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महिला दिवस

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कक्का प्रणाम!

अहाँ अपना घरक बेटी-पुतोहू केर श्रम कें सोझे स्तरहीन घोषित करैत छी। नीक गप। अहाँ कहैत छी जे प्रकाशक सभ आँखि मूनी अधोगामी रचना सब छापि दैत छथि। बेश! महत्वपूर्ण अछि जे अहाँक ई विपद्य विचार ओहि अखबार मे प्रकाशित भेल अछि जे किछुए दिन पहिने अपन सम्पादकीय पृष्ठ पर एकटा स्वनामधन्य लेखकक लेखनीसँ एहि बातक घोषणा कएने छल जे मिथिलाक समाज स्वाभाविक रूपें सामंती, स्त्री विरोधी आ दलित विरोधी रहल अछि। वएह अखबार अहाँक एहि विचार पर मोहर लगा रहल अछि जे मैथिलीक सभ नवलेखिका अकर्मके छथि। ने त ओहि सामंती घोषणा बला लेख केर प्रतिपक्षमे कोनो लेख हमरा एहि अखबारमे आइ धरि भेटल आ ने अहाँक विपद्य विचारक समानान्तर कोनो महिलाक पक्ष देखबाक भेटल।

हमर जिज्ञासा अछि जे जतेक प्रश्न सभ उठाओल गेल ‘आजुक स्त्री लेखन’ पर, ताहिमे कोन एहन प्रश्न अछि जाहिसँ मैथिली साहित्यक नवतुरिया लेखन सामान्यत: ऊपर अछि? सभटा पुरुष लेखक सभ की ओहि प्रश्न सबहक परिधि सँ दूर छथि? कोनो गणितीय आधार अछि ई कहबाक जे ‘अधोगामी’ हेबाक ई प्रवृत्ति स्त्री लोकनिक बीच बेशी अछि पुरुख रचनाकार लोकनिक बनिस्पत?

आ.. मैथिलिए टा किएक, कोन भाषा-साहित्य एहन अछि जाहिमे नीक-बजाए नहि। कोन भाषा-साहित्य एहन अछि जाहिमे श्रेष्ठ आ हीन सभ तरहक साहित्य प्रकाशक लोकनिक छापि नहि रहलाह आ कि स्तरहीन रचना सभ मंच-मचान-पुरस्कार केर जोड़-तोड़मे लिप्त नहि रहल अछि। एकरो कोनो तुलनात्मक अध्ययन भेल अछि की? अंग्रेजीक सभ रचनाकार इलियट आ शेक्सपीयर केर बराबर छथि की? हिंदी मे सभ दिनकरे-निराला भ गेल छथि? मैथिलीक सभ पुरुख लेखक ज्योतिरीश्वर आ विद्यापति सँ प्रतियोगिता क रहल छथि की? दिनकर-निरालाक समकक्ष जे सभ पुरखा छलाह हमरा सबहक हुनको सँ आजुक पुरुख लेखक लोकनि कोनो प्रतियोगिता मे छथि की?

एकटा गप इहो जे ‘अधोगामी’ आ ‘स्तरहीन’ हेबाक मानक की? व्याकरण? वा ओ भाषा जे पढाबय बचैत रहला एहि नवतुरिया लेखिका लोकनिक बाप-पित्ती? वा ओ राजनीतिक-दार्शनिक चिंतन जे एहि लेखिका सबहक माए-पितियाइन धरि पहुँचब कल्पनातीत रहल? वा ओ मानसकिता जे ‘कनभेंट’ मे नहि पढ़इ चलते मिथिलाक धी-बेटी मे नहि पनपि सकल? दू-चारि वा दस-बीस मानक जं तय कइये ली त की ‘श्रेष्ठता’ वा ‘हीनता’ सार्वत्रिक सत्य भ गेल?

