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rina choudhary

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आएल सखि मधुमास बसंत,
पसरल चंपा कली अनंत
कोयल कूकय पपीहा पिहूकय,
आमक मंजरी गमक दिगंत।।

सरसों पीयर वसुधाक साड़ी,
सोन गहुँम कें लगल किनारी,
तीसी चमकय मुँह बिचकौने,
माँग बढ़ल छन्हि हिनकर भारी।।

फाग चढ़ल दुहु कामिनी मातल,
कटि उरोज घमसान मचायल ।
लचकि लचकि ओ चालि चलैय छथि,
जानि ने कत्तेक प्राण हरयि छथि।।

भाँग बसात में घुलिमलि गमकय,
छौंड़ा सभ कें उठय पिहकारी।
रंग अबीर सँ धरा रंगल अछि,
खनखन बाजय सभ पिचकारी ।।

मध्यमा अछि नमहर नमहर,
तर्जनी कें जुनि करू करगर ।
अँगुष्ठा सँ ओकरा सम्हारू,
ज्ञान मुद्रा अहाँ झट दs बनाऊ।
अनामिका में अँगुठि शोभय,
अछि कनिष्ठिका छोटे-छोटे।
सब मिलि कs अछि हाथ बनल,
बान्हि लिय तँ मुट्ठी तनल।
संयुक्ते सँ दुनियाँ हरकय,
फरके फरके केयो ने टरकय।।

जय माँ भारती, जय जय माँ भारती- 2,

सब मिलि आऊ नेना भुटका,
सब मिली गाऊ शान सँ ।
भारत अप्पन विश्व विजयी अछि,
शीश नमाऊ मान सँ ।।
जय माँ भारती, जय जय माँ भारती,-2

कण कण में अछि रचल मधुरता,
वाणी बाजी मीठ सँ।
आऊ सब मिली हाथ मिला क,
डेग बढ़ाबी नीक सँ।।
जय माँ भारती, जय जय माँ भारती,-2

बात स्वदेशी करी सदा हम,
टरकाबी विदेश कें।
लोकल के वोकल हम बनाबी,
चमकाबी निज देश कें।।
जय माँ भारती, जय जय माँ भारती, -2

दाँत करी दुश्मन कें खट्टा,
सीमा सँ भगाबी ठेल क’।
पौरूष अप्पन हम देखाबी,
स्वाभिमान निज तेज सँ।।
जय माँ भारती, जय जय माँ भारती,-2

