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Dr Abha Jha

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मैथिली साहित्यमे स्त्री लेखिकाक विरल संख्या सेहो झमटगर गाछक रूप लेलक अछि, किन्तु कतोक चुनौतीसॅं स्त्री- लेखिकाकेॅं नित्य  सोझां-सोझी होइत छनि। ओ की पहिरथि जकाॅं ओ की लिखथि,एकर घमर्थन पितृसत्तात्मक समाजक ठेकेदारक बीच होइत रहल अछि।एहन स्थितिमे  स्त्रीक लेखन अस्मिताक संघर्षक चुनौतीक रूपमे ठाढ़ भ’ जाइछ।

समाजक संरचनामे पितृसत्ता सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक व्यवस्था , मूल्य ,मर्यादा, आदर्श तथा संस्कारक विभिन्न रूपमे बड़ मेही ढंगसॅं बुनल गेल अछि। एहि सुनियोजित शोषण-उत्पीड़नक विरुद्ध विश्व भरिक वैचारिक चिंतनमे नारीवादी विमर्शक नव आयाम बनाओल गेल अछि। पश्चिममे स्त्री विमर्श शुरू करबाक श्रेय “सीमोन द बोउवार” केॅं छनि जे ‘ द सेकेंड सेक्स’ लिखि कए समाज मे तहलका मचा देलनि तथा परंपरागत सामाजिक संरचनाकेॅं झिंझोरि देलनि।

भारतमे सेहो एहि आंदोलनक आंच  पजरल आ विभिन्न भाषामे  महिलाक अस्मिता- रक्षणक गप कहल-सुनल, लिखल-पढ़ल जाइत रहल, जाहिमे पुरुष- लेखकक सहभागिता सेहो रहल। महिला-लेखनक केंद्रमे स्त्री अस्मिताक संघर्ष, अदम्य जिजीविषा, स्त्री स्वातंत्र्य, यौन उत्पीड़नक प्रति विद्रोह तथा अपन पहिचानक प्रति जागरूकताक संग सामाजिक यथार्थक अवलोकन आ ओकर बेलाग अभिव्यक्ति अछि आओर ओ  समकालीन साहित्यमे सशक्त हस्तक्षेपक माद्दा रखैत अछि।

वर्तमानमे मैथिली भाषामे सेहो बहुत रास स्त्री लेखिका स्वतंत्रता, समानता , न्याय आदि मूलभूत अधिकारक लेल संघर्षरत एवं सक्रिय छथि। लेखनक माध्यमसॅं ओ समाजक संकीर्ण मानसिकताक ऐना देखबैत छथि, समाजसॅं प्रश्न करैत छथि, आत्मविश्वाससॅं अपन सुख-दुख, आक्रोश आ असहमति व्यक्त करैत छथि,स्त्रीवादक वैचारिक साहित्यमे सतत समृद्धि आनि रहल छथि।

आइ हम दीपा मिश्र जीक जाहि पुस्तकक पाठकीय प्रतिक्रिया लिखि रहल छी ओकर शीर्षके वैचारिक घमासान मचब’ लेल पर्याप्त अछि। ई नाम किऐक? झांपल- तोपल नामो देल जा सकैत छलै! कथ्यक संप्रेषण लेल की देह उघाड़ब आ ओकर संपुट करब उचित! ओना एहि प्रश्नक उत्तरमे प्रतिप्रश्न कएल जा सकैछ जे कैशोर्यमे होमए बला हार्मोनल परिवर्तन देहक संग- संग भावनात्मक परिवर्तनक कारण सेहो बनैत छैक,तखन ओहिसॅं उद्वेलित भए ओहि अनुभूतिक वर्णन अग्राह्य किऐक?

विभिन्न भाषाक साहित्यमे कामविह्वला स्त्रीक मनोभावक खुलल वर्णन भेल अछि, महाकविक उपाधिसॅं विभूषित महाकवि कालिदास त’ उमा-महेश्वरक समागमक बखान सेहो कएलनि अछि, तखन दिक्कत कत’ छै? दिक्कत छैक जे स्त्रीक गर्भमे पलि, ओकर रक्तमज्जा सॅं विनिर्मित शिशु जाहि बाटें धरती पर अबै अछि, वयस्क भेला उत्तर अपर स्त्रीक ओहि अंगविशेषमे अपन पुरुषत्वक सार्थकता पबितो ओकरा मात्र अपन संपत्ति मानैत रहल अछि। अस्तु,ई जटिल विषय अछि, अनेक अतंर्विरोधक परिधि मे ओझरायल अछि, तैं एकरा छाड़ि हमर एतबहि कहब अछि जे जहिना अपन संतानक नामकरणक  अधिकार माए-बापक होइछ, ओहिना अपन साहित्यिक कृतिक नामकरणक अधिकार साहित्यकारक। एहि अधिकार पर प्रश्न उठाएब सर्वथा अनुचित।

दीपाजीक चेतना मात्र भावनात्मक नहिॅं अपितु बौद्धिकताक मानदंड पर आधारित अछि आ ओ निरंतर यथार्थवादी दृष्टिकोण, गहनता आ आत्मविश्वासक संग लिखि रहल छथि। यद्यपि “योनिक आत्मबोध” शीर्षक कविता छाड़ि देल जाइ  त’ अन्यान्य विषय पर गोटेक टापर रचना पहिनहुॅं भेल अछि आ आबहु आन रचनाकार लिखि रहल छथि। किन्तु एक ठाम प्राय: स्त्री-संबद्ध दैहिक,मानसिक आ सामाजिक स्थितिक स्वाभाविक आ मुक्त अभिव्यक्ति लेल दीपाजीक साहस प्रशंसनीय अछि।

मासिकधर्मक आरंभसॅं रजोनिवृत्तिक क्रममे होमएबला शारीरिक-मानसिक परिवर्तन, यौवनक आरंभमे विपरीतलिङ्गीक प्रति सहज आकर्षण, स्त्री-पुरुषक मध्य सामाजिक भेद-भाव, पढ़ल-लिखल स्त्रीक शिक्षाक अनुपयोग आ तज्जन्य स्त्रीक पीड़ा, वैवाहिक बलात्कार आदि ओहि सभ विषय पर दीपा खुलिक’ कलम चलौलनि, जाहि पर लिखबासॅं स्त्री स्वयं बचैत रहैत अछि। हुनक रचना कोनो तरहेॅं पुरुष विरोधी रचना नहिॅं थिक, जकरा  एहि पोथीक परिप्रेक्ष्य मे देखबाक क्रममे किछु पांती उद्धृत कए रहल छी-

हमर युद्ध त’ हमरा स्वयंसॅं अछि
हम रोज लड़ै छी
कियैक त’ शब्द छोड़ि हमरा लग कोनो अस्त्र नहिॅं।
हमर युद्ध ओहि हमरासॅं
जे सभ किछु बुझितो
हमरासॅं बाहर नहिॅं निकलैये।

गहना- गुड़ियाक मोहक जालमे ओझरायलस्त्रीक स्थिति हुनका सीदित करैत छनि आ कवयित्री कहि उठैत छथि-

कतेको ओझरायल रहि गेलीह
एहि गहनाक बीच
आ सीपक मोती कहिया हेरा गेलनि
बुझबो नहिॅं केलैथ।

बहुत पहिने महादेवी वर्मा  स्त्रीकेॅं सावधान करैत कहने छलीह-

जाग तुझको दूर जाना
बांध लेंगे क्या तुझे ये मोम के बंधन सजीले
 पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले
विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन..

मानव-मात्रक सर्वोपरि इच्छा होइत छैक अपन इच्छाक, अपन स्वतंत्र अस्तित्वक,अपन आत्मसम्मानक रक्षा कएल जाए। किन्तु स्त्रीक एहि निजताक कहियो सम्मान नहिॅं भेटलै आ तैं ओकर अन्तर्मनमे धधड़ा धधकैत छै,जकर अभिव्यक्ति भेल अछि एहितरहेॅं-

जीवन व्यक्ति विशेषक अपन थिक
ओ कोनो नैहर सासुरसॅं नहिॅं
हमर गाम हम अपनहि चुनब
समाजसॅं बाध्य भ’ क’ नहिॅं।
भीतरक धधड़ा
ई आगि हमर थिक
ई भीतरक धधड़ा हमर
हम आब डाहब अपन सबटा
मान अपमान पीड़ा उलहन
निकलब तपैत सोन सन
हम जरब की बचब
ओकर उत्तरदायित्व हमर रहत।

कतोक बंधन,कतोक जकड़न स्त्रीकेॅं कोना रक्तरंजित करैत छैक, ओकर छटपटाहटि कवयित्रीकेॅं उद्वेलित करैत छनि आ ओ प्रतिकारक बाट देखबैत कहि उठैत छथि-

सोनाक हो वा लोहा के
चटपटाहटि त’ एके छल ने
परंपराक रूढ़िवादिताक
ओ दंभ जे बाध्य करैत अछि
ओ दंभ जे बाध्य करैत अछि
ओ हमरा मान्य नहिॅं
अपन सामर्थ्य अपने बुझब आब आवश्यक
नहिॅं कहब सेहो सीखब आब जरूरी।

एत’  मोन पड़त अहाॅंकेॅं शिवमंगल सिंह सुमन जीक कवितांश-

हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजर पिंजरबद्ध न गा पाएंगे
 कनक तीलियों से टकराकर
 पुलकित पंख टूट जाएंगे।

कजरी लागल परंपराक खंडनक ओकालति करैतो हुनक लेखन विध्वंसक नहिॅं अपितु योजक छनि,व्रत-उपासक संस्कृतिक पोषक छनि,गामक भाषा-संस्कृतिक अनुरागी छनि, प्राचीन परंपराक नीक तत्वक आधुनिकताक संग समन्वयक आग्रही छनि।ओ स्वयं कहैत छथि-

लेकिन हमर कहब
 जे नब घर उठय आ पुरान घर फेरो बसय
हमरा पुराने घरके नव करबाक अछि
ओकरे मजगूत नींव पर
 नव मिथिला बसेबाक अछि।

अंतमे एतबहि कहब जे एहि निर्भीक स्वरक स्वागत हयबाक चाही। अनुप्रास प्रकाशनसॅं छपल एहि पोथीमे 64 गोट सशक्त आ सार्थक कविता अछि,जे पढ़ल जयबाक चाही।

जाहि दिन स्त्रीकेॅं ओकर स्वयंकेर नामसॅं चीन्हब आ स्वीकारब सहज क्रम बनि जायत,ओकर परिचय लेल पिता, पति, पुत्र किंवा आन सम्बन्धीक उपसर्ग आवश्यक नहिॅं रहत, ताधरि ओकर herself प्रश्नांकित रहत आ ओ प्रत्यय जकाॅं संयुक्त होइतो, परिवार आओर समाजक अर्थवत्ताक विस्तारक हेतु होइतो संपूर्ण शब्द नहिॅं बनि, शब्दांश मात्र रहतीह।

लिली रे के प्रखर व्यक्तित्वक साक्षी आ प्रशंसक समग्र मिथिला अछि। किन्तु हुनकहु परिचयमे वरीय अधिकारी भीमनाथ मिश्रक पुत्री हयबाक आ प्रतिष्ठित परिवारक कुलवधू हयबाक उपसर्ग रहरहाॅं जोड़ल जाइत रहल। तथापि, लिली रे अपन व्यक्तित्वक आ कृतित्वक बलेॅं फराक परिचिति बनौलनि आ मनबौलनि ,ई हुनक विशिष्ट  उपलब्धि रहल।

आइ जाहि स्त्रीक सामाजिक-आर्थिक- राजनीतिक समानताक आवश्यकता राष्ट्रीय-अन्तर्राष्ट्रीय  स्तरपर स्वीकारल जाइत अछि,ओहि  लेल आवाज उठयबाक जरूरति आइयो अनुभव कएल जाइत अछि,ओहि स्वतंत्रताकेॅं सहजतया बाल्यकाल सॅं उपभोग करइत, यावज्जीवन अपना हिसाबेॅं   निर्बन्ध जीवन जिबैत आ अपन साहित्यहुमे ओहि स्वतंत्रताक ओकालति आक्रामक नहिॅं अपितु सहजरूपेॅं करैत लिली रे बहुआयामी व्यक्तित्वक स्वामिनी छलीह।

दिव्य गौर मुखमंडल, गरिमामय कान्ति, लक्ष्मी,सरस्वती आ शक्तिक(पद-प्रतिष्ठा) कृपासॅं आप्लावित लिली रे केर कुण्ठारहित जीवन ऊपरसॅं  जतेक समतल बुझाइत छनि, ओतेक समतल वस्तुत: रहलनि नहिॅं जे अपन लेखनक हेतु बतबैत अपन शोधच्छात्रा  शिष्या ममता कुमारीकेॅं लिखल सुदीर्घ पत्रसॅं स्पष्ट होइत अछि।आइ ओ अपन नश्वर काया तजि गोलोकवासिनी भेलीह, किन्तु हुनक यश:शरीर सदैव हमरा सभहक बीच रहत।