जखन अहाँ कहैत छी जे पुरस्कार आ मंच मचान जोगाड़े से भेटैत छैक त की ई बुझल जाए जे महिला लोकनिक मंच-मचान आ पुरस्कार लेल पहिल आ अंतिम शर्त जोगाड़े टा थिक। पछिला बरख चेतना समितिक दू गोट मुख्य सम्मान आ दू गोट ताम्रपत्र महिला रचनाकार/गायिका कें समर्पित कएल गेल छल।साल 2021 मे महिला रचनाकार कम सँ कम 20 गोट मैथिली पोथी बहराएल छल। अहाँक वक्तव्य केर आधार पर की ई बुझल जाए जे ई सभटा उपलब्धि जोगाड़े टा सँ भेल। आ की अहाँ ई दावा सँ कहि सकैत छी जे पुरुख लोकनिक सभ मंच-मचान-पुरस्कार जोगाड़-रहित छनि। एहने प्रश्न श्रीधरम जी आ रोमिषा केने छलथि मान्य रचनाकार रमण कुमार सिंह जीक ओहि आलेख पर जकरा अपने उद्धृत केलहुँ। रमण कक्का अपन अगिला आलेख मे स्पष्ट केलथि जे नव पीढ़ीक महिला लेखन पर लिखल गेल हुनक गप सब पुरुख लेखन पर सेहो लागू होइत अछि। सन्दर्भ धरि मे ई सेलेक्टिवज्म कोना। एहि स्पष्टीकरणक लगभग हफ्ता भरि बाद अहाँक लेख आबैत अछि, महिलाक प्रति वएह पूर्वाग्रहक सङ्ग, आ फेर ओ हू-ब-हू छपि जाइत अछि अखबार मे।

जज बनब सहज अछि जखन निर्णय अनका पर देबाक होइ। ‘स्त्री’ आन अछि अहाँ लेल, तें अहाँ सहज निर्णय क सकैत छी। निवेदन एतबहि जे कखनो मैथिली मे दिनानुदिन छपैत-बहराइत भइया-बउआ-कक्का सबहक रचना सबहक सेहो छिद्रान्वेषण ओहि मानक आ ओहि मानस सङ्ग करब जाहि मनोस्थितिमे सभ मिथिलानीक लेखन एकहि हांकमे नकारल अछि। आशा अछि जे अहाँक एहन कोनो ईमानदार पोस्ट भेटत आ हमरा सभकेँ ई कहय पड़त जे अहाँ लेल हम सभ आन नहि छी, अहाँ स्वभावतः एहिना लिखैत छी।

सादर

स्वाती शाकम्भरी

बड्ड मोसकिल होइत छैक
स्त्री बनि कए
स्त्रीत्वक दायित्व निमाहब
कोना बुझि जायब अहाँ
नहि अछि अहाँक लेल ई एतेक सहज
एकरा बुझबाक लेल बनय परत
अहाँकेँ एकटा स्त्री
जेना बनलाह एहि त्रिलोकमे
एक्कहि टा पुरुष स्वयं शिव
जौँ सिखिबाक अछि तँ सीखु न
कयल जाउ प्रयास ई बुझबाक लेल
जे प्रेममे शिव भेनाय कि होइत छैक
जा धरि अहाँ नहि बुझब
ता धरि हमरा करय परत
घरक भित्ति सँ भरि पोख गप
कह’ परत हमरा अपन व्यथा
चुल्हाक जरैत आँच सँ
ओसारा परहक पक्काकेँ खोधि कऽ पृथ्वीसँ
अहाँ उत्तम पुरुष छी तेँ
बस अहाँ लिखब माइक ममता
पत्नीक परित्याग
बेटीक दुलार आ सिनेह
प्रेमीक प्रणय आ प्रतिज्ञा
हे पढ़ब, लिखब, सुनब
सभ किछु संभव छैक
मुदा हे युग पुरुष अहाँ
नहि अनुभव कऽ सकब
ओकर पीड़ा
नहि अकानि सकब
ओकर हिअक वेदना
नहि बुझि सकब
ओकर अन्तर्मनक अवसाद
किएक तँ स्त्री बनब
नहि छैक एतेक सरल
(चित्र : रवीन्द्र दास जीक कृति, हुनक फेसबुक वाल सं साभार)
नारी केर होइछ मान जतय, देवता प्रसन्न भ’ जाइत छथि
होइ छथि अपमानित लांछित जं कालीक रूप मे आबै छथि।

