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कक्का प्रणाम!

अहाँ अपना घरक बेटी-पुतोहू केर श्रम कें सोझे स्तरहीन घोषित करैत छी। नीक गप। अहाँ कहैत छी जे प्रकाशक सभ आँखि मूनी अधोगामी रचना सब छापि दैत छथि। बेश! महत्वपूर्ण अछि जे अहाँक ई विपद्य विचार ओहि अखबार मे प्रकाशित भेल अछि जे किछुए दिन पहिने अपन सम्पादकीय पृष्ठ पर एकटा स्वनामधन्य लेखकक लेखनीसँ एहि बातक घोषणा कएने छल जे मिथिलाक समाज स्वाभाविक रूपें सामंती, स्त्री विरोधी आ दलित विरोधी रहल अछि। वएह अखबार अहाँक एहि विचार पर मोहर लगा रहल अछि जे मैथिलीक सभ नवलेखिका अकर्मके छथि। ने त ओहि सामंती घोषणा बला लेख केर प्रतिपक्षमे कोनो लेख हमरा एहि अखबारमे आइ धरि भेटल आ ने अहाँक विपद्य विचारक समानान्तर कोनो महिलाक पक्ष देखबाक भेटल।

हमर जिज्ञासा अछि जे जतेक प्रश्न सभ उठाओल गेल ‘आजुक स्त्री लेखन’ पर, ताहिमे कोन एहन प्रश्न अछि जाहिसँ मैथिली साहित्यक नवतुरिया लेखन सामान्यत: ऊपर अछि? सभटा पुरुष लेखक सभ की ओहि प्रश्न सबहक परिधि सँ दूर छथि? कोनो गणितीय आधार अछि ई कहबाक जे ‘अधोगामी’ हेबाक ई प्रवृत्ति स्त्री लोकनिक बीच बेशी अछि पुरुख रचनाकार लोकनिक बनिस्पत?

आ.. मैथिलिए टा किएक, कोन भाषा-साहित्य एहन अछि जाहिमे नीक-बजाए नहि। कोन भाषा-साहित्य एहन अछि जाहिमे श्रेष्ठ आ हीन सभ तरहक साहित्य प्रकाशक लोकनिक छापि नहि रहलाह आ कि स्तरहीन रचना सभ मंच-मचान-पुरस्कार केर जोड़-तोड़मे लिप्त नहि रहल अछि। एकरो कोनो तुलनात्मक अध्ययन भेल अछि की? अंग्रेजीक सभ रचनाकार इलियट आ शेक्सपीयर केर बराबर छथि की? हिंदी मे सभ दिनकरे-निराला भ गेल छथि? मैथिलीक सभ पुरुख लेखक ज्योतिरीश्वर आ विद्यापति सँ प्रतियोगिता क रहल छथि की? दिनकर-निरालाक समकक्ष जे सभ पुरखा छलाह हमरा सबहक हुनको सँ आजुक पुरुख लेखक लोकनि कोनो प्रतियोगिता मे छथि की?

एकटा गप इहो जे ‘अधोगामी’ आ ‘स्तरहीन’ हेबाक मानक की? व्याकरण? वा ओ भाषा जे पढाबय बचैत रहला एहि नवतुरिया लेखिका लोकनिक बाप-पित्ती? वा ओ राजनीतिक-दार्शनिक चिंतन जे एहि लेखिका सबहक माए-पितियाइन धरि पहुँचब कल्पनातीत रहल? वा ओ मानसकिता जे ‘कनभेंट’ मे नहि पढ़इ चलते मिथिलाक धी-बेटी मे नहि पनपि सकल? दू-चारि वा दस-बीस मानक जं तय कइये ली त की ‘श्रेष्ठता’ वा ‘हीनता’ सार्वत्रिक सत्य भ गेल?

जखन अहाँ कहैत छी जे पुरस्कार आ मंच मचान जोगाड़े से भेटैत छैक त की ई बुझल जाए जे महिला लोकनिक मंच-मचान आ पुरस्कार लेल पहिल आ अंतिम शर्त जोगाड़े टा थिक। पछिला बरख चेतना समितिक दू गोट मुख्य सम्मान आ दू गोट ताम्रपत्र महिला रचनाकार/गायिका कें समर्पित कएल गेल छल।साल 2021 मे महिला रचनाकार कम सँ कम 20 गोट मैथिली पोथी बहराएल छल। अहाँक वक्तव्य केर आधार पर की ई बुझल जाए जे ई सभटा उपलब्धि जोगाड़े टा सँ भेल। आ की अहाँ ई दावा सँ कहि सकैत छी जे पुरुख लोकनिक सभ मंच-मचान-पुरस्कार जोगाड़-रहित छनि। एहने प्रश्न श्रीधरम जी आ रोमिषा केने छलथि मान्य रचनाकार रमण कुमार सिंह जीक ओहि आलेख पर जकरा अपने उद्धृत केलहुँ। रमण कक्का अपन अगिला आलेख मे स्पष्ट केलथि जे नव पीढ़ीक महिला लेखन पर लिखल गेल हुनक गप सब पुरुख लेखन पर सेहो लागू होइत अछि। सन्दर्भ धरि मे ई सेलेक्टिवज्म कोना। एहि स्पष्टीकरणक लगभग हफ्ता भरि बाद अहाँक लेख आबैत अछि, महिलाक प्रति वएह पूर्वाग्रहक सङ्ग, आ फेर ओ हू-ब-हू छपि जाइत अछि अखबार मे।