परिवर्तिनि संसारेSस्मिन् मृत: को वा न जायते
स जातो येन जातेन याति वंश: समुन्नतिम्।।

हुनक देहावसान पर श्रद्धांजलि-सुमन अर्पित करैत हुनक जीवन पर संक्षिप्त दृष्टिपात करब हमर ध्येय अछि-

लिली रेक जन्म 26.01.1933 क’  स्व. भीमनाथ मिश्रजीक पहिल सन्तानक रूपमे भेलनि। पिताक व्यक्तित्वक प्रखरता, विद्यानुरागक नैसर्गिकता ओ संस्कारक निर्मलता  हुनका परंपरासॅं भेटलनि। शिक्षा- दीक्षा मिशन स्कूलमे भेलनि जतए मानवमात्रक समानता तथा  मानवीय करुणाक भावना हुनक मन: प्राणकेॅं आप्लावित कएलकनि। संगहिं अङरेजी शिक्षासँ उत्पन्न पाश्चात्य जीवन-दर्शन  सेहो उद्भावित- अनुप्राणित कएलकनि। तैं ओ पुरातन-सनातन ओ आधुनिक-अत्याधुनिक दुहू पक्षक सामंजस्यक उदात्त बिन्दुकेँ अपन जीवनमे ग्रहण करबाक क्षमतासॅं संयुक्त छलीह।

हुनक कथनानुसार ओ अपन ‘जीवनक पहिल कथा ‘‘चण्डी’’ बारह वर्षक अवस्थामे लिखने रहथि,जे  प्रकाशित नहि भए सकलैन्हि।दरभंगाक ‘वैदेही’ नामक पत्रिकामे (1955 ई. मे) पहिल कथा ‘रोगिणी’ छपितहिं हिनक नाम चर्चित भए गेलैन्हि। सबकेँ बुझले छैक जे मैथिलीक ई प्रसिद्ध लेखिका अपन लेखनीसँ हिन्दीक सेवा सेहो निष्ठाक संग करैत रहलीहि अछि।

‘आत्महत्या’, ‘आठवर्ष’, ‘अपमान’ आदि शीर्षकसँ कतोक कथा ई हिन्दीक प्रसिद्ध पत्रिका ‘माया’ मे कल्पनाशरणक नामसँ प्रकाशित करओलनि। हिनक मैथिली कथा ‘रंगीन परदा’ अत्यधिक प्रसिद्धि प्राप्त कएलक। स्त्रीक अस्मिता आ ओहि संस्कारक तीव्र स्वर मुखरित भेल अछि ‘जिद’, ‘चन्द्रमुखी’, ‘माया’, ‘चक्र’, ‘अन्तराल’, ‘रानूदेवी राणा’, ‘अन्तः सलिला’ आदि कथा आओर ‘पटाक्षेप’, ‘मरीचिका’ एवं ‘अवैध’ (अप्रकाशित) नामक औपन्यासिक काव्यकृतिमे। विशाखन नामक प्रतिनिधि कथा, उपसंहार एवं बड्ड पुरान गप,लाली गुरांस,नीक लोक, आत्मकथा समयकेॅं धंङैत आदि हिनक रचना- संसार थिकनि।

लिली रेकेँ 1982 मे साहित्य अकादमीक पुरस्कार हिनक औपन्यासिक कृति ‘मरीचिका’केँ भेटलनि।वस्तुतः नारीमुक्ति-आन्दोलनक प्रतीक रूपमे एहि उपन्यासकेॅं देखल जा सकैछ। पहिल ‘प्रबोध सम्मान’ (2004) स’ सेहो सम्मानित भेल रहथि।

एतेक रचनाक उपहार संसारकेॅं देनिहारि आदरणीया श्रीमती लिली रेकेॅं हुनक  आधुनिक उन्मुक्त जीवन-शैलीक कारण एकटा मुक्त महिला (Liberated woman) मानल जाइत रहलनि,अल्ट्रामाॅडर्न महिलाक व्यंग्य ओ कटाक्षक अनवरत प्रहार कएल जाइत रहलनि । तथापि, “लीक छाड़ि  तीनू चलए शायर, शेर, सपूत”  केर ध्वनि सॅं अभिप्रेरित ओ चलैत रहलीह,अपन बहुआयामी व्यक्तित्वक सकारात्मक चिंतन तथा साहित्यिक कृतिक उपहार समाजकेॅं दैत रहलीह।

आइ ओ हमरा सभहक संग नहिॅं छथि, किन्तु अपन साहित्यक माध्यमसॅं सदैव रहतीह। हुनका लेल वास्तविक श्रद्धांजलि होएत स्त्री आ पुरुषकेॅं फराक नहिॅं, अपितु मात्र मनुष्यक कोटिमे राखल जाइ,ओकर व्यक्तिगत जीवन पर टीका-टिप्पणीक प्रवृत्ति छाड़ि समाजक लेल देल गेल अवदान पर विवेचना कएल जाय।

साहित्य मानवीय परिवेशगत मूल्यक उद्घाटनक प्रयत्न थिक। ई मानव मे शुभ आ अशुभ, सुंदर आ असुंदर,ग्राह्य आ त्याज्यक  चेतना जागृत कए मनुष्यक मूल्यदृष्टि केॅं शिक्षित आ परिष्कृत करैत अछि। एहि प्रकारक साहित्य मनुष्यक सभ्यता आ संस्कृति सॅं सीधा संबंध रखैत अछि आ तैं ओ परिवेश तथा वातावरण सॅं कटि नहिॅं सकैत अछि। साहित्यक सर्जक केॅं अपन युगक सत्य , स्थिति- परिस्थिति तथा ओहेन परिस्थितियो मे काम्य परिवर्तनक शब्दबद्ध व्याख्या करबाक चाही।

एहि निकष पर जखन युवा कवयित्री श्रीमती रोमिशा जीक आंजुर भरि इजोत नामक काव्य -संग्रह पर दृष्टि देल, त’ पाओल जे ओ कविताक माध्यम सॅं स्त्रीक स्थितिकेॅं मानवीय संवेदनाक चश्मा सॅं देखबाक नेहोरा करैत अछि, सामाजिक विषमताक भीत हटयबाक ओकालति करैत अछि, स्वतंत्रताक नाम पर पसारल जा रहल अनेकानेक बंधन दिस आंखि खोलि देखबाक  आग्रह करैत अछि आ  प्रेम आ व्यापार मे अंतर दिस पाठकक ध्यान आकृष्ट करैत छथि।ओ स्त्रीकेॅं प्रेमक पर्याय आ प्रेमकेॅं जीवनक प्राणवायु बुझैत छथि।

स्त्रीक जीवनक विडंबना, अन्याय आ उपेक्षाक परत दर परतक नीचां दबल यात्रा, प्रत्येक यात्रा मे जीवनक कोनो न कोनो त्रासदी केर वर्णन, तथापि ओकर मोन मे बांचल प्रेम, सामंजस्य आ हानि-लाभ-विवेचनरहित समर्पण कविता सभहुक कथ्य अछि। यद्यपि आधुनिक समाजक स्त्री अपेक्षाकृत शिक्षित आ सशक्त भेल अछि परंच वेदना आ ओझराहटि  रूप बदलि- बदलि क’  सोझां अबैत छैक।

स्त्री- जीवनक अनेक यात्रा, उतार-चढ़ाव, स्त्रीक पराधीनताक संग स्वच्छंदताक हद पार कए अपना लेल आर कठिन बाट चुनब, ओकर दुर्बलता आ ओकर सामर्थ्य, ओकर स्वाभिमान आ ओकर समझौता आदि भावनाक  सशक्त भाषा मे मनोवैज्ञानिक चित्रण एहि कविता संग्रहक विशेषता थिक। रोमिशा जीक स्त्री पात्र विशाल मानव- प्रवाह मे बहैतो अपन अस्तित्व केॅं स्थापित कर’ चाहैत अछि, दायित्वक निर्वाह कर’ चाहैत अछि, परिवार आ समाजकेॅं जोड़िक’ राख’ चाहैत अछि।

हुनक कवितामे स्त्री- जीवन- दर्शनक  प्रकृति संग साम्य अनेक रूप मे,सुललित उपमाक संग सुंदर शब्द मे अभिव्यक्त भेल अछि।एक गोट सुंदर कवितांश द्रष्टव्य अछि-

धरती आ अकाशक होइत छैक मिलन
जाहि में मौन दैत अछि प्रेम केॅं नव अर्थ
जकरा सुरुजक ललौन भोरक संग
बुझैत अछि चिड़ै- चुनमुनीक कलरव
आ एहि कलरवक संग
जखन चिड़ै उड़ैत अछि  अकाश दिस
स्त्री घुरैत अछि अपन घरक बाट पर
सुरुज बनैत अछि ओकर यात्राक साक्षी

समाज द्वारा उपेक्षित स्त्रीक मनोभाव कवयित्रीकेॅं कचोटैत छनि,ओकर इच्छा- अनिच्छा हृदयक कोन मे नुकायल रहि जाइत अछि आ तैंयो आनन पर स्मित हास्य रखने ओ सभटा दायित्व निभबैत छथि-

किनको कहियो ई सुधि कहाॅं रहलै
कि एहन निष्कम्प शिखा बनि
अपनहि इच्छाकेॅं बाती बना
ओ कोना पसारैत अछि
भरि आंगन इजोत

स्त्री- जीवनक विसंगति आ प्रेमक विविध रूप सॅं इतर एहि संग्रह मे बहुत कम कविता छैक, किन्तु जे छैक ओ चिंतन करबा लेल विवश करैत छैक- तथाकथित विवेकी व्यक्तियो,नीक आ बेजाय सैद्धांतिक रूपेॅं बुझितो, मात्र स्वार्थक सिद्धि लेल अधलाहकेॅं अधलाह कहबाक साहस नहिॅं क’ पबै अछि,जकर परिणाम संपूर्ण समाज आ राष्ट्र भोगबा लेल अभिशप्त होइछ-

सभ कवि कलाकारक
आत्माक गहबर मे
उठैत अछि अगबे टीस
मुदा भोर होइतहि
ओ बनि जाइत अति
व्यवस्थापक सभसॅं पैघ खबास।

समाजक नीति-नियन्ता द्वारा स्थापित किंवा आदर्शक खांचा सॅं बाहर स्त्रीक निजताक ओकालति करैत कवयित्री जखन कहैत छथि-

अन्हार आ इजोतक बीच
कतेक काल खण्ड सॅं हेरि रहल अछि स्त्री
अप्पन निज अकाश
जाहि परहक चान सुरुज तरेगन
सभ ओकर होइ आ
जकरा देखि सकय ओ अपन दृष्टि सॅं…

एत’ मोन पड़ि जाइत अछि रोम्या रोलांक ई पांती-

“A man’s first duty is to be himself, to remain himself at the cost of self sacrifice.”

ई me आ myself कतेक जरूरी होइत छैक,ओ ओएह बुझि सकैत छथि जनिका एहि लेल संघर्ष कर’ पड़ैत छनि। जनिका लेल स्वतंत्र आकाश सहज सुलभ छनि ओ परवशताक पीड़ा कोना बुझि सकैत छथि?

