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अहाँ भारतमे नहि,
ओहि इंडियामे रहैत छी,
जतय रहैक लेल अहाँ
स्वतंत्र नागरिक नहि भ’
विदेशी आक्रांता कंपनी सभक ब्रैंड
अपन छातीपर साटिकेँ चलैत छी।
केकरो गिनीपिग बनि क’ अहाँकेँ
जे गर्वित हेबाक आभास होइत अछि
ओ अहाँक मरल आत्मा क’ गंध अछि।
अहाँ जाहि कन्वेंट स्कूलमे
लाखों रुपया दस्तूरी द’ क’
अपना बच्चा सभकेँ घुसियबैत छी,
दरअसल से त’ कत्लगाह छैक
जतय अहाँक विमल-बुद्धि शिशुकेँ
आत्मिक संस्कार
आ पारिवारिक संबंध सभकेँ
नाभि-नाल केँ तेज धार वाला छुरिसँ
हलाल कएल जाइत अछि।

तेकर बाद मात्र डीएनए छोड़ि
ओकर सभ किछु बदलि जाइत छैक।
घुरिकेँ अहाँ लग जे गोश्त अबैत अछि
ओ गुरुकुल क स्नातक नहि
मात्र प्लास्टिक क एटीएम कार्ड होइत अछि
जाहिसँ पाइ त’ निकसि सकैत अछि,
मुदा मानसकेँ संवाद नहि।
अपन लायक बेटाकेँ नालायक बनेबाक उन्मादमे
अहाँ जाहि माँ-बाप केँ वृद्धाश्रममे
फेंकि आएल रही,
हुनक छोड़ल कंबल
अहाँक प्रतीक्षा क’ रहल अछि
जाउ आ ओतहिए एकटा स्लमडॉग जकाँ मरू
किएक त’ अहाँक मरल मुँहमे आगि द दइवाला बेटा
फारेन में डालर क गरदामी मे गला फँसाक’
दिन-राति खटि रहल अछि,
आ परदेसी तिजोरी भरि रहल अछि।
ओकरा फुर्सत कतय छैक
जे ओ अहाँक लहासकेँ देखैक लेल आओत ?
आ लहास तँ जिबैत शरीर क होइत अछि
अहाँ त’ नहि जानि कहिए मुर्दा भ’ गेल छलहुँ!

मध्यमा अछि नमहर नमहर,
तर्जनी कें जुनि करू करगर ।
अँगुष्ठा सँ ओकरा सम्हारू,
ज्ञान मुद्रा अहाँ झट दs बनाऊ।
अनामिका में अँगुठि शोभय,
अछि कनिष्ठिका छोटे-छोटे।
सब मिलि कs अछि हाथ बनल,
बान्हि लिय तँ मुट्ठी तनल।
संयुक्ते सँ दुनियाँ हरकय,
फरके फरके केयो ने टरकय।।

                 यौ सरकार ,सुनू गोहारि,बड्ड दूर अछि हमर गाम!

                 अहाँ देल देश निकाला,छीनल रोजगार ,

                  भूख  भय अछि ,नइं कोनो महामारी

                   भय अछि ऐ कठिन तालाबंदी मे

                   न रेजकी , न गाड़ी,न कोनो सवारी

                   मोटरी-चोटरी ढोयब , कि नेना-भुटका,

                    कोना क’ जायब हम अपन गाम ?

                    यौ सरकार, सुनू हमर गोहारि,बड्ड दूर अछि हमर गाम!

                  रतौंधी अछि भेल कि मोतियाबिन्द,

                   सुझैत अछि अहाँक’ न राति न दिन

                   नीचा धरती तप्पत,ऊपर धीपल अकाश

                   देखू हमरा पयरक ओदरल छाल,

भागि रहल छी हम ,दौड़ रहल छी हम,

सुनु सरकार हमर गोहारि !बड्ड दूर अछि ..

                    कानि रहल छी भोकारि पाड़ि ,

                     कनिको सुनाइत अछि सरकार !

                    बहिर छी कि छी भेल मतसुन्न

                   अहाँ  देल धधकल अंगोर जीवन

                   मिझाउ आगि केना ,ल’ क’ कि आँखिक झहरैत बुन्न !