जज बनब सहज अछि जखन निर्णय अनका पर देबाक होइ। ‘स्त्री’ आन अछि अहाँ लेल, तें अहाँ सहज निर्णय क सकैत छी। निवेदन एतबहि जे कखनो मैथिली मे दिनानुदिन छपैत-बहराइत भइया-बउआ-कक्का सबहक रचना सबहक सेहो छिद्रान्वेषण ओहि मानक आ ओहि मानस सङ्ग करब जाहि मनोस्थितिमे सभ मिथिलानीक लेखन एकहि हांकमे नकारल अछि। आशा अछि जे अहाँक एहन कोनो ईमानदार पोस्ट भेटत आ हमरा सभकेँ ई कहय पड़त जे अहाँ लेल हम सभ आन नहि छी, अहाँ स्वभावतः एहिना लिखैत छी।

सादर

स्वाती शाकम्भरी

आएल सखि मधुमास बसंत,
पसरल चंपा कली अनंत
कोयल कूकय पपीहा पिहूकय,
आमक मंजरी गमक दिगंत।।

सरसों पीयर वसुधाक साड़ी,
सोन गहुँम कें लगल किनारी,
तीसी चमकय मुँह बिचकौने,
माँग बढ़ल छन्हि हिनकर भारी।।

फाग चढ़ल दुहु कामिनी मातल,
कटि उरोज घमसान मचायल ।
लचकि लचकि ओ चालि चलैय छथि,
जानि ने कत्तेक प्राण हरयि छथि।।

भाँग बसात में घुलिमलि गमकय,
छौंड़ा सभ कें उठय पिहकारी।
रंग अबीर सँ धरा रंगल अछि,
खनखन बाजय सभ पिचकारी ।।

