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Mahila Divas 2021

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अखिल भारतीय मिथिला संघ द्वारा 08 मार्च 2021 कें आयोजित मिथिलानी कवयित्री सम्मलेनमे प्रस्तुत कविता
धरफताइत बुरही,
हे यै इंद्रकुमैर, लाल सुन्नैर,
सोहाग सुन्नैर, कत् गेलौ,
सब के सब, कत् छी
बीरपुर वाली के, बेटी भेलै
बड्ड ख़ुशी के लहैर छै l
धुर जाथ, फुंसिये लहैर छै,
 ख़ुशी के लहैर की रहतै,
बुरही, इ नै बुझथिन l
यै बड़की काकी,
यै बहिन दाई,
सुनै छथिन, बुरही के बात l
यै सोहाग सुन्नैर,
सासु बात पर, नै जाऊ,
हम अपन आँखि सं, देखलौ
सत्ते कहै छी, झूठ नै,
भगवान गवाहि छैथ,
रातिये  सं, अमरनाथ
माथ पर हाथ धय,
परल छैथ, नै जनि
एक बांस धरती, धँसत,
कि ऊपर होयत,
ताबते, बिलखाइत
हँसैत, सूंदर सन पड़ी,
आँखि पर नचैत….
बाबा, हम आबि गेलौ….
बाबा आँखि खोलैत
धरती  धँसि गेल …….
समय के ई उठापटक!
सही में होईत अछि, बड्ड नटखट!!
बढ़ैत जाईया टिक-टिक-टिक!
आ कही रहल अछि, सीख-सीख-सीख!!
आँखि खोलि क, शीश झुकाऊ!
आ दिल सँ, ओकरा आभार जताऊ!!
ककरो सँ नै फेरु आँखि!
हरदम,कियो नै रहैत अछि शेर!!
कतौ दिन आ कतौ राईत!
तईयो, दिनक जीवन में अलगे बात!!
समय बड्ड होईत अछि, बलवान!
अपन कर्मक फल भेटत अछि, सब ठाम!!
हरदम करी नीक प्रयास!
भोलेनाथ के, सेहो होईन्ह आभास!!
सबहक लेल बनबैथ,कीछु खास!
सावन भादो,चाहे रहा कुनू मास!!
अखिल भारतीय मिथिला संघ द्वारा 08 मार्च 2021 कें आयोजित मिथिलानी कवयित्री सम्मलेनमे प्रस्तुत कविता 

अष्टभुजी छथि ओ,अशक्त नहि,ओ अग्रगामी

ओ छथि, एक्कैसम शताब्दिक सशक्त नारी|

एक हाथ में कलम ,दोसर दौड़ैत ‘की बोर्ड’ पर ,

तेसर में मोबाइल, भरल निर्भीकता चारिम कर

पंचम में करछुल,छठम भरल प्राणवायुक आत्मबल

सातम में सम्पूर्ण गृह ,आठम में क्रांतिक बिगुल

कोर में एक गोट नान्हि टा बच्चा आ नेने लैपटॉप

घर सं बाहर, बाहर सं घर तक, श्रम-संघर्ष रत,

भरल आत्मविश्वास सं,केना ओ अशक्त छथि,किएक ओ बेचारी?