                                  कठकरेज अहाँ,सुनु गोहारि!बड्ड दूर अछि …

                          सोना उगलैत गामक धरती ,

                          बाढ़ि-सुखारि  सं पड़ल परती

 

                     कुव्यवस्था जारल जीवन ,जारल रोजगार

                        एत’सं ओत’ भेल सतबा सभ धरती

                        पहिने छोड़ाएल  अपन गाम जबार

                        केहन निर्दय अहाँ  यौ सरकार,

                        फेर धुरियाएल  पयरे  घुराक’ गाम ?

                         कोना क’ जाउ गाम अपन भेल विरान!दूर बड्ड अछि हमर..

                      सड़क ,महल ,बजार अहाँक महानगर  ,

                      हमही बनेलहुं अहाँक संसद ,अहाँक शहर

                       ईंटा-गारा ,बोझ उठेलहुँ दिन-राति

                       अहाँ अकाश सं खसेलहुं  खजूर पर

                     कीड़ा –मकोड़ा नइं मनुक्ख छी हम

                     मात्र  मजदूर नइं बूझू , श्रमिक छी हम

                    छीटू नइं कीड़ा मार , खून-पसीनाक दिय’ दाम!

                    यौ सरकार बड्ड दूर अछि हमर गाम …

                     पढ़लहुं खाली पेटक आगि  ,किछ नइं पढल आर

                      काल बनल करोना नइं ,रोटी-भातक कठिन जोगार

                      महामारी नइं ,काल बनल छी अहाँ महराज ,

                       अपनहि देश भेलहुँ परदेशी,कहिया बूझब मनुक्खक मान?

                       माफ़ नहीं करब , तानाशाही सक्कत यौ सरकार !

                      करी गोहारि दूर बड्ड अछि हमर गाम,

                     बड्ड दूर अछि हमर गाम !

अप्पन देश में छह गो ऋतु होइ हइ जेकर नाम हइ – गरमी, बरसात, शरद, हेमंत, शिशिर आ वसंत। वैसे त सब मौसम के अप्पन एगो खास जगह हइ लेकिन वसंत खास होइ हइ। किए कि इ समय में न त बेसी जाड़ पड़ै हइ आ न बेसी गरमी। एकर एहे खासियत के कारण एकरा सब मौसम के राजा कहल जाइ हइ।

पुराण के एगो किस्सा में बसंत के कामदेव के बेटा कहल गेलइ हन। एकर अनुसार सुंदरता के भगबान कामदेव के घर जब बेटा भेलइ त पूरा के पूरा संसार झूमे लगलइ। प्रकृति गाबे लगलइ, गाछी आर पर नया नया मंजरी फरे लगलइ, पीयर पीयर तोरी के फूल से पूरा धरती जैसे पीयर रंग के सारी में नयकी कनिया जैसन सज गेलइ।

मंजर के खूश्बू पूरा हवा महके लगलइ आ उ मादकता से बहकल कोयल कू कू करके अपन गीत सुनाबे लगलइ जैसेकि बउआ के आबे के खुशी में सोहर गा रहल हइ। गीता में खुदे भगबान कहलखीन कि हमें ऋतु में वसंत हियइ।

साहित्य, कला में भी बसंत के अप्पन खास स्थान हइ। बसंत पर केतेक साहित्य लिखल गेलै हन आ गीत के त बाते कि हइ। बहुते कलाकार अप्पन चित्र में भी बसंत के रूप रंग के खूब सजल कइ हन। भारतीय संगीत में त एकठो रागो हइ एक्कर नाम पर बसंत राग।

बसंत में मनाबे बाला परब भी बसंते जैसन रंगीन होइ हइ जैसे सरस्वती पूजा, बसंत पंचमी, रंग पंचमी, होली, नवरात्रि, रामनवमी, नव-संवत्सर, हनुमान जयंती आ बुद्ध पूरणिमा। सनातन संस्कृति में नया साल भी एहे मौसम में शुरू होइ हइ।

बसंत पर कवि शिरोमणि विद्यापति जी भी बहुत सुंदर लिखले हथीन

आएल रितुपति – राज बसंत.
धाओल अलिकुल माधव-पंथ.
दिनकर किरन भेल पौगंड .
केसर कुसुम धएल हे दंड .
नृप-आसन नव पीठल पात .
कांचन कुसुम छत्र धरु माथ.
मौलि रसायल मुकुल भय ताल .
समुखहि कोकिल पंचम गाय .
सिखिकुल नाचत अलिकुल यंत्र .
द्विजकुल आन पढ़ आसिष मंत्र.
चन्द्रातप उड़े कुसुम पराग .
मलय पवन सहं भेल अनुराग .
कुंदबल्ली तरु धएल निसान .
पाटल तून असोक – दलवान.
किंसुक लवंग लता एक संग .
हेरि सिसिर रितु आगे दल भंग.
सेन साजल मधुमखिका कूल .
सिरिसक सबहूँ कएल निर्मूल.
उधारल सरसिज पाओल प्रान.
निज नव दल करू आसन दान.
नव वृन्दावन राज विहार .
विद्यापति कह समयक सार .

