Tag

book review

Browsing

मैथिली साहित्यमे स्त्री लेखिकाक विरल संख्या सेहो झमटगर गाछक रूप लेलक अछि, किन्तु कतोक चुनौतीसॅं स्त्री- लेखिकाकेॅं नित्य  सोझां-सोझी होइत छनि। ओ की पहिरथि जकाॅं ओ की लिखथि,एकर घमर्थन पितृसत्तात्मक समाजक ठेकेदारक बीच होइत रहल अछि।एहन स्थितिमे  स्त्रीक लेखन अस्मिताक संघर्षक चुनौतीक रूपमे ठाढ़ भ’ जाइछ।

समाजक संरचनामे पितृसत्ता सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक व्यवस्था , मूल्य ,मर्यादा, आदर्श तथा संस्कारक विभिन्न रूपमे बड़ मेही ढंगसॅं बुनल गेल अछि। एहि सुनियोजित शोषण-उत्पीड़नक विरुद्ध विश्व भरिक वैचारिक चिंतनमे नारीवादी विमर्शक नव आयाम बनाओल गेल अछि। पश्चिममे स्त्री विमर्श शुरू करबाक श्रेय “सीमोन द बोउवार” केॅं छनि जे ‘ द सेकेंड सेक्स’ लिखि कए समाज मे तहलका मचा देलनि तथा परंपरागत सामाजिक संरचनाकेॅं झिंझोरि देलनि।

भारतमे सेहो एहि आंदोलनक आंच  पजरल आ विभिन्न भाषामे  महिलाक अस्मिता- रक्षणक गप कहल-सुनल, लिखल-पढ़ल जाइत रहल, जाहिमे पुरुष- लेखकक सहभागिता सेहो रहल। महिला-लेखनक केंद्रमे स्त्री अस्मिताक संघर्ष, अदम्य जिजीविषा, स्त्री स्वातंत्र्य, यौन उत्पीड़नक प्रति विद्रोह तथा अपन पहिचानक प्रति जागरूकताक संग सामाजिक यथार्थक अवलोकन आ ओकर बेलाग अभिव्यक्ति अछि आओर ओ  समकालीन साहित्यमे सशक्त हस्तक्षेपक माद्दा रखैत अछि।

वर्तमानमे मैथिली भाषामे सेहो बहुत रास स्त्री लेखिका स्वतंत्रता, समानता , न्याय आदि मूलभूत अधिकारक लेल संघर्षरत एवं सक्रिय छथि। लेखनक माध्यमसॅं ओ समाजक संकीर्ण मानसिकताक ऐना देखबैत छथि, समाजसॅं प्रश्न करैत छथि, आत्मविश्वाससॅं अपन सुख-दुख, आक्रोश आ असहमति व्यक्त करैत छथि,स्त्रीवादक वैचारिक साहित्यमे सतत समृद्धि आनि रहल छथि।

आइ हम दीपा मिश्र जीक जाहि पुस्तकक पाठकीय प्रतिक्रिया लिखि रहल छी ओकर शीर्षके वैचारिक घमासान मचब’ लेल पर्याप्त अछि। ई नाम किऐक? झांपल- तोपल नामो देल जा सकैत छलै! कथ्यक संप्रेषण लेल की देह उघाड़ब आ ओकर संपुट करब उचित! ओना एहि प्रश्नक उत्तरमे प्रतिप्रश्न कएल जा सकैछ जे कैशोर्यमे होमए बला हार्मोनल परिवर्तन देहक संग- संग भावनात्मक परिवर्तनक कारण सेहो बनैत छैक,तखन ओहिसॅं उद्वेलित भए ओहि अनुभूतिक वर्णन अग्राह्य किऐक?

विभिन्न भाषाक साहित्यमे कामविह्वला स्त्रीक मनोभावक खुलल वर्णन भेल अछि, महाकविक उपाधिसॅं विभूषित महाकवि कालिदास त’ उमा-महेश्वरक समागमक बखान सेहो कएलनि अछि, तखन दिक्कत कत’ छै? दिक्कत छैक जे स्त्रीक गर्भमे पलि, ओकर रक्तमज्जा सॅं विनिर्मित शिशु जाहि बाटें धरती पर अबै अछि, वयस्क भेला उत्तर अपर स्त्रीक ओहि अंगविशेषमे अपन पुरुषत्वक सार्थकता पबितो ओकरा मात्र अपन संपत्ति मानैत रहल अछि। अस्तु,ई जटिल विषय अछि, अनेक अतंर्विरोधक परिधि मे ओझरायल अछि, तैं एकरा छाड़ि हमर एतबहि कहब अछि जे जहिना अपन संतानक नामकरणक  अधिकार माए-बापक होइछ, ओहिना अपन साहित्यिक कृतिक नामकरणक अधिकार साहित्यकारक। एहि अधिकार पर प्रश्न उठाएब सर्वथा अनुचित।

