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मिथिलानी

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कक्का प्रणाम!

अहाँ अपना घरक बेटी-पुतोहू केर श्रम कें सोझे स्तरहीन घोषित करैत छी। नीक गप। अहाँ कहैत छी जे प्रकाशक सभ आँखि मूनी अधोगामी रचना सब छापि दैत छथि। बेश! महत्वपूर्ण अछि जे अहाँक ई विपद्य विचार ओहि अखबार मे प्रकाशित भेल अछि जे किछुए दिन पहिने अपन सम्पादकीय पृष्ठ पर एकटा स्वनामधन्य लेखकक लेखनीसँ एहि बातक घोषणा कएने छल जे मिथिलाक समाज स्वाभाविक रूपें सामंती, स्त्री विरोधी आ दलित विरोधी रहल अछि। वएह अखबार अहाँक एहि विचार पर मोहर लगा रहल अछि जे मैथिलीक सभ नवलेखिका अकर्मके छथि। ने त ओहि सामंती घोषणा बला लेख केर प्रतिपक्षमे कोनो लेख हमरा एहि अखबारमे आइ धरि भेटल आ ने अहाँक विपद्य विचारक समानान्तर कोनो महिलाक पक्ष देखबाक भेटल।

हमर जिज्ञासा अछि जे जतेक प्रश्न सभ उठाओल गेल ‘आजुक स्त्री लेखन’ पर, ताहिमे कोन एहन प्रश्न अछि जाहिसँ मैथिली साहित्यक नवतुरिया लेखन सामान्यत: ऊपर अछि? सभटा पुरुष लेखक सभ की ओहि प्रश्न सबहक परिधि सँ दूर छथि? कोनो गणितीय आधार अछि ई कहबाक जे ‘अधोगामी’ हेबाक ई प्रवृत्ति स्त्री लोकनिक बीच बेशी अछि पुरुख रचनाकार लोकनिक बनिस्पत?

आ.. मैथिलिए टा किएक, कोन भाषा-साहित्य एहन अछि जाहिमे नीक-बजाए नहि। कोन भाषा-साहित्य एहन अछि जाहिमे श्रेष्ठ आ हीन सभ तरहक साहित्य प्रकाशक लोकनिक छापि नहि रहलाह आ कि स्तरहीन रचना सभ मंच-मचान-पुरस्कार केर जोड़-तोड़मे लिप्त नहि रहल अछि। एकरो कोनो तुलनात्मक अध्ययन भेल अछि की? अंग्रेजीक सभ रचनाकार इलियट आ शेक्सपीयर केर बराबर छथि की? हिंदी मे सभ दिनकरे-निराला भ गेल छथि? मैथिलीक सभ पुरुख लेखक ज्योतिरीश्वर आ विद्यापति सँ प्रतियोगिता क रहल छथि की? दिनकर-निरालाक समकक्ष जे सभ पुरखा छलाह हमरा सबहक हुनको सँ आजुक पुरुख लेखक लोकनि कोनो प्रतियोगिता मे छथि की?

एकटा गप इहो जे ‘अधोगामी’ आ ‘स्तरहीन’ हेबाक मानक की? व्याकरण? वा ओ भाषा जे पढाबय बचैत रहला एहि नवतुरिया लेखिका लोकनिक बाप-पित्ती? वा ओ राजनीतिक-दार्शनिक चिंतन जे एहि लेखिका सबहक माए-पितियाइन धरि पहुँचब कल्पनातीत रहल? वा ओ मानसकिता जे ‘कनभेंट’ मे नहि पढ़इ चलते मिथिलाक धी-बेटी मे नहि पनपि सकल? दू-चारि वा दस-बीस मानक जं तय कइये ली त की ‘श्रेष्ठता’ वा ‘हीनता’ सार्वत्रिक सत्य भ गेल?