आर्यावर्तक मधुर माटि में वीरताक अंश मिश्रित अछि। आदिकाल सँ भारतवर्ष अपन ज्ञान, अपन वीरता आ कुशल प्रशासनिक नेतृत्वक बोध करबैत आयल अछि। पुरातनकाल सँ स्त्री- पुरूष दुनू मिल कय असुर संहार कय सृष्टिक भार उठौने छथि।
नारी दुर्गाक प्रतीक मानल जाईत छथि। स्त्रीक परिचय नहि मात्र अमृत युक्त आँचर छन्हि अपितु ओ खड्ग हस्ते छथि। ओ अपन प्रचंड डेग में शत्रुनाशक क्षमता राखय छथि। नारी के एहि क्षमता के देखैत भारत सरकार द्वारा आब “राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA)” में नारीक प्रवेशक द्वार खुजि रहल अछि।
 ‘कुश कालरा’ द्वारा एकटा याचिका दायर कयल गेल छल, जाहि में ‘यूपीएससी’ द्वारा आयोजित ‘राष्ट्रीय रक्षा अकादमी’ परीक्षा में “महिला” के बैसवाक अनुमति माँगल गेल छल, जे जस्टिस संजयकिशन कौल आ ह्रिषिकेश राय के खंड पीठ द्वारा पारित कयल गेल। अकादमी में प्रवेश न्यायालयक अंतिम आदेश के अधीन रहत।
रणभूमि में नारीक प्रवेश नव नहि अछि। राजा दशरथ युद्धक्षेत्र में अपन युद्धप्रवीणा रानी कैकेयी कें संग जाइत छलाह। रानी लक्ष्मीबाईक युद्ध कौशल सँ के नहि परिचित छी।  हुनकर नामहि सुन अंग्रेज़ी शासक थरथर काँपय छल। ओ वीरताक पर्याय बनि गेलीह। समयान्तराल के किछु कालखंड में नारीक युद्धकौशल किछु धुमिल भs गेल छल। आऊ सब धूल-गर्द झाड़ि कय पुन: अपन कौशल चमकाबी, अपन धिया कें वीरांगना बनाबी।
कतेक आह्लादक गप्प, नारी प्रत्येक क्षेत्र में अपन उपस्थिति दर्ज करा रहल छथि। हमरा अहाँ के गर्व अछि जे मिथिलानी  भावना कंठ फाइटर प्लेन में अपन आसन नीक जँका सुनिश्चित कयने छथि आ नव पीढीक आदर्श बनि हुनक मार्ग प्रशस्त कयने छथि।  आब रक्षाक आनों क्षेत्र में अपन धिया अपन परचम फहरेति। आऊ सभ मिथिलानी अपन धिया कें न सिर्फ कलाक क्षेत्र में, उच्च शिक्षाक क्षेत्र में अपितु युद्धक्षेत्र लय सेहो तैयार करी। हुनका युद्धकुशला सेहो बनाबी। नव योद्धा धिया केँ परिधिक अशेष शुभकामना छन्हि।
प्रथम तँ धरा धाम पर जीवन ओहु में मनुष्य जीवन, ताहि पर भारत सन देवभूमि में, ताहु में बिहार सन शौर्य धरा, मिथिला सन पवित्र भूमि, ओह! कतेक अहोभाग्य! तैं कहल गेल अछि    “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसी” जननी आ जन्मभूमि स्वर्ग सँ महान अछि। सही में, माधुर्य एवं ज्ञान के भंडार अछि अपन मातृभूमि। अनेकों विद्वान जन एवं व्यापारी जन, ज्ञानार्जन एवं व्यापार हेतु बाहर देश-प्रदेश सँ अबैत रहलाह।
 बहुत बेसी माधुर्य के कारण विदेशी आक्रान्ताक  दुर्भावना कें नहि चिन्ह सकलहुँ आ गुलामीक जीवन करीब  हज़ार वर्ष तक जीबय पड़ल। आई, बहुतों बलिदानक उपरान्त हम-अहाँ स्वतंत्र वायुमंडल में जीव रहल छी। अखनहुँ सीमा पर आ देंश कें भीतर किछु देशद्रोही तत्व कें सामना करय पड़ैत अछि।
आई देशप्रेम सन सकारात्मक आ देश तोड़य सन नकारात्मक सोच सामानान्तर चलि रहल अछि। किछु युवा अहि नकारात्मक सोच कें दु:जाल में ओझराएल छथि। हुनका अहि जाल सँ निकालब बहुत ज़रूरी, कारण ‘एकहिटा सड़ल मांछ सम्पूर्ण पोखरि कें दुषित कय सकैत अछि।‘ बच्चा कें पथ प्रदर्शक माय सँ बेहतर केयो नहि। एक हाक प्रत्येक माँ के दी।
