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संस्कृति मिश्रा

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अहाँ भारतमे नहि,
ओहि इंडियामे रहैत छी,
जतय रहैक लेल अहाँ
स्वतंत्र नागरिक नहि भ’
विदेशी आक्रांता कंपनी सभक ब्रैंड
अपन छातीपर साटिकेँ चलैत छी।
केकरो गिनीपिग बनि क’ अहाँकेँ
जे गर्वित हेबाक आभास होइत अछि
ओ अहाँक मरल आत्मा क’ गंध अछि।
अहाँ जाहि कन्वेंट स्कूलमे
लाखों रुपया दस्तूरी द’ क’
अपना बच्चा सभकेँ घुसियबैत छी,
दरअसल से त’ कत्लगाह छैक
जतय अहाँक विमल-बुद्धि शिशुकेँ
आत्मिक संस्कार
आ पारिवारिक संबंध सभकेँ
नाभि-नाल केँ तेज धार वाला छुरिसँ
हलाल कएल जाइत अछि।

तेकर बाद मात्र डीएनए छोड़ि
ओकर सभ किछु बदलि जाइत छैक।
घुरिकेँ अहाँ लग जे गोश्त अबैत अछि
ओ गुरुकुल क स्नातक नहि
मात्र प्लास्टिक क एटीएम कार्ड होइत अछि
जाहिसँ पाइ त’ निकसि सकैत अछि,
मुदा मानसकेँ संवाद नहि।
अपन लायक बेटाकेँ नालायक बनेबाक उन्मादमे
अहाँ जाहि माँ-बाप केँ वृद्धाश्रममे
फेंकि आएल रही,
हुनक छोड़ल कंबल
अहाँक प्रतीक्षा क’ रहल अछि
जाउ आ ओतहिए एकटा स्लमडॉग जकाँ मरू
किएक त’ अहाँक मरल मुँहमे आगि द दइवाला बेटा
फारेन में डालर क गरदामी मे गला फँसाक’
दिन-राति खटि रहल अछि,
आ परदेसी तिजोरी भरि रहल अछि।
ओकरा फुर्सत कतय छैक
जे ओ अहाँक लहासकेँ देखैक लेल आओत ?
आ लहास तँ जिबैत शरीर क होइत अछि
अहाँ त’ नहि जानि कहिए मुर्दा भ’ गेल छलहुँ!

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