मध्यमा अछि नमहर नमहर,
तर्जनी कें जुनि करू करगर ।
अँगुष्ठा सँ ओकरा सम्हारू,
ज्ञान मुद्रा अहाँ झट दs बनाऊ।
अनामिका में अँगुठि शोभय,
अछि कनिष्ठिका छोटे-छोटे।
सब मिलि कs अछि हाथ बनल,
बान्हि लिय तँ मुट्ठी तनल।
संयुक्ते सँ दुनियाँ हरकय,
फरके फरके केयो ने टरकय।।
पएर मे पाजेब पहिरने उतरल यौवन
धरा पर जेना जड़ीदार चादर शोभित,
समस्त गाछ,वृक्ष पर टेहुनिया दैत
नव शिशु पल्लव भेल सौंसे शोभित।
जीर्ण पात त्याग,भेल शिशिरक अंत,
आएल देखू कुसमाकर,ऋतुराज बसंत।
मधुर सुगंध छिड़ियबैत आमक गाछ पर
तरुण मोती सन चमकैत महुआ मजरल,
खेत-पथार गदराएल गहुँमक बालि सँ
नव कनियाँ सन जड़ी बला घोघ ओढ़ाएल।
मंदिर आ चौबट्टी पर फाग गबैत संत,
आएल देखू कुसमाकर,ऋतुराज बसंत।
सड़िसोक पीयर स्वर्ण आभूषण सँ समस्त
लह-लह करैत खेत खरिहान अछि छाड़ल,
कोयली द’ रहल तान आ रंग बिरंगक पुष्पक
श्रृंगार केने तरु सँ गमकैत बसात बहराएल।
जग सँ नहि हुए ई ललित हुलासक अंत,
आएल देखू कुसमाकर,ऋतुराज बसंत।
आदरणीय लिली रे मैथिली साहित्यक नारी लेखनमे अग्रिम पाँतिक लेखिका छथि। आइ हुनक देहांतक दुखद समाचार प्राप्त भेल अछि।  हुनक पहिल कथा ‘रोगिणी’ 1955 ई मे वैदेही पत्रिकाक जुलाइ अंकमे प्रकाशित भेल अछि। ओ कथा आइ मिथिलानीक पाठक लोकनिक लेल प्रस्तुत कएल जा रहल अछि।
‘‘सुनै छी, तखन हम जा रहल छी।’’
‘‘हँ, जाउ।’’
‘‘पूरे पूर पचीस टाका हाथ लागत।’’ हम हुनका कान लग जा केँ नहुँए सँ बजलहुँ।
‘‘बिना कोनो काजक?’’ ओ बिहुँसलीह।
‘‘ च…च…च..।’’ हम हुनका मुहपर हाथ धरैत बजलहुँ, ‘‘राजरोगक इलाज करै छी।’’ गृहणी खूब जोरसँ हँसलीह। हमरो हँसी लागि गेल।
‘‘डाक्टर बाबू!’’ बाहरसँ एक अपरिचित स्वर आएल।
‘‘की थिक?’’ हम कोठलीसँ बहराइत पुछलिअइक। एक दस वर्षक बालक उज्जर कमीज पहिरने छल, जे ठेहुन तक झुलैत रहैक। पएरमे एक जोड़ पुरान चट्टी ओकर आर्थिक दशाक पूर्ण परिचय दऽ रहल छल। ओकर रंग पिंडश्याम रहैक, खर-खर चाम, चिक्कनताक कतहु दरश नहि। ओकर आँखि डबडबाएल आर स्वर भारी रहैक।
‘‘हमर बहिनि दुखित छथि।’’ ओ बाजल।
‘‘मुदा हम तँ बाहर जा रहल छी।’’
‘‘मुदा हमर बहिनिकेँ आखिरी हालति छैक।’’
‘‘तँ कोनो दोसर डाक्टरक कतय कियैक नहि जाइ छी? हम तँ पहिनहि दोसर केस गछि चुकल छी।’’
‘‘डाक्टर बाबू अहाँ मैथिल छी ने?’’
हमर मोन कबदि गेल। फीससँ उद्धार पएबा लेल ई लोकनि चट दऽ ‘मैथिल छी’क अस्त्र प्रहार कऽ दैत छथि। हम कइएक बेर ठका चुकलहुँ। फेर डाक्टरक जीविका तँ फीसहि पर निर्भर करैछ। अतः दृढ़ स्वरमे बजलहुँ, ‘‘मैथिल छी, अथवा बंगाली चाहे उड़िया छी, तै सँ अहाँक कोन लाभ? हमर पेशा थिक डाक्टरी।’’
ओ चुपचाप ठाढ़ रहल। हम फेर बजलहुँ, ‘‘अहीठाम बहुत डाक्टर रहै छथि, हुनकालोकनिक ओतय गेलासँ प्रायः फीसहु कम लागत।’’
 ‘‘मुदा बहिनि जे अहीं केँ बजाबय कहलक अछि?’’
‘‘मुदा हम की कऽ सकैत छी?’’
‘‘डाक्टर बाबू अहाँ की सोचैत छी, जे हम फीस नहि देब?’’
मोनक दुर्बलता पकड़ा गेलापर हमर क्रोध बढ़ि गेल। चिचिआ केँ कहलिऐक, ‘‘अहाँ हमरा बुझै छी की? हम अपन रोगीसँ वचनबद्ध भऽ चुकल छी। जाउ! व्यर्थ हमर समय नष्ट नहि करू।’’ कहि हम आगू बढ़ि गेलहुँ।
ओ लपकि केँ हमर दूनू पैर पकड़ि लेलक।
‘‘डाक्टर बाबू! हमरा क्षमा करू। हमर बहिनि मृत्यु शय्यापर पड़ल छथि। आ हुनक इच्छा छन्हि, आखरी इच्छा जे अहीं हुनका देखिअन्हि। डाक्टर बाबू अहाँकेँ एक्के बेर, मुदा जाए पड़त। हमरापर दया करू डाक्टर बाबू! हमहूँ मैथिले छी।’’
ओ हकन्न कऽ केँ कानय लागल। हम भारी दुविधामे पड़ि गेलहुँ।
ओकर रुदन सुनि केँ हमर गृहिणी आबि गेलीह।
‘‘एतेक कहैत अछि तँ चल ने जाउ।’’ पत्नीक स्वर सेहो गह्वरित छलैन्ह।
हम – ‘‘मुदा राय बहादुरक बेटा जे दुखित छथिन्ह?’’
‘‘हुनका कतय जाएब शतरंज खेलाइ लेल, आर एकरा ओतय यथार्थमे दुःखित छैक।’’
