैथिल समाजक सभटा मिथक के धांगैत आ भांगैत छथि आ सेहो मैथिली मे लिखि क’। अपन व्यापक अनुभव संसार स’ ओ समाजक खोहि- दोगी मे जा- जा क’ विष्य आनलन्हि आ लिखलन्हि। हमरा ई कहबा मे कनिको संकोच नहिं अछि जे लिली रे अपन लेखनी मे कम स’ कम सय वर्ष आगां छथि।

सहज व्यक्तित्व

लिली रे बहुत मृदुल, सौम्य आ आकर्षक छथि। हुनकर एक गोट भगिना श्रीरमण झा कहै छथि- ‘लिली मामी के जाहि स्वरूप मे हम देखल, ओहेन स्वरूप ओहि समय मे अत्यंत दुर्लभ छल, कियैक त’ लिली मामी अत्यंत समृद्ध आ शिक्षित परिवार स’ आएल छलीह। हुनक व्यवहारक खुलापन, उदारता, प्यार आ सभ पर समान रूप से ध्यान राखब, दुर्लभ छल। मात्र हमरे लेल नहीं, अपितु सभ लेल, छोट- पैघ, जरूरतमन्द कि आन किओ। हमरा लेल त’ हुनका जानब, देखब हुनका से बतियाएब- सभ किछु जेना स्वप्न मे देखल आ यथार्थ मे भेटल दुर्लभ खजाना सन छल। एक गोट हंसमुख, प्यार करयवाली आ सदिखन सभक लेल अपस्यांत रहयवाली एक गोट मैथिल स्त्री- हमर लिली मामी!’

वरिष्ठ पत्रकार मदन झा लिखै छथि- ‘लगभग तीस साल पहिने हम एक पारिवारिक समारोह में आयल रही। मिथिला समाजक दिल्ली में रहनिहार बहुत लोक सभ स’ मेल- जोल में व्यस्त रही। एक कार्यक्रम मे हमर ध्यान एक़ टा प्रभावशाली आ भव्य महिला दिस गेल, ज़े अपना से बुज़ुर्ग लोक सबहक संग बैसल छलीह। सभ किओ हुनके स’ मुख़ातिब छलन्हि। हुनक परिधान ओहि समयक हिसाब से बहुत एडवान्स लागि रहल छलै। इंटर्नेटक ज़माना नहिं छल। ताही हेतु जेनरली फ़ोटो देखबाक अपेक्षाकृत कम मौक़ा होइत छलै।

ख़ैर! ओहि बुज़ुर्गक मण्डली लग जेबाक साहस कएल। हर्ष भेल जे हम मैथिलीक सुप्रसिद्ध साहित्यकार लिली रेक सामने छी। हुनका प्रणाम करबाक आ अपन परिचय देबाक प्रयास कएल। ओहि समय में आदरणीय हरिमोहन झा, यात्री जी आ सुमन जीक़ संग एकमात्र महिला मैथिली साहित्यकारक नाम, जिनका स’ नीक जकां परिचित छलहुं त’ ओ छलीह लिली रे। …. ओ सभ स’ प्रोग्रेसिव साहित्यकार छलीह आ हुनक रचना ‘मरीचिका’ सभ से पॉप्युलर उपन्यास अछि, जेकरा नॉन- लिटरेचरबला लोक सभ सेहो पढ़ने हेताह।‘

इहो पढ़ू: चिर स्मरणीय रहत लिली रे जीक कीर्ति

फिल्म मेकर आ हुनक भगिना ब्रह्मानंद सिंह लगभग बीस बर्ष पहिने हमरा फोन केने छलाह- ‘अहां लिली रे के जनै छियै?’

हमरा अपन आश्चर्य भेल- ‘हम हुनकर ट्रांसलेटर छी। मुदा अहां हुनका कोना जनै छियै?’

‘ओ हमर मामी छथि। हुनका स’ भेंट भेला पर हमरा स’ पूछलन्हि जे अहां त’ मुंबई मे रहै छी। अहां विभा रानी के जानै छियै? ओ हमर किताब सभक अनुवाद क’ रहल छथि।‘

ब्रह्मानंद सिंह कहलन्हि- ‘लिली मामीक पूरा पर्सनैलिटी एकदम अलग छलन्हि। एतेक तेज आ गरिमा हुनका चेहरा पर रहैत छलै जकर वर्णन नहिं कएल जा सकैये।‘