दीपाजीक चेतना मात्र भावनात्मक नहिॅं अपितु बौद्धिकताक मानदंड पर आधारित अछि आ ओ निरंतर यथार्थवादी दृष्टिकोण, गहनता आ आत्मविश्वासक संग लिखि रहल छथि। यद्यपि “योनिक आत्मबोध” शीर्षक कविता छाड़ि देल जाइ  त’ अन्यान्य विषय पर गोटेक टापर रचना पहिनहुॅं भेल अछि आ आबहु आन रचनाकार लिखि रहल छथि। किन्तु एक ठाम प्राय: स्त्री-संबद्ध दैहिक,मानसिक आ सामाजिक स्थितिक स्वाभाविक आ मुक्त अभिव्यक्ति लेल दीपाजीक साहस प्रशंसनीय अछि।

मासिकधर्मक आरंभसॅं रजोनिवृत्तिक क्रममे होमएबला शारीरिक-मानसिक परिवर्तन, यौवनक आरंभमे विपरीतलिङ्गीक प्रति सहज आकर्षण, स्त्री-पुरुषक मध्य सामाजिक भेद-भाव, पढ़ल-लिखल स्त्रीक शिक्षाक अनुपयोग आ तज्जन्य स्त्रीक पीड़ा, वैवाहिक बलात्कार आदि ओहि सभ विषय पर दीपा खुलिक’ कलम चलौलनि, जाहि पर लिखबासॅं स्त्री स्वयं बचैत रहैत अछि। हुनक रचना कोनो तरहेॅं पुरुष विरोधी रचना नहिॅं थिक, जकरा  एहि पोथीक परिप्रेक्ष्य मे देखबाक क्रममे किछु पांती उद्धृत कए रहल छी-

हमर युद्ध त’ हमरा स्वयंसॅं अछि
हम रोज लड़ै छी
कियैक त’ शब्द छोड़ि हमरा लग कोनो अस्त्र नहिॅं।
हमर युद्ध ओहि हमरासॅं
जे सभ किछु बुझितो
हमरासॅं बाहर नहिॅं निकलैये।

गहना- गुड़ियाक मोहक जालमे ओझरायलस्त्रीक स्थिति हुनका सीदित करैत छनि आ कवयित्री कहि उठैत छथि-

कतेको ओझरायल रहि गेलीह
एहि गहनाक बीच
आ सीपक मोती कहिया हेरा गेलनि
बुझबो नहिॅं केलैथ।

बहुत पहिने महादेवी वर्मा  स्त्रीकेॅं सावधान करैत कहने छलीह-

जाग तुझको दूर जाना
बांध लेंगे क्या तुझे ये मोम के बंधन सजीले
 पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले
विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन..

मानव-मात्रक सर्वोपरि इच्छा होइत छैक अपन इच्छाक, अपन स्वतंत्र अस्तित्वक,अपन आत्मसम्मानक रक्षा कएल जाए। किन्तु स्त्रीक एहि निजताक कहियो सम्मान नहिॅं भेटलै आ तैं ओकर अन्तर्मनमे धधड़ा धधकैत छै,जकर अभिव्यक्ति भेल अछि एहितरहेॅं-

जीवन व्यक्ति विशेषक अपन थिक
ओ कोनो नैहर सासुरसॅं नहिॅं
हमर गाम हम अपनहि चुनब
समाजसॅं बाध्य भ’ क’ नहिॅं।
भीतरक धधड़ा
ई आगि हमर थिक
ई भीतरक धधड़ा हमर
हम आब डाहब अपन सबटा
मान अपमान पीड़ा उलहन
निकलब तपैत सोन सन
हम जरब की बचब
ओकर उत्तरदायित्व हमर रहत।

कतोक बंधन,कतोक जकड़न स्त्रीकेॅं कोना रक्तरंजित करैत छैक, ओकर छटपटाहटि कवयित्रीकेॅं उद्वेलित करैत छनि आ ओ प्रतिकारक बाट देखबैत कहि उठैत छथि-

सोनाक हो वा लोहा के
चटपटाहटि त’ एके छल ने
परंपराक रूढ़िवादिताक
ओ दंभ जे बाध्य करैत अछि
ओ दंभ जे बाध्य करैत अछि
ओ हमरा मान्य नहिॅं
अपन सामर्थ्य अपने बुझब आब आवश्यक
नहिॅं कहब सेहो सीखब आब जरूरी।