जखन अहाँ कहैत छी जे पुरस्कार आ मंच मचान जोगाड़े से भेटैत छैक त की ई बुझल जाए जे महिला लोकनिक मंच-मचान आ पुरस्कार लेल पहिल आ अंतिम शर्त जोगाड़े टा थिक। पछिला बरख चेतना समितिक दू गोट मुख्य सम्मान आ दू गोट ताम्रपत्र महिला रचनाकार/गायिका कें समर्पित कएल गेल छल।साल 2021 मे महिला रचनाकार कम सँ कम 20 गोट मैथिली पोथी बहराएल छल। अहाँक वक्तव्य केर आधार पर की ई बुझल जाए जे ई सभटा उपलब्धि जोगाड़े टा सँ भेल। आ की अहाँ ई दावा सँ कहि सकैत छी जे पुरुख लोकनिक सभ मंच-मचान-पुरस्कार जोगाड़-रहित छनि। एहने प्रश्न श्रीधरम जी आ रोमिषा केने छलथि मान्य रचनाकार रमण कुमार सिंह जीक ओहि आलेख पर जकरा अपने उद्धृत केलहुँ। रमण कक्का अपन अगिला आलेख मे स्पष्ट केलथि जे नव पीढ़ीक महिला लेखन पर लिखल गेल हुनक गप सब पुरुख लेखन पर सेहो लागू होइत अछि। सन्दर्भ धरि मे ई सेलेक्टिवज्म कोना। एहि स्पष्टीकरणक लगभग हफ्ता भरि बाद अहाँक लेख आबैत अछि, महिलाक प्रति वएह पूर्वाग्रहक सङ्ग, आ फेर ओ हू-ब-हू छपि जाइत अछि अखबार मे।

जज बनब सहज अछि जखन निर्णय अनका पर देबाक होइ। ‘स्त्री’ आन अछि अहाँ लेल, तें अहाँ सहज निर्णय क सकैत छी। निवेदन एतबहि जे कखनो मैथिली मे दिनानुदिन छपैत-बहराइत भइया-बउआ-कक्का सबहक रचना सबहक सेहो छिद्रान्वेषण ओहि मानक आ ओहि मानस सङ्ग करब जाहि मनोस्थितिमे सभ मिथिलानीक लेखन एकहि हांकमे नकारल अछि। आशा अछि जे अहाँक एहन कोनो ईमानदार पोस्ट भेटत आ हमरा सभकेँ ई कहय पड़त जे अहाँ लेल हम सभ आन नहि छी, अहाँ स्वभावतः एहिना लिखैत छी।

सादर

स्वाती शाकम्भरी

आएल सखि मधुमास बसंत,
पसरल चंपा कली अनंत
कोयल कूकय पपीहा पिहूकय,
आमक मंजरी गमक दिगंत।।

सरसों पीयर वसुधाक साड़ी,
सोन गहुँम कें लगल किनारी,
तीसी चमकय मुँह बिचकौने,
माँग बढ़ल छन्हि हिनकर भारी।।

फाग चढ़ल दुहु कामिनी मातल,
कटि उरोज घमसान मचायल ।
लचकि लचकि ओ चालि चलैय छथि,
जानि ने कत्तेक प्राण हरयि छथि।।

भाँग बसात में घुलिमलि गमकय,
छौंड़ा सभ कें उठय पिहकारी।
रंग अबीर सँ धरा रंगल अछि,
खनखन बाजय सभ पिचकारी ।।