लिली रे केर साहित्यिक कैनवास

एहेन लिली रे स’ साधारण रचनाक अपेक्षा नहिं कएल जा सकै छलै आ ओ केबो नहिं केलीह। एक दिसि ओ ‘उपसंहार’ सनक उपन्यास लिखै छथि। स्त्री आ कन्या मोनक कोमल तंतु प्रेमक निरीहता आ ओकरा स’ भेंटल दंड पर त’ दोसर दिस ‘पटाक्षेप’ लिखै छथि- घनघोर नक्सल आंदोलनक खोह मे जा क’।

डॉ. बिभा कुमारी लिली रेक उपन्यास ‘उपसंहार’ पर लिखै छथि- ‘लिली रेक उपन्यास ‘उपसंहार’ स्त्री- पुरुष विभेद, लैंगिक असमानता, समाज में स्त्री आओर पुरुष लेल निर्धारित अलग- अलग मानदंड पर प्रश्न ठाढ़ करैत अछि। …. समाजक व्यवस्था एतेक दुरंगा किएक अछि? पुरुषक दोष कें नहि देखल जायत अछि आ स्त्रीक दोषकें भरि जिनगी लेल कारिख बना क’ ओकर मुँह पर औंस देल जायत अछि। पुरुषक दोष सेहो स्त्रीक माथ पर ध देल जायत अछि।‘

‘पटाक्षेप’ पर समाजशास्त्री डॉ. कैलाश कुमार मिश्र लिखै छथि- ‘ई उपन्यास कतौ यथार्थक समाज वैज्ञानिक विश्लेषण आ एथनोग्राफिक परिचय प्रशस्त करबमे पाछा नहि रहल अछि।‘

हमरा एखनो लागैये जे की तहिया मैथिली मे चारू मजुमदार, कानू सान्याल सभक चर्च होइत छलै? मार्क्स आ लेनिनक नाम पर विचार-विमर्श होइत छलै? ‘पटाक्षेप’ मे अहां के ई सभ टा जानकारी भेंटत। डॉ. कैलाश कुमार मिश्र ‘पटाक्षेप’ स’ कोट करै छथि- “सभ जानय चाहैत छल चारू मजुमदार, कानू सान्याल आ जंगली संतालक विषय मे। नक्सलबाड़ी किशनगंजसँ दूर नहि छल। किशनगंज पूर्णियासँ दूर नहि छल। एक गामसँ दोसर गाम, दोसरसँ तेसर, समस्त अंचलमे नक्सलबाड़ीक गप्प उड़िया रहल छल। मार्क्स आ लेनिनक नाम प्रत्येक गामक युवावर्ग सुनि चुकल छल। क्रान्तिक महँ स्वप्नकेँ पूर्ण करबा ले सभक मोन आलोड़ित भऽ रहल छलैक। बुढ़बा सभकेँ बुझबामे नहि अबे, मुदा सुनबामे नीक लगै। ओसभ किछु नहि बाजय, मुदा ओकर मूक आँखिमे हँसी डबडबा गेलै, जेना दिलीपकेँ कहैत होइनि, “बाबू हमहूँ कम नहि देखने छी। कहब सहज छै, करब नहि।”

समीक्षक अरबिंद दास लिखै छथि- ‘वर्ष 1960 के दशक में उनका लेखन मंद रहा, लेकिन फिर ‘पटाक्षेप’ (मिथिला मिहिर पत्रिका में धारावाहिक प्रकाशन) से लेखन ने जोर पकड़ा। मेरी जानकारी में नक्सलबाड़ी आंदोलन को केंद्र में रखकर मैथिली में शायद ही कोई और उपन्यास लिखा गया है। बांग्ला की चर्चित रचनाकार महाश्वेता देवी ने भी ‘हजार चौरासी की मां’ उपन्यास लिखा, बाद में इसको आधार बनाकर इसी नाम से गोविंद निहलानी ने फिल्म भी बनायी। ‘पटाक्षेप’ में बिहार के पूर्णिया इलाके में दिलीप, अनिल, सुजीत जैसे पात्रों की मौजूदगी, संघर्ष और सशस्त्र क्रांति के लिए किसानों- मजदूरों को तैयार करने की कार्रवाई पढ़ने पर यह समझना मुश्किल नहीं होता कि यह रबिंद्र रे और उनके साथियों की कहानी है। रबिंद्र लिली रे के पुत्र थे, जिनका वर्ष 2019 में निधन हो गया। अपनी आत्मकथा में भी लिली रे नक्सलबाड़ी आंदोलन में पुत्र रबिंद्र रे (लल्लू) के भाग लेने का जिक्र करती हैं कि किस तरह लल्लू हताश होकर आंदोलन से लौट आए और फिर अकादमिक दुनिया से जुड़े।’

