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रीना चौधरी

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आएल सखि मधुमास बसंत,
पसरल चंपा कली अनंत
कोयल कूकय पपीहा पिहूकय,
आमक मंजरी गमक दिगंत।।

सरसों पीयर वसुधाक साड़ी,
सोन गहुँम कें लगल किनारी,
तीसी चमकय मुँह बिचकौने,
माँग बढ़ल छन्हि हिनकर भारी।।

फाग चढ़ल दुहु कामिनी मातल,
कटि उरोज घमसान मचायल ।
लचकि लचकि ओ चालि चलैय छथि,
जानि ने कत्तेक प्राण हरयि छथि।।

भाँग बसात में घुलिमलि गमकय,
छौंड़ा सभ कें उठय पिहकारी।
रंग अबीर सँ धरा रंगल अछि,
खनखन बाजय सभ पिचकारी ।।

मध्यमा अछि नमहर नमहर,
तर्जनी कें जुनि करू करगर ।
अँगुष्ठा सँ ओकरा सम्हारू,
ज्ञान मुद्रा अहाँ झट दs बनाऊ।
अनामिका में अँगुठि शोभय,
अछि कनिष्ठिका छोटे-छोटे।
सब मिलि कs अछि हाथ बनल,
बान्हि लिय तँ मुट्ठी तनल।
संयुक्ते सँ दुनियाँ हरकय,
फरके फरके केयो ने टरकय।।

जय माँ भारती, जय जय माँ भारती- 2,

सब मिलि आऊ नेना भुटका,
सब मिली गाऊ शान सँ ।
भारत अप्पन विश्व विजयी अछि,
शीश नमाऊ मान सँ ।।
जय माँ भारती, जय जय माँ भारती,-2

कण कण में अछि रचल मधुरता,
वाणी बाजी मीठ सँ।
आऊ सब मिली हाथ मिला क,
डेग बढ़ाबी नीक सँ।।
जय माँ भारती, जय जय माँ भारती,-2

बात स्वदेशी करी सदा हम,
टरकाबी विदेश कें।
लोकल के वोकल हम बनाबी,
चमकाबी निज देश कें।।
जय माँ भारती, जय जय माँ भारती, -2

दाँत करी दुश्मन कें खट्टा,
सीमा सँ भगाबी ठेल क’।
पौरूष अप्पन हम देखाबी,
स्वाभिमान निज तेज सँ।।
जय माँ भारती, जय जय माँ भारती,-2

भगवती अपन स्नेह सँ अपन माधुर्य सँ मिथिलाक भूमि के रचना कयलन्हि अछि । जाहि सँ मिथिलाक भूमि बड रसगर अछि । एकर कण-कण में रस माधुर्य व्याप्त अछि । मिथिला में पानिक बहुलता अछि, पग पग पोखरि मांछ मखानक लोकोक्ति एहिठामक ह्दय में रचल बसल अछि ।

कोशी, कमला, बलान आदि क़रीब सात-आठ टा नदी मिथिला में बहति अछि। आ क़रीब प्रत्येक गाम में दू टा, चारि टा पोखरि विद्यमान अछि । आ सब मीठ पानि।  तैं कहलऊँ, मिथिलाक भूमि रसगर आ मीठगर अछि । पानिक एहन प्रभाव अछि अहिठाम, जे सब किछु में पानि दृष्टिगत अछि।

कोनो मैथिल सँ गप क कय, हुनका देख कs बुझि सकय छी। बोली में, भाषा में, व्यक्तित्व में, रूप-लावण्य में सब किछ में जलतत्व के बहुलता, एकटा स्निग्धता अछि ।

जल में सब किछु के नम रखवाक क्षमता होइत अछि । तैं मिथिलानी सासु-पुतौहक सम्बन्ध में सेहो नमी होइत अछि, आर्द्रता होइत अछि, सौहार्द होइत अछि । आपस में बड मीठ सम्बन्ध होइत अछि । सासु- माय संगहि सभ पावनि-तिहार मनाओल जाइत अछि।

अपन घरक विधी- व्यवहार पुतौहु अपन सासु सँ निरन्तर सीखति रहति छथि। दुनुक व्यवहार आपस में सम्पूर्ण घर में रचि- बसि जाइत अछि। संस्कारे किछु एहन अछि मिथिलाक कि घरक बुजुर्ग अनादि काल तक घरक प्रमुख स्तंभ रहति छथि।

