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पोथी चर्चा

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मैथिली साहित्यमे स्त्री लेखिकाक विरल संख्या सेहो झमटगर गाछक रूप लेलक अछि, किन्तु कतोक चुनौतीसॅं स्त्री- लेखिकाकेॅं नित्य  सोझां-सोझी होइत छनि। ओ की पहिरथि जकाॅं ओ की लिखथि,एकर घमर्थन पितृसत्तात्मक समाजक ठेकेदारक बीच होइत रहल अछि।एहन स्थितिमे  स्त्रीक लेखन अस्मिताक संघर्षक चुनौतीक रूपमे ठाढ़ भ’ जाइछ।

समाजक संरचनामे पितृसत्ता सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक व्यवस्था , मूल्य ,मर्यादा, आदर्श तथा संस्कारक विभिन्न रूपमे बड़ मेही ढंगसॅं बुनल गेल अछि। एहि सुनियोजित शोषण-उत्पीड़नक विरुद्ध विश्व भरिक वैचारिक चिंतनमे नारीवादी विमर्शक नव आयाम बनाओल गेल अछि। पश्चिममे स्त्री विमर्श शुरू करबाक श्रेय “सीमोन द बोउवार” केॅं छनि जे ‘ द सेकेंड सेक्स’ लिखि कए समाज मे तहलका मचा देलनि तथा परंपरागत सामाजिक संरचनाकेॅं झिंझोरि देलनि।

भारतमे सेहो एहि आंदोलनक आंच  पजरल आ विभिन्न भाषामे  महिलाक अस्मिता- रक्षणक गप कहल-सुनल, लिखल-पढ़ल जाइत रहल, जाहिमे पुरुष- लेखकक सहभागिता सेहो रहल। महिला-लेखनक केंद्रमे स्त्री अस्मिताक संघर्ष, अदम्य जिजीविषा, स्त्री स्वातंत्र्य, यौन उत्पीड़नक प्रति विद्रोह तथा अपन पहिचानक प्रति जागरूकताक संग सामाजिक यथार्थक अवलोकन आ ओकर बेलाग अभिव्यक्ति अछि आओर ओ  समकालीन साहित्यमे सशक्त हस्तक्षेपक माद्दा रखैत अछि।

वर्तमानमे मैथिली भाषामे सेहो बहुत रास स्त्री लेखिका स्वतंत्रता, समानता , न्याय आदि मूलभूत अधिकारक लेल संघर्षरत एवं सक्रिय छथि। लेखनक माध्यमसॅं ओ समाजक संकीर्ण मानसिकताक ऐना देखबैत छथि, समाजसॅं प्रश्न करैत छथि, आत्मविश्वाससॅं अपन सुख-दुख, आक्रोश आ असहमति व्यक्त करैत छथि,स्त्रीवादक वैचारिक साहित्यमे सतत समृद्धि आनि रहल छथि।

आइ हम दीपा मिश्र जीक जाहि पुस्तकक पाठकीय प्रतिक्रिया लिखि रहल छी ओकर शीर्षके वैचारिक घमासान मचब’ लेल पर्याप्त अछि। ई नाम किऐक? झांपल- तोपल नामो देल जा सकैत छलै! कथ्यक संप्रेषण लेल की देह उघाड़ब आ ओकर संपुट करब उचित! ओना एहि प्रश्नक उत्तरमे प्रतिप्रश्न कएल जा सकैछ जे कैशोर्यमे होमए बला हार्मोनल परिवर्तन देहक संग- संग भावनात्मक परिवर्तनक कारण सेहो बनैत छैक,तखन ओहिसॅं उद्वेलित भए ओहि अनुभूतिक वर्णन अग्राह्य किऐक?

विभिन्न भाषाक साहित्यमे कामविह्वला स्त्रीक मनोभावक खुलल वर्णन भेल अछि, महाकविक उपाधिसॅं विभूषित महाकवि कालिदास त’ उमा-महेश्वरक समागमक बखान सेहो कएलनि अछि, तखन दिक्कत कत’ छै? दिक्कत छैक जे स्त्रीक गर्भमे पलि, ओकर रक्तमज्जा सॅं विनिर्मित शिशु जाहि बाटें धरती पर अबै अछि, वयस्क भेला उत्तर अपर स्त्रीक ओहि अंगविशेषमे अपन पुरुषत्वक सार्थकता पबितो ओकरा मात्र अपन संपत्ति मानैत रहल अछि। अस्तु,ई जटिल विषय अछि, अनेक अतंर्विरोधक परिधि मे ओझरायल अछि, तैं एकरा छाड़ि हमर एतबहि कहब अछि जे जहिना अपन संतानक नामकरणक  अधिकार माए-बापक होइछ, ओहिना अपन साहित्यिक कृतिक नामकरणक अधिकार साहित्यकारक। एहि अधिकार पर प्रश्न उठाएब सर्वथा अनुचित।

दीपाजीक चेतना मात्र भावनात्मक नहिॅं अपितु बौद्धिकताक मानदंड पर आधारित अछि आ ओ निरंतर यथार्थवादी दृष्टिकोण, गहनता आ आत्मविश्वासक संग लिखि रहल छथि। यद्यपि “योनिक आत्मबोध” शीर्षक कविता छाड़ि देल जाइ  त’ अन्यान्य विषय पर गोटेक टापर रचना पहिनहुॅं भेल अछि आ आबहु आन रचनाकार लिखि रहल छथि। किन्तु एक ठाम प्राय: स्त्री-संबद्ध दैहिक,मानसिक आ सामाजिक स्थितिक स्वाभाविक आ मुक्त अभिव्यक्ति लेल दीपाजीक साहस प्रशंसनीय अछि।

मासिकधर्मक आरंभसॅं रजोनिवृत्तिक क्रममे होमएबला शारीरिक-मानसिक परिवर्तन, यौवनक आरंभमे विपरीतलिङ्गीक प्रति सहज आकर्षण, स्त्री-पुरुषक मध्य सामाजिक भेद-भाव, पढ़ल-लिखल स्त्रीक शिक्षाक अनुपयोग आ तज्जन्य स्त्रीक पीड़ा, वैवाहिक बलात्कार आदि ओहि सभ विषय पर दीपा खुलिक’ कलम चलौलनि, जाहि पर लिखबासॅं स्त्री स्वयं बचैत रहैत अछि। हुनक रचना कोनो तरहेॅं पुरुष विरोधी रचना नहिॅं थिक, जकरा  एहि पोथीक परिप्रेक्ष्य मे देखबाक क्रममे किछु पांती उद्धृत कए रहल छी-

हमर युद्ध त’ हमरा स्वयंसॅं अछि
हम रोज लड़ै छी
कियैक त’ शब्द छोड़ि हमरा लग कोनो अस्त्र नहिॅं।
हमर युद्ध ओहि हमरासॅं
जे सभ किछु बुझितो
हमरासॅं बाहर नहिॅं निकलैये।

गहना- गुड़ियाक मोहक जालमे ओझरायलस्त्रीक स्थिति हुनका सीदित करैत छनि आ कवयित्री कहि उठैत छथि-

कतेको ओझरायल रहि गेलीह
एहि गहनाक बीच
आ सीपक मोती कहिया हेरा गेलनि
बुझबो नहिॅं केलैथ।

बहुत पहिने महादेवी वर्मा  स्त्रीकेॅं सावधान करैत कहने छलीह-

जाग तुझको दूर जाना
बांध लेंगे क्या तुझे ये मोम के बंधन सजीले
 पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले
विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन..