‘‘एकर माने की?’’ हमर जरल हृदयपर नोनक वर्षा हुअऽ लागल।
‘‘माने किछु नहि। अहाँ अपने कहलहुँ अछि हुनका किछु होइ-तोइ नहि छन्हि। फुसिए पेट-दर्दक बहाना कऽ केँ कालेज नहि जाइ छथि आ शतरंज खेलाइ छथि।’’
हम दाँत किटकिटबैत बजलहुँ, ‘‘अहाँ भितरी जायब की नहि?’’
‘‘हम चलि जायब, मुदा अहाँ पहिने ई गरीबकेँ देखि अबिअउ।’’ हुनकर स्वरमे याचना रहन्हि।
‘‘बऽड़नी! कहिओ जँ हमरा कहलहुँ अछि जे हमरा साड़ी चाही, ब्लाउज चाही, सिनेमा जा…।’’ बजैत-बजैत हम चुप्प भऽ गेलहुँ। रामाक आँखिसँ झर-झर नोर बहैत रहनि।
‘‘अहाँ कनैत कियैक छी?’’ ओ तइओ कनैत रहली। हम सभ किछु सहि सकै छी, मुदा पत्नीक कानब नहि। हम विचलित भऽ गेलहुँ।
‘‘अहाँ चाहै छी जे हम पहिने एकरे ओतय जाइ?’’
किछु उत्तर नहि। हमर पाथर मोन मोम जकाँ पघिल गेल। हुनक आँखि पोछैत बजलहुँ, ‘‘रामा, अहाँकेँ हमरे शपथ। कानूऽ जुनि। हम जाइ छी, एकरा संगे।’’
आर रामाक मुखारबिन्दुपर प्रसन्नताक आभास नुका-चोरी करय लगलन्हि। हम कृतकृत्य भऽ गेलहुँ।
रोगिणीक अवस्था सत्ते शोचनीय रहैक। हमरा देखितहिं बाजलि, ‘‘आबि गेलौं अहाँ? हमरा विश्वास छल जे अहाँ अवश्य आयब।’’
हम गम्भीर भावसँ ओकर पूर्णतया निरीक्षण करैमे संलग्न भऽ गेलौं। ओ बाइक जोरपर बड़बड़ा रहल छलि, ‘‘हम अहाँक नाम हँसाइ नहि देखि सकितहुँ तेँ गंगाकातमे नुआ राखि विदा भऽ गेलौं। सब बुझलक जे हम डूबि गेलौं। मुदा, एतेक साहस हमरामे नहि छल। हम एतय राय बहादुरक माइक ओतय नौकरी कऽ केँ भोलाकेँ एखन तक पोसि सकलिअइक अछि। मुदा, आब एकरा के देखतैक? ओहि दिन राय बहादुरक ओतय अहाँक दर्शन भेल। हम तँ लगले चिन्हि गेलौं। आब अहाँ भोलाकेँ देखबैक!’’
‘‘मुदा भोला….?’’
भोला, जे हमरा अनने रहय, ओत्तहि सिरमा लग ठाढ़ छल। ओकरा दिस ताकि रोगिणी फेर बाजलि, ‘‘भोला! भोला तों बाहर जा, आ केबाड़ बन्द कऽ दहक।’’ आर भोला चुपचाप चल गेल। ओ तखनहु कानि रहल छली।
हम अपन सिरिंजमे औषध भरैत छलहुँ। मुदा, एहिसँ लाभक कोनो सम्भावना नहि छल, तैओ अन्तिम चेष्टा।
‘‘मुदा भोलाकेँ नहि जानल छलैक जे ओ हमरालोकनिक सन्तान थिक।’’
‘‘की?’’ हम अपन हाथसँ खसैत सिरिंजकेँ सम्हारलहुँ।
‘‘नहि, तखन ओ हमरासँ घृणा करिते। हमरा खातिर ओकरा नहि कहबै जे ओकर ‘माए-बाप’ हम-अहाँ छियैक।’’
‘‘दाइ! अहाँ की बजै छी?’’ पहिले बेर हम मुह खोललहुँ।
‘‘हम?’’ ओ आश्चर्यसँ हमरा दिस तकैत बजली।
 ‘‘हम की बजै छी? अहाँ हमरा चिन्हलौं नै? मुदा अहाँ तँ कहने रही जे अहाँ हमरा बिसरि नहि सकै छी?’’
‘‘होशमे नै छथि?’’ हम अपनेमे बड़बड़ेलौं, मुदा ओ सुनि गेली।
अपन समस्त शक्ति लगा केँ बजलीह, ‘‘हऽमरे….ए…नू….ओझा ओतय अहाँक मामा…।’’
मुदा ओकर बोली लागय लगलैक। ओ निःचेष्ट भऽ आँखि मुनि लेलक।
हमर आँखिक आगाँ अन्धकार भए गेल। क्रमशः ओ अन्धकार दूर भऽ गेल आ ओहिमेसँ प्रकट भेल मामाक मकान। हम मेडिकल काॅलेजमे पढ़ैत रही। ओहि समयमे मामाक ओतय केओ आन रहैत छल। के? एक मूर्ति फेर प्रकट भेल। विधवा तरुणीक। गौर वर्ण, कोसासँ चीरल आँखि, गोल नाक आर पातर गुलाबी ठोर। सब मिला केँ एक अद्भुत आकर्षण शक्ति रहै ओइमे जे हमरा अनायासे घींचि लेलक अपनामे।
रोगिणीक मुह देखलियै – श्याम, रेनूक रंगसँ कोनो समानता नहि रहै। गाल पचकि केँ एक दोसरामे सटबा-सटबापर। आँखि एक आङुर तऽर दिस, ओकर नीचामे कारी दाग। अः नहि, रेनूसँ कोनो समानता नहि छलैक। रोगिणी अपन आँखि खोललक। हँ! वैह चिर परिचित ताकब। वैह थिकीह, वैह, कोनो सन्देह नहि।
‘रेनू?’’ हमरा मुहसँ बहरायल।
‘‘अहाँ हमरा चिन्हलौं?’’
ओकर अधरपर एक क्षीण मुस्कान दौड़ि गेलै। वैह चिर परिचत मुस्कान जे हमरा संसारसँ पृथक कऽ केँ अपनामे समेटि लैत रहै। मुदा, आइ अपन मुस्कानक भार ओ स्वयं नहि सहि सकलि। ओकर ठोर बिचकि गेलै। ओ अपन आँखि बन्द कऽ लेलक, सब दिनक लेल…..।