अहिठाम वृद्धाश्रमक कोनो आवश्यकता नहि अछि, कारण मिथिलानीक स्वभाव में नमी होइत अछि। जतय स्त्रीक आँखिक पानि मरि जायत अछि, ओतहि वृद्धाश्रम खुजति अछि। धनि छी हम मिथिलानी, जिनकर चारूये कात नहि, आँखि आ चरित्र में सेहो पानिक बहुलता अछि । पानिक धन सँ भगवती हमरा सब परिपूर्ण केने छथि ।

आर्यावर्तक मधुर माटि में वीरताक अंश मिश्रित अछि। आदिकाल सँ भारतवर्ष अपन ज्ञान, अपन वीरता आ कुशल प्रशासनिक नेतृत्वक बोध करबैत आयल अछि। पुरातनकाल सँ स्त्री- पुरूष दुनू मिल कय असुर संहार कय सृष्टिक भार उठौने छथि।
नारी दुर्गाक प्रतीक मानल जाईत छथि। स्त्रीक परिचय नहि मात्र अमृत युक्त आँचर छन्हि अपितु ओ खड्ग हस्ते छथि। ओ अपन प्रचंड डेग में शत्रुनाशक क्षमता राखय छथि। नारी के एहि क्षमता के देखैत भारत सरकार द्वारा आब “राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA)” में नारीक प्रवेशक द्वार खुजि रहल अछि।
 ‘कुश कालरा’ द्वारा एकटा याचिका दायर कयल गेल छल, जाहि में ‘यूपीएससी’ द्वारा आयोजित ‘राष्ट्रीय रक्षा अकादमी’ परीक्षा में “महिला” के बैसवाक अनुमति माँगल गेल छल, जे जस्टिस संजयकिशन कौल आ ह्रिषिकेश राय के खंड पीठ द्वारा पारित कयल गेल। अकादमी में प्रवेश न्यायालयक अंतिम आदेश के अधीन रहत।
रणभूमि में नारीक प्रवेश नव नहि अछि। राजा दशरथ युद्धक्षेत्र में अपन युद्धप्रवीणा रानी कैकेयी कें संग जाइत छलाह। रानी लक्ष्मीबाईक युद्ध कौशल सँ के नहि परिचित छी।  हुनकर नामहि सुन अंग्रेज़ी शासक थरथर काँपय छल। ओ वीरताक पर्याय बनि गेलीह। समयान्तराल के किछु कालखंड में नारीक युद्धकौशल किछु धुमिल भs गेल छल। आऊ सब धूल-गर्द झाड़ि कय पुन: अपन कौशल चमकाबी, अपन धिया कें वीरांगना बनाबी।
कतेक आह्लादक गप्प, नारी प्रत्येक क्षेत्र में अपन उपस्थिति दर्ज करा रहल छथि। हमरा अहाँ के गर्व अछि जे मिथिलानी  भावना कंठ फाइटर प्लेन में अपन आसन नीक जँका सुनिश्चित कयने छथि आ नव पीढीक आदर्श बनि हुनक मार्ग प्रशस्त कयने छथि।  आब रक्षाक आनों क्षेत्र में अपन धिया अपन परचम फहरेति। आऊ सभ मिथिलानी अपन धिया कें न सिर्फ कलाक क्षेत्र में, उच्च शिक्षाक क्षेत्र में अपितु युद्धक्षेत्र लय सेहो तैयार करी। हुनका युद्धकुशला सेहो बनाबी। नव योद्धा धिया केँ परिधिक अशेष शुभकामना छन्हि।
प्रथम तँ धरा धाम पर जीवन ओहु में मनुष्य जीवन, ताहि पर भारत सन देवभूमि में, ताहु में बिहार सन शौर्य धरा, मिथिला सन पवित्र भूमि, ओह! कतेक अहोभाग्य! तैं कहल गेल अछि    “जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरियसी” जननी आ जन्मभूमि स्वर्ग सँ महान अछि। सही में, माधुर्य एवं ज्ञान के भंडार अछि अपन मातृभूमि। अनेकों विद्वान जन एवं व्यापारी जन, ज्ञानार्जन एवं व्यापार हेतु बाहर देश-प्रदेश सँ अबैत रहलाह।
