बुद्धि, विवेक,ममताक अहाँ छी गागर,
दुःखहारिणि माता बनू हम अहींक चाकर।
प्रेम सँ अपन सींचू हे माँ,
जीवनदात्री माँ ,अहाँ छी दयाक सागर।
संपूर्ण जगत केर पालनहार अहाँ छी,
पापिक करैत संहार अहाँ छी।
अक्षय जल बरसाउ हे माँ भवानी,
सृष्टि रक्षाक अवतार अहाँ छी।
नमन माँ,अहाँ छी जीवनक आधार,
पार लगबैत छी अथाह समुद्र रुपी ई संसार।
हृदयतल सँ जे भक्ति करय अहाँकेँ,
बुझि जाय ओ संपूर्ण जिनगीक सार।
आउ दाई माई सभ एकटा गप्प सुनाबी ,
तिरपित बाबुक बरियाति केँ मजेदार गप्प सुनाबी।
विमल बाबु जे गेलाह बरियाति ,
ओ प्रचंड जाड़ मे बन्हने गाँती।
देने गेलखिन दसो कप चाह पर चाह,
आंखि गुरैर एकटा लोक ताकय लगलन्हि,
लगलै नहि ओकरा कोनो थाह।
फेर पड़ल एगारह रंगक अचार भोजक पात पर,
नून, चटनी आ नजर परलन्हि गेन्हारी साग पर।
तहन पड़ल पुरी, डलना, भुजिया, भाटा-अदौड़ी,
रायता, रामरुचि, खमहाउरक तरुआ, पापड़, चरौड़ी।
एलै तहन दही, रसगुल्ला, कालाजामुनक बारी,
उपर सँ ध’ क’ देलखिन चमचम आ सकरौड़ी।
तिरपित बाबु झट द’ खा पत्ता क’ देलखिन चिक्कन,
ताकि अच्चके परसनिहार पुछलकन्हि, बनल छलै ना भाइ सभ निम्मन।
थैइ-थैइ भ’ गेलै यौ, बजलाह तिरपित बाबु,
पान सुपारी लय विदा भेलाह आगुए आगु।।