मीना कुकुर सबके शोर पारति, मोरी लगमे टोकना भरि भात-दालि आ सब्जी उझिल देखीन। चारि-पाॅंच टा कुकुर आबिकऽ नांगरि हिलबति चभर-चभर खाय लागल।
तखनहि मीना के आंगन में पितिया साऊस प्रवेश केलखीन आ बजलीह, “यांये कनियाॅं एतेक रान्हवाक कोनजरूरत छल, अन्नक एतेकबर्बादी”!
सौराष्ट्रसभा सऽ पाहुन आबऽ वाला छलखीन। विवाह ठीक भऽ गेलन्हि ताहि द्वारे सभा गाछिये सऽ वोस बचलि गेलाह। हुनके सबहक खाना छल”।
खबासिनी के दऽ दितियै”। काकीक बात सुनि मीना बजलीह”काकी खबासिनी तऽ दस घरमे काज कय दस चीज पाबैत अछि, कुकुर कतऽ नौकरी करतैक”?
सुनू,एकटा गप सत बाजब।अहांकें हमरा स’ कहियो कनियों प्रेम भेल?
मतलब?
सदति तुरछल बोल,छिटकल देह-मन,मशीन जकां काज… काज.. काज..
आ ओ मोने मोन सोचैत रहलीह- ओकर नचार मायक तलता मे, ओकर विधवा बहिनक धिया पुताक जिम्मेदारी स्वेच्छा सॅं निभयबा मे, ओकर आर्थिक भार कम करबा लेल दिन राति मशीन पर झुकि मोहल्लाक लोकक कपड़ा सीबा मे, कखनो ओकर कम कमाइक उलहन नञि देबा मे हमर प्रेम नञि देखैलै?
धुर!एहन भावना सॅं आन्हरक लेल कियैक शब्दक अपव्यय करी?
सुनै छियै!मां बहुत दिन सॅं नञि एलखिन अछि। हुनका बजा लिअनु न!
कियै?
हमरा स’ आब काज कयल नञि पार लगै अछि! ओ औथिन त’ कनेक मदति भ’ जायत।आब समयो त’ बेशी नञि छै!
नञि! किन्नहु नञि!
कियैक अपन पोता- पोती लेल हुनक कोनो दायित्व नञि?
नञि, ओ मासभरि दु:खित छलै,अहां गेलियै? बाबूक काज मे कोनो बोलो- भरोस देलियै, किं वा कर्ताइनक काज केलियै? ओ दू बरस स’ एकछाहे एसकरि रहै छै, कहियो बजौलियै?कहियो फोन कय ओकर हालचाल बुझलियै?दायित्वक गप करैत कनियों लाज नञि भेल?
हम त’ मनबै छी हमरा भगवान बेटा नञि देथि!
“बेटा कत जाई छी ?”छोटकी कनियां अपन 12 बरष क बेटी सं कहलखिन ।
बड़की दियादनी ई सुनिते टोकैत बजलीह-“ऐं यई कनियां ! अहां ई की हरदम बेटी के बेटा बेटा कहैत रहै छियै ? बेटी बेटिये रहतै आ बेटा बेटा रहतै ।”
“बहीन ! से त ओ बेटिये रहतै , मुदा ई कहला सं ओकरा में कर्मठता-निडरता सेहो औतै ।”
तखने बड़की दियादनी के बेटी आबि “गै माय देखही न हम कलम जाई छलौं त दूटा छौंड़ा ठार छलै, हमरा देखिते ठिठियाईत अंट-संट बजै छै ।”
“कत छै ओ छौंड़ा सब ? दीदी चल हम चलै छियौ ।” ई कहैत छोटकी कनियां क बेटी एकटा सोंटा ल क बड़की दियादनी क 17 बरष क बेटी संग बिदा भ गेल ।
“ऐं यै गिरथाईन ! कतए छथीन ?” बजैत डुमरी बाली धोबिन ओसारा पर इस्त्री बला मोटरी राखि नीचा में ठार भए गेल ।
“अबै छी हई ।” घर सं काकी ( गिरथाईन ) बजलीह आ धीरे-धीरे ओसारा पर आबि चौकी पर बैस गेलीह । हुनकर आंखि चढल ठोर सुखायल जेना बुखार लागल होईन ।
“की होई छैन्ह गिरथाईन ?”
“हई रातिये सं बुखार लागल अछि ।”
“गिरहथ नै छथीन ।”
“नै हई ओ काल्हिये कलकत्ता गेलखिन । बलहा बाली ( काजबाली ) से काल्हिये नैहर चलि गेलै ।”
“ऐं !!!!…..। तैं घर अंगना ओहिना लगै छैन्ह ।”
“हं हई ! कहने रहै छोटकी दियादनी आबि जेतैन । मुदा एखन धरि नहि आयल अछि ।” ई कहैत काकी ओही चौकी पर पड़ि रहलखिन ।
“हम त काज कs दितियैन, मुदा कोना करियैन ? डागदर के बजा दियैन ?” ओसारा के नीचा में ठारे-ठारे डुमरी बाली बाजल ।
काकी सोचय लगली ‘डाक्टर त सेहो तोरे जाईत क छह आ ओकरा लेल कोनो रोक-टोक नहि । बाहर में जे काजोबाली सब कोन जाईतक रहै छै से की पता । ई सब मात्र अपन मोनक भ्रम छै ।” काकी के आंखि नै खुजै छलैन्ह ।
ओ पड़ले पड़ल बजली “सबसं पहिने कल पर सं एक लोटा पाईन नेने आबs कंठ सुखा रहल अछि । तखन घरो के काज कs दिहs ।”
चित्र : डॉ सुनीता
–“हे यै! सुनू कतेक नीक रचना लिखलौं एखने, अहीं सब स्त्रगण पर ।” घरबला अपन मोबाइल में आंखि गड़ेने बजलाह ।
–“से की ?”