 बहुत बेसी माधुर्य के कारण विदेशी आक्रान्ताक  दुर्भावना कें नहि चिन्ह सकलहुँ आ गुलामीक जीवन करीब  हज़ार वर्ष तक जीबय पड़ल। आई, बहुतों बलिदानक उपरान्त हम-अहाँ स्वतंत्र वायुमंडल में जीव रहल छी। अखनहुँ सीमा पर आ देंश कें भीतर किछु देशद्रोही तत्व कें सामना करय पड़ैत अछि।
आई देशप्रेम सन सकारात्मक आ देश तोड़य सन नकारात्मक सोच सामानान्तर चलि रहल अछि। किछु युवा अहि नकारात्मक सोच कें दु:जाल में ओझराएल छथि। हुनका अहि जाल सँ निकालब बहुत ज़रूरी, कारण ‘एकहिटा सड़ल मांछ सम्पूर्ण पोखरि कें दुषित कय सकैत अछि।‘ बच्चा कें पथ प्रदर्शक माय सँ बेहतर केयो नहि। एक हाक प्रत्येक माँ के दी।
आऊ आई हम मिथिलानी ई प्रण ली, कि माधुर्य कें संग कनि खटरस सेहो राखब स्वभाव में, जाहि सँ आसानी सँ कोनो “चुट्टी” नहि लुधुकय। हम अपन धिया-पुता कें नेनपन सँ देशप्रेम कें शिक्षा दी। खिस्सा-पिहानी सेहो देशप्रेम कें सुनाबी। नेनपन में सीखल बात ह्रदय कें अंतस तल में बैस जाईत अछि। फेर कोनो प्रलोभनक असर नहि होईत अछि।
 अपन स्वार्थ सँ ऊपर मातृभूमि कें राखी,  बात घर सँ शुरू होयत तँ देश भरि में पसरत। आऊ देश प्रेम कें अलख जगाबी। सभ माय के आवाज लगाबी।
वर्षा ऋतुक आलिंगन पाविते प्रकृति अपन अद्भुत सौन्दर्यक प्रदर्शन करय छथि। ख़ुशीक हरियरी चारूकात पसरि जाइत अछि। मृतिकाक सोहनगर गमक सँ सम्पूर्ण वातावरण सुवासित भs जाईत अछि। प्रकृतिक संग जनमानस में सेहो उत्साह प्रसारित होईत अछि एवं बहुत उल्लासक संग वर्षा ऋतुक प्रथम मास श्रावण मास के स्वागत कयल जाईत अछि। पूजापाठ आ लोकगीत सँ एक भक्तिमय रस के प्रवाह जन-जन में व्याप्त भs जाईत अछि।
मिथिलाक स्निग्ध माटि तँ सदिखन भक्तिभाव रखैत अछि। श्रावण मास के सोमवारी सँ पावनि तिहार शुरू भs जाईत अछि। नवविवाहिता क घर में मधुश्रावणी तँ दर्शनीय पावनि होईत अछि। लोक गीत सँ मिथिला क्षेत्र गुंजायमान भs जाईत अछि। नचारी, महेशवाणी, गौरीगीत, बटगवनी, फुललोढ़ी अनेकों गीत सँ अपन भाव प्रकट करय छथि मिथिलानी। लोक संगीत मिथिलाक संस्कृति अछि। मिथिला में  पग-पग पर पान-मांछ-मखानक संग लोक गीत सेहो अछि।
लोक गीत समाज में, घर-आँगन आ विवाहदान सँ छठि पावनि में पोखरिक घाट- महार तक सीमित छल। मैथिल लोकगीतक मधुरता कें एक मणि कें आवश्यकता छल जेकर प्रकाश पुंज में दूर-सुदूर तक एकर गूँज  जाय। एहने एक मणि कें नाम छन्हि “शारदा सिन्हा”।  एक एहन मिथिलानीक  नाम जे लोक गीतसंगीत कें, आँगन सँ बाहर मंच प्रदान कय बाहरी समाज सँ परिचय करेलैन्हि। अस्सीक दशक   में कैसेट के ज़माना छल, चहुँ ओर टेपरिकार्डर पर मात्र एकहिटा मिथिलानीक आवाज लोकप्रिय छल। पुरूष प्रधान समाज में मिथिलानी कें मंच पर आयब, सहज नहीं रहल हेतैन्हि। अनेकों विरोध कें सामना कय, अपन दृढ़ताक बल पर ओ समाज में आदर्श स्थापित केलैन्हि। हुनका देखि अनेकों मिथिलानी मंच पर अपन स्थान बनेलैन्हि।