आऊ आई हम मिथिलानी ई प्रण ली, कि माधुर्य कें संग कनि खटरस सेहो राखब स्वभाव में, जाहि सँ आसानी सँ कोनो “चुट्टी” नहि लुधुकय। हम अपन धिया-पुता कें नेनपन सँ देशप्रेम कें शिक्षा दी। खिस्सा-पिहानी सेहो देशप्रेम कें सुनाबी। नेनपन में सीखल बात ह्रदय कें अंतस तल में बैस जाईत अछि। फेर कोनो प्रलोभनक असर नहि होईत अछि।
 अपन स्वार्थ सँ ऊपर मातृभूमि कें राखी,  बात घर सँ शुरू होयत तँ देश भरि में पसरत। आऊ देश प्रेम कें अलख जगाबी। सभ माय के आवाज लगाबी।
वर्षा ऋतुक आलिंगन पाविते प्रकृति अपन अद्भुत सौन्दर्यक प्रदर्शन करय छथि। ख़ुशीक हरियरी चारूकात पसरि जाइत अछि। मृतिकाक सोहनगर गमक सँ सम्पूर्ण वातावरण सुवासित भs जाईत अछि। प्रकृतिक संग जनमानस में सेहो उत्साह प्रसारित होईत अछि एवं बहुत उल्लासक संग वर्षा ऋतुक प्रथम मास श्रावण मास के स्वागत कयल जाईत अछि। पूजापाठ आ लोकगीत सँ एक भक्तिमय रस के प्रवाह जन-जन में व्याप्त भs जाईत अछि।
मिथिलाक स्निग्ध माटि तँ सदिखन भक्तिभाव रखैत अछि। श्रावण मास के सोमवारी सँ पावनि तिहार शुरू भs जाईत अछि। नवविवाहिता क घर में मधुश्रावणी तँ दर्शनीय पावनि होईत अछि। लोक गीत सँ मिथिला क्षेत्र गुंजायमान भs जाईत अछि। नचारी, महेशवाणी, गौरीगीत, बटगवनी, फुललोढ़ी अनेकों गीत सँ अपन भाव प्रकट करय छथि मिथिलानी। लोक संगीत मिथिलाक संस्कृति अछि। मिथिला में  पग-पग पर पान-मांछ-मखानक संग लोक गीत सेहो अछि।
लोक गीत समाज में, घर-आँगन आ विवाहदान सँ छठि पावनि में पोखरिक घाट- महार तक सीमित छल। मैथिल लोकगीतक मधुरता कें एक मणि कें आवश्यकता छल जेकर प्रकाश पुंज में दूर-सुदूर तक एकर गूँज  जाय। एहने एक मणि कें नाम छन्हि “शारदा सिन्हा”।  एक एहन मिथिलानीक  नाम जे लोक गीतसंगीत कें, आँगन सँ बाहर मंच प्रदान कय बाहरी समाज सँ परिचय करेलैन्हि। अस्सीक दशक   में कैसेट के ज़माना छल, चहुँ ओर टेपरिकार्डर पर मात्र एकहिटा मिथिलानीक आवाज लोकप्रिय छल। पुरूष प्रधान समाज में मिथिलानी कें मंच पर आयब, सहज नहीं रहल हेतैन्हि। अनेकों विरोध कें सामना कय, अपन दृढ़ताक बल पर ओ समाज में आदर्श स्थापित केलैन्हि। हुनका देखि अनेकों मिथिलानी मंच पर अपन स्थान बनेलैन्हि।
सीमित कें अपरिमित करैत, आन भाषा में सेहो गीत गेलैन्हि। बाहरी समाज में सेहो मिथिलाक पहचान बनल। सही दिशा में कयल गेल  परिश्रम सदैव पुरस्कृत होइत अछि। वर्ष १९९१ में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री सम्मान प्राप्त कय मैथिल लोक संगीत कें मान बढौलैन्हि। वर्ष २००१ में संगीत अकादमी द्वारा सम्मानित भेलैथ। वर्ष २०१५ में बिहार सरकार द्वारा सिनेयात्रा पुरस्कार प्राप्त केलैन्हि। वर्ष २०१८ में भारत सरकार द्वारा पद्मविभूषण पुरस्कार प्राप्त कय, पुरस्कारक झड़ी लगा, मिथिलानी कें गौरव प्रदान केलैन्हि ।
अपन नाम “शारदा” के सार्थक करैत माँ सरस्वतीक असीम अनुकंपा प्राप्त कय मिथिलाक कुल गौरव बनलीह। पुरस्कारक झड़ी लगबैत, सदा स्वस्थ्य रहैथ, एतबहि कामना।
क्षण क्षण रूप बदलि कय आबय
छद्म कोरोना कतेक नचाबय।
कतेक दिन जहल में रहब, कतेक दिन तक बन्दी रहत, आब सब खुजि गेल। मुदा अवकाश अखनों नहि अछि। बहुरूपिया कोरोना आब डेल्टा प्लस कें रूप में आयल अछि।