मानव-मात्रक सर्वोपरि इच्छा होइत छैक अपन इच्छाक, अपन स्वतंत्र अस्तित्वक,अपन आत्मसम्मानक रक्षा कएल जाए। किन्तु स्त्रीक एहि निजताक कहियो सम्मान नहिॅं भेटलै आ तैं ओकर अन्तर्मनमे धधड़ा धधकैत छै,जकर अभिव्यक्ति भेल अछि एहितरहेॅं-

जीवन व्यक्ति विशेषक अपन थिक
ओ कोनो नैहर सासुरसॅं नहिॅं
हमर गाम हम अपनहि चुनब
समाजसॅं बाध्य भ’ क’ नहिॅं।
भीतरक धधड़ा
ई आगि हमर थिक
ई भीतरक धधड़ा हमर
हम आब डाहब अपन सबटा
मान अपमान पीड़ा उलहन
निकलब तपैत सोन सन
हम जरब की बचब
ओकर उत्तरदायित्व हमर रहत।

कतोक बंधन,कतोक जकड़न स्त्रीकेॅं कोना रक्तरंजित करैत छैक, ओकर छटपटाहटि कवयित्रीकेॅं उद्वेलित करैत छनि आ ओ प्रतिकारक बाट देखबैत कहि उठैत छथि-

सोनाक हो वा लोहा के
चटपटाहटि त’ एके छल ने
परंपराक रूढ़िवादिताक
ओ दंभ जे बाध्य करैत अछि
ओ दंभ जे बाध्य करैत अछि
ओ हमरा मान्य नहिॅं
अपन सामर्थ्य अपने बुझब आब आवश्यक
नहिॅं कहब सेहो सीखब आब जरूरी।

एत’  मोन पड़त अहाॅंकेॅं शिवमंगल सिंह सुमन जीक कवितांश-

हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजर पिंजरबद्ध न गा पाएंगे
 कनक तीलियों से टकराकर
 पुलकित पंख टूट जाएंगे।

कजरी लागल परंपराक खंडनक ओकालति करैतो हुनक लेखन विध्वंसक नहिॅं अपितु योजक छनि,व्रत-उपासक संस्कृतिक पोषक छनि,गामक भाषा-संस्कृतिक अनुरागी छनि, प्राचीन परंपराक नीक तत्वक आधुनिकताक संग समन्वयक आग्रही छनि।ओ स्वयं कहैत छथि-

लेकिन हमर कहब
 जे नब घर उठय आ पुरान घर फेरो बसय
हमरा पुराने घरके नव करबाक अछि
ओकरे मजगूत नींव पर
 नव मिथिला बसेबाक अछि।

अंतमे एतबहि कहब जे एहि निर्भीक स्वरक स्वागत हयबाक चाही। अनुप्रास प्रकाशनसॅं छपल एहि पोथीमे 64 गोट सशक्त आ सार्थक कविता अछि,जे पढ़ल जयबाक चाही।

राजर्षि जनकक प्राणप्यारी दुहिता मैथिली,शक्तिक अजस्र स्रोत वैदेही,असुर-त्रास सं सज्जन लोकनिक त्राणक हेतु सीता, आसुरी शक्तिक बन्दिनी होइतहुं अपन कर्त्तव्यपथ पर अविचलित -अकम्पित ठाढ़ जनकात्मजाक स्मरण -मात्र सॅं हृदय श्रद्धा सं नत भ’ जाइत अछि। हुनक स्मरण मात्र सॅं हृदयकेॅं चहुॅं दिसि सॅं करुणा घेरै अछि,हुनक उत्पत्ति सॅं ल’ क’ भूमिसात हयबा धरिक जीवन यात्रा नोर सॅं भीजल देखना जाइछ,अथाह वेदनाक जलधि मे ऊमडूम होइत प्रश्नांकित स्त्री-अस्मिता विचलित करैत अछि, तथापि प्रतिकूलतम परिस्थितियो मे हुनकर अविचल धैर्य आ  पातिव्रत्यक आदर्श तथा निर्भीक स्वाभिमान हृदय केॅं श्रद्धावनत करैत अछि।

वैदिक काल कें छोड़ि देल जाइ,त’ स्त्रीक लेल समाज कहियो बहुत उदार नञि रहल अछि।ओकर दृष्टिकोण स्त्रीक संबंध मे निर्मम शंकाशीलताक रहल अछि,कनेको निर्धारित पथ सॅं स्खलित भेला पर, खाहे ओहि स्खलनक हेतु ओ स्वयं होथि वा क्यो आन, निठुर-निदारुण परित्याग हुनक नियति बनल छल।एखन एहि प्रसंगक करुण-ध्वनि केॅं कात राखि, सीताक व्यक्तित्वक आ चरित्रक सबल पक्ष पर दृष्टिपात करब आ एहि चिंतन लेल आधार- भूमि रहत परम आदरणीया पद्मश्री श्रीमती उषा किरण खान जी द्वारा विरचित काव्य-“जाइ सॅं पहिने”।

अपन काव्यक दिशाक निर्देशन करैत लेखिका भूमिका मे लिखैत छथिन-

“अनकर अपराधक दण्ड भोगयबाली जानकी आजिज आबि गेल छलीह करुणा विगलित दयालु प्रेम सॅं।कोन विधियें रहितथि एहि असार संसार मे? आर कतेक बेर शंकित घुरघुराइत मनक शान्ति केॅं अपन सतीत्वक परिचय रूपी चानन सॅं शीतल करितथि?”

एत’ मोन पड़ि जाइत अछि स्टीफन ज्विग(Stefan Zweig) महोदयक बिवेयर ऑफ पिटी

“Sympathy is a double edged sword. If you don’t know how to use it, don’t even touch it, and more importantly, you have to harden your heart against it.”

स्वाभिमानिनी सीता ई सहानुभूति किंवा दया स्वीकार करबा लेल तैयार नञि छथि अपात्र राजकुल सॅं !