एत’  मोन पड़त अहाॅंकेॅं शिवमंगल सिंह सुमन जीक कवितांश-

हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजर पिंजरबद्ध न गा पाएंगे
 कनक तीलियों से टकराकर
 पुलकित पंख टूट जाएंगे।

कजरी लागल परंपराक खंडनक ओकालति करैतो हुनक लेखन विध्वंसक नहिॅं अपितु योजक छनि,व्रत-उपासक संस्कृतिक पोषक छनि,गामक भाषा-संस्कृतिक अनुरागी छनि, प्राचीन परंपराक नीक तत्वक आधुनिकताक संग समन्वयक आग्रही छनि।ओ स्वयं कहैत छथि-

लेकिन हमर कहब
 जे नब घर उठय आ पुरान घर फेरो बसय
हमरा पुराने घरके नव करबाक अछि
ओकरे मजगूत नींव पर
 नव मिथिला बसेबाक अछि।

अंतमे एतबहि कहब जे एहि निर्भीक स्वरक स्वागत हयबाक चाही। अनुप्रास प्रकाशनसॅं छपल एहि पोथीमे 64 गोट सशक्त आ सार्थक कविता अछि,जे पढ़ल जयबाक चाही।

साहित्य मानवीय परिवेशगत मूल्यक उद्घाटनक प्रयत्न थिक। ई मानव मे शुभ आ अशुभ, सुंदर आ असुंदर,ग्राह्य आ त्याज्यक  चेतना जागृत कए मनुष्यक मूल्यदृष्टि केॅं शिक्षित आ परिष्कृत करैत अछि। एहि प्रकारक साहित्य मनुष्यक सभ्यता आ संस्कृति सॅं सीधा संबंध रखैत अछि आ तैं ओ परिवेश तथा वातावरण सॅं कटि नहिॅं सकैत अछि। साहित्यक सर्जक केॅं अपन युगक सत्य , स्थिति- परिस्थिति तथा ओहेन परिस्थितियो मे काम्य परिवर्तनक शब्दबद्ध व्याख्या करबाक चाही।

एहि निकष पर जखन युवा कवयित्री श्रीमती रोमिशा जीक आंजुर भरि इजोत नामक काव्य -संग्रह पर दृष्टि देल, त’ पाओल जे ओ कविताक माध्यम सॅं स्त्रीक स्थितिकेॅं मानवीय संवेदनाक चश्मा सॅं देखबाक नेहोरा करैत अछि, सामाजिक विषमताक भीत हटयबाक ओकालति करैत अछि, स्वतंत्रताक नाम पर पसारल जा रहल अनेकानेक बंधन दिस आंखि खोलि देखबाक  आग्रह करैत अछि आ  प्रेम आ व्यापार मे अंतर दिस पाठकक ध्यान आकृष्ट करैत छथि।ओ स्त्रीकेॅं प्रेमक पर्याय आ प्रेमकेॅं जीवनक प्राणवायु बुझैत छथि।

स्त्रीक जीवनक विडंबना, अन्याय आ उपेक्षाक परत दर परतक नीचां दबल यात्रा, प्रत्येक यात्रा मे जीवनक कोनो न कोनो त्रासदी केर वर्णन, तथापि ओकर मोन मे बांचल प्रेम, सामंजस्य आ हानि-लाभ-विवेचनरहित समर्पण कविता सभहुक कथ्य अछि। यद्यपि आधुनिक समाजक स्त्री अपेक्षाकृत शिक्षित आ सशक्त भेल अछि परंच वेदना आ ओझराहटि  रूप बदलि- बदलि क’  सोझां अबैत छैक।

स्त्री- जीवनक अनेक यात्रा, उतार-चढ़ाव, स्त्रीक पराधीनताक संग स्वच्छंदताक हद पार कए अपना लेल आर कठिन बाट चुनब, ओकर दुर्बलता आ ओकर सामर्थ्य, ओकर स्वाभिमान आ ओकर समझौता आदि भावनाक  सशक्त भाषा मे मनोवैज्ञानिक चित्रण एहि कविता संग्रहक विशेषता थिक। रोमिशा जीक स्त्री पात्र विशाल मानव- प्रवाह मे बहैतो अपन अस्तित्व केॅं स्थापित कर’ चाहैत अछि, दायित्वक निर्वाह कर’ चाहैत अछि, परिवार आ समाजकेॅं जोड़िक’ राख’ चाहैत अछि।