जय माँ भारती, जय जय माँ भारती- 2,

सब मिलि आऊ नेना भुटका,
सब मिली गाऊ शान सँ ।
भारत अप्पन विश्व विजयी अछि,
शीश नमाऊ मान सँ ।।
जय माँ भारती, जय जय माँ भारती,-2

कण कण में अछि रचल मधुरता,
वाणी बाजी मीठ सँ।
आऊ सब मिली हाथ मिला क,
डेग बढ़ाबी नीक सँ।।
जय माँ भारती, जय जय माँ भारती,-2

बात स्वदेशी करी सदा हम,
टरकाबी विदेश कें।
लोकल के वोकल हम बनाबी,
चमकाबी निज देश कें।।
जय माँ भारती, जय जय माँ भारती, -2

दाँत करी दुश्मन कें खट्टा,
सीमा सँ भगाबी ठेल क’।
पौरूष अप्पन हम देखाबी,
स्वाभिमान निज तेज सँ।।
जय माँ भारती, जय जय माँ भारती,-2

हमरा एखनहुँ मोन अछि

इसकूलक समय के

छब्बीस जनवरीक ओ परेड

जाहिमे कागतक बनल तिरंगा हाथमे ल’

भारत माता की जय

सुभाषचन्द्र बोस अमर रहे के नारा लगबति

गामक चौहद्दी नपैत छलहुँ

भगतसिंह और चंद्रशेखर आजाद पर

दस आखर बजैत छलहुँ

गर्व सँ सीना ऊंच केने

इंकलाब ज़िंदाबाद के जयघोष करैत छलहुँ

इन्दिरा गान्धी और सरोजिनी नायडू के नाम रटैत छलहुँ

 

आजादीक स्वर्णिम वर्षगांठ भ’ गेल छल तहिया

मुदा गाममे उच्च विद्यालय नहि

छिछिया बौआय क’ धी- बेटी कतेक पढ़ैत

सभ थोड़बे इन्दिरा गान्धी बनि जायत

नहि!

मुदा किछु ने किछु अवश्य बनैत

 

आजादीक जश्नमे डूमल अहि देश मे

कहां किनको फुरसति रहनि अहि दिस तकबाक

 

जाहि भारत के भविष्य सभ लेल

ओतेक संघर्ष सँ

आजादी हासिल कएल गेल

एतेक दशक बितलाक बादहु

कतेक भविष्य सभ

सड़क पर बिलटति

नोरे बिलखति

 

अहि देशक बेटी सभ

समुद्रक गहराइ सँ ल’ क’

अन्तरिक्ष केर ऊंचाइ तक गेल

राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री के संग

हरेक उच्च पदपर आसीन भेल

 

इ त’ भ’ गेल अहि देशक बेटी केर क्षमता

आजाद भारत के बेटीक

मुदा अहि क्षमता के बाधक बनल रहल

गुलाम सोचक कायरता

जे अहि देशमे हरेक वर्ष

लाखों के संख्यामे

बेटी सभक नाम परिवर्तित क’

निर्भया राखि दैत अछि

 

देश स्वतंत्र अछि

अभिव्यक्तिक आजादी अछि

मुदा कि अहि आजादीक लेल

लाखो माय अपन कोखि उजाड़ि लेलनि

हजारों विधवा अपन माथक सेनूर पोछि लेलीह

 

जाहि देशमे अनकर द्वारा कएल गेल अपमान

लोक नहि सहलक

ओतय अपनहि लोक सँ कएल अपमान

कोना सहि रहल अछि

इ उनटा गंगा

कोना बहि रहल अछि

 

आवश्यक अछि धैर्यक बान्ह के ढ़हब

 

लोक उठत

एक बेर और लड़त

अहि देशक बेटा नहि

केवल बेटी लड़त

अनका सँ नहि

केवल अपनहि सँ लड़त

जीतत

आ तहन होयत सम्पूर्ण विजय

पूर्ण आजादी

 

तहन अहि देशक बच्चा- बच्चा के सिखब’ नहि पड़त राष्ट्रगीत

ओकर शोणितक हर धारमे बहत

अपना देश लेल प्रीत

 

खिड़कीक पट्टा धेने
भरफोड़ीक सारी पहिरने
आंखिपर मुस्की दैत
ठोढ़ पर नोर समेटने
ब’र के विदा करैत छलीह नवकनियाँ

आठे दिन पहिने त’ हाथ धेने रहथि
कहने रहथि कोहबरेमे
सिपाहीक कनियाँ भेलहुँ अहाँ
किछु वचन दीय’

हम दुश्मनसँ लड़ब
त’ अहाँ ओकर प्रभावसँ
हम समयसँ लड़ब
अहाँ ओकर बहावसँ
वचन दीय’
कि अहि आंखिमे नोर नहि लायब
जहिखन हम सीमान पर जूझब
अहाँ हमर शक्ति बनि जायब

हमर-अहाँक बस मोनक मेल
शरीर त’ सीमा के अर्पण अइ
प्रेम कही या कही समर्पण
ओतहि हमर जीवन-मरण अइ।

प्रत्येक वर्ष अपना संग किछु सम-विषम सनेश आनैत अछि आ जाइत-जाइत हमरा सभ लेल आत्ममंथनक अवसर छोड़ि जाइत अछि। तहिना आइ वर्ष 2020 आ 2021 केर ई संक्रमण बेला हमरा सभकें बीतल बरख केर पाओल-गमाओल पर मंथन करबाक अवसर द रहल अछि। एहि वर्षमे की सभ उपलब्धि भेल,ताहिपर गर्व करबाक अछि,जे किछु अप्राप्त रहल तकरा प्राप्त करबा लेल योजना बनयबाक अछि।