मध्यमा अछि नमहर नमहर,
तर्जनी कें जुनि करू करगर ।
अँगुष्ठा सँ ओकरा सम्हारू,
ज्ञान मुद्रा अहाँ झट दs बनाऊ।
अनामिका में अँगुठि शोभय,
अछि कनिष्ठिका छोटे-छोटे।
सब मिलि कs अछि हाथ बनल,
बान्हि लिय तँ मुट्ठी तनल।
संयुक्ते सँ दुनियाँ हरकय,
फरके फरके केयो ने टरकय।।
आदरणीय लिली रे मैथिली साहित्यक नारी लेखनमे अग्रिम पाँतिक लेखिका छथि। आइ हुनक देहांतक दुखद समाचार प्राप्त भेल अछि।  हुनक पहिल कथा ‘रोगिणी’ 1955 ई मे वैदेही पत्रिकाक जुलाइ अंकमे प्रकाशित भेल अछि। ओ कथा आइ मिथिलानीक पाठक लोकनिक लेल प्रस्तुत कएल जा रहल अछि।
‘‘सुनै छी, तखन हम जा रहल छी।’’
‘‘हँ, जाउ।’’
‘‘पूरे पूर पचीस टाका हाथ लागत।’’ हम हुनका कान लग जा केँ नहुँए सँ बजलहुँ।
‘‘बिना कोनो काजक?’’ ओ बिहुँसलीह।
‘‘ च…च…च..।’’ हम हुनका मुहपर हाथ धरैत बजलहुँ, ‘‘राजरोगक इलाज करै छी।’’ गृहणी खूब जोरसँ हँसलीह। हमरो हँसी लागि गेल।
‘‘डाक्टर बाबू!’’ बाहरसँ एक अपरिचित स्वर आएल।
‘‘की थिक?’’ हम कोठलीसँ बहराइत पुछलिअइक। एक दस वर्षक बालक उज्जर कमीज पहिरने छल, जे ठेहुन तक झुलैत रहैक। पएरमे एक जोड़ पुरान चट्टी ओकर आर्थिक दशाक पूर्ण परिचय दऽ रहल छल। ओकर रंग पिंडश्याम रहैक, खर-खर चाम, चिक्कनताक कतहु दरश नहि। ओकर आँखि डबडबाएल आर स्वर भारी रहैक।
‘‘हमर बहिनि दुखित छथि।’’ ओ बाजल।
‘‘मुदा हम तँ बाहर जा रहल छी।’’
‘‘मुदा हमर बहिनिकेँ आखिरी हालति छैक।’’
‘‘तँ कोनो दोसर डाक्टरक कतय कियैक नहि जाइ छी? हम तँ पहिनहि दोसर केस गछि चुकल छी।’’
‘‘डाक्टर बाबू अहाँ मैथिल छी ने?’’
हमर मोन कबदि गेल। फीससँ उद्धार पएबा लेल ई लोकनि चट दऽ ‘मैथिल छी’क अस्त्र प्रहार कऽ दैत छथि। हम कइएक बेर ठका चुकलहुँ। फेर डाक्टरक जीविका तँ फीसहि पर निर्भर करैछ। अतः दृढ़ स्वरमे बजलहुँ, ‘‘मैथिल छी, अथवा बंगाली चाहे उड़िया छी, तै सँ अहाँक कोन लाभ? हमर पेशा थिक डाक्टरी।’’
ओ चुपचाप ठाढ़ रहल। हम फेर बजलहुँ, ‘‘अहीठाम बहुत डाक्टर रहै छथि, हुनकालोकनिक ओतय गेलासँ प्रायः फीसहु कम लागत।’’
 ‘‘मुदा बहिनि जे अहीं केँ बजाबय कहलक अछि?’’
‘‘मुदा हम की कऽ सकैत छी?’’
‘‘डाक्टर बाबू अहाँ की सोचैत छी, जे हम फीस नहि देब?’’
मोनक दुर्बलता पकड़ा गेलापर हमर क्रोध बढ़ि गेल। चिचिआ केँ कहलिऐक, ‘‘अहाँ हमरा बुझै छी की? हम अपन रोगीसँ वचनबद्ध भऽ चुकल छी। जाउ! व्यर्थ हमर समय नष्ट नहि करू।’’ कहि हम आगू बढ़ि गेलहुँ।
ओ लपकि केँ हमर दूनू पैर पकड़ि लेलक।
‘‘डाक्टर बाबू! हमरा क्षमा करू। हमर बहिनि मृत्यु शय्यापर पड़ल छथि। आ हुनक इच्छा छन्हि, आखरी इच्छा जे अहीं हुनका देखिअन्हि। डाक्टर बाबू अहाँकेँ एक्के बेर, मुदा जाए पड़त। हमरापर दया करू डाक्टर बाबू! हमहूँ मैथिले छी।’’
ओ हकन्न कऽ केँ कानय लागल। हम भारी दुविधामे पड़ि गेलहुँ।
ओकर रुदन सुनि केँ हमर गृहिणी आबि गेलीह।
‘‘एतेक कहैत अछि तँ चल ने जाउ।’’ पत्नीक स्वर सेहो गह्वरित छलैन्ह।
हम – ‘‘मुदा राय बहादुरक बेटा जे दुखित छथिन्ह?’’
‘‘हुनका कतय जाएब शतरंज खेलाइ लेल, आर एकरा ओतय यथार्थमे दुःखित छैक।’’
‘‘एकर माने की?’’ हमर जरल हृदयपर नोनक वर्षा हुअऽ लागल।
‘‘माने किछु नहि। अहाँ अपने कहलहुँ अछि हुनका किछु होइ-तोइ नहि छन्हि। फुसिए पेट-दर्दक बहाना कऽ केँ कालेज नहि जाइ छथि आ शतरंज खेलाइ छथि।’’
हम दाँत किटकिटबैत बजलहुँ, ‘‘अहाँ भितरी जायब की नहि?’’