आजुक विमर्शक  विषय अछि-“आजुक स्त्री कतेक आगां, कतेक स्वतंत्र”।आउ , विश्व महिला- दिवसक अवसर पर सब गोटा मिलि क’ अपन यथार्थ स्थितिक विषय मे आत्मावलोकन करी, आत्मचिंतन करी-हम सभ दैहिक आत्मिक एवं मानसिक स्तर पर यथार्थत:स्वतंत्र छी वा नहिं? की शिक्षा ,रोजगार, राष्ट्रक प्रगति ,वैज्ञानिक उन्नति आदि क्षेत्र मे अपना लोकनि ओतबहि  योगदान द’ रहल छी जतबा हमरा सब मे सामर्थ्य अछि? की सभ स्त्रिगण अपना धीया कें ओतबहि स्वतंत्रता द’ रहल छथि जतबा अपना बेटा कें?

 बहुत रास प्रश्नक परिधि मे, आजुक  विमर्शक विषय कें दू भाग मे बंटै छी- सर्वप्रथम  पहिल खंड पर चिंतन करैत छी

आजुक स्त्री कतेक आगां

जं कने गंभीर -चिंतन करबै त’ कोनो विषयवस्तुक  दू टा स्वरूप होइत छैक-बाह्य कलेवर आ आन्तरिक यथार्थ! प्रयास करब -दूनू तल पर अयबाक। हम सब आगां छी – जीवनक कोनो क्षेत्र एहन नञि,जाहि मे हम प्रतिभाक लोहा नञि  मनबौलहुं, विश्वक कोनो स्थान एहन नहिं जे हमरा सभक लेल अगम्य! मुदा प्रश्न ई जे की ई स्थिति वस्तुतः  सबहक लेल? हम विस्तृत भौगोलिक- परिधि कें छोड़ि मात्र भारतक सीमा मे एहि विषय पर दृष्टिपात कर’ चाहब आ आगां हयबाक पक्ष कें क्रमशःचारि  भाग मे बांट’ चाहब -वैचारिक स्तर पर ,बौद्धिक स्तर पर ,आर्थिक स्तर पर  आ राजनीतिक स्तर पर –

1.  वैचारिक स्तर पर

वैचारिक स्तर पर स्त्री निस्संदेह आगां छथि।हुनकर प्रकृति एहि तरहें गूंथल छनि जे जीवनमूल्यक  आधान वा आरोपण करबाक आवश्यकता सेहो नहिं होइत छैक,जेना जन्महिं सं संस्कार नेने एहि धरा पर अवतरित भेल होइथ।हुनकर त्याग -भावना ,मानवीयमूल्यक अगिला पीढ़ी मे कुशलतापूर्वक आधान करबाक सामर्थ्य एवं परिवार कें जोड़ि क’ रखबाक सहज क्षमता हुनका एकटा विशिष्ट मानव बनबैत छनि। एहि प्रसंग मे हम महाकवि जयशंकर प्रसादक  कामायनीक श्रद्धाक मुख सं कहल ई कथन कोट कर’ चाहब –

एहि अर्पण मे किछु आर न अछि, उत्सर्ग-मात्र झलकैछ सदा
हम दैत रही, नहिं ग्रहण करी, ई भाव सरल अछि संग मुदा।।
( इस अर्पण में कुछ और नहीं केवल उत्सर्ग झलकता है
 मैं दे दूं और न फिर कुछ लूं ,इतना ही सरल झलकता है ।।)

आजुक स्त्रीक व्यक्तित्व शिक्षाक प्रकाश सं प्रकाशित छनि, मुदा हुनक  मां -काकी ,बाबी- नानी सभ बिनु औपचारिक शिक्षा नेनहुं मानवीय गुणवैभव सं  ओतप्रोत रहथि वा छथि,से हम सब जनै छी।