ओ छथि एक्कैसम शताब्दिक सशक्त नारी|

क सकैत छथि अपन अस्तित्व स्थापित आब

मुक्तिक  हक़ -अधिकार हुनक छीनब व्यर्थ

बुझि पितृसत्ताक कुत्सित मन्त्रणा,बनाबथि नव बाट,

चलथि निरंतर, विश्राम कौखन नहि विजय अर्थ ,

तोड़ि रहल छथि समस्त रुढिक बज्जर कारा

साहसी,सफल ,सजग, सचेत ,सम्वेद्युक्त धारा

चालू, कामकाजी आ बुरबक घरेलू के सुनि विशेषण

छनि बुझल अहाँक षड्यंत्र ,नहि करती ओ छोट मोन

भरल संकल्प सं , कत्त ओ अशक्त छथि, किएक ओ हेती मूढ़ अनाड़ी?ओ छथि……

सुनू  आह्वान,बनू कठोर ,कोमलता नहि अभिशाप बनए

बढ़ाऊ डेग, उठाऊ माथ ,चलू शीघ्र कि रस्ता साफ़ बनए

अहाँक विचार ,अहाँक विरोध ,अहाँक जीवन अछि अहाँक अधिकार

लिय सप्पत ,डेराऊ नहि , सब विघ्न -बाधाक करू उचित प्रतिकार

उड़ू नहि उड़ान भरू,सम्पूर्ण पाषाणी के मधुर श्रोत ,निर्मल धार अहाँ

गार्गी,मैत्रेयी ,सीताक अहाँ वंशजा,कनेक नहि हिम्मत हारी|

स्वयं सम्पूर्ण मनुख अहाँ ,छी अहाँ एक्कैसम शताब्दिक तेजस्विनी नारी !