‘‘हम चलि जायब, मुदा अहाँ पहिने ई गरीबकेँ देखि अबिअउ।’’ हुनकर स्वरमे याचना रहन्हि।
‘‘बऽड़नी! कहिओ जँ हमरा कहलहुँ अछि जे हमरा साड़ी चाही, ब्लाउज चाही, सिनेमा जा…।’’ बजैत-बजैत हम चुप्प भऽ गेलहुँ। रामाक आँखिसँ झर-झर नोर बहैत रहनि।
‘‘अहाँ कनैत कियैक छी?’’ ओ तइओ कनैत रहली। हम सभ किछु सहि सकै छी, मुदा पत्नीक कानब नहि। हम विचलित भऽ गेलहुँ।
‘‘अहाँ चाहै छी जे हम पहिने एकरे ओतय जाइ?’’
किछु उत्तर नहि। हमर पाथर मोन मोम जकाँ पघिल गेल। हुनक आँखि पोछैत बजलहुँ, ‘‘रामा, अहाँकेँ हमरे शपथ। कानूऽ जुनि। हम जाइ छी, एकरा संगे।’’
आर रामाक मुखारबिन्दुपर प्रसन्नताक आभास नुका-चोरी करय लगलन्हि। हम कृतकृत्य भऽ गेलहुँ।
रोगिणीक अवस्था सत्ते शोचनीय रहैक। हमरा देखितहिं बाजलि, ‘‘आबि गेलौं अहाँ? हमरा विश्वास छल जे अहाँ अवश्य आयब।’’
हम गम्भीर भावसँ ओकर पूर्णतया निरीक्षण करैमे संलग्न भऽ गेलौं। ओ बाइक जोरपर बड़बड़ा रहल छलि, ‘‘हम अहाँक नाम हँसाइ नहि देखि सकितहुँ तेँ गंगाकातमे नुआ राखि विदा भऽ गेलौं। सब बुझलक जे हम डूबि गेलौं। मुदा, एतेक साहस हमरामे नहि छल। हम एतय राय बहादुरक माइक ओतय नौकरी कऽ केँ भोलाकेँ एखन तक पोसि सकलिअइक अछि। मुदा, आब एकरा के देखतैक? ओहि दिन राय बहादुरक ओतय अहाँक दर्शन भेल। हम तँ लगले चिन्हि गेलौं। आब अहाँ भोलाकेँ देखबैक!’’
‘‘मुदा भोला….?’’
भोला, जे हमरा अनने रहय, ओत्तहि सिरमा लग ठाढ़ छल। ओकरा दिस ताकि रोगिणी फेर बाजलि, ‘‘भोला! भोला तों बाहर जा, आ केबाड़ बन्द कऽ दहक।’’ आर भोला चुपचाप चल गेल। ओ तखनहु कानि रहल छली।
हम अपन सिरिंजमे औषध भरैत छलहुँ। मुदा, एहिसँ लाभक कोनो सम्भावना नहि छल, तैओ अन्तिम चेष्टा।
‘‘मुदा भोलाकेँ नहि जानल छलैक जे ओ हमरालोकनिक सन्तान थिक।’’
‘‘की?’’ हम अपन हाथसँ खसैत सिरिंजकेँ सम्हारलहुँ।
‘‘नहि, तखन ओ हमरासँ घृणा करिते। हमरा खातिर ओकरा नहि कहबै जे ओकर ‘माए-बाप’ हम-अहाँ छियैक।’’
‘‘दाइ! अहाँ की बजै छी?’’ पहिले बेर हम मुह खोललहुँ।
‘‘हम?’’ ओ आश्चर्यसँ हमरा दिस तकैत बजली।
 ‘‘हम की बजै छी? अहाँ हमरा चिन्हलौं नै? मुदा अहाँ तँ कहने रही जे अहाँ हमरा बिसरि नहि सकै छी?’’
‘‘होशमे नै छथि?’’ हम अपनेमे बड़बड़ेलौं, मुदा ओ सुनि गेली।
अपन समस्त शक्ति लगा केँ बजलीह, ‘‘हऽमरे….ए…नू….ओझा ओतय अहाँक मामा…।’’
मुदा ओकर बोली लागय लगलैक। ओ निःचेष्ट भऽ आँखि मुनि लेलक।
हमर आँखिक आगाँ अन्धकार भए गेल। क्रमशः ओ अन्धकार दूर भऽ गेल आ ओहिमेसँ प्रकट भेल मामाक मकान। हम मेडिकल काॅलेजमे पढ़ैत रही। ओहि समयमे मामाक ओतय केओ आन रहैत छल। के? एक मूर्ति फेर प्रकट भेल। विधवा तरुणीक। गौर वर्ण, कोसासँ चीरल आँखि, गोल नाक आर पातर गुलाबी ठोर। सब मिला केँ एक अद्भुत आकर्षण शक्ति रहै ओइमे जे हमरा अनायासे घींचि लेलक अपनामे।
रोगिणीक मुह देखलियै – श्याम, रेनूक रंगसँ कोनो समानता नहि रहै। गाल पचकि केँ एक दोसरामे सटबा-सटबापर। आँखि एक आङुर तऽर दिस, ओकर नीचामे कारी दाग। अः नहि, रेनूसँ कोनो समानता नहि छलैक। रोगिणी अपन आँखि खोललक। हँ! वैह चिर परिचित ताकब। वैह थिकीह, वैह, कोनो सन्देह नहि।
‘रेनू?’’ हमरा मुहसँ बहरायल।
‘‘अहाँ हमरा चिन्हलौं?’’
ओकर अधरपर एक क्षीण मुस्कान दौड़ि गेलै। वैह चिर परिचत मुस्कान जे हमरा संसारसँ पृथक कऽ केँ अपनामे समेटि लैत रहै। मुदा, आइ अपन मुस्कानक भार ओ स्वयं नहि सहि सकलि। ओकर ठोर बिचकि गेलै। ओ अपन आँखि बन्द कऽ लेलक, सब दिनक लेल…..।