हुनक कवितामे स्त्री- जीवन- दर्शनक  प्रकृति संग साम्य अनेक रूप मे,सुललित उपमाक संग सुंदर शब्द मे अभिव्यक्त भेल अछि।एक गोट सुंदर कवितांश द्रष्टव्य अछि-

धरती आ अकाशक होइत छैक मिलन
जाहि में मौन दैत अछि प्रेम केॅं नव अर्थ
जकरा सुरुजक ललौन भोरक संग
बुझैत अछि चिड़ै- चुनमुनीक कलरव
आ एहि कलरवक संग
जखन चिड़ै उड़ैत अछि  अकाश दिस
स्त्री घुरैत अछि अपन घरक बाट पर
सुरुज बनैत अछि ओकर यात्राक साक्षी

समाज द्वारा उपेक्षित स्त्रीक मनोभाव कवयित्रीकेॅं कचोटैत छनि,ओकर इच्छा- अनिच्छा हृदयक कोन मे नुकायल रहि जाइत अछि आ तैंयो आनन पर स्मित हास्य रखने ओ सभटा दायित्व निभबैत छथि-

किनको कहियो ई सुधि कहाॅं रहलै
कि एहन निष्कम्प शिखा बनि
अपनहि इच्छाकेॅं बाती बना
ओ कोना पसारैत अछि
भरि आंगन इजोत

स्त्री- जीवनक विसंगति आ प्रेमक विविध रूप सॅं इतर एहि संग्रह मे बहुत कम कविता छैक, किन्तु जे छैक ओ चिंतन करबा लेल विवश करैत छैक- तथाकथित विवेकी व्यक्तियो,नीक आ बेजाय सैद्धांतिक रूपेॅं बुझितो, मात्र स्वार्थक सिद्धि लेल अधलाहकेॅं अधलाह कहबाक साहस नहिॅं क’ पबै अछि,जकर परिणाम संपूर्ण समाज आ राष्ट्र भोगबा लेल अभिशप्त होइछ-

सभ कवि कलाकारक
आत्माक गहबर मे
उठैत अछि अगबे टीस
मुदा भोर होइतहि
ओ बनि जाइत अति
व्यवस्थापक सभसॅं पैघ खबास।

समाजक नीति-नियन्ता द्वारा स्थापित किंवा आदर्शक खांचा सॅं बाहर स्त्रीक निजताक ओकालति करैत कवयित्री जखन कहैत छथि-

अन्हार आ इजोतक बीच
कतेक काल खण्ड सॅं हेरि रहल अछि स्त्री
अप्पन निज अकाश
जाहि परहक चान सुरुज तरेगन
सभ ओकर होइ आ
जकरा देखि सकय ओ अपन दृष्टि सॅं…

एत’ मोन पड़ि जाइत अछि रोम्या रोलांक ई पांती-

“A man’s first duty is to be himself, to remain himself at the cost of self sacrifice.”

ई me आ myself कतेक जरूरी होइत छैक,ओ ओएह बुझि सकैत छथि जनिका एहि लेल संघर्ष कर’ पड़ैत छनि। जनिका लेल स्वतंत्र आकाश सहज सुलभ छनि ओ परवशताक पीड़ा कोना बुझि सकैत छथि?

कवयित्री प्राचीन अरुआयल, फुफड़ी लागल परम्पराक निर्वहण मे अपसियांत स्त्रीक आंखि खोलबाक प्रयासक संग आधुनिक सभ्यताक अन्धानुकरणक दुष्प्रभाव सेहो देखबैत छथि-

सत्य चुपचाप कोनो दोग मे
नुकायल रहैत अछि
अपनहि घर मे बेघर भेल
देखैत रहैत अछि
आधुनिकताक सेन्ह लागल
अपन घरक देबाल

कल्पनाजीवी कवयित्री भौतिकताक व्यामोह मे अन्हरायल, हानि-लाभक तराजू पर तोलायल जाइत व्यवसाय बनल प्रेम केॅं देखैत खिन्न त’ छथि, किन्तु पूर्णतःनिराश नहिॅं-

ओहने कोमल स्त्री सभ
जीवनक माटि कोड़ि
पुनः रोपैत छथि स्नेहक बीआ
स्त्रियेटा बुझैत छथि
कि युगक आंखिक पानि
बचाओल जा सकैत अछि
मात्र नि: स्वार्थ प्रेम मे विलीन भ’

किन्तु एत्तहि हुनक किछु वैचारिक विरोधाभास देखना जाइछ,जत’ एकदिस ओ नि: स्वार्थ प्रेमक गुणधर्म  केॅं नीक बुझैत छथि,दोसर दिस ओ लोकक परवाहि नहिॅं करबाक निर्देश सेहो दैत छथि जखन ओ कहैत छथि-