कवयित्री प्राचीन अरुआयल, फुफड़ी लागल परम्पराक निर्वहण मे अपसियांत स्त्रीक आंखि खोलबाक प्रयासक संग आधुनिक सभ्यताक अन्धानुकरणक दुष्प्रभाव सेहो देखबैत छथि-

सत्य चुपचाप कोनो दोग मे
नुकायल रहैत अछि
अपनहि घर मे बेघर भेल
देखैत रहैत अछि
आधुनिकताक सेन्ह लागल
अपन घरक देबाल

कल्पनाजीवी कवयित्री भौतिकताक व्यामोह मे अन्हरायल, हानि-लाभक तराजू पर तोलायल जाइत व्यवसाय बनल प्रेम केॅं देखैत खिन्न त’ छथि, किन्तु पूर्णतःनिराश नहिॅं-

ओहने कोमल स्त्री सभ
जीवनक माटि कोड़ि
पुनः रोपैत छथि स्नेहक बीआ
स्त्रियेटा बुझैत छथि
कि युगक आंखिक पानि
बचाओल जा सकैत अछि
मात्र नि: स्वार्थ प्रेम मे विलीन भ’

किन्तु एत्तहि हुनक किछु वैचारिक विरोधाभास देखना जाइछ,जत’ एकदिस ओ नि: स्वार्थ प्रेमक गुणधर्म  केॅं नीक बुझैत छथि,दोसर दिस ओ लोकक परवाहि नहिॅं करबाक निर्देश सेहो दैत छथि जखन ओ कहैत छथि-

आब नहि डेराइ कलंक सॅं
नहिॅं धकाइ बताहि बनय सॅं
नहिॅं लड़ब आ खाली साहब
त’ जीतब कोना
हारले रहत मान
कियो नहिॅं देत कोनो ध्यान

कवयित्री यथार्थक कठोर धरातल पर ठोकर खेलो उत्तर विश्वासहीनताक शिकार नहिॅं बनैत छथि,ओ स्त्री-प्रेमक शाश्वतताक आख्यान लिखैत छथि-

विश्वास जे अहूॅं मे
हम होयब बचल कतहु न कतहु
प्रेम एतेक सहजता सॅं
नहिॅं बिला सकैत अछि शून्य मे

साहित्यकारक मर्यादा आजुक समय मे बांचल नहिॅं रहि गेल अछि, ओकर कलम विश्वप्रेमक कथा नहिॅं,मात्र मनोरम वाग्जाल पसारैत अछि, स्वार्थ सिद्धिक जोगाड़ करैत रहैत अछि,ई देखि कवयित्रीक हृदय मे कचोट होइत छनि आ ओ कविकेॅं सावधान करैत छथि-

“मंचक खबास बनि
पुरस्कारक ओरियान करैत
देखैत रहय साहित्यक सभ प्रपंच
नहिॅं,ई कवि होयब नहिॅं थिक
कवि माने
जीवन सॅं
मृत्यु दिस बढ़ैत समाजकेॅं
युवा आ स्वस्थ राखब”

कतेको ठाम अनुप्रासक छटा सॅं सत्यक कुरूपताकेॅं झांपि मात्र बाह्यमनोहर काल्पनिक संसारक सृजन कएनिहार केॅं देखि स्पष्टत: बजैत छथि-

मुदा जीवन सॅं फराक
किन्नहुॅं नहिॅं होइत अछि कविता
आ कविता सॅं फराक
कोना भ’ सकैत अछि जीवन

धर्मक नाम पर पसारल जाइत पाखण्ड दिस, कुत्सित होइत जीवन- दर्शन दिस इंगित करैत छथि कवयित्री “कनैत अछि गंगा” कविता मे-

सभहक आंखि मे पसरल अछि मोहक लाली
धर्मक पाखण्ड चिल्हा जकाॅं डेन पसारने
मंडरा रहल अछि मोक्षक मार्ग केर महत्त्व बतबैत
पूरा शहरक आंखि मे चलि रहल ठेकेदारी
पाप पुण्य मुक्ति आ मोक्षक

एकर सभहक अतिरिक्त हुनक कविता मातृत्वकेॅं स्त्रीक अधिकार बुझैत सामाजिक अनुशासनक बेड़ी तोड़ब स्वाभाविक बुझैत अछि,पुरुषत्वक मिथ्यादंभक मुंह पर थापड़ मारैत अछि, किंतु एत्तहु ओहि घेर सॅं नहिॅं बहराइत अछि। तैं कहल जा सकैत अछि एहि संग्रहक कविता विभिन्न परिस्थिति मे  स्त्री- हृदय मे उठय बला भावनाक बेलाग अभिव्यक्ति अछि। कवयित्री कोनो निष्कर्ष पर पहुंचबाक अथवा आदर्श स्थिति थोपबाक हड़बड़ी मे नहिॅं छथि।

कविताक संबंध मे अनुभूतिक गप बेर बेर कहल जाइत अछि, मुदा ओ अनुभूति ककर? कविक किंवा समाजक? जॅं समाजक अनुभूति कविक अनुभूति  बनि व्यक्त होइछ, ओकर परिमार्जनक खगताक मुनादी करैछ, परिवर्तनक बाट देखबैत अछि, तखने कविता अपन अर्थवत्ता प्राप्त करैछ।

रोमिशाजीक कविता मे यथार्थ अछि, प्रेम अछि,स्त्रीक अंतर्द्वंद्व आ आत्मविश्लेषण अछि, किन्तु जे नहिॅं अछि ओ अछि निराकरणक बाटक दिग्दर्शन! एकटा सामान्य पाठक जकाॅं हम चाहब जे अगिला संग्रह मे इहो तथ्य आबय आ अपन सबल उपस्थिति देखा सकय।तखनहिॅं महादेवी वर्माक स्वर मे स्वर मिलबैत हम सभ बाजि सकब

“भारतीय नारी जाहि दिन अपन संपूर्ण प्राण-प्रवेग सॅं जागि सकत, ओहि दिन ओकर गति रोकब ककरो लेल संभव नहिॅं।”

संपूर्ण संग्रह मे मैथिलीक टिपिकल शब्द-प्रयोगक लालित्य प्रशंसनीय अछि, किंतु  कतौ-कतौ केर अर्थ मे केॅं के प्रयोग( कोनो खराब भाव केॅं हृदय मे बचबाक संभावना)

(कोनोटा सामर्थ्य कहाॅं होइत छैक दिमाग केॅं) अखरैत अछि।

संक्षेप मे “आंजुर भरि इजोत” संग्रह- योग्य पोथी अछि,एकर स्वागत प्रबुद्ध पाठकवर्ग द्वारा  हयबाक चाही।रोमिशा जीक सशक्त लेखनी केॅं साधुवाद आ अशेष शुभकामना।

(बरसाइत विशेष) (चित्र : श्रेया श्रेयसी)

भारत उत्सव-प्रधान देश  अछि। सभ वर्ण आ संप्रदायक लोक अपन परंपराक अनुसार उत्सवक, धार्मिक- उपासनाक,पूजा पाठ आदिक आयोजनक मादेॅं एक दिस परंपरा-संरक्षण करैत आनंदक अनुभव करैत अछि, दोसर दिस ईश्वरक उपासना-प्रार्थनाक माध्यम सॅं भगवान केॅं प्रसन्न कय अनिष्ट -निवारणक उपक्रम करैत अछि।

यद्यपि हम सभ जनैत छी जे ईश्वर एक छथि , किन्तु अपन- अपन आस्थानुसार हम सभ हुनक एकटा स्वरूप निश्चित कय ,ओहि रूप केॅं मन मे स्थापित कय एकाग्र करबाक चेष्टा करैत छी-“एकोSहं बहुस्यां प्रजायेय

आइ हम सभ बिहार मे,विशेष कय मिथिला क्षेत्र मे धूमधाम सॅं मनाओल जा रहल बटसावित्री पावनिक ऊपर किछु विचार करब।बटसावित्री एकटा त्रिदिवसीय अनुष्ठान अछि,जे ज्येष्ठ मासक त्रयोदशी स’  अमावस्या तिथि धरि मनाओल जाइत छैक। प्रत्येक विवाहिता स्त्री अखंड सौभाग्यक लेल ई व्रत करैत छथि। नारद पुराण मे उल्लेख अबै छै-

दिवाभागे त्रयोदश्यां यदा चतुर्दशी भवेत्
तत्र पूज्या सहासाध्वी देवी सत्यवता सह

लिङ्गपुराण मे उल्लेख अबै छै-

“शिवाऽघोरा तथा प्रेता सावित्री च चतुर्दशी ।
कुहूयुक्तैव कर्त्तव्या कुह्वामेव हि पारणम्” ।।
दत्त्वा जलाञ्जलीन् सप्त कृष्णपक्षे चतुर्दशीम् ।
 धर्मराजं समुद्दिश्य सर्वपापैः प्रमुच्यते।।”
 “ज्यैष्ठे कृष्णचतुर्दश्यां सावित्रीमर्चयन्ति याः ।
 वटमूले सोपवासा न ता वैधव्यमाप्नुयुः”।

एहि सभ उद्धरणक तात्पर्य ई जे जेना राजा अश्वपतिक कन्या आ सत्यवानक पत्नी अपन त्याग आ तपस्या स’ ,दृढ़ संकल्प स’,अनुपम पतिभक्ति स’ यमराजक सोझां ठाढ़ भ’ गेलीह,हुनका अपन तर्कशक्ति स’ मनेलनि आ सत्यवानक औरदा वापिस अनलन्हि,ओही तरहेॅं  विषम परिस्थिति मे सभ पतिव्रता स्त्री केॅं अपन प्रत्युत्पन्नमतित्व स’ निर्णय लेबाक चाही, कातरता आ दीनता क आश्रय नञि ल’ विपत्ति दूर करबाक यत्न करबाक चाही।

शाल्वदेशीयसत्यवद्राजपत्नी ।
सा तु मद्रदेशीयाश्वपतिराजकन्या ॥
                                         -महाभारत वनपर्व

बटसावित्री व्रत कोना कयल जाइत अछि आ कोन कोन बिध- बाध होइत छैक,एहि सभ विषयक चर्चा छाड़ि आजुक परिप्रेक्ष्य मे एहि पावनिक अर्थवत्ता पर किछु विचार करबाक खगता अछि:

बदलैत समयक संग लोकक रुचि, प्रवृत्ति आ प्राथमिकता सेहो बदलैत रहल अछि, तदनरूप धार्मिक आस्था आ पूजा पद्धति मे समयानुसार परिवर्तन होइत छैक।ई एकटा सामान्य धारणा अछि जे अपन सभ्यता, संस्कृतिक निर्वाह आ अगिला पीढ़ी मे ओकर संप्रसारणक संग तरहक परंपरा- निर्वहणक दायित्व  स्त्रिगणक छैक। यथाशक्ति स्त्रिगण ई दायित्व निभाबैतो छथि,  अपन सहज सौंदर्य- बोधक संग पूजा- पाठ मे व्रतक कठिनता केॅं अरिपन, फूल-पत्ती सॅं सजावट , गीत नादक संग रमणगर सेहो बनबैत छथि।

किन्तु कोनो आस्था वा परंपराक पालन करबाक क्रम मे ई अवश्य मोन मे रखबाक चाही जे ई कोना शुरू भेल,आइ ओकर अर्थवत्ता छैक वा नञि?छैक त’ कोन सीमा धरि?व्रतक तात्पर्य केवल अन्न-जलक त्याग नञि, अपितु पवित्र संकल्प होइत अछि। सावित्रीक संकल्प छलनि जे घुरब त’ पतिक संग, अन्यथा प्राण त्याग करब(यमराजक पाछां जयबाक इयैह भावार्थ छैक)। सावित्री सफल मनोरथ भेलीह, तैं हम सभ आइयो हुनका स्मरण करैत छियैन,हुनक अविचल निष्ठाक प्रति नमन करैत छियैन।

आउ,आइ हमरा सभ मिलि क’ विचार करी, सावित्रीक आख्यानक कोन कोन बिन्दु अपना सभकें मोन मे रखबाक चाही-

1.वैचारिक परिपक्वता: सावित्री राजपुत्री छलीह, किन्तु हुनक सहजता, भौतिक समृद्धि केॅं तृणवत् बुझबाक प्रवृत्ति आजुक समय मे उपादेय अछि।ओ जखन सत्यवान केॅं पसिन्न केलनि,तखन ओ राज्यच्युत छलाह,जंगल मे आरामक नञि, कठिन तपस्याक जीवन बिता रहल छलाह।

धन अवश्य सुविधापूर्ण जीवन जीबाक लेल आवश्यक होइत छैक, किन्तु धनार्जन मात्र जीवनक उद्देश्य नञि हयबाक चाही।अध्यवसायी व्यक्ति जखन चाहत,अपन बाहुबल स’ धन कमा सकैत अछि। जीवनसाथीक चुनावक समय व्यक्तिक चरित्र, संस्कार, शिक्षा-दीक्षा आदि केॅं वरीयता देबाक चाही।आइ स्त्री- पुरुष दूनूक दृष्टिकोण अत्यधिक बाह्यसुखापेक्षी भ’ गेल अछि। तैं एहन समय मे सावित्रीक पूजाक व्याजेॅं भौतिक सुख जीवनक ध्येय नञि,माध्यम अछि,ई विश्वास राखि अपन चिंतन स्तर मे सुधारक आवश्यकता अछि।

2.पारिवारिक जीवन-मूल्य:  एकटा राजपुत्री होइतो सावित्री तन-मन स’ सासु-ससुरक सेवा करैत छथि, यमराजक प्रसन्न भेला पर मात्र पतिक औरदा नञि, सासु- ससुर लेल राज्य,आंखिक ज्योति आ अपन पिताक उत्तराधिकारी सेहो मांगि अपन संतुलित चिन्तनक परिचय दैत छथि।आइ हमरा सभ केॅं बरसाति पावनि करैत पारिवारिक सौहार्द बनयबाक आ बढ़यबाक अपन संकल्प केॅं क्रियान्वित करबाक चाही-