जय माँ भारती, जय जय माँ भारती- 2,

सब मिलि आऊ नेना भुटका,
सब मिली गाऊ शान सँ ।
भारत अप्पन विश्व विजयी अछि,
शीश नमाऊ मान सँ ।।
जय माँ भारती, जय जय माँ भारती,-2

कण कण में अछि रचल मधुरता,
वाणी बाजी मीठ सँ।
आऊ सब मिली हाथ मिला क,
डेग बढ़ाबी नीक सँ।।
जय माँ भारती, जय जय माँ भारती,-2

बात स्वदेशी करी सदा हम,
टरकाबी विदेश कें।
लोकल के वोकल हम बनाबी,
चमकाबी निज देश कें।।
जय माँ भारती, जय जय माँ भारती, -2

दाँत करी दुश्मन कें खट्टा,
सीमा सँ भगाबी ठेल क’।
पौरूष अप्पन हम देखाबी,
स्वाभिमान निज तेज सँ।।
जय माँ भारती, जय जय माँ भारती,-2

 

हिन्द महासागर के उत्तरमे
और गिरिराज के दक्षिणमे
पसरल इ विशाल भूमि
मात्र पृथ्वीक एक टुकड़ी नहि थिक
अपितु इ स्वयंमे सम्पूर्ण सृष्टि और ब्रम्हांडक सार के समेटने थिक

हजारों वर्षक
स्वर्णिम इतिहास के सहेजने
इ भारत वर्ष
ब्रम्हांडमे जहिना सूर्य चमकति छथि
तहिना अहि पृथ्वीपर
चमकि रहल अछि

अहि तीन अक्षर के देशमे
लोक तीनहि टा भाषा बजैत अछि
प्रेम, त्याग और समर्पण के भाषा
तीनहि रंगमे रंगल रहैत अछि
केसरिया, उज्जर और हरियर

अहि देशक संतान
एकरूपतामे विश्वास रखैत अछि
सुन्दरतामे नहि
राजस्थान के मरूभूमिसँ
सेहो लोक ओतबै प्रेम करैत अछि
जतेक कश्मीर के वादीसँ

महान सपूत और वीरांगना सभक जन्मस्थली अछि इ देवभूमि
जहि ठाम पंचतत्व के अपन आराध्य मानल जाइत अछि

वसुधैव कुटुंबकम्
सर्वधर्म समभाव के अवधारणा
राखल जाइत अछि

जं हजारों जन्मक सत्कर्मसँ
मानव शरीर भेटैत छैक
त’ लाखों जन्मक सत्कर्मसँ
भारत सम जन्मभूमि भेटैत छैक
तैं त’ अहि देश के अस्मिताक रक्षा हेतु
एकटा अबोध बच्चा सेहो
अपन सर्वोच्च बलिदान करबा सँ
पाछू नहि हटैत छैक

हमरा एखनहुँ मोन अछि

इसकूलक समय के

छब्बीस जनवरीक ओ परेड

जाहिमे कागतक बनल तिरंगा हाथमे ल’

