अखिल भारतीय मिथिला संघ द्वारा 08 मार्च 2021 कें आयोजित मिथिलानी कवयित्री सम्मलेनमे प्रस्तुत कविता
अष्टभुजी छथि ओ,अशक्त नहि,ओ अग्रगामी
ओ छथि, एक्कैसम शताब्दिक सशक्त नारी|
एक हाथ में कलम ,दोसर दौड़ैत ‘की बोर्ड’ पर ,
तेसर में मोबाइल, भरल निर्भीकता चारिम कर
पंचम में करछुल,छठम भरल प्राणवायुक आत्मबल
सातम में सम्पूर्ण गृह ,आठम में क्रांतिक बिगुल
कोर में एक गोट नान्हि टा बच्चा आ नेने लैपटॉप
घर सं बाहर, बाहर सं घर तक, श्रम-संघर्ष रत,
भरल आत्मविश्वास सं,केना ओ अशक्त छथि,किएक ओ बेचारी?
ओ छथि एक्कैसम शताब्दिक सशक्त नारी|
क सकैत छथि अपन अस्तित्व स्थापित आब
मुक्तिक हक़ -अधिकार हुनक छीनब व्यर्थ
बुझि पितृसत्ताक कुत्सित मन्त्रणा,बनाबथि नव बाट,
चलथि निरंतर, विश्राम कौखन नहि विजय अर्थ ,
तोड़ि रहल छथि समस्त रुढिक बज्जर कारा
साहसी,सफल ,सजग, सचेत ,सम्वेद्युक्त धारा
चालू, कामकाजी आ बुरबक घरेलू के सुनि विशेषण
छनि बुझल अहाँक षड्यंत्र ,नहि करती ओ छोट मोन
भरल संकल्प सं , कत्त ओ अशक्त छथि, किएक ओ हेती मूढ़ अनाड़ी?ओ छथि……
सुनू आह्वान,बनू कठोर ,कोमलता नहि अभिशाप बनए
बढ़ाऊ डेग, उठाऊ माथ ,चलू शीघ्र कि रस्ता साफ़ बनए
अहाँक विचार ,अहाँक विरोध ,अहाँक जीवन अछि अहाँक अधिकार
लिय सप्पत ,डेराऊ नहि , सब विघ्न -बाधाक करू उचित प्रतिकार
उड़ू नहि उड़ान भरू,सम्पूर्ण पाषाणी के मधुर श्रोत ,निर्मल धार अहाँ
गार्गी,मैत्रेयी ,सीताक अहाँ वंशजा,कनेक नहि हिम्मत हारी|
स्वयं सम्पूर्ण मनुख अहाँ ,छी अहाँ एक्कैसम शताब्दिक तेजस्विनी नारी !
अखिल भारतीय मिथिला संघ द्वारा 08 मार्च 2021 कें आयोजित मिथिलानी कवयित्री सम्मलेनमे प्रस्तुत कविता
अखिल भारतीय मिथिला संघ द्वारा 08 मार्च 2021 कें आयोजित मिथिलानी कवयित्री सम्मलेनमे प्रस्तुत कविता
अखिल भारतीय मिथिला संघ द्वारा 08 मार्च 2021 कें आयोजित मिथिलानी कवयित्री सम्मलेनमे प्रस्तुत कविता
अखिल भारतीय मिथिला संघ द्वारा 08 मार्च 2021 कें आयोजित मिथिलानी कवयित्री सम्मलेनमे प्रस्तुत कविता
अखिल भारतीय मिथिला संघ द्वारा 08 मार्च 2021 कें आयोजित मिथिलानी कवयित्री सम्मलेनमे प्रस्तुत कविता
अखिल भारतीय मिथिला संघ द्वारा 08 मार्च 2021 कें आयोजित मिथिलानी कवयित्री सम्मलेनमे प्रस्तुत कविता
राहरि छी हम
हम राहरि छी
मिथिला सँ हम नहिं बाहरि छी
हम राहरि छी
हम राहरि छी
जँ खेत में नहिंयों दी स्थान
तैय्यो रक्षाप्रहरी बनि हम
हत्ते पर ठाढ रहब अविचल
मद-मस्त पवन पुरवैया में
झूमैत बरसाबैत छाहरि छी
हम राहरि छी
हम राहरि छी
अहाँ जत्न सँ जँ हमरा उलाएब
ओतबे सोन्हगर हम भेल जाएब
जँ देबय घी, टिकुला के संग
तखने टा अनुपम स्वाद पएब
रान्हय में जँ नहिं धीर ध’रब
तख्खैन त’ पेट डोला दै छी
हम राहरि छी
हम राहरि छी
जुनि बूझू राहरि के निदान
महिमा मिथिला में अछि महान
कने दीर्घ करु अहाँ अपन ज्ञान
पाहुन के राखी हमहीं मान
राहरि लय जँ रुसता जमाय
की मसुरि सँ लेबनि मनाय?
बाहरि नै, गुण सँ आगरि छी
हम राहरि छी
हम राहरि छी
हो चाउर कतरनी,तुलसीफूल
संग भ’ लगबै छी चारि चान(चाँद)
भोजन में रत्न जवाहरि छी
हम राहरि छी
हम राहरि छी
तय सीमा सँ जँ विमुख भेलहुँ
कने पाँज सँ हम बाहर भेलहुँ
“राहरि बाहरि” कहि क’ हमरा
फौदय में विघ्न अहाँ देलहुँ
जहने बनि क’ परिपक्व भेलहुँ
मोजर हम्मर अत्यंत केलहुँ
कोहा में जोगा जोगा धयलहुँ
हम सबलय बड्ड पियरगरि छी
हम राहरि छी
हम राहरि छी।
राहरि छी हम मिथिलाक शान
हमरा में ब’सल सभक प्राण
केओ हमरा सँ,हम किनको सँ
नहिं बाहरि छी
हम राहरि छी
हम राहरि छी