2. बौद्धिक स्तर पर

बौद्धिक स्तर पर स्त्रीक अग्रगामिता एहि स्तर  पर स्वीकार कैल जा सकै छै जे सामान्य ज्ञान,प्रत्युत्पन्नमतित्व आ औपचारिक शिक्षा नहिंयों नेने, परंपरा सं प्राप्त ज्ञान कें व्यावहारिक स्तर पर रूपायित करबाक हुनक सामर्थ्यक आगां आइ धरि क्यो  कोनो प्रश्नचिन्ह नैं लगा सकल अछि। आजुक युग मे औपचारिक- शिक्षा लेबाक स्वतंत्रता सेहो अधिकांश स्त्रिगण कें भेंटल छनि, मुदा एत’ एकटा विषमता देखना जाइत अछि-प्रत्येक बालिका कें अपन रुचिक अनुसार विषय- चयनक स्वतंत्रता सुलभ नहिं छैक। संगे इहो कह’ चाहब जे  “बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ” नाराक  बावजूद किछु अभिजात आ शिक्षित- परिवारक  धीया कें छाड़ि दियै त’ आंकड़ा औखन दयनीय स्थिति देखा रहल छैक।

3.  आर्थिक स्तर पर 

प्राचीन कालक तुलना मे स्त्रिगण आइ आर्थिक स्तर पर अपेक्षाकृत सबल भेलीह अछि। आर्थिक- आत्मनिर्भरताक महत्व बुझैत ओ अपन सामर्थ्यानुसार नोकरी ,व्यवसाय अथवा कुटीर- उद्योगक माध्यम सं परिवारक आर्थिक- स्थिति कें सुदृढ़ करबा मे पैघ योगदान द’ रहल छथि। ओ सिविल- सर्विस, इंजीनियरिंग, मेडिकल, बैंकिंग, मैनेजमेंट, सेना आदि अनेक क्षेत्र में अपन विशिष्ट स्थान बनौलनि अछि। इंदिरा नूई, चंद्रा कोचर ,शोभना भरतिया आदि नाम व्यवसाय क्षेत्र में सिद्धहस्तता प्रमाणित कयने अछि।एकर अतिरिक्त जं कुटीर उद्योगक  गप होमय त’ अचार, पापड़ ,बड़ी ,अदौड़ी,तिलौरी,मधुबनी पेंटिंग,सीकी -मौनी आदिक माध्यम सं औपचारिक- शिक्षा -संयुक्त अथवा वंचित -दूनू महिला -वर्ग नीक आयक उपार्जन क’ रहल छथि, जे एक दिशि हुनक आत्मविश्वास कें बढ़बैत छनि त’ दोसर दिशि प्रत्येक आवश्यकता -पूर्तिक हेतु पिता, भाइ अथवा पतिक मोहताजी सं मुक्ति दियबैत छनि। जीविका-चयन मे एलीट क्लासक नोकरीक मानसिक- बंधन सं  सेहो मुक्ति पाबि पुलिस लाइन ,पेट्रोल -पंप,आटो,कैब- ड्राइवर आदिक माध्यमें सेहो  नारी अपन उपस्थिति दर्ज करौलनि अछि।

4. राजनीतिक स्तर पर

राजनीतिक स्तर पर महिला बहुत आगां छथि से  नैं कहल जा सकैत छैक। समाज मे एखन धरि 33%आरक्षणक मांग कें  स्वीकृति देबाक वैचारिक उदारता संभव नञि भ’ सकल अछि। सामान्य तौर पर राजनीतिक विरासत  लय किछु नेत्री अवश्य बहुत नाम कमौलनि अछि, किछु सामान्य परिवारक महिला सेहो राजनीतिक क्षेत्र में अपन भविष्य ताकि रहल छथि ,मुदा ओत्तहु  गॉडफादरक वैशाखीक मदति लेबहिं पड़ैत छनि।एहि क्षेत्र मे मात्र गिनल-चुनल नाम अपन मजगूत उपस्थिति देखौने छथि जाहि मे इंदिरा गांधी ,सोनिया गांधी, प्रियंका गांधी, सुषमा स्वराज, शीला दीक्षित, प्रतिभा देवी सिंह पाटिल, निर्मला सीतारमण, मायावती आदि प्रमुख छथि।