आब नहि डेराइ कलंक सॅं
नहिॅं धकाइ बताहि बनय सॅं
नहिॅं लड़ब आ खाली साहब
त’ जीतब कोना
हारले रहत मान
कियो नहिॅं देत कोनो ध्यान

कवयित्री यथार्थक कठोर धरातल पर ठोकर खेलो उत्तर विश्वासहीनताक शिकार नहिॅं बनैत छथि,ओ स्त्री-प्रेमक शाश्वतताक आख्यान लिखैत छथि-

विश्वास जे अहूॅं मे
हम होयब बचल कतहु न कतहु
प्रेम एतेक सहजता सॅं
नहिॅं बिला सकैत अछि शून्य मे

साहित्यकारक मर्यादा आजुक समय मे बांचल नहिॅं रहि गेल अछि, ओकर कलम विश्वप्रेमक कथा नहिॅं,मात्र मनोरम वाग्जाल पसारैत अछि, स्वार्थ सिद्धिक जोगाड़ करैत रहैत अछि,ई देखि कवयित्रीक हृदय मे कचोट होइत छनि आ ओ कविकेॅं सावधान करैत छथि-

“मंचक खबास बनि
पुरस्कारक ओरियान करैत
देखैत रहय साहित्यक सभ प्रपंच
नहिॅं,ई कवि होयब नहिॅं थिक
कवि माने
जीवन सॅं
मृत्यु दिस बढ़ैत समाजकेॅं
युवा आ स्वस्थ राखब”

कतेको ठाम अनुप्रासक छटा सॅं सत्यक कुरूपताकेॅं झांपि मात्र बाह्यमनोहर काल्पनिक संसारक सृजन कएनिहार केॅं देखि स्पष्टत: बजैत छथि-

मुदा जीवन सॅं फराक
किन्नहुॅं नहिॅं होइत अछि कविता
आ कविता सॅं फराक
कोना भ’ सकैत अछि जीवन

धर्मक नाम पर पसारल जाइत पाखण्ड दिस, कुत्सित होइत जीवन- दर्शन दिस इंगित करैत छथि कवयित्री “कनैत अछि गंगा” कविता मे-

सभहक आंखि मे पसरल अछि मोहक लाली
धर्मक पाखण्ड चिल्हा जकाॅं डेन पसारने
मंडरा रहल अछि मोक्षक मार्ग केर महत्त्व बतबैत
पूरा शहरक आंखि मे चलि रहल ठेकेदारी
पाप पुण्य मुक्ति आ मोक्षक

एकर सभहक अतिरिक्त हुनक कविता मातृत्वकेॅं स्त्रीक अधिकार बुझैत सामाजिक अनुशासनक बेड़ी तोड़ब स्वाभाविक बुझैत अछि,पुरुषत्वक मिथ्यादंभक मुंह पर थापड़ मारैत अछि, किंतु एत्तहु ओहि घेर सॅं नहिॅं बहराइत अछि। तैं कहल जा सकैत अछि एहि संग्रहक कविता विभिन्न परिस्थिति मे  स्त्री- हृदय मे उठय बला भावनाक बेलाग अभिव्यक्ति अछि। कवयित्री कोनो निष्कर्ष पर पहुंचबाक अथवा आदर्श स्थिति थोपबाक हड़बड़ी मे नहिॅं छथि।

कविताक संबंध मे अनुभूतिक गप बेर बेर कहल जाइत अछि, मुदा ओ अनुभूति ककर? कविक किंवा समाजक? जॅं समाजक अनुभूति कविक अनुभूति  बनि व्यक्त होइछ, ओकर परिमार्जनक खगताक मुनादी करैछ, परिवर्तनक बाट देखबैत अछि, तखने कविता अपन अर्थवत्ता प्राप्त करैछ।

रोमिशाजीक कविता मे यथार्थ अछि, प्रेम अछि,स्त्रीक अंतर्द्वंद्व आ आत्मविश्लेषण अछि, किन्तु जे नहिॅं अछि ओ अछि निराकरणक बाटक दिग्दर्शन! एकटा सामान्य पाठक जकाॅं हम चाहब जे अगिला संग्रह मे इहो तथ्य आबय आ अपन सबल उपस्थिति देखा सकय।तखनहिॅं महादेवी वर्माक स्वर मे स्वर मिलबैत हम सभ बाजि सकब