सीमित कें अपरिमित करैत, आन भाषा में सेहो गीत गेलैन्हि। बाहरी समाज में सेहो मिथिलाक पहचान बनल। सही दिशा में कयल गेल  परिश्रम सदैव पुरस्कृत होइत अछि। वर्ष १९९१ में भारत सरकार द्वारा पद्मश्री सम्मान प्राप्त कय मैथिल लोक संगीत कें मान बढौलैन्हि। वर्ष २००१ में संगीत अकादमी द्वारा सम्मानित भेलैथ। वर्ष २०१५ में बिहार सरकार द्वारा सिनेयात्रा पुरस्कार प्राप्त केलैन्हि। वर्ष २०१८ में भारत सरकार द्वारा पद्मविभूषण पुरस्कार प्राप्त कय, पुरस्कारक झड़ी लगा, मिथिलानी कें गौरव प्रदान केलैन्हि ।
अपन नाम “शारदा” के सार्थक करैत माँ सरस्वतीक असीम अनुकंपा प्राप्त कय मिथिलाक कुल गौरव बनलीह। पुरस्कारक झड़ी लगबैत, सदा स्वस्थ्य रहैथ, एतबहि कामना।
संघर्ष जखनि अपन चरम पर पहुँचति अछि, तँ अपन पग चिन्ह परिलक्षित करैत आगु बढ़ैत अछि। यदि कोनो कार्यक संपादन पुरूष और प्रकृति क बराबर सहयोगिता सँ सम्पन्न होय, तँ प्रगति निर्बाध आगु बढ़ैत अछि। चाहे ओ सिनेमा जगत कियैक नहि होई।
कालान्तर में समाज ई नहि चाहैत छल जे मिथिलानी सिनेमा जगत में कार्य करैथ। लोक-समाज में, अभिनय कलाक क्षेत्र में मिथिलानीक उपस्थिति कें नीक नहि मानल जाइत छल। प्रत्येक गाम कें अपन नाटक मंडली छल, जे मात्र पुरूष वर्ग द्वारा संचालित छल। अधिकांश परिवार में तँ स्त्रीगण नाटक देखितो नहिं छलीह, कारण छल जे, स्त्रीगण कें आँगन सँ बाहरयवाक अनुमति नहिं छलैन्हि।
समय, काल, परिस्थिति में परिवर्तन कें बसात बहल आ मिथिलानी अपन डेग सिनेमा जगत में सेहो पसारलैन्हि । वर्ष 1965 में प्रथम मैथिली सिनेमा “कन्यादान” कें निर्माण भेल छल। बहुत मंथरगती सँ सिनेमा जगत में मैथिलीक उपस्थिति दर्ज छल। वर्ष 2019 कें सिनेमा “मिथिला मखान” राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कय मैथिली सिनेमा के ‘टर्निंग प्वाइंट’ साबित भेल । मिथिला मखान’ मैथिली सिनेमा कें ऊर्जा सँ भरि गति प्रदान केलक ।  अहि सिनेमा में मिथिलानी “प्रेमलता मिश्र” अपन सशक्त अभिनय सँ ई साबित केलैन्हि कि स्त्रीगण ‘स्वयं सिद्धा’ छथि। कतेक सौम्य आ स्वाभाविक अभिनय छन्हि। मैथिली सिनेमा जगत में प्रेमलता मिश्र जीक नाम मील कें पत्थर साबित भेल ।  नायिका कें रूप में अनुरीता झा कें अभिनय सेहो दृश्टव्य छल।
न सिर्फ़ अभिनय अपितु निर्माण क क्षेत्र में सहो मिथिलानी अपन परचम फहरयने छथि। सिनेमा ‘प्रेम दुलारी’ कें निर्मात्री कें नाम “शैल देवी“ देखी मन हर्षित भेल। मिथिलानी अपन कर्मठता सँ, अपन तत्परता सँ प्रत्येक क्षेत्र में अपन स्थान बनयने छथि आ बना रहल छथि।