भारत माता की जय

सुभाषचन्द्र बोस अमर रहे के नारा लगबति

गामक चौहद्दी नपैत छलहुँ

भगतसिंह और चंद्रशेखर आजाद पर

दस आखर बजैत छलहुँ

गर्व सँ सीना ऊंच केने

इंकलाब ज़िंदाबाद के जयघोष करैत छलहुँ

इन्दिरा गान्धी और सरोजिनी नायडू के नाम रटैत छलहुँ

 

आजादीक स्वर्णिम वर्षगांठ भ’ गेल छल तहिया

मुदा गाममे उच्च विद्यालय नहि

छिछिया बौआय क’ धी- बेटी कतेक पढ़ैत

सभ थोड़बे इन्दिरा गान्धी बनि जायत

नहि!

मुदा किछु ने किछु अवश्य बनैत

 

आजादीक जश्नमे डूमल अहि देश मे

कहां किनको फुरसति रहनि अहि दिस तकबाक

 

जाहि भारत के भविष्य सभ लेल

ओतेक संघर्ष सँ

आजादी हासिल कएल गेल

एतेक दशक बितलाक बादहु

कतेक भविष्य सभ

सड़क पर बिलटति

नोरे बिलखति

 

अहि देशक बेटी सभ

समुद्रक गहराइ सँ ल’ क’

अन्तरिक्ष केर ऊंचाइ तक गेल

राष्ट्रपति, प्रधानमन्त्री के संग

हरेक उच्च पदपर आसीन भेल

 

इ त’ भ’ गेल अहि देशक बेटी केर क्षमता

आजाद भारत के बेटीक

मुदा अहि क्षमता के बाधक बनल रहल

गुलाम सोचक कायरता

जे अहि देशमे हरेक वर्ष

लाखों के संख्यामे

बेटी सभक नाम परिवर्तित क’

निर्भया राखि दैत अछि

 

देश स्वतंत्र अछि

अभिव्यक्तिक आजादी अछि

मुदा कि अहि आजादीक लेल

लाखो माय अपन कोखि उजाड़ि लेलनि

हजारों विधवा अपन माथक सेनूर पोछि लेलीह

 

जाहि देशमे अनकर द्वारा कएल गेल अपमान

लोक नहि सहलक

ओतय अपनहि लोक सँ कएल अपमान

कोना सहि रहल अछि

इ उनटा गंगा

कोना बहि रहल अछि

 

आवश्यक अछि धैर्यक बान्ह के ढ़हब

 

लोक उठत

एक बेर और लड़त

अहि देशक बेटा नहि

केवल बेटी लड़त

अनका सँ नहि

केवल अपनहि सँ लड़त

जीतत

आ तहन होयत सम्पूर्ण विजय

पूर्ण आजादी

 

तहन अहि देशक बच्चा- बच्चा के सिखब’ नहि पड़त राष्ट्रगीत

ओकर शोणितक हर धारमे बहत

अपना देश लेल प्रीत

मां लक्ष्मी के करि आवाहन,
गणपति जी के संग,
कार्तिक मास के अमावस्या मे,
दिया बाती पाबैन!!

साफ सफाई कोन कोन मे,
लेसब माटीक दीप,
आतिशबाजी नियंत्रित राखब,
राखब पर्यावरण नीक !!

मोन परैय अपन समय के,
दिया बाती पाबैन,
हुक्का लोली ल खुश होइत रहि,
बुझहि एकरे पाबैन!!

अन्हारिया के लेस दिया सं,
इजोत देखाबैय दिया बाती,
मनक विकार के मिटा के,
खुशी बांटे दिया बाती!!

इजोत करु अपना घर संग,
रोशन करि गरीबक घर,
एतेक प्रयत्न करि सदिखन,
कोनो‌ घर नैय रहैय अन्हार!!

संकल्प लिय दिप जरा,
करु अन्हार के दूर,
मनुख छी त हाथ बढाऊ,
जे छथि मजबूर !!!