अपन निजी जीवन में लिली रे बहुत भ्रमण केलीह। श्रीरमण झा लिखै छथि- एक बेर हमर पोटिंग कलकत्ता मे भेल छल। हम ओहि ठाँ दुखित भ’ क’ कलकता के बेलिव्यू अस्पताल में भर्ती रही। अस्पताल में सभ स’ पहिने पहुंचयवाला जे व्यक्ति छल, ओ छलीह लिली मामी- भरि- भरि झोरा फल- फलहरी आ फूल सभ ल’ क’। कह’ लेल लोक आओर कहि सकैत छथि जे ई कोन बड़का बात! मुदा, अस्पतालक बेड पर पड़ल एक गोट बेराम व्यक्ति लेल ई अत्यंत जीवनदाई। लिली मामीक भव्यता आ महानता पर बहुत किछु लिखल जा सकैए। एक गोट चुम्बकीय आकर्षण छै हुनक सम्पूर्ण व्यक्तित्व में।‘

यथार्थ लिखनिहारि  लेखिका

लिली रे जत’- जत’ रहलीह, ओतुक्का जिंदगी लिखैत रहलीह आ एवंप्रकारे मैथिली के बहुविध अनुभव संसार स’ समृद्ध करैत रहलीह। हुनक छोट- छोट वाक्य, बिहारीक दोहा जकां छै- ‘देखन में छोटन लगे घाव करे गंभीर’। श्रीधरम लिखै छथि- ‘कथा- साहित्य ओ विधा थिक जे साहित्य मे तथाकथित धीरोदात्त नायक कें पदच्युत क’ हाशियाक शोषित पीड़ित स्त्री- दलित- किसान- मजदूर आदि पात्र कें साहित्यक केंद्र मे स्थापित क’ देलक। तकर प्रमाण लिली रेक कथा- साहित्य सेहो थिक।‘

अपन पहिल कथा ‘रोगिणी’ये स’ लिली रे कहि देलखिन्ह जे ‘यौ मैथिल सभ- उठू कि भोर होबय छै।‘ श्रीधरम लिखै छथि- ‘ई (रोगिणी) कथा मिथिलाक बिधवा जीवनक शोकगीत सन अछि। पुरुष द्वारा एकटा स्त्री आकि विधवाक दैहिक-मानसिक शोषणक जे मैथिल परंपरा रहल अछि तकरा अभिव्यक्त कर’ मे पूर्णतः सफल अछि ई कथा। लिली रे अपन पहिले कथा मे जाहि धमक संग उपस्थित होइत छथि, से अहि कहावत कें दुरुस्त करैत अछि जे अवसर भेटै त’ पूते नहि पुत्रीक पएर सेहो पालना मे देखल जा सकैत छै।‘

मोपासां आ चेखव सं छलीह प्रेरित

लिली रेक रचना सभक अंत अत्यंत अप्रत्याशित होइत छै- मोपासां वा चेखवक कथा सभ सनक। हुनका स’ अहि बाबत पूछला पर ओ बहुत सहजता स’ हमरा स’ कहने छलीह- ‘मोपासांचेखव हमर बहुत प्रिय रचनाकार छथि। हम हुनका बहुत पढै छी। तैं, यदि हुनका आओरक लेखन शैली हमर लिखब मे आबि गेल अछि त’ ई कोनो हैरानीक गप्प नहिं। भ’ सकै छै। एना होबैत रहैत छै। प्रेरणा आ सीख त’ कतहु स’ लेल जा सकैये।’

मुस्काइत ओ हमरा कहलीह- ‘आइ धरि मुदा किओ अहि मादे हमरा स’ किछु कहल वा पूछल नहिं। पहिल बेर अहां स’ सुनल। तैं आब हमहूं एक बेर सोच मे पडि गेलहुं। मुदा अहां के ई कोना लागल?’ हम विनत एतेब कहल जे ‘चेखव आ मोपासां हमरो बहुत प्रिय लेखक छथि।’

सरल, सहज, प्रवाहमयी भाषा आ गूढ भाव संगे वर्णित रचना सभक कएक टा लेयरक अर्थ आ बोध सृजित भ’ सकै छै, ई जान’ आ बूझ’ लेल लिली रे के पढ़ब अनिवार्य छै। मैथिली मे पढू, हिंदी मे पढू, मुदा पढू अवश्य। हमरा द्वारा मैथिली से हिन्दी में अनूदित एखनि धरि आठ टा किताब छै- ‘पटाक्षेप’ (भारतीय ज्ञानपीठ), ‘जिजीविषा’ (रेमाधव पब्लिकेशन्स), ‘बिल टेलर की डायरी’, ‘संबंध’ (वाणी प्रकाशन) ‘विशाखन व अबूझ’ तथा ‘प्रवास चयन व उपसंहार’ आ नाटक ‘गांधारी’ आ ‘द्वंद्व’।