गुरु,ऋषि वा पितृव्य वाल्मीकिक लव-कुशक प्रबोधनक क्रम मे सीताक निरपराधिताक, पवित्रताक आ चारित्रिक उन्नतिक प्रमाणपत्र सन ई उक्ति ध्यातव्य अछि-

बाउ, निरपराध मृगशाविका, भयातुर कपोती
परित्यज्या रमणीय,वर्षाक भू-लुंठित बुन्नी
मौलिश्रीक तूबल पुष्प,पिरौंछ खसल पत्र
एक्कहि होइछ सर्वत्र!
बाउ लोकनि ओ आइयो सिय सुकुमारी छथि
युगे युगे रहतीह,अहिंक माय सन निस्संदेह रहतीह।

प्रसंगवश कविक कर्म आ धर्मकेॅं निर्धारित करैत जकाॅं लेखिका कहैत छथि-

“कवि कत्तहु सॅं पात्र नहिं गढ़त
जॅं गढ़त त’ तकर प्रत्यक्ष रूपाकार होयत।”

सीताक आहत अभिमानक पीड़ा केओ नहिं बुझैत अछि, मात्र बुझैत छथि कवि,रामक प्रति एकनिष्ठ पवित्र प्रेम सेहो कविक अतिरिक्त केओ नहिं देखि पबैत छनि-

“कविक जन्म पीड़ा सॅं होयत
कविक मोन मे प्रेम रहैत अछि तलफैत
जेना जल बिनु मछरी
रेह बिनु बिजुरी
आंखि नोर बिनु
नदी कोर बिनु “

तैं एकठाम कवयित्री महर्षि वाल्मीकिक प्रति अपन कृतज्ञता ज्ञापित करैत कहैत छथि-

कविकर्महुॅं सॅं पैघ होइत अछि
मनुज- धर्मकेॅं बूझब मर्म
काव्य लिखै सॅं पैघ
 होइत अछि लोकचेतना
अहा,सिया केॅं मोन पड़ैत छनि
आशीषक ओ हाथ।।

सीताक सहनशीलता टूटि गेल छनि राजधर्मक निठुरता देखि,राजाक रूप मे स्थापित रामक आदर्शक कुत्सित कदर्यता देखि-

आब नहिं सहल जाइत अछि
आतप सॅं झुराइत जजाति
टटाइत सीत, निर्वीर्य जन
दलित दलमलित जनीजाति
ई छोड़- बाड़,ई लागि- लपटि
हाड़ हाड़ हड्डी भेल देह
कठुआयल ठेहुन
ऐंचैत डांड़,सन- पटुआ होइत केश
पिअरायल चाम,बिसरायल निन्न

ओहि सात्विको वातावरण मे पालन- पोषण पौनिहार लव-कुशक मोन मे बहुत रास प्रश्न, बहुत रास जिज्ञासा छैन जे संभवतः टूटल परिवारक शिशुक स्वाभाविक अन्तर्द्वन्द्व थिक। लेखिका सहानुभूतिपूर्वक एहि असमंजस केॅं शब्द मे रूपायित केलखिन अछि-

औनाइत रहैत छथि प्रश्नाकुल भेल लव
सुनगैत रहैत छथि कुश,हुनक तापेॅं
मद्धिम- मद्धिम।

सीता बुझैत रहैत छथि हुनक मन: स्थिति,तैंयों बुझबैत छथि-

बहुत रास प्रश्न एहन होइछ,जकर उत्तर नहिं
ढेरी खेरहा एहन छैक जकर प्रश्न नहिं बनय
अपन लक्ष्य पर ध्यान धरी
राजा राम केर गरिमा राखी।।

पुरुषक प्रेमक स्वार्थपरता आ स्त्री- प्रेमक दिव्यता व्याख्यायित होइत अछि एहि तरहेॅं-

बसल छी रन्ध्र- रन्ध्र मे अहाॅं
अहाॅंक लेल हम धनुर्विद्याक श्रेय होइक
लंकाविजयक निमित्त होइक
राजैषणा पर लोकैषणाक विजय गाथा होइक
हमरा लेल अहाॅं प्राणहरि छी-
ने साध्य न साधन।
अहाॅं साक्षात विजय थिकहुॅं
हम मुदा पराजय नहिं थिकहुॅं।

“हम मुदा पराजय नहिं थिकहुॅं” ई वाक्य स्त्रीक सबल अस्मिताक आख्यान थिक जे सभ स्त्रिगण लेल आइयो उपादेय अछि।समर्पणक अर्थ अपन अस्तित्वक विलयन नहिं, परिवार बचयबाक लेल दैन्यक स्वीकृति नहिं।

लंकाविजयक उपरांत सीता- रामक प्रथम भेंटक क्षण रामक उक्ति निष्ठुरताक पराकाष्ठा थिक-

सीता हम अहाॅंक लेल नहि कएलहुॅं
युद्ध
रावण केॅं करक परास्त
देवसत्ता केॅं स्थापित करक
पत्नी जनिकर हरण भेल
ताहि राजाक कलंक मेटब
छल अभीष्ट
से भेल सिद्ध
सीते! कएलहुॅं मुक्त पत्नीधर्म सॅं।

तथापि लंका- विजयक उपरांत जन-मानस में बसल स्त्री -विरोधी -मानसिकताक तुष्टिक लेल आ  रामक निष्कलंक छवि केॅं  सुरक्षित रखबा लेल सानंद अग्नि में पैसि  गेलीह आ अपन सच्चरित्रता प्रमाणित कयलनि।  अग्नि- परीक्षा मे तपिक’ कुन्दन भेल हुनक शील, किन्तु किछु दिन सुख नञि,सुखाभास!फेर निर्मम परित्याग! किन्तु लव-कुश सन बालकद्वयक वीरता देखि,मुनि वाल्मीकि सॅं हुनक परिचय पाबि अपन उत्तराधिकारीक स्वीकृति मे कोनो संशय नहिं, किन्तु,सीताक स्वीकृति लेल पुनः शर्त-

राम-“कने बाजि दियौ अवध केर निर्मम जन केर सोझाॅं
अहाॅ छी निर्दोष जनकनन्दिनी ,चलू”
हुनक मौनक उपरांत फेर प्रश्न-
“कने थम्हू,एकबेर फेर कहू
अहाॅं आद्यन्त पवित्र छी”

तखन अबैत अछि सोझां ऊपर सॅं कोमल किन्तु मजगूत सीताक असल रूप-

वज्रादपि कठोराणि मृदूनि कुसुमादपि
लोकोत्तराणां चेतांसि को नु विज्ञातुमर्हति।।

ओ कहैत छथि-

“हम छी सशक्त स्वयंपूर्ण सीता
बसल वाल्मीकिक आश्रम मे।”
अहाॅं ओझरायल छी
अमतीक झाड़ मे प्राण
गड़ैत अछि कांट
अनेकानेक हीन-भावना केर
अधैर्यक
संशयक आ अंततः
अस्तित्वक राजा राम!
आइ हम करैत छी मुक्त
बिलाइत छी माटि मे
हिलकोरैत जल मे
लहकैत आगि मे
पसरैत नभ-आंगन मे।
जाउ प्रिय
लए जाउ लदबद
फलित गाछ
बीज जे देने छलहुॅं
घुराओल हे बीजी पुरुष!

स्त्रीक स्वभाव मे ग्रहण नञि,अर्पण होइत छैक।एहि मनोभाव केॅं बहुत नीक जकाॅं रूपायित कएने छथि कवयित्री।

एकठाम ओ “पुरुष- अहम्” के सेहो इंगित करबाबैत छथिन सीताक मुख सॅं सहस्रबाहुक प्रसंग मे-

पलक मूनथि त’ सोझाॅं आबनि कालीरूप
कोना कटत दिवा- रात्रि
दाम्पत्यक स्वाद हरि लेल सहस्रबाहु- वध!