“भारतीय नारी जाहि दिन अपन संपूर्ण प्राण-प्रवेग सॅं जागि सकत, ओहि दिन ओकर गति रोकब ककरो लेल संभव नहिॅं।”

संपूर्ण संग्रह मे मैथिलीक टिपिकल शब्द-प्रयोगक लालित्य प्रशंसनीय अछि, किंतु  कतौ-कतौ केर अर्थ मे केॅं के प्रयोग( कोनो खराब भाव केॅं हृदय मे बचबाक संभावना)

(कोनोटा सामर्थ्य कहाॅं होइत छैक दिमाग केॅं) अखरैत अछि।

संक्षेप मे “आंजुर भरि इजोत” संग्रह- योग्य पोथी अछि,एकर स्वागत प्रबुद्ध पाठकवर्ग द्वारा  हयबाक चाही।रोमिशा जीक सशक्त लेखनी केॅं साधुवाद आ अशेष शुभकामना।

कोनहु स्त्रीक मोन अपन परिवेश सं आत्मिक रूपें सहज सम्बद्ध भ जाइत अछि। एहन स्त्री जखन अपन मनोभावकें लेखनीबद्ध करय चाहय छथि तखन, ई सम्बद्धता सेहो ओहि सृजनमे अभरैत रहैत अछि। एहने सन सृजनक उत्कृष्ट नमूना अछि आदरणीया मेनका मल्लिक जीक पोथी  गेल्ह सब झाडैत अछि पाँखि कविताक संग्रह ।

एहि पोथीमे कवयित्री अपन 49 गोट कविता केँ क्रमशः  तीन खंड ( समाज ,स्त्री आ प्रेम ) मे बाटैत छथिन। पूरा पोथी मे मुख्यतः तीनटा विषय-वस्तु देखार पड़ैत अछि : 1. स्त्री मोनक भाव, 2. प्रकृतिक चिंता आ 3. परम्परामे विचलन।

पोथीक पहिल कविता हरसट्ठे परम्परा सबमे विचलन दिशि संकेत करैत अछि, आ एहि विचलन सभक मध्य पारस्परिक अपनत्व केर उपस्थिति केँ रेखांकित करैत अछि। ई संयोग कहि जे पहिल कविता जत गामक लोक सबहक बीच अपनत्वक बचल अस्तित्व केर साक्षी बनैत अछि ओतहि अंतिम कविता एकटा दंपतिक बीच दूरी आ तकनीकी युग मे प्रत्यक्ष संवादक अभाव केँ रेखांकित क रहल अछि।

हिनक बहुतायत कविता समाजमे,परम्परामे बात-विचार व रहन-सहनमे परिवर्तन केँ रेखांकित करैत अछि  एहि परिवर्तन केँ व्यक्त करैत कखनों कवयित्री पुरान स्मृति मे हरा जायत छथि ते कखनों हेरायल – भूतयायल परम्परा आ भाव सभक विस्मृति मे विवश बुझा रहल छथि. हरसट्ठे कविता मे विस्मृत परम्परा आ परिवेश सँ निकलैत स्मृति सब मे बसल अपनत्व  पर अबैत छथि, कवियित्रीक प्रकृति प्रेम सेहो एहि कविता मे खूब झलकैत अछि:

“धात्रिक फूल पीपड़क गाछ
सह-सह लुधकल जिलेबी
आ गम-गम गमकैत आम
घोघ वाली कनिया”

ई सब कविता विस्तृत परिवेश कें इंगित करैत छैक। परिवर्तन कविता परिवेशक परिवर्तनक संग-संग ब्याहुता स्त्रीक सोहाग चिन्ह मे परिवर्तन तक संकेत करैत अछि।

सुन्नर लगैत अछि गाम कविता मे गामक शहरीकरण आ गामक महिला सबहक जीवन शैली मे शहरीपना देखबैत अछि, एहि कविता मे जतय नव सँ पुरान स्त्रीधरि मधुबनी पेंटिंग सिखबाक ललक अभिव्यक्त कएल गेल अछि ओतहि ब्यूटी पार्लरक आगमन,तेतरीक स्कूटी आदि नव व्यवहार सब सेहो देखार भ रहल अछि।

उदास अछि नेना सब कविता लाल कक्का केर पीपड़ गाछ सँ वा कहि जे प्रकृति सँ लगाव केँ चित्रित करैत अछि, आ गाछ कटला सँ हुनक बेहाल स्थिति केर वर्णन करैत अछि।