उपरोक्त विवेचना ई स्पष्ट करबा लेल प्रर्याप्त अछि  जे एकैसम शताब्दीक पांचम भाग बितलाक बाद स्त्रिगणक क्षमता मात्र भोजन रान्हबा मे, संतति उत्पन्न करबा मे,ओकर पालन- पोषण करबा मे अथवा परंपरागत संस्कृति -संरक्षण मात्र मे नञि, अपितु विकासक प्रत्येक क्षेत्र मे स्पष्टत: देखना जाइत छैक आ ई सब हेरि सहजें सुखाभासक( यूफोरिया )अनुभूति होमय लागैत छैक।  मुदा ऊपर सं हरिहर देखाइत पातक नीचां कि कतेक सूखल पात छैक,कतेक  बंधन छैक,एहि विषय पर सेहो संक्षेप मे दृष्टिपात करैत छी-

आजुक स्त्री कतेक स्वतंत्र

स्त्रिगणक स्वतंत्रताक आकलन करबा लेल क्रमशः किछु अपरिहार्य बिन्दु पर अबै छी-

1.  जन्म लेबाक स्वतंत्रता

जखन स्वतंत्रताक गप उठतै त’ सर्वप्रथम निर्बाध रूपें जन्म लेबाक स्वाधीनताक गप अबस्से हयबाक चाही परंच दुर्भाग्य सं हमरा ई कह’ पड़ि रहल अछि जे आइयो भारतवर्ष मे स्त्री कें सम्पूर्णत:ई अधिकार नञि भेंटि सकल छैक। कन्या -भ्रूणक परीक्षण आइयो बहुत पैघ चुनौती बनल अछि, सरकारक लाख प्रयास आ प्रोत्साहन सेहो प्रत्येक गर्भस्थ  मादा भ्रूणक धरती पर अयबाक मार्ग कंटकमुक्त नञि बना सकल अछि, निस्संदेह एहि पापक भागी स्त्रिगण स्वयं ,हुनक मानसिक जड़ता आ हुनक परमुखापेक्षिता सेहो। अन्यथा-

क्यो नञि जग मे अछि एतेक सबल ,
मायक ममता कें काटि सकय
 नञि ककरो मे सामर्थ्य एहन,
सुरुजक प्रकाश कें झांपि सकय।
2. समान लालन-पालनक स्वतंत्रता

किछु शिक्षित परिवार कें छाड़ि देल जाय त’ बेटा -बेटीक लालन-पालन मे भेद स्पष्टत:देखना जाइछ।आइयो दस वर्षक बेटाक ऐंठ  थारी उठयबा लेल निर्धोख भाव सं आठ बरखक बेटी कें कहल जा सकैछ। बाप -भायक खयलाक बाद माइ-धीक आहार बचल- खुचल अन्न सं हयब स्वाभाविके जकां अछि। प्रत्येक क्रियाकलाप सं बेटी कें ई ज्ञापित कयल जाइत छैक बेटा विशेष, तों  सामान्य!एहि दिशा मे चिन्तनस्तर मे परिवर्तनक बेश खगता छैक।

 3. शिक्षा ग्रहणक स्वतंत्रता

प्राचीन समयक  अपेक्षा शिक्षा -ग्रहणक स्वतंत्रता बेटा -बेटी दूनू कें प्राय: भेंटय लागल छैक, मुदा आइयो निम्न आर्थिक वर्गक कतेको श्रमिक, कृषक अथवा अन्य उपेक्षित वर्गक बालिका स्कूल जयबाक वयस मे घरे-घरे काज करबा लेल विवश छथि।अभिजात वर्ग में सेहो ई पक्षपात देखल जाइत छैक जे   बेटा प्राइवेट स्कूल मे आ बेटी सरकारी स्कूल मे पढ़ैत छैक।बेटा लेल कोचिंगक सुविधा सुलभ ,बेटी घरे मे तैयारी करथि! ई भिन्न तथ्य जे एहन सामाजिक विसंगतिक बावजूद बालिका अपन प्रतिभा सं संसार कें आलोकित करैत छथि। तथापि सभ  बालिका कें स्कूल जयबाक, मनपसंद विषय – चयनक आ इच्छानुसार कैरियर चुनबाक स्वतंत्रता औखन प्रश्नक घेरा मे अछि।