एत’ सद्य: मोन पड़ि जाइत अछि महाकवि जयशंकर प्रसादक कामायनीक ई अंश-

यह जलन नहीं सह सकता मैं चाहिए मुझे मेरा ममत्व
इस पंचभूत की रचना में, मैं रमण करूं पर एक तत्व।।

महनीया कवयित्री मात्र सीताक अथवा उर्मिलाक नहिं, अपितु भरतपत्नी मांडवीक सशक्त  चरित्रक झांकी सेहो देखबैत छथिन,जे राजभवनक कूटनीति आ स्वार्थपरता सॅं विकल भेल छथि-

“हमरो संगे नेने चलू बहिन दाइ
की राखल छैक एहि महल अटारी मे
चेथरी-चेथरी करैत लोक-बरियारी मे।”

कवयित्री अयोनिजा सीता केॅं, सैकड़ों सूर्यक आभा सॅं दीप्तिमती सीता केॅं, शिवक धनुष केॅं बामा हाथ सॅं सरलतया उठा लेबाक अप्रतिम शक्ति सं संयुक्ता जानकी केॅं,भरल सभा मे रामराज्यक तथाकथित मर्यादाक सत्य सभहक सोझाॅं निर्भीक स्वर मे उपस्थित कर’ बाली वैदेहीकेॅं, साक्षात् शक्ति,साकार शील आ सहिष्णुताक त्रिवेणी  सीता केॅं आजुक स्त्रीक स्वर बना प्रस्तुत करबाक स्तुत्य प्रयास कएने छथि।

समग्र विषय- प्रस्तुति मे मैथिलीक टिपिकल शब्दक सोहाओन प्रयोग आह्लादित करैत अछि,कतौ-कतौ कोश देखबा लेल सेहो विवश करैत अछि। जॅं शैलीक गप करी त’ लेखिकाक शब्द मे ई कथा-काव्य थिक, किन्तु कएक ठाम एकर सहज सरल उद्दाम प्रवाह वेगवती धारा जकाॅं देखाइत अछि, आनठाम कथानक रुचिकर शब्द-संयोजनक संग आगां बढ़ैत अछि।

एकटा प्रश्न अवश्य अछि- भूमिका मे लेखिका स्वयं एकरा कथाकाव्य कहैत छथि, मुदा अंतिम पृष्ठ पर गद्यात्मक खण्ड काव्य लिखल अछि।जीवनक कोनो घटना विशेष पर आधारित प्रबन्धात्मक काव्य खण्डकाव्य कहबैछ। साहित्य दर्पण  मे एकर परिभाषा दैत आचार्य विश्वनाथ कहैत छथि-

भाषा- विभाषा नियमात् काव्यं सर्गसमुत्थितम्।
एकार्थप्रवणै: पद्यै: संधि-सामग्र्यवर्जितम्।
खंड काव्यं भवेत् काव्यस्यैक देशानुसारि च।

एहि परिभाषाक अनुसार सर्गबद्ध एवं एक कथाक निरूपक एहन पद्यात्मक ग्रंथ जाहि मे सभ  संधि नञि हो ,जकर कथानक मे एकात्मक अन्विति हो, कथा मे एकदेशीयता हो, कथाविन्यास- क्रम मे आरंभ, विकास, चरम सीमा आ निश्चित उद्देश्य मे परिणति हो आ ओ आकार मे लघु हो, ओ खंडकाव्य थिक।

सर्गबद्धताक अभाव मे की एहि काव्य केॅं खण्ड- काव्य कहबै? एहि पर जॅं विमर्श होमए आ मैथिली काव्यक भेदादि  लेल किछु भिन्न आधार सर्वसम्मति सॅं निर्धारित हो त’ भविष्यक लेखक लेल स्पष्ट दिशा भेटतै।

अंत मे, स्त्री-अस्मिताक स्वस्थ- मुखर पोषिका लेखिकाक चरणवन्दन संग भूरिश: अभिनन्दन।

साहित्य मानवीय परिवेशगत मूल्यक उद्घाटनक प्रयत्न थिक। ई मानव मे शुभ आ अशुभ, सुंदर आ असुंदर,ग्राह्य आ त्याज्यक  चेतना जागृत कए मनुष्यक मूल्यदृष्टि केॅं शिक्षित आ परिष्कृत करैत अछि। एहि प्रकारक साहित्य मनुष्यक सभ्यता आ संस्कृति सॅं सीधा संबंध रखैत अछि आ तैं ओ परिवेश तथा वातावरण सॅं कटि नहिॅं सकैत अछि। साहित्यक सर्जक केॅं अपन युगक सत्य , स्थिति- परिस्थिति तथा ओहेन परिस्थितियो मे काम्य परिवर्तनक शब्दबद्ध व्याख्या करबाक चाही।

एहि निकष पर जखन युवा कवयित्री श्रीमती रोमिशा जीक आंजुर भरि इजोत नामक काव्य -संग्रह पर दृष्टि देल, त’ पाओल जे ओ कविताक माध्यम सॅं स्त्रीक स्थितिकेॅं मानवीय संवेदनाक चश्मा सॅं देखबाक नेहोरा करैत अछि, सामाजिक विषमताक भीत हटयबाक ओकालति करैत अछि, स्वतंत्रताक नाम पर पसारल जा रहल अनेकानेक बंधन दिस आंखि खोलि देखबाक  आग्रह करैत अछि आ  प्रेम आ व्यापार मे अंतर दिस पाठकक ध्यान आकृष्ट करैत छथि।ओ स्त्रीकेॅं प्रेमक पर्याय आ प्रेमकेॅं जीवनक प्राणवायु बुझैत छथि।

स्त्रीक जीवनक विडंबना, अन्याय आ उपेक्षाक परत दर परतक नीचां दबल यात्रा, प्रत्येक यात्रा मे जीवनक कोनो न कोनो त्रासदी केर वर्णन, तथापि ओकर मोन मे बांचल प्रेम, सामंजस्य आ हानि-लाभ-विवेचनरहित समर्पण कविता सभहुक कथ्य अछि। यद्यपि आधुनिक समाजक स्त्री अपेक्षाकृत शिक्षित आ सशक्त भेल अछि परंच वेदना आ ओझराहटि  रूप बदलि- बदलि क’  सोझां अबैत छैक।

स्त्री- जीवनक अनेक यात्रा, उतार-चढ़ाव, स्त्रीक पराधीनताक संग स्वच्छंदताक हद पार कए अपना लेल आर कठिन बाट चुनब, ओकर दुर्बलता आ ओकर सामर्थ्य, ओकर स्वाभिमान आ ओकर समझौता आदि भावनाक  सशक्त भाषा मे मनोवैज्ञानिक चित्रण एहि कविता संग्रहक विशेषता थिक। रोमिशा जीक स्त्री पात्र विशाल मानव- प्रवाह मे बहैतो अपन अस्तित्व केॅं स्थापित कर’ चाहैत अछि, दायित्वक निर्वाह कर’ चाहैत अछि, परिवार आ समाजकेॅं जोड़िक’ राख’ चाहैत अछि।