आबू ,अइ बसंत के सुआगत करू। अपन जीवन में आनंद-उत्साह के संचार करू।

(चित्र : अपला वत्स जीक फ़ेसबुक भीत सं) 

बसंत मने
रंग प्रीत के
प्रेम के
उल्लास के
हास और परिहास के
प्रकृति के नव श्रृंगार के
बसंत मने
गीत मनुहार के
राग और अनुराग के
ढोलक के थाप पर
सजल त्यौहार के
विरहनी आकुल भरल
तान के
बसंत मने
चित्र सजल हिंदुस्तान के
भरल खलिहान के
किसान के जुड़ल आस के
नब  प्रकाश के
नब  साल के

 

हिन्द महासागर के उत्तरमे
और गिरिराज के दक्षिणमे
पसरल इ विशाल भूमि
मात्र पृथ्वीक एक टुकड़ी नहि थिक
अपितु इ स्वयंमे सम्पूर्ण सृष्टि और ब्रम्हांडक सार के समेटने थिक

हजारों वर्षक
स्वर्णिम इतिहास के सहेजने
इ भारत वर्ष
ब्रम्हांडमे जहिना सूर्य चमकति छथि
तहिना अहि पृथ्वीपर
चमकि रहल अछि

अहि तीन अक्षर के देशमे
लोक तीनहि टा भाषा बजैत अछि
प्रेम, त्याग और समर्पण के भाषा
तीनहि रंगमे रंगल रहैत अछि
केसरिया, उज्जर और हरियर

अहि देशक संतान
एकरूपतामे विश्वास रखैत अछि
सुन्दरतामे नहि
राजस्थान के मरूभूमिसँ
सेहो लोक ओतबै प्रेम करैत अछि
जतेक कश्मीर के वादीसँ

महान सपूत और वीरांगना सभक जन्मस्थली अछि इ देवभूमि
जहि ठाम पंचतत्व के अपन आराध्य मानल जाइत अछि

वसुधैव कुटुंबकम्
सर्वधर्म समभाव के अवधारणा
राखल जाइत अछि

जं हजारों जन्मक सत्कर्मसँ
मानव शरीर भेटैत छैक
त’ लाखों जन्मक सत्कर्मसँ
भारत सम जन्मभूमि भेटैत छैक
तैं त’ अहि देश के अस्मिताक रक्षा हेतु
एकटा अबोध बच्चा सेहो
अपन सर्वोच्च बलिदान करबा सँ
पाछू नहि हटैत छैक

हमरा एखनहुँ मोन अछि

इसकूलक समय के

छब्बीस जनवरीक ओ परेड

जाहिमे कागतक बनल तिरंगा हाथमे ल’

भारत माता की जय

सुभाषचन्द्र बोस अमर रहे के नारा लगबति

गामक चौहद्दी नपैत छलहुँ

भगतसिंह और चंद्रशेखर आजाद पर

दस आखर बजैत छलहुँ

गर्व सँ सीना ऊंच केने

इंकलाब ज़िंदाबाद के जयघोष करैत छलहुँ

इन्दिरा गान्धी और सरोजिनी नायडू के नाम रटैत छलहुँ

 

आजादीक स्वर्णिम वर्षगांठ भ’ गेल छल तहिया

मुदा गाममे उच्च विद्यालय नहि

छिछिया बौआय क’ धी- बेटी कतेक पढ़ैत

सभ थोड़बे इन्दिरा गान्धी बनि जायत

नहि!