एहन नहि जे परिवर्तन खाली नकारात्मक रुपे चिन्हित कएल गेल अछि, मिनी मिथिला कवितामे सोनकाकी बॉम्बे जा क  परिवर्तनक चक्र उनटा घुमाबैत अछि आ हरजोत भौजी, हसीना बहिन , शारदा दीदी, जेसिका काकी आदि सबकें संग क विद्यापतिक गीत पर भास सजाबैत छथि।

कविता डाकपीन कविता मात्र डाकपीनक कार्यशैली मे परिवर्तन के देखार नहि करैत अछि अपितु संवादहीनता सेहो रेखांकित करैत अछि एहि कविताक मार्मिक पाँति अछि :

“टुटैत गेल परिवार
छूटैत गेल गाम घर
बिला गेल पोस्टकार्ड अन्तर्देशी
सिसकैत अछि आखड़
साइकिल वला डाकपीनक संग
पोस्टकार्ड अन्तर्देशी
अबिते नहि हेतैक
अबिते नहि हेतैक
साधारण डाक
से मोन नहि मानय अय”

गंगाक कछेड़ मे ठाढ पुनीता लोकक श्रद्धा मे बदलाव संग बहुत रास समयोचित प्रश्न केँ रेखांकित करैत अछि ते हम मुमताज प्रेमक बदलल स्वरूप केँ, जतय कवियत्री कहैत छथि:

“आय फैक्ट्रीक मशीन मे
ओझरायल अछि शाहजहाँ
भानस घर रासायन
परिवारक भूगोल
आ नेना सबहक व्याकरण मे
अफस्यात अछि मुमताज
तैयो मशीनी दुनियाँ सँ
फराक होयते
घड़ीक टिक टिक
ध्वनीक संग
चलैत रहैछ जिनगी”

जतय तक नारी-जीवनक सवाल अछि कवियत्री स्त्री सबहक दुर्दशा तं रेखांकित करबे करैत छथि, संगहि स्त्री समाजक सबल पक्ष केँ सेहो मजगूती सँ रेखांकित करैत छथि। खंड दूक पहिल कविता अजन्मीक बयान कविता मे गर्भस्थ धिया शिकायत नहि करैत छथि बल्कि सफलताक शिखर पर पहुंचल ई महिला सबहक उदाहरण द अपना केँ ओहि पाँति मे जोड़  चाहैत छथि।

सात समंदर हेलय वाली पहील महिला आ अर्जुन  अवार्ड सँ सम्मानित पद्मश्री बुला चौधरी केर उदाहरण हो वा अंतरिक्ष मे पताका लहराबै वाली कल्पना चौधरीक अथवा सेवा मूर्ति मदर टेरेसाक उदाहरण हो, कवयित्री स्त्रीक मजगूत पक्ष मजगूती सँ रखैत छथि। तहिना तस्लीमा नसरीन केँ समर्पित कविता मे कवियत्री कहैत छथि :

“दीनक ईजोत मे
कारी स्याह नेने
उज्जर पोशाक पहिर
रातुक अन्हार मे
घूम बलाक विरुद्ध
कारी पोतनिहारक विरुद्ध
लिखब अंत धरि
अहाँ कहने रही
आ सेहो अहाँ लिखलौ
दालि दरड़लौ
कतेक छाती पर “

पोथीक खंड दू पूर्णतः स्त्रीकेँ समर्पित खंड अछि आ एकरा अतिरिक्त आन कविता सब मे सेहो स्त्री जीवनक विविध पक्ष चिन्हित कएल गेल अछि। एहि मे स्त्रीक विवशता, भेद-भाव , ममत्व सब पक्ष समेटल अछि।  गोविन्दपुर वाली कविता मे गोविन्दपुर वाली अपन मजबूरी व्यक्त करैत रहैत छैक :

“सब जुग उन्टे चलब करै छै
केतनो भारी उठबियौ
केतनो ईमानदारी सँ काज करियै
बोएन तें मरदाबा सँ
कम्मे भेटतै ।

प्रकृति सेहो हिनक कविता सबमे कोनो नै कोनो रस्ते जगह बनेबाक प्रयास करैत अछि। गुलदस्ता आ केक्टस हो वा चिडैक भावना, उदास अछि नेना सब, हो वा गाछक व्यथा कथा अथवा बाट, ई कविता सब प्रकृतिक विविध रूप चित्रित करैत अछि।

काठ चिड़ैत बालेसरदीना मांझी कविता व्यक्तिक जिजीविषा केँ दर्शाबैत अछि ते ओतहि समदाउन कविता नवतुरियाक जिद्द केर आँगा बुढ़ पुरानक जिजीविषा केँ विवश भ पराजित होयत देखबैत अछि। जाहि कविता सँ कविता संग्रहक शीर्षक बनल अछि गेल्ह सब झाडैत अछि पांखि कविता चिरै – चुनमुनीक बच्चा सबहक उत्कट जिजीविषा आ शीघ्र आत्मनिर्भर हेबाक ओकर इच्छाक चित्रण करैत अछि ।