पुरस्कार और प्रशंसा मनोबल कें पुष्ट करवाक अचूक दवाई होइत  अछि। पुष्टता सँ मार्ग प्रशस्त होइत अछि। मिथिलानीक डेग सेहो मैथिल सिनेमा जगत कें प्रत्येक क्षेत्र में तेज़ी सँ आगु बढ़ि रहल अछि। आऊ सब मिली कय शुभकामना दी जे मिथिलानी, सिनेमा जगत में अपन योगदान सँ समाज के फूहड़ता सँ इतर, ठोस संदेश दैत सदा पुरस्कृत होइथ।
क्षण क्षण रूप बदलि कय आबय
छद्म कोरोना कतेक नचाबय।
कतेक दिन जहल में रहब, कतेक दिन तक बन्दी रहत, आब सब खुजि गेल। मुदा अवकाश अखनों नहि अछि। बहुरूपिया कोरोना आब डेल्टा प्लस कें रूप में आयल अछि।
कोरोना महामारीक दोसर लहरि के तबाही जीवन पर्यंत बिसरि नहि सकय छी। कतेको घर बर्बाद केलक। इतिहास में कतेको बेर, अनेक महामारीक चर्चा अछि। ओकर प्रदत्त क्षतिक चर्चा अछि। प्लेग, हैज़ा, चेचक आदि सब अपन तबाही देखा चुकल अछि। समय समय पर वैज्ञानिक लोकनि दवाई के निर्माण कय समाज कें सुरक्षित केलैन्हि अछि। टीकाकरण अभियान चलल अछि । लोक लाभान्वित भेल छथि।
आई पुन: महामारीक काट कें वैज्ञानिक लोकनि प्रावधान केलैन्हि अछि, आऊ हम सब वैक्सीन के लाभ ली। वैक्सीन के लs कs बहुत अफ़वाह, भय आ भ्रम सेहो प्रसारित अछि।
 अपन मिथिलानी सब शिक्षित छी, जागरूक छी, निर्णायक क्षमता राखय छी। अहि कोरोना महामारी में अपन घरक सुरक्षा में सब जी जान सँ स्वयं के समर्पित कयलहुँ। स्वयं अस्वस्थ रहलाक बावजूद अपन घरक परिचर्या में अहाँ कोनो त्रुटि नहि छोड़लहुँ।
प्रत्येक मिथिलानी अपन घरक वैचारिक स्तंभ अहाँ स्वयं छी, अहाँक वैचारिक शक्ति समाज कें सदैव अग्रसर कयने अछि। आई पुन: समाज कें अहाँक आवश्यकता अछि। घर, समाज कें जागरूक आ सुरक्षित करवाक ज़िम्मेदारी अहाँ पर अछि। वैक्सीन कें प्रति घर परिवारक संग, पास पड़ोस, समाज में विश्वास जागृत करी, अपन वैज्ञानिक लोकैन्हि कें प्रति आ वैक्सीन कें प्रति। विश्वास विजय कें प्रथम पायदान होइत अछि।
इतिहास साक्ष्य अछि जे महामारीक उन्मूलन में वैक्सीन वा टीका अत्यन्त कारगर रहल अछि। आई कोरोना क उन्मूलन अत्यन्त आवश्यक अछि । वैक्सीन सबसँ उपयुक्त हथियार अछि कोरोना पर प्रहार कें । सम्पूर्ण समाज कें वैक्सीनेशन सँ कोरोनाक  तेसर लहरि कमज़ोर पड़त, लोक, परिवार, समाज सुरक्षित रहत। प्रत्येक मिथिलानी आऊ, सभ मिलकय कोरोना पर प्रहार करी। स्वयं कें आ समाज कें सुरक्षित करी।
समय अपन धुरी पर चलि रहल अछि, सतत् निरन्तर । नित्य निर्माण आ प्रलय के क्रिया, प्रकृतिक प्रकृति अछि। प्रत्येक क्षण तत्क्षण नवीन निर्मित क्षण में विलीन भs जाइत अछि। इएह जीवन अछि। निर्मित आ विलीन होइत क्षण, कखनो बहुत खुशी दs जाइत अछि तँ कखनो असह्य पीड़ा। कतेको क्षण, समय कें संग विस्मृत भs जाइत अछि, तँ कतेको क्षण सदाक  लेल  मानस पटल पर अंकित भs जाइत अछि। तथापि जीवन चलैत रहैत अछि, ई प्रकृतिक नियम अछि।