4. जीवनसाथी चुनबाक स्वतंत्रता

जीवनक सभ सं पैघ निर्णय होइत छैक अपन जीवन भरिक साथी चुनबाक, मुदा ई स्वतंत्रता बेटा- बेटी किनको नञि देल गेल छनि।एक बेर कनेक उदार भय बेटाक पसिन्नक  कनियां आनलो जा सकैत छैक, मुदा बेटीक बेर मे ई उदारता कोनो अन्हार कोन मे बिला जाइत छैक। अनेको ऑनर किलिंग केर उदाहरण, अनेकों निर्मम खाप-पंचायतक निर्णय मानवता कें कलंकित करैत अछि।

आ महिमा मंडित कन्यादान की थिक? की कन्या कोनो बेजान वस्तु? की ओकर धमनी मे रक्तक प्रवाह नञि? की भावनाक उन्मेष  नञि? तखन वस्तु जकां दानक ई दारुण परंपरा !

5. वैवाहिक जीवन मे स्वतंत्रता

शिक्षित हो वा अशिक्षित ,कामकाजी वा घरेलू ,कोनो स्त्री होथि, विवाह होइते ओ कोल्हूक बड़द जकां जिम्मेदारीक जुआ उठयबा लेल अभिशप्त छथि।अवश्य किछु शिक्षित पुरुष घरक काज मे मदति करैत छथि, मुदा हुनक संख्या नगण्य !एहन स्थिति मे स्त्रीक हृदयक मृदुता आ संवेदनशीलता सुखा जाइत छैन आ प्रतिक्रियास्वरूप परिवारक विखंडनक कारण बनि जाइत छथि।

दोसर कने बेबाक कह’ चाहब-  सेक्स सेहो वैवाहिक जीवनक एकटा सत्य,त’ की एत्तहु स्त्रीक  इच्छा- अनिच्छाक आदर होइत छैक? हम निर्विवाद रुपें कह’ चाहब -सफेदपोश ,शिक्षित, उच्च- पदासीन पुरुष सेहो स्त्रीक नञि कें आदर देबाक उदारता बहुत कम्मे  रखैत छथि।

 6. वैवाहिक विच्छेदक स्वतंत्रता

मोन नञि मिलला उत्तर स्त्री पुरुष दूनू कें ई समान अधिकार हयबाक चाही जे ओ भार बनल वैवाहिक जीवन सं मुक्ति पाबि सकय,मुदा ई स्वतंत्रता आइयो धरि नैं पाबि सकल छथि देशक आधा आबादी।

एडजस्ट करू, एहिना होइत छैक,  हमहूं ओहि अनुभव सं गुजरल छी, ओ सुधरि जायत, कनेक  त्याग करू, पुरुख एहने होइत छैक, गृहस्थी बसयबाक दायित्व स्त्रीक होइत छैक,नञि जानि कतेक तरहक तर्क -वितर्क बेमेल विवाहक भार उठयबा लेल  विवश करैत छैक। जं कोनो विद्रोहिणी स्वीकार करबा सं मना करैत छथि त’ चरित्रहीन ,कुलटा ,स्वैरिणी आदि उपाधि सं विभूषित भ’ समाजक कुचेष्टा आ निंदाक भाग बनैत छथि। समाज सेहो तलाकशुदा, परित्यक्ता वा अविवाहित स्त्री कें सहज सुलभ (easily available)मानि प्रताड़ित करबाक कोनो अवसर नञि छोड़ैत छैक।