खिल भारतीय मिथिला संघ द्वारा 08 मार्च 2021 कें आयोजित मिथिलानी कवयित्री सम्मलेनमे प्रस्तुत कविता
उजरलि भनसा में,
सूतल चूल्हि लग,
एकसरि बैस ओ सोचि रहल अछि
ओहि दिन के घोसि रहल अछि
मायक  ढ़ब-ढब नोर भरल आंखि
बापक कातर जोड़ल  दुनू हाथ
पाहून, एकर भूल क्षमब
धिया क हम्मर मान करब;
मुदा, सासुर में धरिते पायर
उलहन,कलंक माय- बापक गायर
सुनि- सुनि ओ नि:स्तर रहि गेल
सभटा आस जनहित मरि गेल;
इ कि कैलउं, बिनू पूछने किए कैलौं
बाप देने अइछ,तेल एतबा किए  धैलौं
देखहिन  रौ बउआ अप्पन कनिया के चाल
नहिरा सं अनतौ किछ नै
तोरे करतौ  कंगाल,
एहन जनाना के मान नै कर
अश्रुक एकर ध्यान नै धर
तोरे खोर-खखोरि क खैतौ
छाति पर सबके मूंग उगैतौ;
बउआ उठल घुमौलक हाथ
स्त्रीत्व क तोड़लक पांख
अरमानक भ्रूण हत्या भ गेल
सुख उर्वरा बंध्या भ गेल
ओ सोचि रहल अछि
इ घटिया रीत
बनौलक के , किए नारी विपरीत
ब्याह जेना फांसी भ गेल
स्नेहक सुआद बासी भ गेल|
थाना में रपट लिखा त दी
मुदा दुनू कुलक इज्जत के की
भाय-बापक पाग उछालत लोक
गलती हमरे सभटा बतायत लोग
गाड़ी ,पइसा मांगलकै जे
मांगि अनिते नहिरा से
आदर्श क ढोंग किए तू रचलैं
शुक्र मनो कि जिंदा बचलैं;
गाइर बात आ मार पिटाई
चुप्पे सहि जो तखने  हैतो बड़ाई
हिंसा क लगा मोहर तन मन पर
सुरक्षित राखै अप्पन घर
भने तोरा लेल मसान रहे
सासुरक बांचल मान रहे
ह्रदय के टूटल शीशमहल पर
निभैने  जो तू अप्पन करतव;
काजरक पसरल कारी रेखा
क्षत-विक्षत ओहि देह भाखा
जीवनक मर्म आब सोच रहल अछि
ओहि दिन के कोस  रहल अछि
एकसरि बैस ओ सोचि रहल अछि||
अखिल भारतीय मिथिला संघ द्वारा 08 मार्च 2021 कें आयोजित मिथिलानी कवयित्री सम्मलेनमे प्रस्तुत कविता
बंध में, निर्बंध में
चाहे साइतो जन्मक संबंध में,
मीतक परिहास में
युद्धक त्रास में
भक्ति में होता वा सुक्ति में
भोग में वा तृप्ति में
हारि  गेल छै स्त्री
जी, सत्ते बड्ड दुर्बल छै स्त्री |
मायक आंचर सौं
बापक विरासत सौं
समाज के धियान सौं
पुरुषक सम्मान सौं
बुन्न बनि व्योम सौं
नीर जका नयन सौं
टघारल  गेल छै स्त्री  |
मूल्य के बजार बीच
शिकारी श्रृगाल बीच
स्वतंत्रता क खाइल में
कलंकि केर जाइल में
भूख में टोहि टोहि
चाम केरल सोहि सोहि
उघारल  छै स्त्री
 सत्ते बड्ड दुर्बल छै स्त्री |
प्रेम कहि तेजाब में
दहेजक अजाबि  में
पौरुष क मोइह  में
लालनक  लिलोह  में
नाकक बाइत में
निप्पट सुन्न रात में
जारल  गेल छै स्त्री
सत्ते बड्ड दुर्बल छै स्त्री |
मुदा आउ
पक्ष एकटा आर देखा दी
स्त्री बलक्  पाठ पढ़ा दी
अर्जुन आ कृष्णक हरण में
रावणक कुल संग मरण में
भीष्म के बाण-शैयाक शयन में
निस्तब्ध निछोर गगन में
अनुसूईया के सतीत्व में
सृष्टि के अस्तित्व में
समायल छै स्त्री  |
कौरवक विनाश में
पांचाली के चीरहरण क त्रास में
रजिया के कटार में
लक्ष्मी बाई के हुंकार में
जौहरक विश्वास में
पन्ना-पन्ना इतिहास में
व्याप्त भेल छै स्त्री  |
लव-कुश के राम सम्मुख
युद्ध के ललकार में
दुःशासन के छाती फाड़ैत
भीमक फुंफकार में
पापी पर प्रहार में
चंड-मुंड संहार में
बेकल छै स्त्री
कि अहां  अखनो  मानैछि
सत्ते बड्ड दुर्बल छै स्त्री  ||
अखिल भारतीय मिथिला संघ द्वारा 08 मार्च 2021 कें आयोजित मिथिलानी कवयित्री सम्मलेनमे प्रस्तुत कविता 
हम नारी छी ,अबला नहिं
सृजन के संवाहक छी
माधुर्यक वाहक छी
हम नारी छी ,अबला नहि ।।
हमरे सऽ अछि संस्कृति जीवित
संस्कारक मर्यादा परिचालित
परिवारक सुख सदिखन काम्य हमर