श्रेय प्रीतिक बाट,संबंधक उचित निर्वाह
सभक बखरा मान बिलही,सार्थ भेल उद्वाह।
अनुकरण कय सकी मिसियो, स्मरण तखनहिं काम्य
 मूल्य जे स्थापित  केलनि ओ प्रति युगक लेल श्लाघ्य।।

3.दृढ़ संकल्प- शक्ति:  सावित्रीक कथा प्रतिवर्ष सुनला स’  अपना सभक चरित्र मे हुनकर सन संकल्प- शक्ति आबि सकय, तखने ई पूजा सफल मानल जायत। सावित्री केॅं बूझल छलनि सत्यवान अल्पायु छथि,वर्ष पुरैत देरी वैधव्यक दंश हुनका सह’ पड़तनि, किन्तु” जा धरि सांस,ता धरि आस” ई उक्ति चरितार्थ करैत ओ यमराजक पाछां चलैत छथि,चलैत रहैत छथि,अपन तर्कपूर्ण गप स’ हुनका मनयबाक प्रयास करैत छथि आ अन्त मे लक्ष्य प्राप्त करैत छथि।

ई प्रश्न उठि सकैत छैक जे की आजुक समय मे यमराज स’ ककरो वापिस आनल जा सकैत छैक? नञि, किन्तु जॅं एहि कथाकेॅं प्रतीकक रूप मे ली,त’ गंभीर स’ गंभीर बिमारीक समुचित चिकित्सा आ सेवा-सुश्रूषाक द्वारा पराजित करबाक कतेको उदाहरण अहाॅंकेॅं भेंटि जायत।एहि तरहक आत्मविश्वास आ परिश्रम स’ आनो असंभव सन बुझाइत काज संभव भ’ सकैत छैक।एहि प्रसंग मे हम हिन्दी भाषाक एकटा पांती उद्धृत कर’ चाहब-

हैं बंधे नर के करों में वारि, विद्युत,भाप
हुक्म पर चढ़ता उतरता है पवन का ताप।।
(नरक वश मे आइ सरिपहुॅं वारि, विद्युत भाप
ओकर आज्ञा सॅं  चलै अछि वायु केर उत्ताप।।)

4. सरलता:  सावित्री-व्रत तखनहिं सार्थक होयत,जखन हुनक व्यक्तित्वक सरलता हमरा सभक व्यक्तित्व मे समाहित भ’ सकय। ” भावमिच्छन्ति देवता:”-भगवान मात्र भावक भूखल होइ छथिन,उपकरणकक नञि। किन्तु,आडंबर आइ काल्हि मात्र जीवनेक नञि, पावनि- तिहारक सेहो अनिवार्य अंग बनि गेल अछि।साड़ी, गहना, फल -फलिहरी,पूजाक अन्य उपादानक व्यवस्था पावनिक मूल भावना के गौण बना देने अछि, प्रदर्शनप्रियता आ उपभोक्तावादक संस्कृति कम स’ कम पूजाक शुचिता पर हावी नञि हो,एहि लेल प्रयत्नशील हयबाक संकल्प लैत हम सभ अपन व्यक्तित्व के मजगूत बना सकैत छी, अनुकरणीय बना सकैत छी।

5.समर्पण: सावित्रीक अपन हृदय समर्पित केलनि सत्यवान् केॅं।बाद मे नारद मुनि कहलखिन सत्यवानक अल्पायुक विषय मे,निर्णय बदलबाक आग्रह केलखिन माता-पिता, किन्तु सावित्री अपन निश्चय सॅं विचलित नञि भेलीह। सुख-दु:ख मे समान रूप स’ संग देबे त’ प्रेमक पहिल पहिचान होइत छैक। जॅं एहि तरहक समर्पण-भाव स्त्री-पुरुष दूनू मे भ’ जाय,तखन वैवाहिक जीवन मे मात्र सुख हेतै,प्रेम हेतै, विश्वास हेतै आ सहजहिॅं स्वर्ग धरती पर अवतरित भ’ जेतै।

मम-पर भेदक जखन विलोपन तखने बुझू प्रेम
बांचल अहम् रहय जॅं, कोना धय, कनैत अछि प्रेम ।।

उपरोक्त गपक तात्पर्य इयैह जे कोनो महान् व्यक्तिक स्मरण,पूजन तखनहिं सार्थक मानल जायत जखन हम हुनका द्वारा स्थापित जीवन-मूल्यक प्रति अनुराग राखी, ओकरा यथासंभव जीवन-व्यवहार मे उतारबाक प्रयास करी।कहलो गेल छैक-“देवो भूत्वा देवं यजेत्“- यानी देवक गुणधर्मक लगीच जाइए क’ हुनक उपासना करबाक चाही।

त’ आउ, सावित्रीक पातिव्रत्य आ तपस्या केॅं हृदय स’ मोन पाड़ी,हुनक व्यक्तित्वक विशेषता अपना चरित्र मे समाहित करबाक प्रयत्न करी,सौभाग्यक कामना करी।सभ गोटे के बरसाति पावनिक बहुत बहुत शुभकामना।

बरसाइत विशेष
(चित्र: विष्णु प्रिया, मुरलीगंज, मधेपुरा) 

आय वटसावित्री पावनि अछि। ई वैह वटसावित्री अछि जाहि मे निराशाक घनघोर अन्हार कें जीवित आशा मे परिवर्तित करबाक सामर्थ्य अछि, ई वैह अमावस्या अछि जे दृढ़ संकल्प, अविचल निष्ठा आ कठोर तपस्या (साधना) सं असंभवो कें संभव करबाक संदेश दैत अछि,ई ओएह पावन -दिवस अछि जे पतिव्रता स्त्रीलोकनि लेल सभदिन अनुकरणीय रहत।

देवताक उपासनाक पहिल सूत्र छैक-“देवो भूत्वा देवं यजेत्“-अर्थात् देवता बनिए क’ देवताक उपासना करबाक चाही। त’ वटसावित्री पूजनक उपक्रम करबा काल वा ओहि सं पूर्व सावित्रीक गुणकर्म कें ,हुनक शक्तिसामर्थ्य कें,हुनक प्रवृत्तिअनुरक्ति कें अपन मोन में धारण करबाक चाही।

कोनो कामना तखनहिं सफल होइत छैक जखन बिघ्न-बाधाक पहाड़ कें पार कय तपस्याक बल पर, एकाग्र साधनाक  बल पर लगातार प्रयत्न कयल जाय। व्रतक अर्थे होइत छैक पवित्र संकल्प। पातिव्रत्यक आदर्श सावित्रीक चरित्रक अनुगामिताक पवित्र संकल्प जं स्त्रिगण क’ लेथि त’ केओ स्त्री कें दीन-हीन बुझबाक वा ओकर शोषण करबाक स्वप्नो नञि देखि पाओत।

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आउ,आइ वटसावित्री-पूजाक मादें मोन पाड़ी ओहि प्रात: स्मरणीया देवी कें,जे शक्तिक पर्याय छलीह,शीलक उपमान छलीह,  धैर्यक प्रतिमूर्ति छलीह आ अपन लक्ष्यक प्राप्ति लेल दृढ़संकल्पित छलीह।

सावित्री मद्रदेशक राजा अश्वपतिक पुत्री छलीह। कहल जाइ छैक जे अश्वपति कें संतान नञि होइ छलनि,ओ घनघोर तपस्या केलनि आ हुनका दिव्यरूपा पुत्री भेलनि। महाभारतक वनपर्व मे एकर विस्तृत उल्लेख आयल छैक-

“शाल्वदेशीय सत्यवद्राजपत्नी,सा तु अश्वपति राजकन्या”

हुनकर नाम सावित्री कियै पड़लनि,एकर उल्लेख देवीपुराणक चौआलीसम अध्याय मे भेटैछ-

त्रिदशैरर्च्चिता देवी वेदयोगेषु पूजिता
भावशुद्धस्वरूपा तु सावित्री तेन सा स्मृता।।

ब्रह्मपुराण मे प्रसंग अबै छै-

सर्वलोकप्रसवनात् सविता स तु कीर्त्यते
यतस्तद्देवता देवी सावित्रीत्युच्यते तत:
वेदप्रसवनाच्चापि सावित्री प्रोच्यते बुधै:।

अर्थात् संपूर्ण सृष्टिक उत्पत्तिक कारण, संपूर्ण वेदादिक(ज्ञानक) हेतु हयबाक कारण सावित्री(प्रकाशक किरण/सूर्य) देवता लोकनि द्वारा सेहो पूजित छथि,ओहने शुद्ध भावस्वरूपा हयबाक कारण ओ सावित्रीक नाम पबै छथि।

ओ एतेक सुन्नरि छलीह,जे हुनक अभिराम कान्ति सं अभिभूत राजा सभ हुनक पाणिग्रहण करबाक साहस नञि क’ सकलाह। तखन पिता सावित्री कें कहलखिन जे अहां स्वयं अपन पतिक अन्वेषण करू। ओ शाल्वदेशक राजा द्युमत्सेनक पुत्र सत्यवान कें वरक रूप मे चुनलनि,जे ओहि समय मे राज्य सं वंचित छलाह आ जंगल मे रहि रहल छलाह।

जखन ओ पिता कें सत्यवानक विषय मे कहैत छलीह, तखने घुमैत-घुमैत नारद मुनि एलाह आ कहलखिन जे सत्यवान मे सभ गुण छनि, मुदा ओ अल्पायु छथि। मात्र हुनक आयुक एक बरख शेष छनि। मुदा सावित्री त’ मोन सं सत्यवानक वरण क’ चुकल छलीह आ कोनो शीलवती कन्या जकरा एक बेर मोन मे बसा लैत छथि,ओकर अतिरिक्त दोसर सं विवाहक गप सोचियो नञि सकैत छथि।

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विवाह भेलनि आ सावित्री अपन राजसी ठाट-बाट आ बहुमूल्य वस्त्राभूषण त्यागि पतिक संग एलीह आ वृद्ध सासु- ससुरक सेवा करय लगलीह‌। यद्यपि ओ ऊपर सं प्रसन्न देखाइथ,मुदा हुनक मोन में नारद मुनिक गप घुरिआइत रहैत छलनि। एवंक्रमेण जखन साल पुरबा मे मात्र तीन दिन शेष छलै,ओ कठोर निराहार,निर्जल व्रत केलनि।

चारिम दिन जखन सत्यवान यज्ञक समिधा अनबा लेल जंगल जाइ लगलाह,त’  ओहो संग ध’ देलनि। थोड़ेक समिधा एकत्र करिते सत्यवान थाकि गेलाह आ बरगदक गाछक नीचां सावित्रीक कोर मे माथ राखि सुति गेलाह। तखने यमराज आबि हुनक प्राण लय दक्षिण दिस बिदा भेलाह।

सावित्री सावधान छलीह,ओ पतिक निष्प्राण शरीर गाछक तर सुता यमराजक पाछां बिदा भेलीह, यमराज हुनका घुरि जैबाक आग्रह केलखिन ई कहैत जे एहि सं आगू जीवित प्राणी नञि जा सकैत अछि। मुदा सावित्रीक कहब छलनि जे हम पतिक अर्द्धांगिणी छी, सहधर्मिणी छी,अहां हमर पतिकें नेने जा रहल छी त’ हमरो नेने चलू।

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सावित्रीक गप सं प्रसन्न यमराज सत्यवानक प्राणक अतिरिक्त किछु वर मंगबा लेल कहलखिन। सावित्री अपन सासु -ससुरक नेत्रक ज्योति आ हुनक छिनायल राज मंगलखिन। “एवमस्तु” कहि बिदा भेलाह यमराज। मुदा ई की? सावित्री त’ पाछुए लागल छथि।

हुनक पतिभक्ति सं प्रसन्न यमराज पुनः वर मंगै लेल कहलखिन त’ ओ अपन पितृकुलक लेल उत्तराधिकारी मंगलनि। “तथास्तु” कहि पुनः बिदा भेलाह धर्मराज, मुदा कनेक दूर गेला पर पाछू तकै छथि त’ सावित्री चलि  आबि रहल छथि।

आब बुझबैत कहलखिन्ह धर्मराज-हम अहांक पतिभक्ति आ एकनिष्ठ समर्पण सं अत्यधिक प्रभावित छी, मुदा सृष्टिक नियमानुसार अहांक पति एतबहि आयु लिखा क’ आयल छलाह, तैं हिनका ल’ जायब हमर धर्म अछि आ अहांक आयु अखन बाकी अछि, तैं अहां कें एहि सीमा सं आगू जयबाक अधिकार नञि अछि। अहां एकटा अंतिम वर मांगू  आ घुरि जाउ।