7. अपन माता- पिताक भार उठयबाक स्वतंत्रता

आवश्यकता पड़ला पर अपनहुं धनोपार्जन कर’ वाली स्त्री कें अपन माता-पिताक आर्थिक मदति करबाक संपूर्ण स्वाधीनता नञि भेंटल छनि। अपन सासु- ससुर, दियर-ननदि सभक लेल सभ किछु सहर्ष कर’ बाली महिला अपन नैहरक बेर मे संकुचित कियैक  हुअ’? एत्तहु चिंतन में परिष्कारक आवश्यकता शेष छैक।

8. मताधिकारक स्वतंत्रता

कहबा मे विस्मयजनक, मुदा संविधान -प्रदत्त मताधिकार वस्तुतः  कम्मे स्त्री कें भेंटल छनि। पतिएक वा परिवारक मत स्त्रीक मत! स्वतंत्र चिंतनक आधार पर, नीक- बेजाएक तुलनात्मक निरीक्षणक आधार पर मत देबाक अधिकार औखन सीमिते स्त्रीवर्गक। अवश्य एहि मे स्त्रीक स्वयं केर दौर्बल्य सेहो कारण, तैं एहि स्तर पर  अधिक काज करबाक जरूरति छैक। समाज मे आइयो अनेक मुखिया , सरपंच नामी स्त्री भेंटि जयतीह जे दस्तखत छाड़ि कोनो काज नञि करैत छथि।एहि नामक लोभ सं मुक्त हयबाक आत्मबलक अत्यन्त बेगरता छैक।

 9. देखौंसीक दासता

स्वतंत्रता- प्राप्तिक अंध दौड़ मे अपन निजता ,स्वतंत्र अस्मिताक संग समझौता आ अपना कें भोग- वस्तुक रूप मे परसबाक  घातक प्रवृत्ति स्त्री कें परतंत्रताक इनार मे खसा रहल छैक, एत्तहु गंभीर चिंतनक खगता छैक।विज्ञापनक दुनिया मे स्त्री- देहक प्रदर्शन, फैशनक नाम पर न्यूडिटीक उन्माद, आधुनिकताक नाम पर सिगरेट शराब ,ड्रग्स आदिक  सेवन आदि देखौंसीक दासता सं स्त्रिगण कें स्वयं बहरयबाक आत्मबलक आ दृढ़निश्चयक खगता छैन।

10. आभूषणक आकर्षण सं बहरयबाक मानसिक स्वतंत्रता

हम नीक जकां पहिरी-ओढ़ी,सुन्दर आ शालीन सज्जा करी,एत’ तक त’ ठीक, मुदा  गहना -गुड़ियाक दोकान लागी, एहि मानसिक दिवालियापन सं मुक्तिक आवश्यकता सेहो शेष छैक।एहि प्रसंग मे प्रख्यात कवयित्री श्रीमती महादेवी वर्माक किछु पांती  कोट कर’ चाहब-

जागू जागू नारि वृन्द,तजु निन्न,बाट पर आउ
जागू जागू नारि वृन्द,तजु निन्न,बाट पर आउ।
मोमक बंध मनोहर लखि की करब पलायन श्रम सं
रुचिर विहग केर पंख हेरि की हयब विरत निज पथ सं।
विश्वक क्रन्दन बिसरि जायब सुनि मधुपक मोहक गुनगुन
फूल,ओस,तारक सुन्दरता देखि करब की गुन- धुन।
निज शरीर कें अहां ,स्वयं -हित बेड़ी  नञि बनाउ
जागू जागू नारि वृन्द,तजु निन्न,बाट पर आउ।।
(जाग,तुझको दूर जाना..
 बांध लेंगे क्या तुझे ये मोम के बंधन सजीले
  पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले
विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुर की मधुर गुनगुन
क्या डुबो देंगे तुझे ये फूल के दल ओस गीले
 तू न अपनी देह को अपने लिए कारा बनाना
 जाग तुझको दूर जाना ….।)