 हम नारी छी , अबला नहि   ।।
स्नेहक हम परिभाषा अमित
ममत्वक निर्झरिणी सचित्र
शक्ति केर अजस्त्र स्त्रोत हम
हम नारी छी ,अबला नहिं ।।
सब युग अछि लैत परीक्षा हमर
सब के सहि,सबमे तपि
हम कुंदन बनि आयल‌  छी
हम नारी छी ,अबला नहि।।
विविध विघ्न बाधा के हम जीतल
वर्जनाक कतेको दुर्ग हम भेदल
नहिं किछुओ सहज प्राप्य हमर
हम नारी छी ,अबला नहिं ।।
नेह सऽ निज नीड़ के निर्मित हम करै छी
सर्वस्व वारि कऽ संबंध हम जिवै छी
सबहक चिन्ता मेंअपनो के हम बिसरै छी
हम नारी छी ,अबला नहि ।।
कर्तव्यक भार सदिखन संग हमर
अधिकार बहुधा त्याज्ये हमर
संघर्ष पथ के हम पथिक अक्लान्त
हम नारी छी ,अबला नहिं ।।
निस्सीम आकाश अछि गन्तव्य हमर
किछु पौलहुं ,अछि शेष प्राप्ति अशेष
सम्मान ,सुरक्षा ,समानता औ विकास
हम नारी छी ,अबला नहिं ।।
अखिल भारतीय मिथिला संघ द्वारा 08 मार्च 2021 कें आयोजित मिथिलानी कवयित्री सम्मलेनमे प्रस्तुत कविता 
मोन होइछ,विचरितहु नभ में ,पबितहुं अनंत सीमा
निरखितहुं  प्रक्रृतिक सौंदर्य अबाध
सुनितहुं मधुर कलरव ,सरिताक अव्यक्त छन्द
पढितहुं मोनक पोथी निर्द्वन्द  ।
मोन होइछ, स्वत्व ,स्नेहक करी निवेश
सहज  भेटय निज प्राप्य
नहि सदिखन कर्तव्यक भार हमर
कौखन भेटय अधिकारो के आनन्द।
मोन होइछ निर्द्वन्द्व रहितहुं
साजितहुं कल्पनाक मोहक डाला
सुखद स्वप्नक दूभि धान रखितहुं
आत्मविश्वास ,सफलताक पान मखान ।
मोन होइछ धरित्रीक सौन्दर्य देखितहुं
सुनितहुं विहगक मधुर कलरव
सागरक उद्दाम वीचि नर्तन
सरिताक शान्त गतिमय छन्द ।
मोन होइछ नहिं रहैत कोनो तनाव
कोनो ओझराव
सहज समतल चलय ई जीवन
रहय मुदित सदिखन मन उपवन
मोन होइछ लिखितहुं संघर्षक हम उपसंहार
करितहुं उल्लासक कानन में हमहूं विहार
स्वप्न जीबितहुं,बांचितहुं सुखक उदगार
करितहुं नयन उन्मीलित पथ विस्तार ।।
मोन होइछ,नहि  रहय कत्तहु विभेद
स्नेहक सरिता बहय अमन्द
नहि शिशु कोनो सूतय भूखल
भेटय सहज शिक्षा केर अधिकार।
मोन होइछ,होमय शासन रामराज्य
किन्तु , मैथिली नहिं भोगथि ओ भाग्य
नहिं, अग्निपरीक्षा केर अपमान
सहज सुरक्षित होमय स्त्री केर सम्मान ।।
अखिल भारतीय मिथिला संघ द्वारा 08 मार्च 2021 कें आयोजित मिथिलानी कवयित्री सम्मलेनमे प्रस्तुत कविता 
परल खाट पर
असहाय अवस्थामे
सोचक सुइया
 घुमि रहल।
जेकरा लेल
तोड़लक पहाड़
हाथसँ बहै
सोनितक फ़बार
आंखिक कोर सँ
नोरक धार
सकुन चैनसँ
जीबैकेँ ललक …
जांँत चलै पहरक ,पहर
ठेल्ला परल भरि हाथ
तक्कर कोनों नहि धियान
हरदमे अक्चकायल
माएक परान
कखन  दुरि
कऽ आओत
आंँगनमे पसरल ,
अन्नक पथार
अचारक बुयाम…
भन्सा घर दिस ,
आंँटाकेँ बोड़ीमे
ढ़ारत पानिक
भरल डोल।
लोहछि कऽ
बजती पितामहि
हमरे लेल जनमेलौ ?
कोन अन्न तहिया खेलौं
टोलक नेना सभसँ
कऽ कऽ झगड़ा
लागल हाथमे रगड़ा
  घिसिया कऽ
जखन नेना खसल।
छोट छिन घा
जखन तु देखाबैं
की कहियो बउआ,
करेज हाथमे आबै
तोहर पसिनक
सभ दिन
नीक- निकुत बनाबि
कर्जा कऽ, कऽ
 पैच उधार लऽ कऽ
शहर पठाअोल…
 मनोरथक रोपल गाछ।
हाकिम बनि गाम
जखन आएत
देखि आत्मासँ
ई बहराएत
हमर मनोरथक गाछ
 फरए लागल!
चिन्ता-फिकरक
आब नहि कोनो बात
बितल सालक- साल,
 नहि आएल देखए
नहि लेलक ..
कोनो खोज-खबर
आब गनि रहल छी,
अपन अंतिम सांस
माएक आत्मा ,
एक झलक देखए लेल
 अपन सन्तानक मुुँह ,
ताहि लेल लटकल
अधरमे परान !!
आशीर्वादक हाथ
उठए लेल
एखनो बेहाल!!
कखन आओत
हमर लाल!!!
अखिल भारतीय मिथिला संघ द्वारा 08 मार्च 2021 कें आयोजित मिथिलानी कवयित्री सम्मलेनमे प्रस्तुत कविता 