तैं ,आइ एहि लेखक माध्यमसॅं हम मिथिलाक सीमित भौगोलिक परिधिमे, ताहूमे ओकर आधा आबादी यानी मैथिल ललनाक स्थिति आ उपलब्धि पर गप करब-कोनाक’ ओ सभ एहन निराशाजनक परिस्थितिमे, अनिश्चित शारीरिक, सामाजिक, आर्थिक परिस्थितिक संग संतुलन बनौलनि, कोना घरमे सकारात्मकताक बसात बहैबामे  एक सीमाधरि सफल रहलीह?

कोनो सभ्यता आ सांस्कृतिक धरोहरकेॅं आगू ल’ जयबामे स्त्रिगण सदति प्रत्यक्षतः वा परोक्षत: महत्वपूर्ण भूमिका निभबैत रहलीह अछि।२०२१ मे जॅं साहित्यक समृद्धिक दृष्टि सॅं  विचार कएल जाय त’ ई मिथिलाक महिला लेखिकाक लेल  अभूतपूर्व उपलब्धिक बर्ख रहल अछि। जे स्त्रिगण अपन भावनाकेॅं डायरीक पन्नामे अभिव्यक्त कए स्वयंकेॅं कृतकृत्य मानैत छलीह, हुनका सभमेसॅं बहुतो गोटेकेॅं अपन रचना प्रकाशित करयबाक इच्छा मात्र जागृतेटा नहिॅं भेलनि अपितु व्यवहारमे सेहो प्रतिफलित भेलनि।

एहि बाट पर मात्र युवा लेखिका नहिॅं, अपितु हमरा सभ सन प्रौढ़ महिला लोकनि सेहो मजगूत डेग बढ़ौलनि। अवश्य गद्यक तुलनामे कविता, गीत आदिक रचना-संग्रह बेशी छपल, तथापि जे छपल ओ महिलाक रचनाधर्मिताक गवाही दैत रहल। जे रचनाकर्त्री सभ अपन- अपन मातृभाषामे पोथी ल’क’ उपस्थित भेलीह आ अपन सार्थक तथा सशक्त उपस्थिति देखौलनि,ताहिमे छथि-

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डॉ.  निक्की प्रियदर्शिनी – मैथिली अनुवाद: सिद्धांत ओ विवेचन (अकादमिक) 

संगहि अनेक मिथिलानी लोकनि हिन्दी वा आन भाषामे सेहो अपन कृतिसं अपन नांव जगजियार केलनि। किछु मुख्य कृति जे एहि लेखिकाक दृष्टिमे आओल, से छैक:

श्रीमती  बिभा कुमारी- एक समूह ऐसा भी (काव्य- संग्रह)
श्रीमती समता मिश्रा- मन का विहग आ अल्फाजों की जुर्रत (दुनु काव्य संग्रह)
श्रीमती खुशबू मिश्रा – सत्य की अस्मिता (काव्य संग्रह)
श्रीमती नेहा झा मणि- झंकृत एहसास (काव्य-संग्रह)
श्रीमती रीना चौधरी (काव्य संग्रह) 
अनुवाद साहित्य 
श्रीमती विभा रानी- शकुन सैमुराई (उषा किरण खां केर मैथिली कथा सबहक हिन्दी अनुवाद)
श्रीमती कल्पना झा –  यायावरी (डॉ. शेफालिका वर्मा केर मैथिली यात्रा संस्मरणक हिन्दी अनुवाद)  

 एकर अतिरिक्त जॅं वैयक्तिक रूप सॅं कोनो मैथिल स्त्रीक उपलब्धिक गप करी त’ श्रीमती आभा झाक नाम लेब जरूरी बुझना जाइछ।ओ अपन समृद्ध कवित्व तथा मोहक प्रस्तुतीकरण-शैलीक दम पर मिथिला आ मिथिलेतर क्षेत्रोमे होमय बला कवि-सम्मेलनमे आदरक संग स्थान पबैत रहलीह अछि आ लोकक प्रशंसा पबैत रहलीह अछि।

 जॅं कोनो साहित्यकारक उपलब्धि ओकरा देल गेल पारितोषिकसॅं नापल जाय,त’ ओहूमे चयनकर्ताक मानस- परिवर्तनक झांकी देखबामे आयल अछि। चेतना समिति, पटना द्वारा एहि बरखक ज्योत्स्ना- पुरस्कार विजेता चौधरीजीकेॅं आ माहेश्वरी सिंह महेश पुरस्कार युवा लेखिका सुश्री संस्कृति मिश्रकेॅं भेटब एकटा सुखद संकेत अछि आ न’ब लेखिका लेल प्रेरणास्पद सेहो। चेतना समिति द्वारा एहि बरख साहित्य अकादमी आवार्डी लेखिका डॉ.  शेफालिका वर्मा आ प्रसिद्ध गायिका डॉ. रंजना झा कें ताम्रपत्रसं सम्मानित सेहो कएल गेल।   