हुनक कवितामे स्त्री- जीवन- दर्शनक  प्रकृति संग साम्य अनेक रूप मे,सुललित उपमाक संग सुंदर शब्द मे अभिव्यक्त भेल अछि।एक गोट सुंदर कवितांश द्रष्टव्य अछि-

धरती आ अकाशक होइत छैक मिलन
जाहि में मौन दैत अछि प्रेम केॅं नव अर्थ
जकरा सुरुजक ललौन भोरक संग
बुझैत अछि चिड़ै- चुनमुनीक कलरव
आ एहि कलरवक संग
जखन चिड़ै उड़ैत अछि  अकाश दिस
स्त्री घुरैत अछि अपन घरक बाट पर
सुरुज बनैत अछि ओकर यात्राक साक्षी

समाज द्वारा उपेक्षित स्त्रीक मनोभाव कवयित्रीकेॅं कचोटैत छनि,ओकर इच्छा- अनिच्छा हृदयक कोन मे नुकायल रहि जाइत अछि आ तैंयो आनन पर स्मित हास्य रखने ओ सभटा दायित्व निभबैत छथि-

किनको कहियो ई सुधि कहाॅं रहलै
कि एहन निष्कम्प शिखा बनि
अपनहि इच्छाकेॅं बाती बना
ओ कोना पसारैत अछि
भरि आंगन इजोत

स्त्री- जीवनक विसंगति आ प्रेमक विविध रूप सॅं इतर एहि संग्रह मे बहुत कम कविता छैक, किन्तु जे छैक ओ चिंतन करबा लेल विवश करैत छैक- तथाकथित विवेकी व्यक्तियो,नीक आ बेजाय सैद्धांतिक रूपेॅं बुझितो, मात्र स्वार्थक सिद्धि लेल अधलाहकेॅं अधलाह कहबाक साहस नहिॅं क’ पबै अछि,जकर परिणाम संपूर्ण समाज आ राष्ट्र भोगबा लेल अभिशप्त होइछ-

सभ कवि कलाकारक
आत्माक गहबर मे
उठैत अछि अगबे टीस
मुदा भोर होइतहि
ओ बनि जाइत अति
व्यवस्थापक सभसॅं पैघ खबास।

समाजक नीति-नियन्ता द्वारा स्थापित किंवा आदर्शक खांचा सॅं बाहर स्त्रीक निजताक ओकालति करैत कवयित्री जखन कहैत छथि-

अन्हार आ इजोतक बीच
कतेक काल खण्ड सॅं हेरि रहल अछि स्त्री
अप्पन निज अकाश
जाहि परहक चान सुरुज तरेगन
सभ ओकर होइ आ
जकरा देखि सकय ओ अपन दृष्टि सॅं…

एत’ मोन पड़ि जाइत अछि रोम्या रोलांक ई पांती-

“A man’s first duty is to be himself, to remain himself at the cost of self sacrifice.”

ई me आ myself कतेक जरूरी होइत छैक,ओ ओएह बुझि सकैत छथि जनिका एहि लेल संघर्ष कर’ पड़ैत छनि। जनिका लेल स्वतंत्र आकाश सहज सुलभ छनि ओ परवशताक पीड़ा कोना बुझि सकैत छथि?

कवयित्री प्राचीन अरुआयल, फुफड़ी लागल परम्पराक निर्वहण मे अपसियांत स्त्रीक आंखि खोलबाक प्रयासक संग आधुनिक सभ्यताक अन्धानुकरणक दुष्प्रभाव सेहो देखबैत छथि-

सत्य चुपचाप कोनो दोग मे
नुकायल रहैत अछि
अपनहि घर मे बेघर भेल
देखैत रहैत अछि
आधुनिकताक सेन्ह लागल
अपन घरक देबाल

कल्पनाजीवी कवयित्री भौतिकताक व्यामोह मे अन्हरायल, हानि-लाभक तराजू पर तोलायल जाइत व्यवसाय बनल प्रेम केॅं देखैत खिन्न त’ छथि, किन्तु पूर्णतःनिराश नहिॅं-

ओहने कोमल स्त्री सभ
जीवनक माटि कोड़ि
पुनः रोपैत छथि स्नेहक बीआ
स्त्रियेटा बुझैत छथि
कि युगक आंखिक पानि
बचाओल जा सकैत अछि
मात्र नि: स्वार्थ प्रेम मे विलीन भ’

किन्तु एत्तहि हुनक किछु वैचारिक विरोधाभास देखना जाइछ,जत’ एकदिस ओ नि: स्वार्थ प्रेमक गुणधर्म  केॅं नीक बुझैत छथि,दोसर दिस ओ लोकक परवाहि नहिॅं करबाक निर्देश सेहो दैत छथि जखन ओ कहैत छथि-

आब नहि डेराइ कलंक सॅं
नहिॅं धकाइ बताहि बनय सॅं
नहिॅं लड़ब आ खाली साहब
त’ जीतब कोना
हारले रहत मान
कियो नहिॅं देत कोनो ध्यान

कवयित्री यथार्थक कठोर धरातल पर ठोकर खेलो उत्तर विश्वासहीनताक शिकार नहिॅं बनैत छथि,ओ स्त्री-प्रेमक शाश्वतताक आख्यान लिखैत छथि-

विश्वास जे अहूॅं मे
हम होयब बचल कतहु न कतहु
प्रेम एतेक सहजता सॅं
नहिॅं बिला सकैत अछि शून्य मे

साहित्यकारक मर्यादा आजुक समय मे बांचल नहिॅं रहि गेल अछि, ओकर कलम विश्वप्रेमक कथा नहिॅं,मात्र मनोरम वाग्जाल पसारैत अछि, स्वार्थ सिद्धिक जोगाड़ करैत रहैत अछि,ई देखि कवयित्रीक हृदय मे कचोट होइत छनि आ ओ कविकेॅं सावधान करैत छथि-

“मंचक खबास बनि
पुरस्कारक ओरियान करैत
देखैत रहय साहित्यक सभ प्रपंच
नहिॅं,ई कवि होयब नहिॅं थिक
कवि माने
जीवन सॅं
मृत्यु दिस बढ़ैत समाजकेॅं
युवा आ स्वस्थ राखब”

कतेको ठाम अनुप्रासक छटा सॅं सत्यक कुरूपताकेॅं झांपि मात्र बाह्यमनोहर काल्पनिक संसारक सृजन कएनिहार केॅं देखि स्पष्टत: बजैत छथि-

मुदा जीवन सॅं फराक
किन्नहुॅं नहिॅं होइत अछि कविता
आ कविता सॅं फराक
कोना भ’ सकैत अछि जीवन

धर्मक नाम पर पसारल जाइत पाखण्ड दिस, कुत्सित होइत जीवन- दर्शन दिस इंगित करैत छथि कवयित्री “कनैत अछि गंगा” कविता मे-

सभहक आंखि मे पसरल अछि मोहक लाली
धर्मक पाखण्ड चिल्हा जकाॅं डेन पसारने
मंडरा रहल अछि मोक्षक मार्ग केर महत्त्व बतबैत
पूरा शहरक आंखि मे चलि रहल ठेकेदारी
पाप पुण्य मुक्ति आ मोक्षक