त’ एहेन लिली रे स’ आम रचनाक अपेक्षा त’ कएले नहिं जा सकै छै। ‘उपसंहार’ में ओ प्रेम पर लिखै छथि त’ ‘जिजीविषा’ मे मिल आ मजदूर पर। मजदूर यूनियन, राजनीति, मजदूरक स्थिति- अहि सभक बहुत महीन चित्रण अहि मे भेंटै छै।

सत्य लिखबाक साहस

लिली रे तथाकथित बोल्ड रचनाक रूप मे ‘रोगिणी’, ‘रंगीन परदा’, ‘बिहाडि एबा स’ पहिनही’ लिखै छथि, कियैक त’ प्रेम अपना ओहिठां सदिखन स’ वर्जित विषय रहल अछि। मुदा, ई सभ स्थिति समाज मे मौजूद छै। लिली रे मात्र ओकरा उघार क’ देलखिन्ह। तैं एकरा आब बोल्ड कथा स’ इतर समाजक पर्दाफाश करैत रचना सभ कहबाक चाही। अही क्रम मे ‘अबूझ’ उपन्यास छै- प्रवासी मजदूरक जीवनक विभिन्न घटना स लदबद होइत प्रवासी मजूर स्त्रीक त्रासदी, ओकर इच्छा, आकांक्षाक मद्धिम बोरसी पर सुनगैत कथा।

श्रीरमण झा लिखै छथि- ‘ई सत्य छै जे ओहि समय मे मैथिल परिवार में, विशेषत: स्त्रीगण सामाजिक मान्यताक कारणे अत्यधिक दबाव मे जिबैत छलीह। एखनो स्थिति कोनो बहुत नहि बदललइए। एकरा पर त’ जतेक लिखल जाए, कम छै, कियैकक त’ जा धरि हम सभ अपना के नहि बदलबै, कोनो बदलाव संभव नहि छै।‘

इहो पढ़ू : लिली रे केर पहिल कथा ‘रोगिणी’

‘मुदा लिली मामी एकर ठीक उलटा छलीह। हमरा ओहि समय मे आश्चर्यक ठेकान नहीं रहल, जहन हम हुनका शर्ट आ पैंट, जकरा ओहि समय मे स्लैक्स कहल जाइत छलै, ओहि मे हुनका देखल। घुड़सवारी करयवाली लिली मामी। जेना, कोनो सिनेमा के पर्दा से उतरि के हमरा सोझा मे ठाढ़ भ’ गेली। हम बेगम अख्तर लेल सुनने छलहूँ जे ओ घुड़सवारी करैत छलीह। एम्हर हम लिली मामी के देखल। अपन मिथिला मे सेहो एहेन स्त्री! हम गर्व स’ भरि उठल। हम अपना जनितब एकर उमेद किन्नहु नहीं केने छलहूँ। ई फराक गप्प, जे हमरा ई पहिने से कहल गेल छल जे ओ कनेक ‘डिफरेंट’ छथिन्ह, तइयो।‘

अहि ‘डिफरेंट’ मैथिलीक चेखव आ मोपासां के हमर नमन! ###

आएल सखि मधुमास बसंत,
पसरल चंपा कली अनंत
कोयल कूकय पपीहा पिहूकय,
आमक मंजरी गमक दिगंत।।

सरसों पीयर वसुधाक साड़ी,
सोन गहुँम कें लगल किनारी,
तीसी चमकय मुँह बिचकौने,
माँग बढ़ल छन्हि हिनकर भारी।।

फाग चढ़ल दुहु कामिनी मातल,
कटि उरोज घमसान मचायल ।
लचकि लचकि ओ चालि चलैय छथि,
जानि ने कत्तेक प्राण हरयि छथि।।

भाँग बसात में घुलिमलि गमकय,
छौंड़ा सभ कें उठय पिहकारी।
रंग अबीर सँ धरा रंगल अछि,
खनखन बाजय सभ पिचकारी ।।