कोरोना महामारीक दोसर लहरि के तबाही जीवन पर्यंत बिसरि नहि सकय छी। कतेको घर बर्बाद केलक। इतिहास में कतेको बेर, अनेक महामारीक चर्चा अछि। ओकर प्रदत्त क्षतिक चर्चा अछि। प्लेग, हैज़ा, चेचक आदि सब अपन तबाही देखा चुकल अछि। समय समय पर वैज्ञानिक लोकनि दवाई के निर्माण कय समाज कें सुरक्षित केलैन्हि अछि। टीकाकरण अभियान चलल अछि । लोक लाभान्वित भेल छथि।
आई पुन: महामारीक काट कें वैज्ञानिक लोकनि प्रावधान केलैन्हि अछि, आऊ हम सब वैक्सीन के लाभ ली। वैक्सीन के लs कs बहुत अफ़वाह, भय आ भ्रम सेहो प्रसारित अछि।
 अपन मिथिलानी सब शिक्षित छी, जागरूक छी, निर्णायक क्षमता राखय छी। अहि कोरोना महामारी में अपन घरक सुरक्षा में सब जी जान सँ स्वयं के समर्पित कयलहुँ। स्वयं अस्वस्थ रहलाक बावजूद अपन घरक परिचर्या में अहाँ कोनो त्रुटि नहि छोड़लहुँ।
प्रत्येक मिथिलानी अपन घरक वैचारिक स्तंभ अहाँ स्वयं छी, अहाँक वैचारिक शक्ति समाज कें सदैव अग्रसर कयने अछि। आई पुन: समाज कें अहाँक आवश्यकता अछि। घर, समाज कें जागरूक आ सुरक्षित करवाक ज़िम्मेदारी अहाँ पर अछि। वैक्सीन कें प्रति घर परिवारक संग, पास पड़ोस, समाज में विश्वास जागृत करी, अपन वैज्ञानिक लोकैन्हि कें प्रति आ वैक्सीन कें प्रति। विश्वास विजय कें प्रथम पायदान होइत अछि।
इतिहास साक्ष्य अछि जे महामारीक उन्मूलन में वैक्सीन वा टीका अत्यन्त कारगर रहल अछि। आई कोरोना क उन्मूलन अत्यन्त आवश्यक अछि । वैक्सीन सबसँ उपयुक्त हथियार अछि कोरोना पर प्रहार कें । सम्पूर्ण समाज कें वैक्सीनेशन सँ कोरोनाक  तेसर लहरि कमज़ोर पड़त, लोक, परिवार, समाज सुरक्षित रहत। प्रत्येक मिथिलानी आऊ, सभ मिलकय कोरोना पर प्रहार करी। स्वयं कें आ समाज कें सुरक्षित करी।
समय अपन धुरी पर चलि रहल अछि, सतत् निरन्तर । नित्य निर्माण आ प्रलय के क्रिया, प्रकृतिक प्रकृति अछि। प्रत्येक क्षण तत्क्षण नवीन निर्मित क्षण में विलीन भs जाइत अछि। इएह जीवन अछि। निर्मित आ विलीन होइत क्षण, कखनो बहुत खुशी दs जाइत अछि तँ कखनो असह्य पीड़ा। कतेको क्षण, समय कें संग विस्मृत भs जाइत अछि, तँ कतेको क्षण सदाक  लेल  मानस पटल पर अंकित भs जाइत अछि। तथापि जीवन चलैत रहैत अछि, ई प्रकृतिक नियम अछि।
प्रकृति माँ छथि, सदैव किछु ने किछु दैत छथि। किन्तु प्रकृतिक अवहेलना वा दोहन जखनि अति भs जाइत अछि तँ प्रकृतिक रोष समय-समय पर विभीषिकाक रूप में सामने अबैत अछि। बाढ़ि, सुखाड़, भूकम्प, महामारी अनेकों रूप मे । विभीषिका सदैव दुखदायी होइत अछि। एखन धरा धाम कोरोना नामक महामारी सँ त्रस्त अछि। अति दुखदायी समय अछि । ह्रदय विदारक दृश्य सँ भरल अछि ई समय। कतेको घर उजड़ि गेल। केयो पितृ विहिन भेलाह, केयो मातृ विहिन, किनकों आँखिक आँगा सँ संतान चलि गेलैन्हि। बहुत दुर्घट समय, अपना कें अपन सँ विछोह करबैत समय, धैर्य कतेक धारण करी, से नहि बुझना जा रहल अछि।
