समय अपन धुरी पर चलि रहल अछि, सतत् निरन्तर । नित्य निर्माण आ प्रलय के क्रिया, प्रकृतिक प्रकृति अछि। प्रत्येक क्षण तत्क्षण नवीन निर्मित क्षण में विलीन भs जाइत अछि। इएह जीवन अछि। निर्मित आ विलीन होइत क्षण, कखनो बहुत खुशी दs जाइत अछि तँ कखनो असह्य पीड़ा। कतेको क्षण, समय कें संग विस्मृत भs जाइत अछि, तँ कतेको क्षण सदाक लेल मानस पटल पर अंकित भs जाइत अछि। तथापि जीवन चलैत रहैत अछि, ई प्रकृतिक नियम अछि।
प्रकृति माँ छथि, सदैव किछु ने किछु दैत छथि। किन्तु प्रकृतिक अवहेलना वा दोहन जखनि अति भs जाइत अछि तँ प्रकृतिक रोष समय-समय पर विभीषिकाक रूप में सामने अबैत अछि। बाढ़ि, सुखाड़, भूकम्प, महामारी अनेकों रूप मे । विभीषिका सदैव दुखदायी होइत अछि। एखन धरा धाम कोरोना नामक महामारी सँ त्रस्त अछि। अति दुखदायी समय अछि । ह्रदय विदारक दृश्य सँ भरल अछि ई समय। कतेको घर उजड़ि गेल। केयो पितृ विहिन भेलाह, केयो मातृ विहिन, किनकों आँखिक आँगा सँ संतान चलि गेलैन्हि। बहुत दुर्घट समय, अपना कें अपन सँ विछोह करबैत समय, धैर्य कतेक धारण करी, से नहि बुझना जा रहल अछि।
अर्थक क्षति तँ समयक संग पूर्ति भs जाइत अछि, मुदा समांगक क्षति तँ अपूरणीय अछि। समयक चक्र तँ चलैत रहैत अछि, हम अहाँ अहि चक्रक हिस्सा छी, अपूरणिय क्षतिक संग जीवन निरन्तर आगू बढ़ैत अछि। अहि में कोनो पड़ाव नहि होइत अछि। दुखक एहन विकट स्थिति में मनोबल बहुत टुटैत अछि। जिनकर प्रिय गेलैन्हि हुनको आ जे चारूकात प्रलय देख रहल छथि हुनको। अखनि स्वयं के एतेक मज़बूत करवाक समय अछि कि भय सेहो भयभीत होय। नारी मन बहुत मज़बूत होइत अछि, ओ जीवन केर प्रत्येक झंझावात कें पूर्ण दृढ़ता सँ साहस सँ सामना करय छथि, तथापि नारि मन कोमल आ सरल सेहो होइत अछि। दृढ़ता आ कोमलता दूनु विरोधाभास स्वभाव प्रत्येक नारि कें आभूषण अछि। अपन मिथिलानी सेहो अहि दूनु भाव सँ भूषित छथि। मुदा विकट स्थिति में कखनो तँ दृढ़ताक भाव ऊपर भs परिस्थिति सँ लड़वाक क्षमता प्रदान करैत अछि, तँ कखनो कोमलताक भाव ऊपर भs कनेक कमज़ोर करैत अछि। इएह कमज़ोरी मनोबल कम कs दैत अछि। आई समय अछि दृढ़ताक भाव ऊपर कय मनोबल मज़बूत करय कें।
कोरोना काल में स्थिति एहन विकट भs गेल, कि मज़बूत सँ मज़बूत मिथिलानीक मनोबल कमज़ोर भs रहल छन्हि। आवश्यकता अछि हुनकर मनोबल बढ़य, सब एकदोसर कें मानसिक संबल बनी। नकारात्मक सोच सँ परहेज़ करी। भगवत्भजन करी, नीक साहित्य पढी, प्रिय गीत गाबी, अपन कोनो प्रिय काज करी, अपना आप के व्यस्त राखी। मन बहटायब बहुत ज़रूरी अछि।
जीवन निरंतर प्रवाह कें नाम अछि। प्रलय उपरान्तो जीवन तँ कतहु नहि जाइत अछि। समय अछि, प्रलयंकारी समय कें धुमिल करैत नवीन निर्माण में लाईग जाई। स्वयं कें व्यस्त कs ली। कठिन तँ अछि मुदा माँ सीताक अंश मिथिलानीक प्रवृति टुटि कs भखैरि गेनाई नहिं अछि । ई महामारी बहुत तहस-नहस कs गेल आ कs रहल अछि। आऊ सब मिलकय पुन: निर्माण करी । नवीन निर्माण, प्रलय के ह्रास करत। आऊ पुन: वातावरण जीवंत बनाबी।