मुदा किछु ने किछु अवश्य बनैत

 

आजादीक जश्नमे डूमल अहि देश मे

कहां किनको फुरसति रहनि अहि दिस तकबाक

 

जाहि भारत के भविष्य सभ लेल

ओतेक संघर्ष सँ

आजादी हासिल कएल गेल

एतेक दशक बितलाक बादहु

कतेक भविष्य सभ

सड़क पर बिलटति

नोरे बिलखति

 

अहि देशक बेटी सभ

समुद्रक गहराइ सँ ल’ क’

अन्तरिक्ष केर ऊंचाइ तक गेल

राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री के संग

हरेक उच्च पदपर आसीन भेल

 

इ त’ भ’ गेल अहि देशक बेटी केर क्षमता

आजाद भारत के बेटीक

मुदा अहि क्षमता के बाधक बनल रहल

गुलाम सोचक कायरता

जे अहि देशमे हरेक वर्ष

लाखों के संख्यामे

बेटी सभक नाम परिवर्तित क’

निर्भया राखि दैत अछि

 

देश स्वतंत्र अछि

अभिव्यक्तिक आजादी अछि

मुदा कि अहि आजादीक लेल

लाखो माय अपन कोखि उजाड़ि लेलनि

हजारों विधवा अपन माथक सेनूर पोछि लेलीह

 

जाहि देशमे अनकर द्वारा कएल गेल अपमान

लोक नहि सहलक

ओतय अपनहि लोक सँ कएल अपमान

कोना सहि रहल अछि

इ उनटा गंगा

कोना बहि रहल अछि

 

आवश्यक अछि धैर्यक बान्ह के ढ़हब

 

लोक उठत

एक बेर और लड़त

अहि देशक बेटा नहि

केवल बेटी लड़त

अनका सँ नहि

केवल अपनहि सँ लड़त

जीतत

आ तहन होयत सम्पूर्ण विजय

पूर्ण आजादी

 

तहन अहि देशक बच्चा- बच्चा के सिखब’ नहि पड़त राष्ट्रगीत

ओकर शोणितक हर धारमे बहत

अपना देश लेल प्रीत

हमर रौदायल सन जिनगी केँ
छाह छी अहाँ,
हमर सभटा सेहन्ता आ मनोरथक
अकास छी अहाँ,
अहीं हमर इच्छाक कल्पतरु,
अहीं हमर पुष्प परिजात छी/

हे जनक,

हमर जीवनक फूलवारी केँ माली छी अहाँ,
सींचय छी हमरा नित्य प्रेम सँ

अहीं हमर स्वप्नक समुद्र छी,
अहाँ’केँ प्रेम अथाह अछि,
अहीं हमर संबल छी,
अहीं हमर शक्ति

हे पिता,
अहाँ बास करय छी हमर अंतर्मन मे,
अहीं सँ हमर अस्तित्व अछि

 

छोड़ि केँ अपन पिता’क घर,
छोड़ि अपन खेत-खरिहान,
चलि जाइछ बेटी,
दूर केँ अपरिचित निर्जन मे,

अनचिन्हार रस्ता सँ होइत,
कोनो नौब जगह,
ताकय लागैछ
ओतय अपन जमीन,
अपन अकास

सजाबय लागैछ कोनो अजनबी केँ घर,
बसि जाइछ जीवन भरि ओतहि,
ओतुके गीत गबैत अछि,
ओतुके राग,
रंगि जाइछ ओहि रंग मे,
मुदा बिसरियो केँ नहि बिसैर पबैत अछि
अपन देस आ खेत – खरिहान

कहियो नहि छूटय छै ओकरा सँ ओकर नैहर
ओ सदिखन रहैत अछि अपन पिता’क तरहत्थी मे

 

कतेक रास  उत्साह  भरने छी अहां सब,
हे वीर सपूत  हम कि प्रणयन करूअहाँक एहिबेर ।

ग्रसित भेल जखन-जखन धरा काल कंटक सं ,
वशीभूत रहलौं अहां सेवा में सब बेर ,
भारत माय केर शीश बचाव लेल,
चललौ शीश कटाब कतेक बेर,
हे वीर सपूत  हम कि प्रणयन करू अहाँक एहिबेर ।

अपन शोणित सं पखारल
मां के चरण रजकें  कतेक बेर,

तैयो मन नय भरल हे मनचला आहांक,
मुइलो  पर बसलों  कण-कण में   सब बेर ,
हे वीर सपूत  हम कि प्रणयन करूअहाँक एहिबेर ।

सब बेर  खसि कें  भी आहां धरा पर,
क लै छी मांकें  शिरोधार्य,
देखके भातृत्व आहां केर,
पुष्पा करै नमन सब बेर ,
हे वीर सपूत  हम कि प्रणयन करूअहाँक एहिबेर ।

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