मिथिला पेंटिंग लेल श्रीमती दुलारी देवीकेॅं देल गेल पद्म पुरस्कार आ हिन्दी भाषा लेल साहित्य अकादमी पुरस्कार श्रीमती अनामिकाकेॅं भेटब संपूर्ण मिथिला लेल गौरवक विषय थिक। एहि साल शिक्षाक क्षेत्रमे रांटी  (मधुबनी) केर शिक्षिका श्रीमती चन्दना दत्तकेॅं राष्ट्रपति सम्मान भेटलनि। चित्रकार नूतन बाला सेहो बिहार सरकार द्वारा राज्य स्तरीय कला पुरस्कार सं सम्मानित भेलीह।  

मीडियाक क्षेत्रमे सुश्री स्नेहा झाकेॅं देल गेल शेखर-सम्मान निस्संदेह मीलक पाथर सिद्ध होयत। मैथिली मीडियामे काज कर’ बला लोक सेहो प्रसिद्धि आ पुरस्कार पाबि सकैत अछि ई विश्वास भेने आन- आन बालिका सभ एहि दिसि अपन उपस्थिति देखैबा लेल प्रेरित होइतीह। युवा गायिका सुश्री मैथिली ठाकुरकेॅं २०२१के लोकमत सुर ज्योत्स्ना पुरस्कार भेटब सेहो एकटा अभूतपूर्व उपलब्धि रहल।

 एकटा विलक्षण  उपलब्धि पर अवश्य दृष्टिपात कर’ चाहब जे अपन अवधारणा, योजना- निर्माण,सफल कार्यान्वयन सॅं अत्यधिक चर्चित भेल। हम गप क रहल छी 12 दिसंबरसॅं 15 दिसंबर धरि चल’  बला चतुर्दिवसीय मधुबनी लिटरेचर फेस्टिवल केर, जे मिथिलाक हृदय- प्रदेश दरभंगामे आयोजित भेल। एहिमे मात्र देशभरिक मैथिल विद्वान्, कवि, गायक, कलाकार, चित्रकार, अभिनेता नहिॅं अपितु विदेशक लोक सेहो उपस्थित भेलाह आ एहितरहेॅं  मिथिला आ मैथिलीक गौरव- गाथाकेॅं विस्तृत  करबामे ई फेस्टिवल सक्षम भेल।

श्रीलंकाक राजदूत सपत्नीक, काडमांडू सँ आयल विश्वप्रसिद्ध भाषाशास्त्री रामावतार यादव , महान रंगकर्मी रामगोपाल बजाज, महान् लेखिका उषाकिरण खान, ‘वैदेही’ विषय पर विश्व भरिक 122 पेंटिंग कें एकठाम आर्टगैलरी रूप मे सजौनिहार मनीषा झा, सुप्रसिद्ध रंगकर्मी कनुप्रिया शंकर पंडित, सहित सुप्रसिद्ध नृत्यांगना वीणा सी शेषाद्रि (बैंगलोर), राग सुधा (लंदन), एस सुमन (नेपाल).लोकगीत मर्मज्ञा रंजू मिश्र, असमीभाषी मैथिली विदुषी दीपामणि हलई महंत, सोपर आइआइटी सँ लिंग्युस्टिक पर काज क’ रहलि देवांशी, अतिरिक्त एकर देश-विदेश सभ सँ आयल अनेक विद्वज्जन एहि फेस्टिवलकेॅं ग्लोबल रूप देबामे सफल भेलाह।

मिथिलाक चित्रकला, अभिनय, गीत- संगीत, कविता, गीत- नृत्य आदिक प्राचीन परंपराक गौरवमय प्रदर्शनक संग आधुनिक कैटवॉक तक एहि फेस्टिवलक विशिष्टता छल।  एकर परिकल्पना,संयोजन, आ व्यवहार- भूमिमे अननिहारि छथि श्रीमती सविता झा खान जे चारिम बेर एतेक पैघ आयोजन सफलतापूर्वक संपन्न  कय  स्त्रीक असीम शक्तिक उद्घोषणा मुंहसॅं नहिॅं अपितु काजसॅं करैत छथि।

 संपादनक क्षेत्रमे श्रीमती दीपा मिश्रा मजगूतीसॅं पाएर रखलनि आ “वाची“नामसॅं त्रैमासिक पत्रिका निकाललनि जकर स्तर, विविधता आ आकर्षक साज- सज्जा लोकप्रियताक प्रतिमान बना रहल अछि। एकर सफलतासॅं उत्साहित ओ स्वतंत्ररूपेॅं हिन्दी आ मैथिलीमे लेखनक संग हिंदीमे एकटा साझा- संग्रह “दोस्तियां, यारियां मनमर्जियां” बहार कएलनि। अगिला महिला- दिवस पर प्राय: 165 महिला- लेखिकाक रचनासॅं सज्जित काव्य- संग्रह “मैथिली” अनबालेल उद्यमरत छथि।

