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बसंतक आगमन

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पएर मे पाजेब पहिरने उतरल यौवन
धरा पर जेना जड़ीदार चादर शोभित,
समस्त गाछ,वृक्ष पर टेहुनिया दैत
नव शिशु पल्लव भेल सौंसे शोभित।
जीर्ण पात त्याग,भेल शिशिरक अंत,
आएल देखू कुसमाकर,ऋतुराज बसंत।
मधुर सुगंध छिड़ियबैत आमक गाछ पर
तरुण मोती सन चमकैत महुआ मजरल,
खेत-पथार गदराएल गहुँमक बालि सँ
नव कनियाँ सन जड़ी बला घोघ ओढ़ाएल।
मंदिर आ चौबट्टी पर फाग गबैत संत,
आएल देखू कुसमाकर,ऋतुराज बसंत।
सड़िसोक पीयर स्वर्ण आभूषण सँ समस्त
लह-लह करैत खेत खरिहान अछि छाड़ल,
कोयली द’ रहल तान आ रंग बिरंगक पुष्पक
श्रृंगार केने तरु सँ गमकैत बसात बहराएल।
जग सँ नहि हुए ई ललित हुलासक अंत,
आएल देखू कुसमाकर,ऋतुराज बसंत।
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