अर्थक क्षति तँ समयक संग पूर्ति भs जाइत अछि, मुदा समांगक क्षति तँ अपूरणीय अछि। समयक चक्र तँ चलैत रहैत अछि, हम अहाँ अहि चक्रक हिस्सा छी, अपूरणिय क्षतिक संग जीवन निरन्तर आगू बढ़ैत अछि। अहि में कोनो पड़ाव नहि होइत अछि। दुखक एहन विकट स्थिति में मनोबल बहुत टुटैत अछि। जिनकर प्रिय गेलैन्हि हुनको आ जे चारूकात प्रलय देख रहल छथि हुनको। अखनि स्वयं के एतेक मज़बूत करवाक समय अछि कि भय सेहो भयभीत होय। नारी मन बहुत मज़बूत होइत अछि, ओ जीवन केर प्रत्येक झंझावात कें पूर्ण दृढ़ता सँ साहस सँ सामना करय छथि, तथापि नारि मन कोमल आ सरल सेहो होइत अछि। दृढ़ता आ कोमलता दूनु विरोधाभास स्वभाव प्रत्येक नारि कें आभूषण अछि। अपन मिथिलानी सेहो अहि दूनु भाव सँ भूषित छथि। मुदा विकट स्थिति में कखनो तँ दृढ़ताक भाव ऊपर भs परिस्थिति सँ लड़वाक क्षमता प्रदान करैत अछि, तँ कखनो कोमलताक भाव ऊपर भs कनेक कमज़ोर करैत अछि। इएह  कमज़ोरी मनोबल कम कs दैत अछि। आई समय अछि दृढ़ताक भाव ऊपर कय मनोबल मज़बूत करय कें।
कोरोना काल में स्थिति एहन विकट भs गेल, कि मज़बूत सँ मज़बूत मिथिलानीक मनोबल कमज़ोर भs रहल छन्हि। आवश्यकता अछि हुनकर मनोबल बढ़य, सब एकदोसर कें मानसिक संबल बनी। नकारात्मक सोच सँ परहेज़ करी। भगवत्भजन करी, नीक साहित्य पढी, प्रिय गीत गाबी, अपन कोनो प्रिय काज करी, अपना आप के व्यस्त राखी। मन बहटायब बहुत ज़रूरी अछि।
जीवन निरंतर प्रवाह कें नाम अछि। प्रलय उपरान्तो जीवन तँ कतहु नहि जाइत अछि। समय अछि, प्रलयंकारी समय कें धुमिल करैत नवीन निर्माण में लाईग जाई। स्वयं कें व्यस्त कs ली। कठिन तँ अछि मुदा माँ सीताक अंश मिथिलानीक प्रवृति टुटि कs भखैरि गेनाई  नहिं अछि । ई महामारी बहुत तहस-नहस कs गेल आ कs रहल अछि। आऊ सब मिलकय पुन: निर्माण करी । नवीन निर्माण, प्रलय के ह्रास करत। आऊ पुन: वातावरण जीवंत बनाबी।
घोर, घुप्प, स्याह, कारी, विकराल समय, हाथ में कोरोना रूपी कालक पाश नेने नगर, शहर, गाम, चौक-चौराहा सबठाम चहल क़दमी कs रहल अछि आ लोकक प्राण हरण कs रहल अछि। समय कतेक विपरीत भs गेल अछि , कतेक निष्ठुर।  जी-जान लोक कें हेरायले रहति अछि जे कखनि कि हयत से नहि जानि। सदिखन हँसी-खुशी सँ रहय बला लोकक मुखमंडल सँ हँसी कोसो दूर भेल अछि। कोनो अप्पन कें संग छुटय कें भय आ दर्द पसरल अछि चहुँ ओर।
 परिस्थिति चाहे कतबो भयावह होई, नारी शक्ति सदैव धैर्य आ ढ़ृढ़ताक संग अपन कर्तव्य के निर्वहन करय छथि। अखनो, एहनो विकट स्थिति में अपन मिथिलानी, साहस कें संग अपन परिवारक रक्षा हेतु ढाल बनल छथि। मिथिलानी भनसाघरक एक-एक मसाला कें हथियार बना टुटि पड़ल छथि कोरोना पर। ओकर पाश कें खंड-खंड करवाक हेतु तत्पर छथि।  शनै: शनै: सही, मुदा विजय प्राप्त कs रहल छथि। अपन भनसाघरक नींव कें आओर सशक्त कs रहल छथि।
अपन मिथिलानी पाश्चात्य संस्कृति कें परित्याग कय अपन पुरातन संस्कृति, आयुर्वेद कें शरण में छथि। आब चाहक स्थान सेहो काढ़ा लs लेने अछि। आदि, लौंग, ईलाईची, दालचीनी, जे गरम मस्सला बनि कटहर आ माऊसक तीमन कें शोभा बढ़बैत छल, आब मिथिलानी एकर काढ़ा सँ अपन परिजन कें रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ा रहल छथि।  जमाईन सन मसाला भनसाघरक कोना में पड़ल रहति छल, अपचे में यादि करैत छल लोक, आई संजीवनी प्रतीत होईत अछि। आई भनसाघर पुन: औषधालय बनल अछि। हरदि बला दुध लुप्तप्राय छल, गोटैके घर में बनैत छल, आब पुन: प्रत्येक घर में बनैत अछि आ लोक सेवन कs रहल छथि। कोरोना महामारी पर आघात कय छाती कें कफ मुक्त करवा में अहि दुध के बहुत पैघ भूमिका अछि।