मैथिली-भाषा एवं संस्कृतिक प्रसार लेल “सखी बहिनपा मैथिलानी समूह“क नाम सेहो लेल जा सकैछ जे अपन फराक शैली में काज करैत अछि, किन्तु स्त्री-सशक्तीकरणक दिशामे महत्वपूर्ण पहिचान बनौलक अछि।देश- विदेश मे रहैत लोक एहि समूहक अंतर्गत एकटा मालामे बन्हायल छथि आ अपन -अपन स्तर पर परंपरा- संरक्षणक संग मैथिल स्त्रीकेॅं जागरूक,सबल आ आत्मनिर्भर बनयबाक दिशामे आगू बढ़ि रहल छथि।

तेरह नवंबर क’ वर्चुअल माध्यमसॅं भेल इंटरनेशनल वीमेंस समिट सेहो उल्लेखनीय अछि जाहिमे विभिन्न क्षेत्रमे उल्लेखनीय काज कैनिहारि प्रायः चारिसै महिला एक प्लेटफार्म पर उपस्थित भए मिथिला- क्षेत्रक उन्नति लेल विमर्श कएलनि। एकर अतिरिक्त अनेक धी-बेटी शैक्षणिक एवं आजीविकाक क्षेत्रमे विशिष्ट उपलब्धि प्राप्त कएलनि अछि जे गौरवक विषय थिक।

एहि तरहेॅं कहल जा सकैछ जे २०२१ सृजनात्मकता, प्रसिद्धि आ पुरस्कारक  दृष्टिएं मैथिल-स्त्री लेल गौरवशाली रहल अछि।ई सृजनशीलता अनवरत बनल रहौ,एहि कामनाक संग एहि वर्षकेॅं विदा करबाक उपक्रम कएल जाए आ नववर्षक स्वागतक मनोभूमि बनाओल जाय।

नोट– उपरोक्त उल्लेख सभ वर्तमान परिदृश्य मे मिथिलानी लोकनिक कीर्तिक सांकेतिक प्रतिबिंब मात्र अछि। भए सकैछ जे कोनो रचना, लेखिका वा कोनो मिथिलानीक उपलब्धि एहि लेखिकाक नजरिसॅं छूटि गेल हो अथवा नहिॅं बूझल होए, तैं ओहि अनुपस्थिति कें अन्यथा नहि लेल जाए।  

आर्यावर्तक मधुर माटि में वीरताक अंश मिश्रित अछि। आदिकाल सँ भारतवर्ष अपन ज्ञान, अपन वीरता आ कुशल प्रशासनिक नेतृत्वक बोध करबैत आयल अछि। पुरातनकाल सँ स्त्री- पुरूष दुनू मिल कय असुर संहार कय सृष्टिक भार उठौने छथि।
नारी दुर्गाक प्रतीक मानल जाईत छथि। स्त्रीक परिचय नहि मात्र अमृत युक्त आँचर छन्हि अपितु ओ खड्ग हस्ते छथि। ओ अपन प्रचंड डेग में शत्रुनाशक क्षमता राखय छथि। नारी के एहि क्षमता के देखैत भारत सरकार द्वारा आब “राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA)” में नारीक प्रवेशक द्वार खुजि रहल अछि।
 ‘कुश कालरा’ द्वारा एकटा याचिका दायर कयल गेल छल, जाहि में ‘यूपीएससी’ द्वारा आयोजित ‘राष्ट्रीय रक्षा अकादमी’ परीक्षा में “महिला” के बैसवाक अनुमति माँगल गेल छल, जे जस्टिस संजयकिशन कौल आ ह्रिषिकेश राय के खंड पीठ द्वारा पारित कयल गेल। अकादमी में प्रवेश न्यायालयक अंतिम आदेश के अधीन रहत।
रणभूमि में नारीक प्रवेश नव नहि अछि। राजा दशरथ युद्धक्षेत्र में अपन युद्धप्रवीणा रानी कैकेयी कें संग जाइत छलाह। रानी लक्ष्मीबाईक युद्ध कौशल सँ के नहि परिचित छी।  हुनकर नामहि सुन अंग्रेज़ी शासक थरथर काँपय छल। ओ वीरताक पर्याय बनि गेलीह। समयान्तराल के किछु कालखंड में नारीक युद्धकौशल किछु धुमिल भs गेल छल। आऊ सब धूल-गर्द झाड़ि कय पुन: अपन कौशल चमकाबी, अपन धिया कें वीरांगना बनाबी।
कतेक आह्लादक गप्प, नारी प्रत्येक क्षेत्र में अपन उपस्थिति दर्ज करा रहल छथि। हमरा अहाँ के गर्व अछि जे मिथिलानी  भावना कंठ फाइटर प्लेन में अपन आसन नीक जँका सुनिश्चित कयने छथि आ नव पीढीक आदर्श बनि हुनक मार्ग प्रशस्त कयने छथि।  आब रक्षाक आनों क्षेत्र में अपन धिया अपन परचम फहरेति। आऊ सभ मिथिलानी अपन धिया कें न सिर्फ कलाक क्षेत्र में, उच्च शिक्षाक क्षेत्र में अपितु युद्धक्षेत्र लय सेहो तैयार करी। हुनका युद्धकुशला सेहो बनाबी। नव योद्धा धिया केँ परिधिक अशेष शुभकामना छन्हि।
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