मध्यमा अछि नमहर नमहर,
तर्जनी कें जुनि करू करगर ।
अँगुष्ठा सँ ओकरा सम्हारू,
ज्ञान मुद्रा अहाँ झट दs बनाऊ।
अनामिका में अँगुठि शोभय,
अछि कनिष्ठिका छोटे-छोटे।
सब मिलि कs अछि हाथ बनल,
बान्हि लिय तँ मुट्ठी तनल।
संयुक्ते सँ दुनियाँ हरकय,
फरके फरके केयो ने टरकय।।
पएर मे पाजेब पहिरने उतरल यौवन
धरा पर जेना जड़ीदार चादर शोभित,
समस्त गाछ,वृक्ष पर टेहुनिया दैत
नव शिशु पल्लव भेल सौंसे शोभित।
जीर्ण पात त्याग,भेल शिशिरक अंत,
आएल देखू कुसमाकर,ऋतुराज बसंत।
मधुर सुगंध छिड़ियबैत आमक गाछ पर
तरुण मोती सन चमकैत महुआ मजरल,
खेत-पथार गदराएल गहुँमक बालि सँ
नव कनियाँ सन जड़ी बला घोघ ओढ़ाएल।
मंदिर आ चौबट्टी पर फाग गबैत संत,
आएल देखू कुसमाकर,ऋतुराज बसंत।
सड़िसोक पीयर स्वर्ण आभूषण सँ समस्त
लह-लह करैत खेत खरिहान अछि छाड़ल,
कोयली द’ रहल तान आ रंग बिरंगक पुष्पक
श्रृंगार केने तरु सँ गमकैत बसात बहराएल।
जग सँ नहि हुए ई ललित हुलासक अंत,
आएल देखू कुसमाकर,ऋतुराज बसंत।

मैथिली साहित्यमे स्त्री लेखिकाक विरल संख्या सेहो झमटगर गाछक रूप लेलक अछि, किन्तु कतोक चुनौतीसॅं स्त्री- लेखिकाकेॅं नित्य  सोझां-सोझी होइत छनि। ओ की पहिरथि जकाॅं ओ की लिखथि,एकर घमर्थन पितृसत्तात्मक समाजक ठेकेदारक बीच होइत रहल अछि।एहन स्थितिमे  स्त्रीक लेखन अस्मिताक संघर्षक चुनौतीक रूपमे ठाढ़ भ’ जाइछ।

समाजक संरचनामे पितृसत्ता सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक व्यवस्था , मूल्य ,मर्यादा, आदर्श तथा संस्कारक विभिन्न रूपमे बड़ मेही ढंगसॅं बुनल गेल अछि। एहि सुनियोजित शोषण-उत्पीड़नक विरुद्ध विश्व भरिक वैचारिक चिंतनमे नारीवादी विमर्शक नव आयाम बनाओल गेल अछि। पश्चिममे स्त्री विमर्श शुरू करबाक श्रेय “सीमोन द बोउवार” केॅं छनि जे ‘ द सेकेंड सेक्स’ लिखि कए समाज मे तहलका मचा देलनि तथा परंपरागत सामाजिक संरचनाकेॅं झिंझोरि देलनि।

भारतमे सेहो एहि आंदोलनक आंच  पजरल आ विभिन्न भाषामे  महिलाक अस्मिता- रक्षणक गप कहल-सुनल, लिखल-पढ़ल जाइत रहल, जाहिमे पुरुष- लेखकक सहभागिता सेहो रहल। महिला-लेखनक केंद्रमे स्त्री अस्मिताक संघर्ष, अदम्य जिजीविषा, स्त्री स्वातंत्र्य, यौन उत्पीड़नक प्रति विद्रोह तथा अपन पहिचानक प्रति जागरूकताक संग सामाजिक यथार्थक अवलोकन आ ओकर बेलाग अभिव्यक्ति अछि आओर ओ  समकालीन साहित्यमे सशक्त हस्तक्षेपक माद्दा रखैत अछि।

वर्तमानमे मैथिली भाषामे सेहो बहुत रास स्त्री लेखिका स्वतंत्रता, समानता , न्याय आदि मूलभूत अधिकारक लेल संघर्षरत एवं सक्रिय छथि। लेखनक माध्यमसॅं ओ समाजक संकीर्ण मानसिकताक ऐना देखबैत छथि, समाजसॅं प्रश्न करैत छथि, आत्मविश्वाससॅं अपन सुख-दुख, आक्रोश आ असहमति व्यक्त करैत छथि,स्त्रीवादक वैचारिक साहित्यमे सतत समृद्धि आनि रहल छथि।

आइ हम दीपा मिश्र जीक जाहि पुस्तकक पाठकीय प्रतिक्रिया लिखि रहल छी ओकर शीर्षके वैचारिक घमासान मचब’ लेल पर्याप्त अछि। ई नाम किऐक? झांपल- तोपल नामो देल जा सकैत छलै! कथ्यक संप्रेषण लेल की देह उघाड़ब आ ओकर संपुट करब उचित! ओना एहि प्रश्नक उत्तरमे प्रतिप्रश्न कएल जा सकैछ जे कैशोर्यमे होमए बला हार्मोनल परिवर्तन देहक संग- संग भावनात्मक परिवर्तनक कारण सेहो बनैत छैक,तखन ओहिसॅं उद्वेलित भए ओहि अनुभूतिक वर्णन अग्राह्य किऐक?