–“स्त्री आ पूरुष एकदम एक समान अछि। आब स्त्री के सब ठाम बराबरी सं ठार हेबाक चाही ।”
–“वाह!…… सुनाऊ ।”
घरबला सुनबए लगला आ बीच-बीच में रुकि-रुकि क किछु लिखै लगै छलाह ।
घरबाली खौंझा क बजलीह–“धुर्रर!……सुनबै त छी नै, मोबाइल में मुड़ी गड़ौने छी । हमरा काज में अबेर भ रहल अछि ।”
–“जाऊ-जाऊ चाह बनेने आऊ । चाह बिना आंखि भकुआएल अछि।”
–“ऐं यौ ! जौं सैह छलए त अहीं बना क अनने रहितौं।”
–“हई!..ई सब स्त्रगण क काज छै । जाऊ-जाऊ जल्दी सं बनेने आऊ। ताबत एक गोटा के जवाब दै छियै अहि फेसबुक पर । छथि मौगी, मुदा अपना के बेसी ज्ञानी बुझै अछि।” टाईप करए में व्यस्त घरबला बजलाह।
चित्र : मिथिलेश कुमार राय ( सुपौल )
–“आई काल्हि काकी कछु खाइते नहि छथीन ।” छोटकी कनियां चिंतित भय बड़की दियादनी सं फोन पर बजली ।
–“ई कोरोना सब जे फैल रहल छै तकर चिंता भ गेल हेतैन तैं ।”
–“हंss..सैह लगैया ।”
ऊमहर काकी आई पहिल दिन दूध आनय लेल चलि गेल रहथिन आ दूध ल क घर एलीह । त सब सं पहिने हाथ-मुंह साफ केलैथ । फेर कपड़ा बदलि क छोटकी कनियां के कहलखिन –“यै कनियां खाना द दीय आई बड्ड भूख लागल अछि ।”
–“हं हं दै छियैन । आई भूख ……?” कहि क कनियां खाना अनलक ।
–“आब दूध आनय हमही जायब ।” काकी खाईत बजलीह ।
–“से किया ?”
–“हम आ दोस्तीनी ई विचार केलौं जे हमही सब दूध आनब । आई ओहीठाम भेंट भs गेली । खूब बतियेलौं । मन हल्लुक लगैया । तैं भूखो लागल ।”काकी कौर पर कौर उठबैत अपना धुन में बजलीह ।
सुरभि. : माँ अपन दलान कतऽ गेलै?
माय : बौआ! अहाँ बारह वर्षक बाद नैहर एलौहा ,बहुत किछु बदलिगेलैक अछि|दलान तऽ कहिया कतऽ
टूटिगेल|लालभैया के हिस्सा मे पड़ल रहनि|
सुरभि के बड़का झटका लगलनि
माय. : बौआ ,अाहाँ के दुख होयैत अछि!,ककरो अहिठाम दुख नहि छैक,दुख रहितैक तऽ तोड़ी कऽ बाँटिये लितैक!
चलु बड़की आँगन खोचि खोलऽ |
बड़की काकीक आँगनक दृश्य देखिकऽ आओर जोड़ सऽ धक्का लगलनि मोन के,भाव विभोर भऽगेलीह,बड़की काकीक चौकी जे बरामदा पर छलनि,ओहीपर धूल बैसल कल सहित कलक चबूतरा सुखायल टटायल छल जेना, वर्षों सऽ नहि चलल हो,जाहि आँगन मे सदिखन बच्चा,बच्ची सबहक मधुर आवाज गूंजैत छल|ओहिन आँगन घास जनमल छल,बड़की काकीक शब्द कान मे टकराय लगलनि|
” बज्र खसौ खड़ुआन सबके चैन सऽ दुपहरियो मे नहि सुतऽ दैत अछि”|एक दिन बड़की काकी सटका लकऽ सब बच्चा केआँगन सऽ भगा देलीह|सुरभियो माय के उपराग दय अयलीह, जनमाकऽ हमरा सिर धौऽदेलौं अपने निश्चिंत भेल सुतल छी |सुरभिक माय तऽ किछु नहि बजलीह,पितिआईन तड़ाक-तड़ाक बच्चा के पिटऽ लगलीह आ सख्त निर्देश देलनि, “खबरदार जे कालि सऽ बड़की काकीक आँगन गेलाह”,दोसर दिन कोनो बच्चा नहिगेल|बड़की काकी के धेलकनि छड़पट्टी,हुनका तऽ बच्चा के आदत भऽ गेलनि|कछमछ,कछमछ करऽ लगलीह|दौड़कऽ आगा गेलीह कही केवाड़ तऽ नहि बंद अछि|ओहो खुजले रहनि|पथिया मे लताम किछु तोरलीह,किछु बिछलीह आ सुरभि आँगन लकऽ चलिगेलीह|
बड़की काकी : आविजाऊ बौआ सब आई हमर आँगन कियाक नहि एलौं?आऊ लताम खाऊ|
सुरभिक पितिआईन : बहिन दाई किया जेतन्हि हिनकर आँगन जाईछनि तऽ हिनका बड परेशानी होईतछन्हि|
बड़की काकी :ओ तऽ अहाँके कलहुका बातक तेख लागल अछि|जेहने खानदानक रहब,तेहने सोचब ने|ई बच्चा सब हमर नहि
अछि की?चलु बौआ सब हमर आँगन चलु!