प्रकृति माँ छथि, सदैव किछु ने किछु दैत छथि। किन्तु प्रकृतिक अवहेलना वा दोहन जखनि अति भs जाइत अछि तँ प्रकृतिक रोष समय-समय पर विभीषिकाक रूप में सामने अबैत अछि। बाढ़ि, सुखाड़, भूकम्प, महामारी अनेकों रूप मे । विभीषिका सदैव दुखदायी होइत अछि। एखन धरा धाम कोरोना नामक महामारी सँ त्रस्त अछि। अति दुखदायी समय अछि । ह्रदय विदारक दृश्य सँ भरल अछि ई समय। कतेको घर उजड़ि गेल। केयो पितृ विहिन भेलाह, केयो मातृ विहिन, किनकों आँखिक आँगा सँ संतान चलि गेलैन्हि। बहुत दुर्घट समय, अपना कें अपन सँ विछोह करबैत समय, धैर्य कतेक धारण करी, से नहि बुझना जा रहल अछि।
अर्थक क्षति तँ समयक संग पूर्ति भs जाइत अछि, मुदा समांगक क्षति तँ अपूरणीय अछि। समयक चक्र तँ चलैत रहैत अछि, हम अहाँ अहि चक्रक हिस्सा छी, अपूरणिय क्षतिक संग जीवन निरन्तर आगू बढ़ैत अछि। अहि में कोनो पड़ाव नहि होइत अछि। दुखक एहन विकट स्थिति में मनोबल बहुत टुटैत अछि। जिनकर प्रिय गेलैन्हि हुनको आ जे चारूकात प्रलय देख रहल छथि हुनको। अखनि स्वयं के एतेक मज़बूत करवाक समय अछि कि भय सेहो भयभीत होय। नारी मन बहुत मज़बूत होइत अछि, ओ जीवन केर प्रत्येक झंझावात कें पूर्ण दृढ़ता सँ साहस सँ सामना करय छथि, तथापि नारि मन कोमल आ सरल सेहो होइत अछि। दृढ़ता आ कोमलता दूनु विरोधाभास स्वभाव प्रत्येक नारि कें आभूषण अछि। अपन मिथिलानी सेहो अहि दूनु भाव सँ भूषित छथि। मुदा विकट स्थिति में कखनो तँ दृढ़ताक भाव ऊपर भs परिस्थिति सँ लड़वाक क्षमता प्रदान करैत अछि, तँ कखनो कोमलताक भाव ऊपर भs कनेक कमज़ोर करैत अछि। इएह  कमज़ोरी मनोबल कम कs दैत अछि। आई समय अछि दृढ़ताक भाव ऊपर कय मनोबल मज़बूत करय कें।
कोरोना काल में स्थिति एहन विकट भs गेल, कि मज़बूत सँ मज़बूत मिथिलानीक मनोबल कमज़ोर भs रहल छन्हि। आवश्यकता अछि हुनकर मनोबल बढ़य, सब एकदोसर कें मानसिक संबल बनी। नकारात्मक सोच सँ परहेज़ करी। भगवत्भजन करी, नीक साहित्य पढी, प्रिय गीत गाबी, अपन कोनो प्रिय काज करी, अपना आप के व्यस्त राखी। मन बहटायब बहुत ज़रूरी अछि।
जीवन निरंतर प्रवाह कें नाम अछि। प्रलय उपरान्तो जीवन तँ कतहु नहि जाइत अछि। समय अछि, प्रलयंकारी समय कें धुमिल करैत नवीन निर्माण में लाईग जाई। स्वयं कें व्यस्त कs ली। कठिन तँ अछि मुदा माँ सीताक अंश मिथिलानीक प्रवृति टुटि कs भखैरि गेनाई  नहिं अछि । ई महामारी बहुत तहस-नहस कs गेल आ कs रहल अछि। आऊ सब मिलकय पुन: निर्माण करी । नवीन निर्माण, प्रलय के ह्रास करत। आऊ पुन: वातावरण जीवंत बनाबी।
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