अंत मे एतबहि कह’ चाहब जे स्वतंत्र पक्षी जकां असीम आकाश कें नपबाक, अपन जीवनक छोट -पैघ निर्णय लेबाक, बिना भय कें सड़क पर बहरयबाक,मित्र लोकनिक संग समय बितैबाक आ जीवन पथ कें प्रशस्त करबाक अधिकारक  लेल बहुत आत्मबलक, विवेक- बुद्धिक आ दृढ़ निश्चयक खगता छैक।अपन वक्तव्यक समापन हम रॉबर्ट फ्रॉस्टक पांती सं क’ रहल छी-

गहन सघन मनमोहन वन तरु, शोर पाड़ि रहल हमरा
किन्तु प्रतिज्ञा बढ़बा केर ,संयमित करैछ सदा हमरा
बहुत दूर जयबाक बेगरता,निन्नक नञि अवकाश एखन
करी परिश्रम,लक्ष्य प्राप्ति हित,विश्रामक पलखति न एखन।।
( The Woods are lovely dark and deep
But I have promises to keep
 And miles to go before I sleep
 And miles to go before I sleep…)

एहिना नहि देवार मे बन्द कयल गेलीह
अनारकली

हम देखने छी
एडिनबरा के पाथरक किला में कैद
क्वीन मेरी केँ
अकास छुवैत देवार
बड़का बड़का गुंबद सं घेरल
जेना पाथरक तहखाना होइ
ओ छल क्वीन मेरी केर दरबार

नै जानि कोन कोन साँकर गली सं
ऊपर दिसि जायत घुमौआ सीढ़ी
क्वीन के बेड रूम में जायत छल
जाहि ठाम जेवाक हमरा सभ के
मनाही छल

सिहरि गेल छलौं हम
कोना क्वीन दरबार करैत हेतीह
कोना साँस लैत हेतीह
हमर तँ दम घुटि रहल छल
ने ते खिड़की ने झरोखा
झाड़ फनूस सं साजल पाथरक देवार !

मोन पड़ि आयल अप्पन देस
लालक़िलाक प्राचीर में बनल
रोसनदानक जाली सं कोना
निहुरैत हेतीह रानी – महरानी सभ

यमुनाक मचलैत लहरि केँ
किला में कैद भेल
पिंजरा में बंद चिड़ै जकाँ
मोतीक दाना चुगैत
चांदीक साओन भादो में नहवैत हेतीह
रानी सभ
नहि नहि हम कल्पनो नै क’ सकैत छी
स्वयं के एही स्थिति में सहियो नै सकैत छी

हम देखने छी गामक गोदाम में
अनाजक बोरा जकाँ
जांकल निष्प्राण स्त्री गण केँ
जे मात्र एक काज लेल खुलैत छल
नै जानि कोन आनन्द में तुलैत छल

एहिना नहि क्रांतिक बिगुल बाजल
एहिना नै तोड़ि पओलिह पैर में बान्हल
चानीक जिंजीर के
सजा के राखल जायत छलीह बरद जकाँ
नकेल क बदले सोनाक बुलाकी
हाथ में हथकड़ी सोना केर

खुश रहैत छलीह स्त्री गण
अपन चेतना सं विस्मृत
अपन अस्तित्व सं अनचिन्हार

मुदा
परिवर्तनक लहरि आयल
एक्के झटका में बोरा अन्नक
खुज’ लागल
पनहा तोड़ि भागल बछिया जकाँ
नारी भाग’ लागल

परम्परा अपरम्परा के ध्वस्त करैत
बाट – कुबाट के नाघैंत
नहि ते अपन पहिरावा क परवाह
नै लोकक आलोचना केर
केओ पच्छिमक नकल बाजल
केयो पूरबक ध्वँस

मुदा नारी भगैत रहलीह
अकासक ऊंचाई के छुवैत रहलीह
बाट कुबाट सेहो चलैत रहलीह
खसैत पड़ैत अपनाकेँ चिन्ह्वाक
प्रयास करैत रहलीह
आ राष्ट्रीय सँघर्ष अंतर्राष्ट्रीय बनि गेल………

(चित्र : ऋतेश पाठक)

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