आइ पुन: मिथिला भूमि गौरवान्वित अछि, शिक्षण क्षेत्रमे एकटा मिथिलानीक उपलब्धि सँ। प्रखर शिक्षिका चंदना दत्त अपन शिक्षिका धर्म केर सुचारु रूप सँ निर्वहन कय, समाज में आदर्श स्थापित करैत 2021 केर राष्ट्रीय शिक्षक सम्मान सँ सम्मानित भेलीह। क़लम संग तूलिकाक प्रेमी चंदना दत्त ‘मिथिला पेंटिंग’ में सेहो दक्ष छथि।

बलाट गामक साहित्यानुरागी, साहित्य अकादमी सम्मान सँ सम्मानित स्व. डा. नित्यानन्द लाल दासक धिया चंदना दत्त राजकीयकृत मध्य विद्यालय, रांटी, राजनगर में सेवारत छथि। मैथिली भाषा सँ स्नातकोत्तर चंदना मैथिली आ हिन्दी भाषामे साहित्य सेवा सेहो करैत छथि। विभिन्न पत्र-पत्रिका में कथा शोध पत्र, आलेख आओर कविता प्रकाशित होइत रहय छन्हि। मैथिलीमे हुनक गंगास्नान नामक एक गोट कथा संग्रह सेहो प्रकाशित छन्हि। लेखनमे हुनक एतेक गहन रुचि छनि जे ओ स्वयं कहय छथि “जँ हम शिक्षण कार्य में नहि रहतहुँ तँ पूर्णकालिक लेखिका बनितहुँ।”

अनेको पुरस्कार सँ पुरस्कृत छथि चंदना

राष्ट्रपति शिक्षक सम्मान प्राप्त करबासं पहिने चंदना चेतना समिति (पटना)सं डॉ माहेश्वरी सिंह महेश ग्रंथ पुरस्कार 2014 प्राप्त क चुकल छथि। संगहि हुनका भाऊराव देवरस सेवा न्यास (लखनऊ) द्वारा  पं. प्रताप नारायण मिश्र स्मृति युवा साहित्यकार सम्मान 2017, इंडिया थिंक काउंसिल (नई दिल्ली) द्वारा अवध मिथिला सम्मान 2019, अवन्तिका संस्था (दिल्ली) द्वारा डा एस राधाकृष्णन सम्मान 2020 आ रक्तदानमे अग्रणी योगदान लेल रोहतक (हरियाणा) केर एकटा संस्था द्वारा रक्तदान सृजन सेवा सम्मान सँ 2016 सेहो भेटल छनि।

सहज, सरल, विनम्र स्वाभाक धनी चंदना एहि उपलब्धि सभक उल्लेख आबैत धरि कहैत छथि “ई पुरस्कार निश्चित रूपें हमर शिष्य सभकें, अपन माता-पिता, अपन परिवार, अपन सभ गुरुजन कें एवं सभ सहयोगी शिक्षक केर समर्पित अछि । कियैक त बिनु हुनकर हम किछु नहि छी।”

बहुमुखी प्रतिभाक धनी छथि चंदना

शिक्षिकाक संग कलाकार, लेखिका, कवियित्री, समाजसेविका आदि अनेक भूमिकामे अपन योगदान कयनिहार चंदना रक्तदान, नेत्रदान आदि लेल नहि मात्र अपन लेखनी सँ बल्कि अपन कर्मसँ सेहो प्रेरित करैत रहय छथि। अपन शिष्य सभक बहुमुखी विकास लेल सदैव प्रयत्नशील रहैत छथि। बालिका शिक्षा लेल कथा, कविता लिखय छथि आ शिक्षक- अभिभावक सम्मेलन केर माध्यम सँ जागरूक करैत रहय छथि।

शिक्षक आ शिक्षण केर प्रति चंदनाक दृष्टि पूर्णत: स्पष्ट छनि। जखन शिक्षक धर्ममे आदर्श स्थितिक गप होइ छैक, चंदना कहय छथि “आदर्श शिक्षक के कोनो परिधि में नहि बान्हि सकय छी। जे बच्चा सभ में लोकप्रिय होयथि, जे समयनिष्ठ आ ज्ञानी होयथि, जे विषय वस्तु केर पर्यावरण सँ जोड़ि कय पढ़ावथि आ धिया-पुता के आंगा देशप्रेमी,रोज़गार सृजोन्मुख बनावथि।”

चंदना आगु कहय छथि “ई खुशीक गप थिक जे शिक्षक केर प्रति समाजक भावना सभदिन नीक रहल अछि। कियैक त ईश्वर जकर भाग्य दहिना हाथे लिखय छथि ओ शिक्षक बनय छथि।”