विभिन्न भाषाक साहित्यमे कामविह्वला स्त्रीक मनोभावक खुलल वर्णन भेल अछि, महाकविक उपाधिसॅं विभूषित महाकवि कालिदास त’ उमा-महेश्वरक समागमक बखान सेहो कएलनि अछि, तखन दिक्कत कत’ छै? दिक्कत छैक जे स्त्रीक गर्भमे पलि, ओकर रक्तमज्जा सॅं विनिर्मित शिशु जाहि बाटें धरती पर अबै अछि, वयस्क भेला उत्तर अपर स्त्रीक ओहि अंगविशेषमे अपन पुरुषत्वक सार्थकता पबितो ओकरा मात्र अपन संपत्ति मानैत रहल अछि। अस्तु,ई जटिल विषय अछि, अनेक अतंर्विरोधक परिधि मे ओझरायल अछि, तैं एकरा छाड़ि हमर एतबहि कहब अछि जे जहिना अपन संतानक नामकरणक  अधिकार माए-बापक होइछ, ओहिना अपन साहित्यिक कृतिक नामकरणक अधिकार साहित्यकारक। एहि अधिकार पर प्रश्न उठाएब सर्वथा अनुचित।

दीपाजीक चेतना मात्र भावनात्मक नहिॅं अपितु बौद्धिकताक मानदंड पर आधारित अछि आ ओ निरंतर यथार्थवादी दृष्टिकोण, गहनता आ आत्मविश्वासक संग लिखि रहल छथि। यद्यपि “योनिक आत्मबोध” शीर्षक कविता छाड़ि देल जाइ  त’ अन्यान्य विषय पर गोटेक टापर रचना पहिनहुॅं भेल अछि आ आबहु आन रचनाकार लिखि रहल छथि। किन्तु एक ठाम प्राय: स्त्री-संबद्ध दैहिक,मानसिक आ सामाजिक स्थितिक स्वाभाविक आ मुक्त अभिव्यक्ति लेल दीपाजीक साहस प्रशंसनीय अछि।

मासिकधर्मक आरंभसॅं रजोनिवृत्तिक क्रममे होमएबला शारीरिक-मानसिक परिवर्तन, यौवनक आरंभमे विपरीतलिङ्गीक प्रति सहज आकर्षण, स्त्री-पुरुषक मध्य सामाजिक भेद-भाव, पढ़ल-लिखल स्त्रीक शिक्षाक अनुपयोग आ तज्जन्य स्त्रीक पीड़ा, वैवाहिक बलात्कार आदि ओहि सभ विषय पर दीपा खुलिक’ कलम चलौलनि, जाहि पर लिखबासॅं स्त्री स्वयं बचैत रहैत अछि। हुनक रचना कोनो तरहेॅं पुरुष विरोधी रचना नहिॅं थिक, जकरा  एहि पोथीक परिप्रेक्ष्य मे देखबाक क्रममे किछु पांती उद्धृत कए रहल छी-

हमर युद्ध त’ हमरा स्वयंसॅं अछि
हम रोज लड़ै छी
कियैक त’ शब्द छोड़ि हमरा लग कोनो अस्त्र नहिॅं।
हमर युद्ध ओहि हमरासॅं
जे सभ किछु बुझितो
हमरासॅं बाहर नहिॅं निकलैये।

गहना- गुड़ियाक मोहक जालमे ओझरायलस्त्रीक स्थिति हुनका सीदित करैत छनि आ कवयित्री कहि उठैत छथि-

कतेको ओझरायल रहि गेलीह
एहि गहनाक बीच
आ सीपक मोती कहिया हेरा गेलनि
बुझबो नहिॅं केलैथ।

बहुत पहिने महादेवी वर्मा  स्त्रीकेॅं सावधान करैत कहने छलीह-

जाग तुझको दूर जाना
बांध लेंगे क्या तुझे ये मोम के बंधन सजीले
 पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले
विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन..

मानव-मात्रक सर्वोपरि इच्छा होइत छैक अपन इच्छाक, अपन स्वतंत्र अस्तित्वक,अपन आत्मसम्मानक रक्षा कएल जाए। किन्तु स्त्रीक एहि निजताक कहियो सम्मान नहिॅं भेटलै आ तैं ओकर अन्तर्मनमे धधड़ा धधकैत छै,जकर अभिव्यक्ति भेल अछि एहितरहेॅं-

जीवन व्यक्ति विशेषक अपन थिक
ओ कोनो नैहर सासुरसॅं नहिॅं
हमर गाम हम अपनहि चुनब
समाजसॅं बाध्य भ’ क’ नहिॅं।
भीतरक धधड़ा
ई आगि हमर थिक
ई भीतरक धधड़ा हमर
हम आब डाहब अपन सबटा
मान अपमान पीड़ा उलहन
निकलब तपैत सोन सन
हम जरब की बचब
ओकर उत्तरदायित्व हमर रहत।