सावित्री एहनो स्थिति में अपन बुद्धि-चातुर्य सं सत्यवानक सौ पुत्रक माता हयबाक वर मंगलखिन। यमराज एवमस्तु कहि बिदा भेलाह, तखन सावित्री कहै छथिन- “अहां हमरा सत्यवानक पुत्रक माता हयबाक आशीर्वाद दय हुनक प्राण नेने जा रहल छी, की ई संभव छैक? आब सावित्रीक प्रत्युत्पन्नमतित्व सं  प्रसन्न यमराज नियमक अतिक्रमण कय  सत्यवानक प्राण घुरा दैत छथिन।

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यद्यपि मिथिला मे ज्येष्ठक अमावस्या तिथि में सावित्री- पूजनक विधान छैक, मुदा सावित्रीक तीनदिनक कठिनव्रतक अनुसरण करैत कतेक ठाम ई त्रिदिवसीय व्रत कयल जाइ छैक,जकर उद्धरण नारद पुराण मे एहि तरहें अबैछ-

दिवाभागे त्रयोदश्यां यदा चतुर्दशी भवेत्
तत्र पूज्या सहासाध्वी देवी सत्यवता सह।

एकर अतिरिक्त पराशर कहैत छथि :

सावित्रीमर्चयित्वा तु फलाहारा परेsहनि
ततश्चाविधवा नारी वित्तभोगान् लभेत्।
ततश्चामावश्यायां सावित्री व्रत विधान
शिवाघोरा तथा प्रेतेति वचनञ्चैतत्परम्।

कत्तहु इहो उल्लेख अबै छै :

अमायां च तथा मूले वटमूले महासती
त्रिरात्रोपोषिता नारी विधानेन प्रपूजयेत्

लिङ्गपुराण मे कहल गेल छैक :

“उपवासश्चतुर्दश्यां महापातकनाशक:”
ज्येष्ठे मासि चतुर्दश्यां सावित्री व्रतमुत्तमम्
अवैधव्याय कुर्वन्ति स्त्रिय: श्रद्धासमन्वित:”‌
राजमार्तण्डकृत्यचिन्तामण्यो:

मत्स्यपुराण मे सेहो ई व्रत कोना करी,जं स्वयं कोनो कारणवश नञि क’ सकी त’ अनका द्वारा करयबाक विधान छैक:

गर्भिणी सूतिका नक्तं कुमारी च रजस्वला
यदाsशुद्धा तदान्येन कारयेत् क्रियते सदा।

एहि सभ उद्धरणक तात्पर्य एतबहि जे शाश्र्वत सौभाग्यक आकांक्षा सं त्रयोदशी सं अमावस्या धरि तीन दिनक व्रत कर बटवृक्षक त’र सावित्री- सत्यवानक पूजा करबाक चाही।

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त’ पातिव्रत्यक आदर्श,पितृकुल आ श्वसुरकुल मे सभतरहक सौभाग्यक हेतु, अखण्ड सौभाग्यवती सावित्रीक उपासनाक ई व्रत सभक लेल चिर अहिबातक आशीष दैत रहय,सतत कर्मठताक प्रेरणा दैत रहय,कर्त्तव्यक मार्ग सं अभिलषित पुरैबाक आत्मबल दैत रहय आ एकनिष्ठ कर्मक बाटें असंभव कें संभव करबाक साहस प्रदान करैत रहय,अही कामनाक संग सभ गोटे कें बहुत बहुत शुभकामना।

मैथिली भाषा एवं मैथिल संस्कृतिक गप सम्प्रति विभिन्न सांस्कृतिक मंच सं साहित्यक अनेक विधा मे यथा कविता, गीत ,कथा आदि मे होइत अछि। यदि एहि मे आसानी सं अभिनीत होइ बला एकांकी सेहो जुड़ि जाय त’ केहन रहै? किछु एहने प्रयास सहृदय पाठकक सदाशयताक अपेक्षा रखैत छैक। एक बेर देखल जाउ

नेपथ्य में गीत चलि रहल अछि-

हम पतझड़ केर कोकिल उदास, लोपित वैभव केर रानी छी
 हम अति समृद्ध हिमशैल तटक ,विस्मृत भेल स्वप्न कहानी छी।
 अप्पन मायक हम वाम भृकुटि, गरिमाक बनल धूमिल छाया
 हम विकल सांध्य रागिनी करुण,मौलायल सुषमा केर माया ।
हम क्षीण- प्रभा ,हम हत-आभा ,संप्रति उन्मत्त भिखारिणी छी
खंडहर मे ताकि रहल अप्पन, उजड़ल सुहाग केर लाली छी।
हम जनक कपिल केर पुण्य जननि, हम्मर संतानक महा ज्ञान
 धीया सीता हम्मर देलनि,सौभाग्यवती कें अमिट दान ।
वैशाली में स्थान न अछि,हम बैसल खंडहर में अजान
 सूनै छी साश्रुनयन ,विह्वल, लिच्छवि वीरक हम  कीर्तिगान।
 नीरव निशि मे गंडकी विमल, विचलित करैत अछि  हमर प्राण
ओकरे तट पर हम सूनै छी विद्यापति कवि केर मधुर गान।
 नीलम घन गरजि- गरजि बरसय, रिमझिम- रिमझिम रिमझिम अथोर
सरिताक हिलोर गबैछ राग ,हे हे सखि हमर  दु:खक नहिं ओर।।
(राष्ट्र कवि दिनकरक कविताक अनुवाद, एहि लेखिका द्वारा)

पथिक : देवि, अहां के छी? एहन विकल स्वर मे की गाबि रहल छी? अहांक स्वर मे हमरा बहुत वेदनाक अनुभव भ’ रहल अछि। अहांक मनोदशा सेहो हमरा ठीक नञि लागि रहल अछि। जं उचित बूझी, त’ अपना विषय मे किछु कहू।

 स्त्री : बौआ, बुझना जा रहल अछि जे अहां एतुका निवासी नञि छी, तैं हमर दशा सं द्रवित भय सहानुभूति पूर्ण स्वर मे हमर दुरवस्थाक  कारण पूछि रहल छी। हमर अप्पन संतति त’ अपन अहम् आ रागद्वेष   में ओझरायल हमरा दिशि नजरि फेरबो उचित नञि बुझै छथि।

पथिक : हं ,माता!हम दोसर राज्यक निवासी छी,एकटा पथिक छी।अहांक ई दुर्दशा हमरा देखल नञि जा रहल अछि। कृपया अपन कष्टक कारण कहू।

स्त्री-

निज दु:खिया जीवन केर , अतिशय हम करुण कथा कोना कहि दी
की ई  उचित न हैत,भोगि पीड़ा अपार, चुपचाप रही
सुनियो क’ की करब अहां,हम्मर असह्य  पीड़ा-गाथा
समय सेहो नहिं अछि, हम्मर थाकल सूतल अछि  मौन व्यथा।।
(जयशंकर प्रसादक कविता ‘छोटे से जीवन की कैसे’  केर अनुवाद
एहि लेखिका द्वारा)

पथिक : भ’ सकैछ हम अहांक किछु मदति क’ सकी!नहिंयो क’ सकब तैंयो अहांक मोनक भार त’ हल्लुक होयत।

 स्त्री  : बौआ,हमर नाम मिथिला अछि। हमर घर उत्तरी बिहार मे हिमालय आ गंगा नदीक बीच  में अछि। दरभंगा, मधुबनी, पूर्णिया,सहरसा, मुंगेर, बेगुसराय, मुजफ्फरपुर, भागलपुर आदि जिलाक संग संग नेपाल मे सेहो हमर संतान रहैत अछि। हमर आजुक दशा देखि ई नञि बूझह जे हम सब दिन एहने रही।

हमर एकटा गौरवशाली इतिहास रहल अछि। हमर सभ्यता आ संस्कृति उज्ज्वल रहल अछि।हमर सन्तानक विद्या -वैभवक संपूर्ण वसुधा मे मान सम्मान छलैये। हमरा राज्य मे  विदेह सनक राजा भेलाह जे राजा होइतो तपस्वीक जीवन जिबै छलाह,जे जनता कें कष्ट दूर करबा लेल स्वयं ह’र जोतबा लेल उद्यत भेलाह,जत’ राजा सल्हेशक उपस्थिति ई मिथक तोड़ि रहल अछि जे मात्र क्षत्रियवंशोत्पन्न व्यक्तिये राजा भ’ सकैछ। जत’ स्वयं मां जानकी जन्म लय एहि भूमि कें पवित्र कैलनि आ पृथ्वी कें अनाचारी राक्षस सभक अत्याचार सं मुक्त करयबाक हेतु बनलीह-

…..सीता के देखि देखि झखथि जनक ऋषि मोती जकां झहरनि नोर
सीता जुगुत वर कतऽ भेटत, ओतहि सऽ लायब जमाय यो
सीता जुगुत वर अवधपुर भेटत, ओतहि सऽ लाउ जमाय यो
राजा दशरथ जी के चारि बालक छनि, एक श्यामल तीन गोर यो
गोरहि देखि नहि भूलबै यो बाबा, श्यामल के मुकुट चढ़ायब यो
देशहि देश केर वीरलोक आओल, सभ छूबि चलि गेल यो
वशिष्ठ मुनि संग आए दुइ बालक, धनुष देखि करय उतफाल यो
जखनहि रामचन्द्र धनुष उठाओल, सीया गले डालू जयमाल यो
जखनहि उठाओल मचि गेल जय जयकार यो
(संग्रहीत)

एतबहि नञि, राजकुमार सिद्धार्थक वैराग्यक विषय मे त’ जनितहिं हैबह।लोक राज्यप्राप्ति लेल कोन- कोन कुकर्म नञि करै अछि, मुदा हिनका भोग सं कोनो आसक्ति नञि छलनि,अनकर कष्ट हिनका अपन कष्ट बुझना जाइ छलनि, तैं सब सुख वैभव त्यागि लोककल्याणक मार्ग तकै लेल बिदा भेलाह आ बुद्ध बनि संसार कें मध्यमार्गक उपदेश देलनि।

जतय छल धन वैभव ऐश्वर्यक भण्डार
जतय पग पग सुख,पल पल छल शृंगार
बहय छल रूप -रस- यौवन केर अविरल धार
मुदा छल व्यर्थ अहां लेल  मधुमय ई संसार
कियै उपजल मन मे ई वैराग्य,हे गौतम,बाजू न..
अहां लेल राग- रंग छल त्याज्य
संयमक जीवन छल स्वीकार्य
स्वर्ग नरकक नञि लिलसा व्यर्थ
प्राणि दु:ख वारण केवल लक्ष्य
पूज्य करुणा सागर हे बुद्ध, हमर नति लिय’ न….
राग रंग तजि,संयमपथ पर निर्भय बढ़ू मनुज हे
स्नेह -नीर सं सभ भीजय,किछु एहने कर्म करू हे
जाति,धर्म केर भीत खसा,बस मानवता परसू हे
मोक्षक मार्ग त्याग केवल अछि,एकरे शरण गहू हे
मानवक देह विष्णु अवतार,सन्मति दिय’ न….

आ वर्धमान महावीर सेहो हमर सन्तति छलाह,जे मनुक्ख त’ मनुक्ख, सामान्य कीड़ा मकोड़ाक कष्ट नञि देखि सकै छलाह…..