विद्यार्थी केर विकास सर्वोच्च प्राथमिकता 

अपन शिक्षक संगी लोकनिक लेल चंदना कहय छथि जे हुनक सर्वोच्च प्राथमिकता अपन शिष्य केर विकास हेबाक चाही। ओ कहय छथि “अहाँ प्रत्येक परिस्थितिजन्य समस्या कें कात करैत अपन सृजनशीलतासँ अपन शिष्यक योग्यता बढ़ाउ, हुनका सदिखन आगां बढ़य लेल प्रेरित करू।”

 अपन शिक्षण संस्था के प्रति समर्पण कें भाव चंदना दत्त जी में प्रचुर मात्रा में छन्हि। ओ पिछड़ा-अति पिछड़ा क्षेत्र में जा माता पिता कें शिक्षा कें प्रति जागरूक कय हुनकर बालक बालिका कें शिक्षा लय प्रोत्साहित करय छथि। ओ समाज में उपेक्षित मूक बधिर बालिका “ज्योति” सन अनेकों बच्चा सभ के मिथिला पेंटिंग केर प्रशिक्षण दय जीविकोपार्जन लय तैयार करय छथि, अपन विद्यार्थी कें स्वच्छताक ज्ञान संग भोजनक पौष्टिकता कें ज्ञान सँ सेहो अवगत करबैत छथि। सामान्य पाठ्य पुस्तक सँ इतर पुस्तक पढ़य हेतु जागरूक करैत पुस्तकालयक महत्ता बता मनोवैज्ञानिक स्तर पर मानसिक विकास में अपन योगदान दय समाज कें सोझरायल नागरिक प्रदान कय रहल छथि।

आर्यावर्तक मधुर माटि में वीरताक अंश मिश्रित अछि। आदिकाल सँ भारतवर्ष अपन ज्ञान, अपन वीरता आ कुशल प्रशासनिक नेतृत्वक बोध करबैत आयल अछि। पुरातनकाल सँ स्त्री- पुरूष दुनू मिल कय असुर संहार कय सृष्टिक भार उठौने छथि।
नारी दुर्गाक प्रतीक मानल जाईत छथि। स्त्रीक परिचय नहि मात्र अमृत युक्त आँचर छन्हि अपितु ओ खड्ग हस्ते छथि। ओ अपन प्रचंड डेग में शत्रुनाशक क्षमता राखय छथि। नारी के एहि क्षमता के देखैत भारत सरकार द्वारा आब “राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (NDA)” में नारीक प्रवेशक द्वार खुजि रहल अछि।
 ‘कुश कालरा’ द्वारा एकटा याचिका दायर कयल गेल छल, जाहि में ‘यूपीएससी’ द्वारा आयोजित ‘राष्ट्रीय रक्षा अकादमी’ परीक्षा में “महिला” के बैसवाक अनुमति माँगल गेल छल, जे जस्टिस संजयकिशन कौल आ ह्रिषिकेश राय के खंड पीठ द्वारा पारित कयल गेल। अकादमी में प्रवेश न्यायालयक अंतिम आदेश के अधीन रहत।
रणभूमि में नारीक प्रवेश नव नहि अछि। राजा दशरथ युद्धक्षेत्र में अपन युद्धप्रवीणा रानी कैकेयी कें संग जाइत छलाह। रानी लक्ष्मीबाईक युद्ध कौशल सँ के नहि परिचित छी।  हुनकर नामहि सुन अंग्रेज़ी शासक थरथर काँपय छल। ओ वीरताक पर्याय बनि गेलीह। समयान्तराल के किछु कालखंड में नारीक युद्धकौशल किछु धुमिल भs गेल छल। आऊ सब धूल-गर्द झाड़ि कय पुन: अपन कौशल चमकाबी, अपन धिया कें वीरांगना बनाबी।
कतेक आह्लादक गप्प, नारी प्रत्येक क्षेत्र में अपन उपस्थिति दर्ज करा रहल छथि। हमरा अहाँ के गर्व अछि जे मिथिलानी  भावना कंठ फाइटर प्लेन में अपन आसन नीक जँका सुनिश्चित कयने छथि आ नव पीढीक आदर्श बनि हुनक मार्ग प्रशस्त कयने छथि।  आब रक्षाक आनों क्षेत्र में अपन धिया अपन परचम फहरेति। आऊ सभ मिथिलानी अपन धिया कें न सिर्फ कलाक क्षेत्र में, उच्च शिक्षाक क्षेत्र में अपितु युद्धक्षेत्र लय सेहो तैयार करी। हुनका युद्धकुशला सेहो बनाबी। नव योद्धा धिया केँ परिधिक अशेष शुभकामना छन्हि।
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