कतोक बंधन,कतोक जकड़न स्त्रीकेॅं कोना रक्तरंजित करैत छैक, ओकर छटपटाहटि कवयित्रीकेॅं उद्वेलित करैत छनि आ ओ प्रतिकारक बाट देखबैत कहि उठैत छथि-

सोनाक हो वा लोहा के
चटपटाहटि त’ एके छल ने
परंपराक रूढ़िवादिताक
ओ दंभ जे बाध्य करैत अछि
ओ दंभ जे बाध्य करैत अछि
ओ हमरा मान्य नहिॅं
अपन सामर्थ्य अपने बुझब आब आवश्यक
नहिॅं कहब सेहो सीखब आब जरूरी।

एत’  मोन पड़त अहाॅंकेॅं शिवमंगल सिंह सुमन जीक कवितांश-

हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजर पिंजरबद्ध न गा पाएंगे
 कनक तीलियों से टकराकर
 पुलकित पंख टूट जाएंगे।

कजरी लागल परंपराक खंडनक ओकालति करैतो हुनक लेखन विध्वंसक नहिॅं अपितु योजक छनि,व्रत-उपासक संस्कृतिक पोषक छनि,गामक भाषा-संस्कृतिक अनुरागी छनि, प्राचीन परंपराक नीक तत्वक आधुनिकताक संग समन्वयक आग्रही छनि।ओ स्वयं कहैत छथि-

लेकिन हमर कहब
 जे नब घर उठय आ पुरान घर फेरो बसय
हमरा पुराने घरके नव करबाक अछि
ओकरे मजगूत नींव पर
 नव मिथिला बसेबाक अछि।

अंतमे एतबहि कहब जे एहि निर्भीक स्वरक स्वागत हयबाक चाही। अनुप्रास प्रकाशनसॅं छपल एहि पोथीमे 64 गोट सशक्त आ सार्थक कविता अछि,जे पढ़ल जयबाक चाही।

                 यौ सरकार ,सुनू गोहारि,बड्ड दूर अछि हमर गाम!

                 अहाँ देल देश निकाला,छीनल रोजगार ,

                  भूख  भय अछि ,नइं कोनो महामारी

                   भय अछि ऐ कठिन तालाबंदी मे

                   न रेजकी , न गाड़ी,न कोनो सवारी

                   मोटरी-चोटरी ढोयब , कि नेना-भुटका,

                    कोना क’ जायब हम अपन गाम ?

                    यौ सरकार, सुनू हमर गोहारि,बड्ड दूर अछि हमर गाम!

                  रतौंधी अछि भेल कि मोतियाबिन्द,

                   सुझैत अछि अहाँक’ न राति न दिन

                   नीचा धरती तप्पत,ऊपर धीपल अकाश

                   देखू हमरा पयरक ओदरल छाल,

भागि रहल छी हम ,दौड़ रहल छी हम,

सुनु सरकार हमर गोहारि !बड्ड दूर अछि ..

                    कानि रहल छी भोकारि पाड़ि ,

                     कनिको सुनाइत अछि सरकार !

                    बहिर छी कि छी भेल मतसुन्न

                   अहाँ  देल धधकल अंगोर जीवन

                   मिझाउ आगि केना ,ल’ क’ कि आँखिक झहरैत बुन्न !

                                  कठकरेज अहाँ,सुनु गोहारि!बड्ड दूर अछि …

                          सोना उगलैत गामक धरती ,

                          बाढ़ि-सुखारि  सं पड़ल परती

 

                     कुव्यवस्था जारल जीवन ,जारल रोजगार

                        एत’सं ओत’ भेल सतबा सभ धरती

                        पहिने छोड़ाएल  अपन गाम जबार

                        केहन निर्दय अहाँ  यौ सरकार,

                        फेर धुरियाएल  पयरे  घुराक’ गाम ?

                         कोना क’ जाउ गाम अपन भेल विरान!दूर बड्ड अछि हमर..

                      सड़क ,महल ,बजार अहाँक महानगर  ,

                      हमही बनेलहुं अहाँक संसद ,अहाँक शहर

                       ईंटा-गारा ,बोझ उठेलहुँ दिन-राति

                       अहाँ अकाश सं खसेलहुं  खजूर पर

                     कीड़ा –मकोड़ा नइं मनुक्ख छी हम

                     मात्र  मजदूर नइं बूझू , श्रमिक छी हम

                    छीटू नइं कीड़ा मार , खून-पसीनाक दिय’ दाम!