जीबू स्वयं आन सभ जीबय यैह घोष जिनकर छल
सम गति,सम अवसर सभ पाबय,ध्येय मात्र जिनकर छल
सत्य- अहिंसा धर्म सगर वसुधा पसरय भय अविरल
वैर -विरोधक लेश न कत्तहु ,प्रणयक वायु बहय निर्मल।
क्षमा करब,मांगब विनीत भय,उत्कर्षक परिचायक
दीन -हीन -निर्बल- पीड़ित केर सेवा  मन-उन्नायक
मनक शुद्धि,आत्मिक विकास संग त्यागक जे उद्घोषक
हमर विनीत प्रणति अर्पित अछि मानवता केर नायक।

…..आ एतुका भाषा. …आ: . कान मे अमृत घोरय बाली मैथिली….आर्यभाषापरिवारक भाषा मैथिली…। जाहि समय विश्वक आन भाग मे मानव पशुवत् जीबि रहल छल यानी आन भाग में सभ्यताक विकास नञि भेल छलै,तखन संस्कृतक बाद मैथिली भाषाक चरम विकास भेल छलै। मैथिली भाषाक उपलब्ध साहित्य मे सर्वप्रथम नाम कविशेखराचार्य ज्योतिरीश्वरक वर्णरत्नाकरक लेल जा सकैछ।हिनकर अवस्थितिक काल संभवतः 1290—1350 मानल जा सकै छनि।ई कर्नाट वंशक अन्तिम राजा हरिसिंह देवक काल मे भेल छलाह ,ई जनश्रुति छै।हिनकर लिखल तीन टा ग्रन्थ प्रसिद्ध छैक-वर्णरत्नाकर,धूर्तसमागम आ पंचशायक।

एत’ सं आगू बढ़बह त’ मैथिल कवि कोकिल विद्यापतिक साहित्य देदीप्यमान अछि,जे मात्र मिथिले धरि नैं, संपूर्ण भारत मे अपन प्रखर आभाक संचार कय रहल अति।हिनकर समय प्राय:1350-1450 मानल जाइ छनि।ई संस्कृत, मैथिली आ अवहट्ट तीनू भाषा मे समानरूप सं काव्य लिखलन्हि अछि।हिनकहिं सं मैथिलीक गीत -परंपरा अस्तित्व मे आयल।शक्तिक उपासनाक अप्रतिम रूप देखबाक हो त’ ई गीत देखि सकै छी-

कनक-भूधर-शिखर-बासिनी
चंद्रिका-चय-चारु-हासिनि
दशन-कोटि-विकास-बंकिम-
तुलित-चंद्रकले ।।
क्रुद्ध-सुररिपु-बलनिपातिनि
महिष- शुम्भ-निशुम्भघातिनि
भीत-भक्त-भयापनोदन –
पाटव -प्रबले।।
जय देवि दुर्गे दुरिततारिणि
दुर्गामारी – विमर्द -कारिणि
भक्ति – नम्र – सुरासुराधिप –
मंगलप्रवरे ।।
गगन – मंडल – गर्भगाहिनि
समर – भूमिषु – सिंहवाहिनि
परशु – पाश – कृपाण – सायक –
संख -चक्र-धरे ।।
अष्ट – भैरवी – सँग – शालिनी
स्वकर – कृत – कपाल- मालिनि
दनुज – शोणित -पिशित – वर्द्धित-
पारणा-रभसे।।
संसारबन्ध – निदानमोचिनी
चन्द्र – भानु – कृशानु – लोचनि
योगिनी – गण – गीत – शोभित –
नित्यभूमि – रसे ।।
जगति पालन – जन्म – मारण –
रूप – कार्य – सहस्त्र – कारण –
हरि – विरंचि – महेश – शेखर –
चुम्ब्यमान – पदे। ।
सकल – पापकला – परिच्युति-
सुकवि – विद्यापति – कृतस्तुति
तोषिते – शिवसिंह – भूपति –
कामना – फलदे।।
(विद्यापति)

आ हुनकर शिवभक्ति कोनो व्याख्याक मोहताज नैं।हुनक नचारीक शब्द आ भाव हुनक अजस्र शिवभक्तिक प्रतीक छल,जकरा सुनि महादेव हुनकर सेवक भय धरती पर आयल छलाह- ‌…

.अगे माई जोगिया मोर जगत सुखदायक।
दुख ककरो नहिं देल महादेव, दुख ककरो नहिं देल।
अहि जोगिया के भाँग भुलैलक।
धथुर खुआइ धन लेल।।
आगे माई कार्तिक गणपति दुइ छनि बालक।
जगभर के नहिं जान।।
तिनकहँ अमरन किछुओं न थिकइन।
रत्ती एक सोन नहिं कान।।
अगे माई, सोन रुप अनका सुत अमरन।।
अधन रुद्रक माल।
अप्पन पुत लेल किछुओ ने जुड़ैलन।।
अनका लेल जंजाल।
अगे माई छन में हेरथि कोटि धन बकसथि।।
ताहि दबा नहिं थोर।
भनहि बिद्यापति सुनु ए मनाईनि
थिकाह दिगम्बर मोर।।
(विद्यापति)

आ हे बौआ. ‌.. मैथिली नञि अबै हैतह, मुदा संस्कृत त’ अबितहिं हैतह?भामतीक नाम सुनने छह?हं हं ओएह आदि शंकराचार्य विरचित ब्रह्मसूत्रक भाष्यक प्रसिद्ध टीका! जनै छह ओ मिथिलाक ठाढ़ी गामक निवासी प्रख्यात लेखक वाचस्पति मिश्र (900-980ई.)लिखने छलाह।अपन एहि साहित्य- साधनाक एकाग्रता मे ओ अपन नवोढ़ा पत्नीक उपेक्षा अवश्य क’ बैसलाह, मुदा भक्क टुटिते ओ एकर प्रायश्चित केलनि आ एहि ऐतिहासिक ग्रन्थक नाम पत्नीक नाम पर राखि हुनका अमर क’ देलखिन-

देश,जाति,धर्मक रक्षा हित निज निधि ग्रन्थक व्याख्या
करब,सुबोध बना जन सम्मुख आनब लय अभिलाषा
वाचस्पतिक कठिन साधना बर्ख अठारह चललनि
 छाया बनलि भामती  तप केर अद्भुत रूप देखौलनि।
निज कर्तव्यविमुखता मार्जन  नामकरण सं करइत
अमर भामती नाम आइ, त्यागक फल पत्नी पौलनि।
न्यायक,दर्शन केर अनुपम निधि मिथिला भू क धरोहर
मसकल,फाटल,मलिन  कियै अछि मायक हरियर आंचर।।

…बौआ अपन बौद्धिक सम्पदाक कतेक नाम गिनबिअह..कण्ठ सूखय लागल अछि.. कविवर चन्दा झाक मैथिली रामायण अपन सरल,सरस , प्रांजल भाषाक संग आइयो हमर छाती गर्व सं भरि दैत अछि। ओ स्वयं मिथिलाक सीमाक विषय मे लिखने छथि

गंगा बहथि जनिक दक्षिण दिशि पूब कौशिकी धारा।
पश्चिम बहथि गंडकी उत्तर हिमवत वन विस्तारा॥
चंदा झा

लालदास, रामजी चौधरी,महिनाथ ठाकुर, लोचन झा,हर्षनाथ झा….कतेक नाम कहिअह… आ की बुझै छहक आइ मैथिलीक साहित्य नञि लिखल जा रहल छै?ई भ्रम तोड़ह… राघवाचार्य,भुवन जी,सुमन जी,यात्रीजी,अमर जी, हरिमोहन झा,राजकमल,आरसी प्रसाद सिंह,मधुप जी,मणिपद्म,किरण जी, सोमदेव,जीवन झा….अनन्त नाम छै हौ!

 बौआ…तैंयों देखह.

ओझरायल केश,सूखल मुंह,भीजल नयनें हम बौआइत छी
माटिक कण कण मे हेरा चुकल,ओ निधि अमूल्य हम ताकै छी
हम उजड़ल उपवन केर मालिन,उठैछ हमर हिय विषम शूल
कोकिला न कत्तहु कुंज बीच,रहि रहि अतीत सुधि करैछ कूक…
(राष्ट्र कवि दिनकरक कविताक अनुवाद, एहि लेखिका द्वारा)

हमर भाषा समृद्ध,हमर लिपि वैज्ञानिक,हमर माटिक कण -कण में प्रतिभाक अम्बार, मुदा तैंयों हम चिर उपेक्षित-दरिद्रताक जाल मे फंसल, राजनीतिक कुचक्र मे आकण्ठ डूबल….हमर संतान हमरा तजि दूर बसै अछि,हमर आंचरक त’र रहै बला बच्चा सभ विद्यालय मे मैथिली पढ़त,तकर व्यवस्था नञि,एतेक समृद्ध भाषा जे उत्तर में नेपाल यानी हिमालयक पादप्रदेश सं ल’ क’ दक्षिण मे गंगानदीक प्रवाहक्षेत्र तक,पूर्व में कोशी सं ल’क’पश्चिम में गंडक तक बाजल जाइ अछि,से कोनो राज्यक आधिकारिक राजभाषा नञि. ..(कनै छथि)

पथिक  मां अहां नञि कानू, हम कोनो अनठीया नञि,हमर मूल एत्तहि अछि।ई भिन्न गप जे हमर बाबू हमरा कहियो गाम नञि अनलनि,एहि बेर त’ हम जिद कय एसकर अपन मातृभूमिक दर्शनक इच्छा मे आबि गेलहुं आ अहां संग भेंट भ’ गेल।अहां चिंता जुनि करू,हम युवा वर्ग कें जागृत करब, संगठित करब आ अपन विगत गौरव कें वापस आनब, मातृभाषा कें उचित स्थान दिआयब….

हम आनब गत- गौरव पुनि,एहि वसुधाक ललाट सजायब हम
छी मिथिला- सुत,मायक भाषा कें विद्यालय मे पहुंचायब हम
प्रतिभाक श्रमक संतुलित मेल सं  अज्ञान- अन्हार मिटायब हम
भौतिक,आत्मिक,सांस्कृतिक सूर्य केर प्रखर प्रकाश देखायब हम

पर्दा खसैत अछि. ‌

(जाहि कविता सबहक संदर्भ नहि देल अछि, से एहि लेखिका द्वारा रचित अछि)

प्राचीनकाल मे ज्ञान-विज्ञानक अनन्त आकाश मे विचरण करबा लेल स्त्री-पुरुष दूनू स्वतंत्र  छलथि। दूनू अपन साधना सॅं ज्ञानक नित नूतन वातायन खोलैत छलथि आ ज्ञानक भण्डार कें भरैत छलथि। तैॅं ताहि युग मे ऋषि आ ऋषिका दूनूक अस्तित्व छलै। ज्ञानक सम्पदा सं,नित नूतन अनुसंधान सॅं,ब्रह्मविद्याक अथाह खान सॅं जगत केॅं समृद्ध करबा मे मिथिलाक भूमिक सेहो अपन महत्वपूर्ण योगदान रहलै अछि आ ओ अपन सुदृढ़ उपस्थिति गार्गीक रूप मे दर्ज करौने अछि।

गार्गी उपनिषद-कालक दैदीप्यमान ऋषिका, दर्शनशास्त्रक अप्रतिम विदुषी आ ब्रह्मविद्याक उद्भट ज्ञाता छलीह। यद्यपि हुनक जन्मस्थान आ कालक विषय मे कोनो ठोस ऐतिहासिक प्रमाण नञि भेटैत छैक, मुदा वृहदारण्यक उपनिषद् मे मिथिलाक राजा जनकक सभा मे भेल गार्गी- याज्ञवल्क्य- संवादक आधार पर गार्गी केॅं मिथिलाक विभूति मानल जाइत छनि। गर्गवंश मे उत्पन्न हयबाक कारण हिनका नाम गार्गी (गर्गस्यापत्यं स्त्री) पड़लनि। हिनक पिताक नाम वचक्नु छलनि,जकर प्रमाण वृहदारण्यक उपनिषद् मे पाओल जाइत छैक-“गर्गगोत्रापत्ये स्त्रीमात्रे तत्र वचक्नोर्दुहिता गार्गी ब्रह्मविद्योत्तमा ‘। (वृहदारण्यक उपनिषद्, गार्गी ब्राह्मण)

वचक्नुक पुत्री हयबाक कारणें हिनका वाचक्नवी कहल जाइत छनि। ओना एहि प्रसंग मे एकटा कथान्तर सेहो प्रचलित छैक जे गार्गी अपन विद्वत्ता आ वाक्पटुताक कारण वाचकन्वी उपाधि पौने छलीह, वचक्नुक पुत्री हयबाक कारण नञ। जेना वैदिक काल मे सूर्य आ सावित्री प्रकाशमान छथि, तहिना उपनिषद् काल मे गार्गी।

बाल्यकालहिॅं सॅं हिनका वैदिक ग्रंथ मे गहन रुचि छलनि। हिनक गहन अध्ययन, तथ्यपरक चिंतन आ तार्किक अभिरुचिक विद्वत् समाज मे समादर छलनि। दर्शन मे त’ हिनक जोड़ भेटब कठिन छल। वृहदारण्यक उपनिषद् मे महर्षि याज्ञवल्क्यक संग हिनक शास्त्रार्थक बहुत सुन्दर विवेचन भेटैछ, जे गार्गीक वैदुष्य आ हुनक तर्कशीलताक संग हुनक अभिमानरहित विनयशील व्यक्तित्वक अमिट छाप जन-मानस पर छोड़ैछ।

याज्ञवल्क्य सं शास्त्रार्थ  

एक बेर राजा जनक श्रेष्ठ ब्रहमज्ञानीक परीक्षा लेल  एक सहस्त्र सवत्सा सोनक गाय विद्वान लोकनिक सभा मे ठाढ़ क’ देलखिन आ कहलखिन जे अहां सभ में सॅं जे स्वयं केॅं ब्रह्मज्ञानी मानै छी से ई गाय सभ केॅं सजीव कय अपन आश्रम ल’ जा सकैत छी। इच्छा त’ सभ केॅं भेलनि मुदा अपना मुंह सं स्वयं अपना केॅं ब्रह्मज्ञानी कहब आत्मश्लाघा भेल,आ ई त’ दोष मानल जाइत छैक, तैं एहि भय सॅं क्यो अपना स्थान सॅं नञि उठलाह। ऋषि याज्ञवल्क्य सेहो ओत्तहि छलाह। ओ अपना शिष्य सभ केॅं कहलखिन-“चलह,ई गाय सभ केॅं अपना आश्रम मे ल’ चलैत छी”।