एकर सभहक अतिरिक्त हुनक कविता मातृत्वकेॅं स्त्रीक अधिकार बुझैत सामाजिक अनुशासनक बेड़ी तोड़ब स्वाभाविक बुझैत अछि,पुरुषत्वक मिथ्यादंभक मुंह पर थापड़ मारैत अछि, किंतु एत्तहु ओहि घेर सॅं नहिॅं बहराइत अछि। तैं कहल जा सकैत अछि एहि संग्रहक कविता विभिन्न परिस्थिति मे  स्त्री- हृदय मे उठय बला भावनाक बेलाग अभिव्यक्ति अछि। कवयित्री कोनो निष्कर्ष पर पहुंचबाक अथवा आदर्श स्थिति थोपबाक हड़बड़ी मे नहिॅं छथि।

कविताक संबंध मे अनुभूतिक गप बेर बेर कहल जाइत अछि, मुदा ओ अनुभूति ककर? कविक किंवा समाजक? जॅं समाजक अनुभूति कविक अनुभूति  बनि व्यक्त होइछ, ओकर परिमार्जनक खगताक मुनादी करैछ, परिवर्तनक बाट देखबैत अछि, तखने कविता अपन अर्थवत्ता प्राप्त करैछ।

रोमिशाजीक कविता मे यथार्थ अछि, प्रेम अछि,स्त्रीक अंतर्द्वंद्व आ आत्मविश्लेषण अछि, किन्तु जे नहिॅं अछि ओ अछि निराकरणक बाटक दिग्दर्शन! एकटा सामान्य पाठक जकाॅं हम चाहब जे अगिला संग्रह मे इहो तथ्य आबय आ अपन सबल उपस्थिति देखा सकय।तखनहिॅं महादेवी वर्माक स्वर मे स्वर मिलबैत हम सभ बाजि सकब

“भारतीय नारी जाहि दिन अपन संपूर्ण प्राण-प्रवेग सॅं जागि सकत, ओहि दिन ओकर गति रोकब ककरो लेल संभव नहिॅं।”

संपूर्ण संग्रह मे मैथिलीक टिपिकल शब्द-प्रयोगक लालित्य प्रशंसनीय अछि, किंतु  कतौ-कतौ केर अर्थ मे केॅं के प्रयोग( कोनो खराब भाव केॅं हृदय मे बचबाक संभावना)

(कोनोटा सामर्थ्य कहाॅं होइत छैक दिमाग केॅं) अखरैत अछि।

संक्षेप मे “आंजुर भरि इजोत” संग्रह- योग्य पोथी अछि,एकर स्वागत प्रबुद्ध पाठकवर्ग द्वारा  हयबाक चाही।रोमिशा जीक सशक्त लेखनी केॅं साधुवाद आ अशेष शुभकामना।

कोनहु स्त्रीक मोन अपन परिवेश सं आत्मिक रूपें सहज सम्बद्ध भ जाइत अछि। एहन स्त्री जखन अपन मनोभावकें लेखनीबद्ध करय चाहय छथि तखन, ई सम्बद्धता सेहो ओहि सृजनमे अभरैत रहैत अछि। एहने सन सृजनक उत्कृष्ट नमूना अछि आदरणीया मेनका मल्लिक जीक पोथी  गेल्ह सब झाडैत अछि पाँखि कविताक संग्रह ।

एहि पोथीमे कवयित्री अपन 49 गोट कविता केँ क्रमशः  तीन खंड ( समाज ,स्त्री आ प्रेम ) मे बाटैत छथिन। पूरा पोथी मे मुख्यतः तीनटा विषय-वस्तु देखार पड़ैत अछि : 1. स्त्री मोनक भाव, 2. प्रकृतिक चिंता आ 3. परम्परामे विचलन।

पोथीक पहिल कविता हरसट्ठे परम्परा सबमे विचलन दिशि संकेत करैत अछि, आ एहि विचलन सभक मध्य पारस्परिक अपनत्व केर उपस्थिति केँ रेखांकित करैत अछि। ई संयोग कहि जे पहिल कविता जत गामक लोक सबहक बीच अपनत्वक बचल अस्तित्व केर साक्षी बनैत अछि ओतहि अंतिम कविता एकटा दंपतिक बीच दूरी आ तकनीकी युग मे प्रत्यक्ष संवादक अभाव केँ रेखांकित क रहल अछि।

हिनक बहुतायत कविता समाजमे,परम्परामे बात-विचार व रहन-सहनमे परिवर्तन केँ रेखांकित करैत अछि  एहि परिवर्तन केँ व्यक्त करैत कखनों कवयित्री पुरान स्मृति मे हरा जायत छथि ते कखनों हेरायल – भूतयायल परम्परा आ भाव सभक विस्मृति मे विवश बुझा रहल छथि. हरसट्ठे कविता मे विस्मृत परम्परा आ परिवेश सँ निकलैत स्मृति सब मे बसल अपनत्व  पर अबैत छथि, कवियित्रीक प्रकृति प्रेम सेहो एहि कविता मे खूब झलकैत अछि:

“धात्रिक फूल पीपड़क गाछ
सह-सह लुधकल जिलेबी
आ गम-गम गमकैत आम
घोघ वाली कनिया”

ई सब कविता विस्तृत परिवेश कें इंगित करैत छैक। परिवर्तन कविता परिवेशक परिवर्तनक संग-संग ब्याहुता स्त्रीक सोहाग चिन्ह मे परिवर्तन तक संकेत करैत अछि।

सुन्नर लगैत अछि गाम कविता मे गामक शहरीकरण आ गामक महिला सबहक जीवन शैली मे शहरीपना देखबैत अछि, एहि कविता मे जतय नव सँ पुरान स्त्रीधरि मधुबनी पेंटिंग सिखबाक ललक अभिव्यक्त कएल गेल अछि ओतहि ब्यूटी पार्लरक आगमन,तेतरीक स्कूटी आदि नव व्यवहार सब सेहो देखार भ रहल अछि।

उदास अछि नेना सब कविता लाल कक्का केर पीपड़ गाछ सँ वा कहि जे प्रकृति सँ लगाव केँ चित्रित करैत अछि, आ गाछ कटला सँ हुनक बेहाल स्थिति केर वर्णन करैत अछि।

एहन नहि जे परिवर्तन खाली नकारात्मक रुपे चिन्हित कएल गेल अछि, मिनी मिथिला कवितामे सोनकाकी बॉम्बे जा क  परिवर्तनक चक्र उनटा घुमाबैत अछि आ हरजोत भौजी, हसीना बहिन , शारदा दीदी, जेसिका काकी आदि सबकें संग क विद्यापतिक गीत पर भास सजाबैत छथि।

कविता डाकपीन कविता मात्र डाकपीनक कार्यशैली मे परिवर्तन के देखार नहि करैत अछि अपितु संवादहीनता सेहो रेखांकित करैत अछि एहि कविताक मार्मिक पाँति अछि :