                    यौ सरकार बड्ड दूर अछि हमर गाम …

                     पढ़लहुं खाली पेटक आगि  ,किछ नइं पढल आर

                      काल बनल करोना नइं ,रोटी-भातक कठिन जोगार

                      महामारी नइं ,काल बनल छी अहाँ महराज ,

                       अपनहि देश भेलहुँ परदेशी,कहिया बूझब मनुक्खक मान?

                       माफ़ नहीं करब , तानाशाही सक्कत यौ सरकार !

                      करी गोहारि दूर बड्ड अछि हमर गाम,

                     बड्ड दूर अछि हमर गाम !

अप्पन देश में छह गो ऋतु होइ हइ जेकर नाम हइ – गरमी, बरसात, शरद, हेमंत, शिशिर आ वसंत। वैसे त सब मौसम के अप्पन एगो खास जगह हइ लेकिन वसंत खास होइ हइ। किए कि इ समय में न त बेसी जाड़ पड़ै हइ आ न बेसी गरमी। एकर एहे खासियत के कारण एकरा सब मौसम के राजा कहल जाइ हइ।

पुराण के एगो किस्सा में बसंत के कामदेव के बेटा कहल गेलइ हन। एकर अनुसार सुंदरता के भगबान कामदेव के घर जब बेटा भेलइ त पूरा के पूरा संसार झूमे लगलइ। प्रकृति गाबे लगलइ, गाछी आर पर नया नया मंजरी फरे लगलइ, पीयर पीयर तोरी के फूल से पूरा धरती जैसे पीयर रंग के सारी में नयकी कनिया जैसन सज गेलइ।

मंजर के खूश्बू पूरा हवा महके लगलइ आ उ मादकता से बहकल कोयल कू कू करके अपन गीत सुनाबे लगलइ जैसेकि बउआ के आबे के खुशी में सोहर गा रहल हइ। गीता में खुदे भगबान कहलखीन कि हमें ऋतु में वसंत हियइ।

साहित्य, कला में भी बसंत के अप्पन खास स्थान हइ। बसंत पर केतेक साहित्य लिखल गेलै हन आ गीत के त बाते कि हइ। बहुते कलाकार अप्पन चित्र में भी बसंत के रूप रंग के खूब सजल कइ हन। भारतीय संगीत में त एकठो रागो हइ एक्कर नाम पर बसंत राग।

बसंत में मनाबे बाला परब भी बसंते जैसन रंगीन होइ हइ जैसे सरस्वती पूजा, बसंत पंचमी, रंग पंचमी, होली, नवरात्रि, रामनवमी, नव-संवत्सर, हनुमान जयंती आ बुद्ध पूरणिमा। सनातन संस्कृति में नया साल भी एहे मौसम में शुरू होइ हइ।

बसंत पर कवि शिरोमणि विद्यापति जी भी बहुत सुंदर लिखले हथीन

आएल रितुपति – राज बसंत.
धाओल अलिकुल माधव-पंथ.
दिनकर किरन भेल पौगंड .
केसर कुसुम धएल हे दंड .
नृप-आसन नव पीठल पात .
कांचन कुसुम छत्र धरु माथ.
मौलि रसायल मुकुल भय ताल .
समुखहि कोकिल पंचम गाय .
सिखिकुल नाचत अलिकुल यंत्र .
द्विजकुल आन पढ़ आसिष मंत्र.
चन्द्रातप उड़े कुसुम पराग .
मलय पवन सहं भेल अनुराग .
कुंदबल्ली तरु धएल निसान .
पाटल तून असोक – दलवान.
किंसुक लवंग लता एक संग .
हेरि सिसिर रितु आगे दल भंग.
सेन साजल मधुमखिका कूल .
सिरिसक सबहूँ कएल निर्मूल.
उधारल सरसिज पाओल प्रान.
निज नव दल करू आसन दान.
नव वृन्दावन राज विहार .
विद्यापति कह समयक सार .

आबू ,अइ बसंत के सुआगत करू। अपन जीवन में आनंद-उत्साह के संचार करू।

(चित्र : अपला वत्स जीक फ़ेसबुक भीत सं) 

बसंत मने
रंग प्रीत के
प्रेम के
उल्लास के
हास और परिहास के
प्रकृति के नव श्रृंगार के
बसंत मने
गीत मनुहार के
राग और अनुराग के
ढोलक के थाप पर
सजल त्यौहार के
विरहनी आकुल भरल
तान के
बसंत मने
चित्र सजल हिंदुस्तान के
भरल खलिहान के
किसान के जुड़ल आस के
नब  प्रकाश के
नब  साल के

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