राहरि छी हम

हम राहरि छी

मिथिला सँ हम नहिं बाहरि छी

हम राहरि छी

हम राहरि छी

 

जँ खेत में नहिंयों दी स्थान

तैय्यो रक्षाप्रहरी बनि हम

हत्ते पर ठाढ रहब अविचल

मद-मस्त पवन  पुरवैया में

झूमैत बरसाबैत छाहरि छी

हम राहरि छी

हम राहरि छी

 

अहाँ जत्न सँ जँ हमरा उलाएब

ओतबे सोन्हगर हम भेल जाएब

जँ देबय घी, टिकुला के संग

तखने टा अनुपम स्वाद पएब

 

रान्हय में जँ नहिं धीर ध’रब

तख्खैन त’ पेट डोला दै छी

हम राहरि छी

हम राहरि छी

 

जुनि बूझू राहरि के निदान

महिमा मिथिला में अछि महान

कने दीर्घ करु अहाँ अपन ज्ञान

पाहुन के राखी हमहीं मान

 

राहरि लय जँ रुसता जमाय

की मसुरि सँ लेबनि मनाय?

बाहरि नै, गुण सँ आगरि छी

हम राहरि छी

हम राहरि छी

 

हो चाउर कतरनी,तुलसीफूल

संग भ’ लगबै छी चारि चान(चाँद)

भोजन में रत्न जवाहरि छी

हम राहरि छी

हम राहरि छी

 

तय सीमा सँ जँ विमुख भेलहुँ

कने पाँज सँ हम बाहर भेलहुँ

“राहरि बाहरि” कहि क’ हमरा

फौदय में विघ्न अहाँ देलहुँ

 

जहने बनि क’ परिपक्व भेलहुँ

मोजर हम्मर अत्यंत केलहुँ

कोहा में जोगा जोगा धयलहुँ

हम सबलय बड्ड पियरगरि छी

हम राहरि छी

हम राहरि छी।

 

राहरि छी हम मिथिलाक शान

हमरा में ब’सल सभक प्राण

केओ हमरा सँ,हम किनको सँ

नहिं बाहरि छी

 

हम राहरि छी

हम राहरि छी

अखिल भारतीय मिथिला संघ द्वारा 08 मार्च 2021 कें आयोजित मिथिलानी कवयित्री सम्मलेनमे प्रस्तुत कविता 
अनन्त छी..आकाश
असीम छै… धरती
आ धरा सँ गगन धरि
अहाँक एकल साम्राज्य !
हमर की अछि ?
उत्तर भेटैछ…हम त अहिंक छी !
त’ सब किछु अहिंक भेल ने !!
सोना सन चमकैत
लोभबैत
मुदा टलहा सन
अर्थहीन… उत्तर !
आ अही निरर्थक जवाब में
अपन खुशी तकैत
अदौ सँ उत्सर्गित करैत रहलौ हमहू
अपन अस्तित्व…
तन ….मन …जीवन!!
पेलहु की ?
खाली मोन… अकासे सनक !
भारी मोन … धरतिए जेकाँ !!
मुदा ..आब नहि चौंहरायब हम
सोन चानी क चमक सँ
आ उत्सर्ग़ करब स्वयं के
फुसिक प्रलोभन पर!
आब हम
भरि लेब अपन मोन क पौती,
छिरियैल इच्छाक लाबा सँ..
हल्लुक क लेब अपन मोन..
उतारि क बेकाजक मान मर्यादा क गहना…
बना लेब एक टा एहन कोनटा…धरतिक बीचो बीच
जत सँ
एगो खिडकी खुजै…. आकास मे
जत सँ
गप्प क सकी उडैत चिडै संगे.. नहुएँ नहुएँ
जत सँ
झनझना दियै टिमटिमैत ताराक झालरि.. मधुर स्पर्श सँ
लीखि सकी अपन नाम….
चान क अखरा कागत पर…
कोनो गुप्त भाषा मे…छोटकी.कनगुरिया आँगुर सँ !
पीबि सकी शीतल बसात ….
परम संतुष्टिक
भरि छाक भरि मोन .. दूनू आँजुर सँ !
सार्थक क लेब अपन अस्तित्व
अपना बूते .. अपना लय !!
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