“टुटैत गेल परिवार
छूटैत गेल गाम घर
बिला गेल पोस्टकार्ड अन्तर्देशी
सिसकैत अछि आखड़
साइकिल वला डाकपीनक संग
पोस्टकार्ड अन्तर्देशी
अबिते नहि हेतैक
अबिते नहि हेतैक
साधारण डाक
से मोन नहि मानय अय”

गंगाक कछेड़ मे ठाढ पुनीता लोकक श्रद्धा मे बदलाव संग बहुत रास समयोचित प्रश्न केँ रेखांकित करैत अछि ते हम मुमताज प्रेमक बदलल स्वरूप केँ, जतय कवियत्री कहैत छथि:

“आय फैक्ट्रीक मशीन मे
ओझरायल अछि शाहजहाँ
भानस घर रासायन
परिवारक भूगोल
आ नेना सबहक व्याकरण मे
अफस्यात अछि मुमताज
तैयो मशीनी दुनियाँ सँ
फराक होयते
घड़ीक टिक टिक
ध्वनीक संग
चलैत रहैछ जिनगी”

जतय तक नारी-जीवनक सवाल अछि कवियत्री स्त्री सबहक दुर्दशा तं रेखांकित करबे करैत छथि, संगहि स्त्री समाजक सबल पक्ष केँ सेहो मजगूती सँ रेखांकित करैत छथि। खंड दूक पहिल कविता अजन्मीक बयान कविता मे गर्भस्थ धिया शिकायत नहि करैत छथि बल्कि सफलताक शिखर पर पहुंचल ई महिला सबहक उदाहरण द अपना केँ ओहि पाँति मे जोड़  चाहैत छथि।

सात समंदर हेलय वाली पहील महिला आ अर्जुन  अवार्ड सँ सम्मानित पद्मश्री बुला चौधरी केर उदाहरण हो वा अंतरिक्ष मे पताका लहराबै वाली कल्पना चौधरीक अथवा सेवा मूर्ति मदर टेरेसाक उदाहरण हो, कवयित्री स्त्रीक मजगूत पक्ष मजगूती सँ रखैत छथि। तहिना तस्लीमा नसरीन केँ समर्पित कविता मे कवियत्री कहैत छथि :

“दीनक ईजोत मे
कारी स्याह नेने
उज्जर पोशाक पहिर
रातुक अन्हार मे
घूम बलाक विरुद्ध
कारी पोतनिहारक विरुद्ध
लिखब अंत धरि
अहाँ कहने रही
आ सेहो अहाँ लिखलौ
दालि दरड़लौ
कतेक छाती पर “

पोथीक खंड दू पूर्णतः स्त्रीकेँ समर्पित खंड अछि आ एकरा अतिरिक्त आन कविता सब मे सेहो स्त्री जीवनक विविध पक्ष चिन्हित कएल गेल अछि। एहि मे स्त्रीक विवशता, भेद-भाव , ममत्व सब पक्ष समेटल अछि।  गोविन्दपुर वाली कविता मे गोविन्दपुर वाली अपन मजबूरी व्यक्त करैत रहैत छैक :

“सब जुग उन्टे चलब करै छै
केतनो भारी उठबियौ
केतनो ईमानदारी सँ काज करियै
बोएन तें मरदाबा सँ
कम्मे भेटतै ।

प्रकृति सेहो हिनक कविता सबमे कोनो नै कोनो रस्ते जगह बनेबाक प्रयास करैत अछि। गुलदस्ता आ केक्टस हो वा चिडैक भावना, उदास अछि नेना सब, हो वा गाछक व्यथा कथा अथवा बाट, ई कविता सब प्रकृतिक विविध रूप चित्रित करैत अछि।

काठ चिड़ैत बालेसरदीना मांझी कविता व्यक्तिक जिजीविषा केँ दर्शाबैत अछि ते ओतहि समदाउन कविता नवतुरियाक जिद्द केर आँगा बुढ़ पुरानक जिजीविषा केँ विवश भ पराजित होयत देखबैत अछि। जाहि कविता सँ कविता संग्रहक शीर्षक बनल अछि गेल्ह सब झाडैत अछि पांखि कविता चिरै – चुनमुनीक बच्चा सबहक उत्कट जिजीविषा आ शीघ्र आत्मनिर्भर हेबाक ओकर इच्छाक चित्रण करैत अछि ।

पोथीक सभसं पैघ विशेषता अछि जे कवयित्री मुख्यतया संवाद शैलीमे कविता सभ प्रस्तुत कय रहल छथि। कविता मे कखनो कविताक पात्र सभ परस्पर संवाद करैत छथि तं कखनो लेखिका स्वयं पात्र सँ संवाद करैत छथिन। जेना उफांटि कविता मे माय-बेटा के बीच सम्वाद देखाड़ परैत अछि, ते परिवर्तन कविता मे कवयित्री स्त्रीगन सँ प्रश्न करैत छथि :

“मुदा ई की भेल सखी ?
सोहागक चेन्ह
लाल टुह टुह सिनुरक रंग
किएक बदलि गेल ।”

तहिना गाछक व्यथा-कथा कविता मे बांस आ जामुन परस्पर संवाद क एक दोसराक दुख दर्द सुनैत छथि त महानगर कविता मे घर सँ बतियाइत कवयित्री कहैत छथि :

“साँचे कहैत छियह
हे हमर प्रिय घर”

ओ फूलक गाछ कविता मे फूलक गाछ स्वयं अभिव्यक्ति क रहल अछि जेना कि ओ कवयित्री सँ कहैत होय

“हमरा चाही मात्र
बित भरि जग्गह
गमलों मे क सकैत छह ठाढ़
मुदा, माटि त चाहबे करी
बिनु माटिक किछु नहि
नै तों आ नै हम”

तहिना गंगाक कछेड़ मे ठाढ़ पुनिता कविता मे मुख्य पात्र पुनिता जखन गंगाक दशा देख व्यथित होइत छथि त ओ प्रश्न करबाक बहन्ने स्वयं सँ  बतियाइत छथि। संगहि पुनीता ग्राम देवता लोरिक-सलहेश आदिक बहन्ने जे प्रश्न करैत छथि ओ प्रश्न सब सम्पूर्ण समाजक लेल प्रासंगिक अछि:

“मुदा,फरवरियेसँ चिंतित अछि पुनीता
गंगा सूखि गेलीह एखने
धार सहटि कs चलि गेल बीचोबीच
स्नानक लेल जाय पड़ैत छैक बहुत दूर
अधजरुआ छताइत रहैत छैक”

कविता संग्रहक शीर्षक गेल्ह सब झाडैत अछि पाँखि स्वयं फराक संदेश दैत अछि जे किछ हेरायल भुतयायल शब्द सब एहि पोथी मे भेटत। गेल्ह शब्द एहने एकटा हेरायल वा कम प्रयोग वला शब्द अछि,तहिना पहिल कविता मे बेर बेर आयल शब्द ‘हरसट्ठे’ , तेसर कविता शीर्षक ‘उफाँटि’, आगु चलिक पिता कवितामे शब्द ‘कुचरबब’, तहिना ‘जबदाह मौसम’ ‘मरजाद’, ‘साँकड़’, ‘नैना-जोगिन’ आदि एहन शब्द सब एहि पोथीमे भेटैत अछि जे सामान्य बोलचाल सं प्राय: बाहर भ गेल अछि।

