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बसंत

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आएल सखि मधुमास बसंत,
पसरल चंपा कली अनंत
कोयल कूकय पपीहा पिहूकय,
आमक मंजरी गमक दिगंत।।

सरसों पीयर वसुधाक साड़ी,
सोन गहुँम कें लगल किनारी,
तीसी चमकय मुँह बिचकौने,
माँग बढ़ल छन्हि हिनकर भारी।।

फाग चढ़ल दुहु कामिनी मातल,
कटि उरोज घमसान मचायल ।
लचकि लचकि ओ चालि चलैय छथि,
जानि ने कत्तेक प्राण हरयि छथि।।

भाँग बसात में घुलिमलि गमकय,
छौंड़ा सभ कें उठय पिहकारी।
रंग अबीर सँ धरा रंगल अछि,
खनखन बाजय सभ पिचकारी ।।

अप्पन देश में छह गो ऋतु होइ हइ जेकर नाम हइ – गरमी, बरसात, शरद, हेमंत, शिशिर आ वसंत। वैसे त सब मौसम के अप्पन एगो खास जगह हइ लेकिन वसंत खास होइ हइ। किए कि इ समय में न त बेसी जाड़ पड़ै हइ आ न बेसी गरमी। एकर एहे खासियत के कारण एकरा सब मौसम के राजा कहल जाइ हइ।

पुराण के एगो किस्सा में बसंत के कामदेव के बेटा कहल गेलइ हन। एकर अनुसार सुंदरता के भगबान कामदेव के घर जब बेटा भेलइ त पूरा के पूरा संसार झूमे लगलइ। प्रकृति गाबे लगलइ, गाछी आर पर नया नया मंजरी फरे लगलइ, पीयर पीयर तोरी के फूल से पूरा धरती जैसे पीयर रंग के सारी में नयकी कनिया जैसन सज गेलइ।

मंजर के खूश्बू पूरा हवा महके लगलइ आ उ मादकता से बहकल कोयल कू कू करके अपन गीत सुनाबे लगलइ जैसेकि बउआ के आबे के खुशी में सोहर गा रहल हइ। गीता में खुदे भगबान कहलखीन कि हमें ऋतु में वसंत हियइ।

साहित्य, कला में भी बसंत के अप्पन खास स्थान हइ। बसंत पर केतेक साहित्य लिखल गेलै हन आ गीत के त बाते कि हइ। बहुते कलाकार अप्पन चित्र में भी बसंत के रूप रंग के खूब सजल कइ हन। भारतीय संगीत में त एकठो रागो हइ एक्कर नाम पर बसंत राग।

बसंत में मनाबे बाला परब भी बसंते जैसन रंगीन होइ हइ जैसे सरस्वती पूजा, बसंत पंचमी, रंग पंचमी, होली, नवरात्रि, रामनवमी, नव-संवत्सर, हनुमान जयंती आ बुद्ध पूरणिमा। सनातन संस्कृति में नया साल भी एहे मौसम में शुरू होइ हइ।

बसंत पर कवि शिरोमणि विद्यापति जी भी बहुत सुंदर लिखले हथीन

आएल रितुपति – राज बसंत.
धाओल अलिकुल माधव-पंथ.
दिनकर किरन भेल पौगंड .
केसर कुसुम धएल हे दंड .
नृप-आसन नव पीठल पात .
कांचन कुसुम छत्र धरु माथ.
मौलि रसायल मुकुल भय ताल .
समुखहि कोकिल पंचम गाय .
सिखिकुल नाचत अलिकुल यंत्र .
द्विजकुल आन पढ़ आसिष मंत्र.
चन्द्रातप उड़े कुसुम पराग .
मलय पवन सहं भेल अनुराग .
कुंदबल्ली तरु धएल निसान .
पाटल तून असोक – दलवान.
किंसुक लवंग लता एक संग .
हेरि सिसिर रितु आगे दल भंग.
सेन साजल मधुमखिका कूल .
सिरिसक सबहूँ कएल निर्मूल.
उधारल सरसिज पाओल प्रान.
निज नव दल करू आसन दान.
नव वृन्दावन राज विहार .
विद्यापति कह समयक सार .

आबू ,अइ बसंत के सुआगत करू। अपन जीवन में आनंद-उत्साह के संचार करू।

(चित्र : अपला वत्स जीक फ़ेसबुक भीत सं) 

बसंत मने
रंग प्रीत के
प्रेम के
उल्लास के
हास और परिहास के
प्रकृति के नव श्रृंगार के
बसंत मने
गीत मनुहार के
राग और अनुराग के
ढोलक के थाप पर
सजल त्यौहार के
विरहनी आकुल भरल
तान के
बसंत मने
चित्र सजल हिंदुस्तान के
भरल खलिहान के
किसान के जुड़ल आस के
नब  प्रकाश के
नब  साल के

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