एतबा सुनितहिं ओहिठाम उपस्थित ऋषिगण याज्ञवल्क्य संग शास्त्रार्थ कर’ लगलखिन। महर्षि हुनका लोकनिक सभ प्रश्नक यथाविधि उत्तर देलखिन्ह।ओत्तहि ब्रह्मवादिनी गार्गी सेहो बजाओल गेल छलीह। ओ अन्त मे शास्त्रार्थ कर’ उठलीह। अथैनं गार्गी वाचक्नवी पप्रच्छ याज्ञवल्क्येति (षष्ठ ब्राह्मण) बहुत रास प्रश्नक समुचित उत्तर पाबियो क’ जखन गार्गीक प्रश्न नञि समाप्त भेलनि त’ याज्ञवल्क्य कने रोष मे आबि कहलखिन-“गार्गी माति प्राक्षीर्मा ते मूर्धा व्यापप्त अयतात्” अर्थात् हे गार्गी ! एतेक प्रश्न नञि पूछू जाहि सॅं अहांक मस्तक फाटि जाय।

मुदा तकर बादो अत्यन्त धैर्य आ सहिष्णुताक संग एक- दू टा आओर प्रश्न पुछलखिन,जाहि मे एहि प्रश्न केॅं आधुनिक वैज्ञानिक टाइम एण्ड स्पेस सॅं सम्बन्धित प्रश्न मानै छथिन-“स्वर्गलोक सॅं ऊपर जे किछु अछि,पृथ्वीक नीचां जे किछु अछि आ दूनूक मध्य जे किछु अछि आ जे भ’ चुकल तथा जे किछु भाव्य अछि ई सभ ककरा सॅं ओतप्रोत अछि?” अर्थात् ई संपूर्ण ब्रह्माण्ड ककर अधीन अछि?

तकर उत्तर दैत महर्षि कहलखिन-“एतस्य वा अक्षरस्य प्रशासने गार्गी “-अर्थात् अक्षर अविनाशी तत्त्व छैक,जकर अनुशासन मे सभ किछु व्याप्त छैक। फेर महर्षि अक्षरतत्त्वक विषय मे विस्तार सॅं प्रकाश देलखिन। याज्ञवल्क्यक उत्तर सॅं सन्तुष्ट गार्गी हुनका श्रेष्ठ ब्रह्मज्ञानी घोषित कयलखिन,जकर उल्लेख वृहदारण्यक उपनिषद् केर अष्टम ब्राह्मण मे भेटैछ-“साहोवाच ब्राह्मणा भवन्तस्तदेव बहुमत्येध्वम् यदस्मान्नमस्कारेण मुच्येध्वम् न वै जातु युष्माकमिमं कश्चित् ब्रह्मोद्यं जेतेति।ततोह वाचक्नव्युपरराम। 

एहि तरहें कहल जा सकैत अछि जे गार्गी मिथिला भूमिक एहन चमचमाइत तारिका छथि जे अपना काल मे त’ सद्य:,अखनपर्यन्त स्त्रीक स्वतंत्र अस्मिताक, वैचारिक समृद्धिक,अनुपम विद्वत्ताक आ नित नवोन्मेषणक पर्याय बनलि छथि।नमन एहि कालजयी विदुषी केॅं।

 गार्गी आ याज्ञवल्क्यक शास्त्रार्थक किछु प्रश्नोत्तर नीचां देल जा रहल अछि जे दूनूक उपराउपरी प्रमाणित करैत अछि

सब पार्थिव पदार्थ कथी में  ओतप्रोत अछि?- जल मे ।

जल कथी मेओतप्रोत अछि?- वायु मे।

 वायु कथी में ओतप्रोत अछि?-   आकाश मे ।

आकाश कथी में ओतप्रोत अछि?-अंतरिक्ष मे ।

अंतरिक्ष कथी में ओतप्रोत अछि?-गंधर्व लोक मे।

 गंधर्व लोक कथी में ओतप्रोत अछि?-आदित्य लोक मे।

 आदित्य लोक कथी में ओतप्रोत अछि?-चंद्रलोक मे।

 चंद्रलोक कथी में ओतप्रोत अछि?-नक्षत्र लोक मे।

 नक्षत्र लोक कथी में ओतप्रोत अछि?-देवलोक मे ।

देवलोक कथी में ओतप्रोत अछि?-प्रजापति लोक मे।

 प्रजापति लोक कथी में ओतप्रोत अछि?-ब्रह्मलोक मे।

(चित्र : रवीन्द्र दास जीक कृति, हुनक फेसबुक वाल सं साभार)
नारी केर होइछ मान जतय, देवता प्रसन्न भ’ जाइत छथि
होइ छथि अपमानित लांछित जं कालीक रूप मे आबै छथि।

आजुक विमर्शक  विषय अछि-“आजुक स्त्री कतेक आगां, कतेक स्वतंत्र”।आउ , विश्व महिला- दिवसक अवसर पर सब गोटा मिलि क’ अपन यथार्थ स्थितिक विषय मे आत्मावलोकन करी, आत्मचिंतन करी-हम सभ दैहिक आत्मिक एवं मानसिक स्तर पर यथार्थत:स्वतंत्र छी वा नहिं? की शिक्षा ,रोजगार, राष्ट्रक प्रगति ,वैज्ञानिक उन्नति आदि क्षेत्र मे अपना लोकनि ओतबहि  योगदान द’ रहल छी जतबा हमरा सब मे सामर्थ्य अछि? की सभ स्त्रिगण अपना धीया कें ओतबहि स्वतंत्रता द’ रहल छथि जतबा अपना बेटा कें?

 बहुत रास प्रश्नक परिधि मे, आजुक  विमर्शक विषय कें दू भाग मे बंटै छी- सर्वप्रथम  पहिल खंड पर चिंतन करैत छी

आजुक स्त्री कतेक आगां

जं कने गंभीर -चिंतन करबै त’ कोनो विषयवस्तुक  दू टा स्वरूप होइत छैक-बाह्य कलेवर आ आन्तरिक यथार्थ! प्रयास करब -दूनू तल पर अयबाक। हम सब आगां छी – जीवनक कोनो क्षेत्र एहन नञि,जाहि मे हम प्रतिभाक लोहा नञि  मनबौलहुं, विश्वक कोनो स्थान एहन नहिं जे हमरा सभक लेल अगम्य! मुदा प्रश्न ई जे की ई स्थिति वस्तुतः  सबहक लेल? हम विस्तृत भौगोलिक- परिधि कें छोड़ि मात्र भारतक सीमा मे एहि विषय पर दृष्टिपात कर’ चाहब आ आगां हयबाक पक्ष कें क्रमशःचारि  भाग मे बांट’ चाहब -वैचारिक स्तर पर ,बौद्धिक स्तर पर ,आर्थिक स्तर पर  आ राजनीतिक स्तर पर –

1.  वैचारिक स्तर पर

वैचारिक स्तर पर स्त्री निस्संदेह आगां छथि।हुनकर प्रकृति एहि तरहें गूंथल छनि जे जीवनमूल्यक  आधान वा आरोपण करबाक आवश्यकता सेहो नहिं होइत छैक,जेना जन्महिं सं संस्कार नेने एहि धरा पर अवतरित भेल होइथ।हुनकर त्याग -भावना ,मानवीयमूल्यक अगिला पीढ़ी मे कुशलतापूर्वक आधान करबाक सामर्थ्य एवं परिवार कें जोड़ि क’ रखबाक सहज क्षमता हुनका एकटा विशिष्ट मानव बनबैत छनि। एहि प्रसंग मे हम महाकवि जयशंकर प्रसादक  कामायनीक श्रद्धाक मुख सं कहल ई कथन कोट कर’ चाहब –

एहि अर्पण मे किछु आर न अछि, उत्सर्ग-मात्र झलकैछ सदा
हम दैत रही, नहिं ग्रहण करी, ई भाव सरल अछि संग मुदा।।
( इस अर्पण में कुछ और नहीं केवल उत्सर्ग झलकता है
 मैं दे दूं और न फिर कुछ लूं ,इतना ही सरल झलकता है ।।)

आजुक स्त्रीक व्यक्तित्व शिक्षाक प्रकाश सं प्रकाशित छनि, मुदा हुनक  मां -काकी ,बाबी- नानी सभ बिनु औपचारिक शिक्षा नेनहुं मानवीय गुणवैभव सं  ओतप्रोत रहथि वा छथि,से हम सब जनै छी।

2. बौद्धिक स्तर पर

बौद्धिक स्तर पर स्त्रीक अग्रगामिता एहि स्तर  पर स्वीकार कैल जा सकै छै जे सामान्य ज्ञान,प्रत्युत्पन्नमतित्व आ औपचारिक शिक्षा नहिंयों नेने, परंपरा सं प्राप्त ज्ञान कें व्यावहारिक स्तर पर रूपायित करबाक हुनक सामर्थ्यक आगां आइ धरि क्यो  कोनो प्रश्नचिन्ह नैं लगा सकल अछि। आजुक युग मे औपचारिक- शिक्षा लेबाक स्वतंत्रता सेहो अधिकांश स्त्रिगण कें भेंटल छनि, मुदा एत’ एकटा विषमता देखना जाइत अछि-प्रत्येक बालिका कें अपन रुचिक अनुसार विषय- चयनक स्वतंत्रता सुलभ नहिं छैक। संगे इहो कह’ चाहब जे  “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” नाराक  बावजूद किछु अभिजात आ शिक्षित- परिवारक  धीया कें छाड़ि दियै त’ आंकड़ा औखन दयनीय स्थिति देखा रहल छैक।

3.  आर्थिक स्तर पर 

प्राचीन कालक तुलना मे स्त्रिगण आइ आर्थिक स्तर पर अपेक्षाकृत सबल भेलीह अछि। आर्थिक- आत्मनिर्भरताक महत्व बुझैत ओ अपन सामर्थ्यानुसार नोकरी ,व्यवसाय अथवा कुटीर- उद्योगक माध्यम सं परिवारक आर्थिक- स्थिति कें सुदृढ़ करबा मे पैघ योगदान द’ रहल छथि। ओ सिविल- सर्विस, इंजीनियरिंग, मेडिकल, बैंकिंग, मैनेजमेंट, सेना आदि अनेक क्षेत्र में अपन विशिष्ट स्थान बनौलनि अछि। इंदिरा नूई, चंद्रा कोचर ,शोभना भरतिया आदि नाम व्यवसाय क्षेत्र में सिद्धहस्तता प्रमाणित कयने अछि।एकर अतिरिक्त जं कुटीर उद्योगक  गप होमय त’ अचार, पापड़ ,बड़ी ,अदौड़ी,तिलौरी,मधुबनी पेंटिंग,सीकी -मौनी आदिक माध्यम सं औपचारिक- शिक्षा -संयुक्त अथवा वंचित -दूनू महिला -वर्ग नीक आयक उपार्जन क’ रहल छथि, जे एक दिशि हुनक आत्मविश्वास कें बढ़बैत छनि त’ दोसर दिशि प्रत्येक आवश्यकता -पूर्तिक हेतु पिता, भाइ अथवा पतिक मोहताजी सं मुक्ति दियबैत छनि। जीविका-चयन मे एलीट क्लासक नोकरीक मानसिक- बंधन सं  सेहो मुक्ति पाबि पुलिस लाइन ,पेट्रोल -पंप,आटो,कैब- ड्राइवर आदिक माध्यमें सेहो  नारी अपन उपस्थिति दर्ज करौलनि अछि।

4. राजनीतिक स्तर पर

राजनीतिक स्तर पर महिला बहुत आगां छथि से  नैं कहल जा सकैत छैक। समाज मे एखन धरि 33%आरक्षणक मांग कें  स्वीकृति देबाक वैचारिक उदारता संभव नञि भ’ सकल अछि। सामान्य तौर पर राजनीतिक विरासत  लय किछु नेत्री अवश्य बहुत नाम कमौलनि अछि, किछु सामान्य परिवारक महिला सेहो राजनीतिक क्षेत्र में अपन भविष्य ताकि रहल छथि ,मुदा ओत्तहु  गॉडफादरक वैशाखीक मदति लेबहिं पड़ैत छनि।एहि क्षेत्र मे मात्र गिनल-चुनल नाम अपन मजगूत उपस्थिति देखौने छथि जाहि मे इंदिरा गांधी ,सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी, सुषमा स्वराज, शीला दीक्षित, प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, निर्मला सीतारमण, मायावती आदि प्रमुख छथि।