साहित्यमे प्रेम वा श्रृंगार एकटा प्रमुख विषय वस्तु अछि। प्रस्तुत पोथीमे सेहो कवयित्री अंतिम भागमे स्त्री-पुरुष केर परस्पर प्रेम, विरह आदि भाव सभकें व्यक्त क रहल छथि मुदा सबसँ मार्मिक प्रस्तुति अछि प्रेमक सबसँ व्यापक स्वरुप अर्थात् संतानक प्रति माताक प्रेम केर। गेल्ह सब झाडैत अछि पाँखि कविता एहि प्रेमक बखान बखूबी क रहल अछि।

संक्षेप मे कही त, व्यापक परिवेशमे ई पोथी प्रकृति, परम्परा, प्रेम, करुणा इत्यादि सं सराबोर कविता सभमे पाठक कें डुबकी लगेबाक अवसर दैत अछि। शिल्पक स्तज पर बंधनमुक्तता एकरा विशेष बनबैत अछि। किछेक कविता अपन कथ्य कें स्पष्ट रूपें कहबा स पहिने ख़तम भ रहल अछि मुदा समग्रतामे ई पोथी रोचक अछि।

मिथिलामे एकटा कहावत अछि “ब्याह सँ बिध भारी।” किएक ते ब्याह होयते भरि बरख सब दिन कोनो नै कोनो पाबनि लागल रहैत अछि आ पावनि माने बिधक भरमार आ सब बिध बिधान केँ क्रमशः याद राखब अपना मे एकटा अजगुत बात अछि, कोनो घर मे जे बूढ़ पुरान मैया बाबी  होयत छथिन ते घर के कहे टोल परोसक  जग जाजन के बिध व्यवहार हुनके माथे होयत छनहि, आ से सबटा विध व्यवहार ओ नीक जेना सम्हारि लैत छलखिन मुदा आजुक नव परिवेश नव नव विध व्यवहार,ओहियो सं बेसी अपन गाम घर छोड़ि परदेश बसब जग परोजन बाहरे करब स्वयं मे एकटा चुनौती पूर्ण काज अछि।

अहि सब चुनौती कें समाधान करैत एकटा अमूल्य पोथी हमरा हाथ मे भेटल अछि “मिथिलाक वैवाहिक परम्परा आ गीतनाद।” एहि पोथीक लेखिका छथि ‘स्वर्णिम किरण झा’। जेना कि पोथीक नामहि सँ स्पष्ट अछि मिथिलाक वैवाहिक परम्परा अर्थात मिथिला मे ब्याह कोना होयत अछि कोन कोन बिध होयत अछि ओहि मे की सामग्री सब जुटान करबाक चाही, कखन कोन देवता पितर केँ सुमरबाक चाही सबटा प्रश्न के एक हल ई पोथी अछि।

आय सबगोटे दोसर प्रांत दोसर भाषा भाषी वा एना कहि जे टी भी सिरीयलक  नकल करैत छि। ब्याह सँ पहिने हलदीक बिध, मेहंदीक बिध, बरातिक बीच जयमाल वा अन्यानय बिध सब होयत अछि तें कि लोक अपन बिध कात क देत? कथमपि नै। बड़क परीछन हेबे  करत, पीठारक  ठक बक पुछले जेतैन, कोबर मे नैना जोगिन बना बाम छथि कनिया दहिन छथि सारि पुछले जेतैन आ तखन पुनः बड़ कनिया एक दोसर के माला पहिरेबे करथिन।

सब बिधमे अलग अलग वस्तु जातक उपयोग, तकर ओरियौन आ एतबे नै, सब बिध समय सँ होय, तकर चटकैती सेहो बहुत महत्व रखैत अछि। सब विध लेल अलग अलग अरिपनक सेहो विधान अछि ,जे एहि पोथी मे यथोचित स्थान देल अछि, जेना महुअकक अरिपन, पाबनि-तिहारक अरिपन, इत्यादि।

एहि  पोथी मे बड़ पक्ष आ कनिया पक्षक सब विध वर्णित अछि। मैथिलक परिवारमे बड़क घर मे ब्याह दिन बहुत बेसी विध नै होयत अछि मुदा कनिया ठाम बिधे विध जेना मातृका पूजा, आज्ञा डाला, परीछन आम-महु ब्याह,सोहाग,नैना-जोगिन,ओठंगर, गौरी पूजन, निरीक्षण, कन्यादान, लाबा छिरियायब, सिंदूरदान, घोघट,  चुमाओन, महुगक, चतुर्थी आ दनही एतबा बिधक बाद ब्याह सम्पन्न मानल जायत अछि।

ई ते भेल ब्याह लागले बरसाइत, मधुश्रावणी,साँझ पावैन आ तुसारी सेहो। तहिना बड़क ठाम सब बिधमे  कनियाक लेल भाड़-दौर नबका लत्ता कपड़ा गहना  गुडिया बिधक सब सामग्री पठाओल जायत अछि। अहि सब बिध-व्यवहारक विस्तार सँ वर्णन’मिथिलाक वैवाहिक परम्परा आ गीतनाद’ पोथी मे भेट जायत।

पोथीक पूर्वार्द्ध पूर्णत: विवाह आ दुरागमनक विध पर केन्द्रित अछि। ओतहि उत्तरार्द्धमे  सुहागिनक तीन टा मुख्य पाबनि, सांझ, बरसाइत आ मधुश्रावणी केर विध-विधान आ कथा इत्यादिक वर्णन अछि। गाम सं विवाहक तुरंत बाद नगर-महानगर विस्थापित होइत मिथिलानि लोकनिक लेल ई खण्ड अतिमहत्वपूर्ण भ जाइछ। एतेक धरि जे बेटीक सासुर मे होमय बला प्रमुख पाबनि कोजागराक विध व्यवहार सेहो एहि पोथी मे वर्णित अछि।

पोथीमे वर्णित विध व्यवहार मुख्यतः मैथिल ब्राह्मण समुदायक परम्परा पर आधारित अछि। एहि सं पोथीक शीर्षक ‘मिथिलाक वैवाहिक परम्परा आ गीतनाद’ कनि असंगत भ जाइछ। लेखिका द्वारा एहि तथ्य कें आमुख वा कोनो आरम्भिक पाठमे फरिछा देब नीक रहितय।

ओना त जखन “कोस कोस पर बदलय पानी, चार कोस पर वाणी” तखन सबटा क्षेत्र आ समुदाय केर विध एक पोथीमे समेटब अवश्य एकटा अत्यंत कठिन काज हेतैक। तेहन स्थितिमे सझिया विध सबहक ई गुलदस्ता ‘गागरमे सागर’ कहल जा सकैछ।  संगहि ई कहबामे कोनो हर्ज नहि जे ई पोथी प्रत्येक बेटीक सांठमे देल जेबाक चाही जाहिसं विध व्यवहार सबहक ‘रेडी रेकॉनर’ बेटी-पुतोहू सभ संग देश-विदेशमे उपस्थित रहय।

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