पोथीक सभसं पैघ विशेषता अछि जे कवयित्री मुख्यतया संवाद शैलीमे कविता सभ प्रस्तुत कय रहल छथि। कविता मे कखनो कविताक पात्र सभ परस्पर संवाद करैत छथि तं कखनो लेखिका स्वयं पात्र सँ संवाद करैत छथिन। जेना उफांटि कविता मे माय-बेटा के बीच सम्वाद देखाड़ परैत अछि, ते परिवर्तन कविता मे कवयित्री स्त्रीगन सँ प्रश्न करैत छथि :

“मुदा ई की भेल सखी ?
सोहागक चेन्ह
लाल टुह टुह सिनुरक रंग
किएक बदलि गेल ।”

तहिना गाछक व्यथा-कथा कविता मे बांस आ जामुन परस्पर संवाद क एक दोसराक दुख दर्द सुनैत छथि त महानगर कविता मे घर सँ बतियाइत कवयित्री कहैत छथि :

“साँचे कहैत छियह
हे हमर प्रिय घर”

ओ फूलक गाछ कविता मे फूलक गाछ स्वयं अभिव्यक्ति क रहल अछि जेना कि ओ कवयित्री सँ कहैत होय

“हमरा चाही मात्र
बित भरि जग्गह
गमलों मे क सकैत छह ठाढ़
मुदा, माटि त चाहबे करी
बिनु माटिक किछु नहि
नै तों आ नै हम”

तहिना गंगाक कछेड़ मे ठाढ़ पुनिता कविता मे मुख्य पात्र पुनिता जखन गंगाक दशा देख व्यथित होइत छथि त ओ प्रश्न करबाक बहन्ने स्वयं सँ  बतियाइत छथि। संगहि पुनीता ग्राम देवता लोरिक-सलहेश आदिक बहन्ने जे प्रश्न करैत छथि ओ प्रश्न सब सम्पूर्ण समाजक लेल प्रासंगिक अछि:

“मुदा,फरवरियेसँ चिंतित अछि पुनीता
गंगा सूखि गेलीह एखने
धार सहटि कs चलि गेल बीचोबीच
स्नानक लेल जाय पड़ैत छैक बहुत दूर
अधजरुआ छताइत रहैत छैक”

कविता संग्रहक शीर्षक गेल्ह सब झाडैत अछि पाँखि स्वयं फराक संदेश दैत अछि जे किछ हेरायल भुतयायल शब्द सब एहि पोथी मे भेटत। गेल्ह शब्द एहने एकटा हेरायल वा कम प्रयोग वला शब्द अछि,तहिना पहिल कविता मे बेर बेर आयल शब्द ‘हरसट्ठे’ , तेसर कविता शीर्षक ‘उफाँटि’, आगु चलिक पिता कवितामे शब्द ‘कुचरबब’, तहिना ‘जबदाह मौसम’ ‘मरजाद’, ‘साँकड़’, ‘नैना-जोगिन’ आदि एहन शब्द सब एहि पोथीमे भेटैत अछि जे सामान्य बोलचाल सं प्राय: बाहर भ गेल अछि।

साहित्यमे प्रेम वा श्रृंगार एकटा प्रमुख विषय वस्तु अछि। प्रस्तुत पोथीमे सेहो कवयित्री अंतिम भागमे स्त्री-पुरुष केर परस्पर प्रेम, विरह आदि भाव सभकें व्यक्त क रहल छथि मुदा सबसँ मार्मिक प्रस्तुति अछि प्रेमक सबसँ व्यापक स्वरुप अर्थात् संतानक प्रति माताक प्रेम केर। गेल्ह सब झाडैत अछि पाँखि कविता एहि प्रेमक बखान बखूबी क रहल अछि।

संक्षेप मे कही त, व्यापक परिवेशमे ई पोथी प्रकृति, परम्परा, प्रेम, करुणा इत्यादि सं सराबोर कविता सभमे पाठक कें डुबकी लगेबाक अवसर दैत अछि। शिल्पक स्तज पर बंधनमुक्तता एकरा विशेष बनबैत अछि। किछेक कविता अपन कथ्य कें स्पष्ट रूपें कहबा स पहिने ख़तम भ रहल अछि मुदा समग्रतामे ई पोथी रोचक अछि।

error: Content is protected !!