उपरोक्त विवेचना ई स्पष्ट करबा लेल प्रर्याप्त अछि  जे एकैसम शताब्दीक पांचम भाग बितलाक बाद स्त्रिगणक क्षमता मात्र भोजन रान्हबा मे, संतति उत्पन्न करबा मे,ओकर पालन- पोषण करबा मे अथवा परंपरागत संस्कृति -संरक्षण मात्र मे नञि, अपितु विकासक प्रत्येक क्षेत्र मे स्पष्टत: देखना जाइत छैक आ ई सब हेरि सहजें सुखाभासक( यूफोरिया )अनुभूति होमय लागैत छैक।  मुदा ऊपर सं हरिहर देखाइत पातक नीचां कि कतेक सूखल पात छैक,कतेक  बंधन छैक,एहि विषय पर सेहो संक्षेप मे दृष्टिपात करैत छी-

आजुक स्त्री कतेक स्वतंत्र

स्त्रिगणक स्वतंत्रताक आकलन करबा लेल क्रमशः किछु अपरिहार्य बिन्दु पर अबै छी-

1.  जन्म लेबाक स्वतंत्रता

जखन स्वतंत्रताक गप उठतै त’ सर्वप्रथम निर्बाध रूपें जन्म लेबाक स्वाधीनताक गप अबस्से हयबाक चाही परंच दुर्भाग्य सं हमरा ई कह’ पड़ि रहल अछि जे आइयो भारतवर्ष मे स्त्री कें सम्पूर्णत:ई अधिकार नञि भेंटि सकल छैक। कन्या -भ्रूणक परीक्षण आइयो बहुत पैघ चुनौती बनल अछि, सरकारक लाख प्रयास आ प्रोत्साहन सेहो प्रत्येक गर्भस्थ  मादा भ्रूणक धरती पर अयबाक मार्ग कंटकमुक्त नञि बना सकल अछि, निस्संदेह एहि पापक भागी स्त्रिगण स्वयं ,हुनक मानसिक जड़ता आ हुनक परमुखापेक्षिता सेहो। अन्यथा-

क्यो नञि जग मे अछि एतेक सबल ,
मायक ममता कें काटि सकय
 नञि ककरो मे सामर्थ्य एहन,
सुरुजक प्रकाश कें झांपि सकय।
2. समान लालन-पालनक स्वतंत्रता

किछु शिक्षित परिवार कें छाड़ि देल जाय त’ बेटा -बेटीक लालन-पालन मे भेद स्पष्टत:देखना जाइछ।आइयो दस वर्षक बेटाक ऐंठ  थारी उठयबा लेल निर्धोख भाव सं आठ बरखक बेटी कें कहल जा सकैछ। बाप -भायक खयलाक बाद माइ-धीक आहार बचल- खुचल अन्न सं हयब स्वाभाविके जकां अछि। प्रत्येक क्रियाकलाप सं बेटी कें ई ज्ञापित कयल जाइत छैक बेटा विशेष, तों  सामान्य!एहि दिशा मे चिन्तनस्तर मे परिवर्तनक बेश खगता छैक।

 3. शिक्षा ग्रहणक स्वतंत्रता

प्राचीन समयक  अपेक्षा शिक्षा -ग्रहणक स्वतंत्रता बेटा -बेटी दूनू कें प्राय: भेंटय लागल छैक, मुदा आइयो निम्न आर्थिक वर्गक कतेको श्रमिक, कृषक अथवा अन्य उपेक्षित वर्गक बालिका स्कूल जयबाक वयस मे घरे-घरे काज करबा लेल विवश छथि।अभिजात वर्ग में सेहो ई पक्षपात देखल जाइत छैक जे   बेटा प्राइवेट स्कूल मे आ बेटी सरकारी स्कूल मे पढ़ैत छैक।बेटा लेल कोचिंगक सुविधा सुलभ ,बेटी घरे मे तैयारी करथि! ई भिन्न तथ्य जे एहन सामाजिक विसंगतिक बावजूद बालिका अपन प्रतिभा सं संसार कें आलोकित करैत छथि। तथापि सभ  बालिका कें स्कूल जयबाक, मनपसंद विषय – चयनक आ इच्छानुसार कैरियर चुनबाक स्वतंत्रता औखन प्रश्नक घेरा मे अछि।

4. जीवनसाथी चुनबाक स्वतंत्रता

जीवनक सभ सं पैघ निर्णय होइत छैक अपन जीवन भरिक साथी चुनबाक, मुदा ई स्वतंत्रता बेटा- बेटी किनको नञि देल गेल छनि।एक बेर कनेक उदार भय बेटाक पसिन्नक  कनियां आनलो जा सकैत छैक, मुदा बेटीक बेर मे ई उदारता कोनो अन्हार कोन मे बिला जाइत छैक। अनेको ऑनर किलिंग केर उदाहरण, अनेकों निर्मम खाप-पंचायतक निर्णय मानवता कें कलंकित करैत अछि।

आ महिमा मंडित कन्यादान की थिक? की कन्या कोनो बेजान वस्तु? की ओकर धमनी मे रक्तक प्रवाह नञि? की भावनाक उन्मेष  नञि? तखन वस्तु जकां दानक ई दारुण परंपरा !

5. वैवाहिक जीवन मे स्वतंत्रता

शिक्षित हो वा अशिक्षित ,कामकाजी वा घरेलू ,कोनो स्त्री होथि, विवाह होइते ओ कोल्हूक बड़द जकां जिम्मेदारीक जुआ उठयबा लेल अभिशप्त छथि।अवश्य किछु शिक्षित पुरुष घरक काज मे मदति करैत छथि, मुदा हुनक संख्या नगण्य !एहन स्थिति मे स्त्रीक हृदयक मृदुता आ संवेदनशीलता सुखा जाइत छैन आ प्रतिक्रियास्वरूप परिवारक विखंडनक कारण बनि जाइत छथि।

दोसर कने बेबाक कह’ चाहब-  सेक्स सेहो वैवाहिक जीवनक एकटा सत्य,त’ की एत्तहु स्त्रीक  इच्छा- अनिच्छाक आदर होइत छैक? हम निर्विवाद रुपें कह’ चाहब -सफेदपोश ,शिक्षित, उच्च- पदासीन पुरुष सेहो स्त्रीक नञि कें आदर देबाक उदारता बहुत कम्मे  रखैत छथि।

 6. वैवाहिक विच्छेदक स्वतंत्रता

मोन नञि मिलला उत्तर स्त्री पुरुष दूनू कें ई समान अधिकार हयबाक चाही जे ओ भार बनल वैवाहिक जीवन सं मुक्ति पाबि सकय,मुदा ई स्वतंत्रता आइयो धरि नैं पाबि सकल छथि देशक आधा आबादी।

एडजस्ट करू, एहिना होइत छैक,  हमहूं ओहि अनुभव सं गुजरल छी, ओ सुधरि जायत, कनेक  त्याग करू, पुरुख एहने होइत छैक, गृहस्थी बसयबाक दायित्व स्त्रीक होइत छैक,नञि जानि कतेक तरहक तर्क -वितर्क बेमेल विवाहक भार उठयबा लेल  विवश करैत छैक। जं कोनो विद्रोहिणी स्वीकार करबा सं मना करैत छथि त’ चरित्रहीन ,कुलटा ,स्वैरिणी आदि उपाधि सं विभूषित भ’ समाजक कुचेष्टा आ निंदाक भाग बनैत छथि। समाज सेहो तलाकशुदा, परित्यक्ता वा अविवाहित स्त्री कें सहज सुलभ (easily available)मानि प्रताड़ित करबाक कोनो अवसर नञि छोड़ैत छैक।

7. अपन माता- पिताक भार उठयबाक स्वतंत्रता

आवश्यकता पड़ला पर अपनहुं धनोपार्जन कर’ वाली स्त्री कें अपन माता-पिताक आर्थिक मदति करबाक संपूर्ण स्वाधीनता नञि भेंटल छनि। अपन सासु- ससुर, दियर-ननदि सभक लेल सभ किछु सहर्ष कर’ बाली महिला अपन नैहरक बेर मे संकुचित कियैक  हुअ’? एत्तहु चिंतन में परिष्कारक आवश्यकता शेष छैक।

8. मताधिकारक स्वतंत्रता

कहबा मे विस्मयजनक, मुदा संविधान -प्रदत्त मताधिकार वस्तुतः  कम्मे स्त्री कें भेंटल छनि। पतिएक वा परिवारक मत स्त्रीक मत! स्वतंत्र चिंतनक आधार पर, नीक- बेजाएक तुलनात्मक निरीक्षणक आधार पर मत देबाक अधिकार औखन सीमिते स्त्रीवर्गक। अवश्य एहि मे स्त्रीक स्वयं केर दौर्बल्य सेहो कारण, तैं एहि स्तर पर  अधिक काज करबाक जरूरति छैक। समाज मे आइयो अनेक मुखिया , सरपंच नामी स्त्री भेंटि जयतीह जे दस्तखत छाड़ि कोनो काज नञि करैत छथि।एहि नामक लोभ सं मुक्त हयबाक आत्मबलक अत्यन्त बेगरता छैक।

 9. देखौंसीक दासता

स्वतंत्रता- प्राप्तिक अंध दौड़ मे अपन निजता ,स्वतंत्र अस्मिताक संग समझौता आ अपना कें भोग- वस्तुक रूप मे परसबाक  घातक प्रवृत्ति स्त्री कें परतंत्रताक इनार मे खसा रहल छैक, एत्तहु गंभीर चिंतनक खगता छैक।विज्ञापनक दुनिया मे स्त्री- देहक प्रदर्शन, फैशनक नाम पर न्यूडिटीक उन्माद, आधुनिकताक नाम पर सिगरेट शराब ,ड्रग्स आदिक  सेवन आदि देखौंसीक दासता सं स्त्रिगण कें स्वयं बहरयबाक आत्मबलक आ दृढ़निश्चयक खगता छैन।

10. आभूषणक आकर्षण सं बहरयबाक मानसिक स्वतंत्रता

हम नीक जकां पहिरी-ओढ़ी,सुन्दर आ शालीन सज्जा करी,एत’ तक त’ ठीक, मुदा  गहना -गुड़ियाक दोकान लागी, एहि मानसिक दिवालियापन सं मुक्तिक आवश्यकता सेहो शेष छैक।एहि प्रसंग मे प्रख्यात कवयित्री श्रीमती महादेवी वर्माक किछु पांती  कोट कर’ चाहब-

जागू जागू नारि वृन्द,तजु निन्न,बाट पर आउ
जागू जागू नारि वृन्द,तजु निन्न,बाट पर आउ।
मोमक बंध मनोहर लखि की करब पलायन श्रम सं
रुचिर विहग केर पंख हेरि की हयब विरत निज पथ सं।
विश्वक क्रन्दन बिसरि जायब सुनि मधुपक मोहक गुनगुन
फूल,ओस,तारक सुन्दरता देखि करब की गुन- धुन।
निज शरीर कें अहां ,स्वयं -हित बेड़ी  नञि बनाउ
जागू जागू नारि वृन्द,तजु निन्न,बाट पर आउ।।
(जाग,तुझको दूर जाना..
 बांध लेंगे क्या तुझे ये मोम के बंधन सजीले
  पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले
विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुर की मधुर गुनगुन
क्या डुबो देंगे तुझे ये फूल के दल ओस गीले
 तू न अपनी देह को अपने लिए कारा बनाना
 जाग तुझको दूर जाना ….।)

अंत मे एतबहि कह’ चाहब जे स्वतंत्र पक्षी जकां असीम आकाश कें नपबाक, अपन जीवनक छोट -पैघ निर्णय लेबाक, बिना भय कें सड़क पर बहरयबाक,मित्र लोकनिक संग समय बितैबाक आ जीवन पथ कें प्रशस्त करबाक अधिकारक  लेल बहुत आत्मबलक, विवेक- बुद्धिक आ दृढ़ निश्चयक खगता छैक।अपन वक्तव्यक समापन हम रॉबर्ट फ्रॉस्टक पांती सं क’ रहल छी-

गहन सघन मनमोहन वन तरु, शोर पाड़ि रहल हमरा
किन्तु प्रतिज्ञा बढ़बा केर ,संयमित करैछ सदा हमरा
बहुत दूर जयबाक बेगरता,निन्नक नञि अवकाश एखन
करी परिश्रम,लक्ष्य प्राप्ति हित,विश्रामक पलखति न एखन।।
( The Woods are lovely dark and deep
But I have promises to keep
 And miles to go before I sleep
 And miles to go before I sleep…)
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