गुरीचक लत्ती, जे बारी झारी में अनेरे तिरस्कृत छल, आब अमृत तुल्य अछि, आयुर्वेदिक नामो अमृता अछि से आब बुझना गेल। गुरीचक काढ़ा जीवन दायिनी बनल अछि। मिथिलानी चुंकि शिक्षित छथि तैं विज्ञानक सहारा सेहो लय छथि आ विटामिन सी युक्त भोजन निर्मित करय छथि । धात्रींग, नेबो सन खटरस फल के बहुतायत में उपयोग कय अपन परिवार कें बुस्टप करय छथि, शारीरिक आ मानसिक दुनू प्रकारे।
निरंतर परिवारक कवच बनल मिथिलानी, समयक मारिक आगु कखनोंक, अशक्त सेहो भs जाई छथि। जखन, अथक परिश्रमक बावजूद परिवारक कोनो सदस्य कोरोनाक पाश में ओझरा जाई छन्हि। कखनो तँ घरे में कोरेंटाईन क कय रंग बिरंगक कोरोना विरोधी आहारक बल पर  कोरोनाक पाश सँ खींच कs बाहर कs लय छथि अपन स्वजन कें, तँ कखनो परिस्थिति एहन विकट भs जाई छन्हि कि ओ निढाल भs खसि पड़य छथि। लोकक क्षति जिनगी भरिक नोर बनि जाई छन्हि ।
कतेक दिन समय एहन विकराल रहत से नहि कहि। सम्पूर्ण जगत में हाहाकार अछि, जीवनक गाड़ी ठप्प भेल अछि। आब भगवतीक हाथ में छन्हि सब, ओ जहिया उबारथि। माँ भगवती सँ करबद्ध प्रार्थना अछि ‘हे जगदम्बा जल्दी उबारू ‘ ।
आई क़लम चलय लै तैयार नहि अछि। कोना चलत ई क़लम ? परिस्थिति एहन विषम अछि जे मन-आत्मा सब झहरल सन बुझाइत  अछि। कतहु सँ कोनो नीक समाचार नहि सुनल जाइत अछि। प्रकृति श्रीहीन बुझि पड़ति अछि। मनक उद्गार कतहु हेरायल सन बुझाइत अछि। चारू कात कोरोनाक त्राहिमाम् मचल अछि। ई महामारी सँ कोनो घर-परिवार नहिं बाँचल अछि। परिवारक परिवार त्रस्त अछि।
अहि महामारी सँ बचाव में दिनचर्याक बड महत्व अछि। आई गृहिणी कवच बनि कय ठाढ़ छथि अपन परिवारक आंगा। एकटंगा दय परिचर्या कय रहल छथि अपन परिवार कें। एतेक परिश्रमक बावजूदो लोक ग्रसित भs रहल छथि आ कतेको लोक काल कें ग्रास सेहो बनि रहल छथि। मन आहत भs रहल अछि मुदा प्रकृतिक आंगा सब लाचार छी, शक्तिहीन छी।
क्षिति, जल, पावक, गगन, समीरा सँ निर्मित अहि शरीर लै बहुमूल्य अहि पाँचो तत्व कें प्रकृति अमूल्य रखने छलैथ। अहि पर कोनो प्रकारक धनराशि ख़र्च करवाक आवश्यकता नहिं छल। माटि, पानि आ प्राणवायु पर प्रत्येक जीव कें समान अधिकार छल। मुदा माटि-पानि किनैत-किनैत आई हम-अहाँ कतय पहुँच गेलहुँ कि प्राणवायु लै त्राहिमाम् मचल अछि। माटिक बनल ई शरीर के माटि केहन भूरभूरा बाउल सन भs गेल कि प्राणवायु सोखई लै मशीनक ( ऑक्सीजन सिलेण्डर )  आवश्यकता पड़ि रहल अछि। कतेक दुखद स्थिति अछि आई। प्रकृति तँ माँ छथि, चूक हमरे सब सँ भेल अछि कतहु, जे माटिक शरीर बाउल बनि रहल अछि।
धैर्य धारण के सिवा आर कोनो रास्ता नहि सुझाईत अछि। तिल-तिल कs ई पहाड़ सन समय बीत रहल अछि। कोना ई विकट समय बीतत आ सब किछु सामान्य रूप सँ सुचारू हैत। समाज में हँसी खुशी आ उत्सव के समय आओत। आऊ सब मिथिलानी मिलि कय जगत जननी माँ जगदम्बा सँ प्रार्थना करी। हे! माँ जगदम्बा, भाभट समेटु आब, आब दुख नहि सहल जाईत अछि। हे! कल्याणी रक्षा करू। हे! कल्याणी रक्षा करू।
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