मैथिली साहित्यमे स्त्री लेखिकाक विरल संख्या सेहो झमटगर गाछक रूप लेलक अछि, किन्तु कतोक चुनौतीसॅं स्त्री- लेखिकाकेॅं नित्य सोझां-सोझी होइत छनि। ओ की पहिरथि जकाॅं ओ की लिखथि,एकर घमर्थन पितृसत्तात्मक समाजक ठेकेदारक बीच होइत रहल अछि।एहन स्थितिमे स्त्रीक लेखन अस्मिताक संघर्षक चुनौतीक रूपमे ठाढ़ भ’ जाइछ।
समाजक संरचनामे पितृसत्ता सामाजिक, राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक, आर्थिक व्यवस्था , मूल्य ,मर्यादा, आदर्श तथा संस्कारक विभिन्न रूपमे बड़ मेही ढंगसॅं बुनल गेल अछि। एहि सुनियोजित शोषण-उत्पीड़नक विरुद्ध विश्व भरिक वैचारिक चिंतनमे नारीवादी विमर्शक नव आयाम बनाओल गेल अछि। पश्चिममे स्त्री विमर्श शुरू करबाक श्रेय “सीमोन द बोउवार” केॅं छनि जे ‘ द सेकेंड सेक्स’ लिखि कए समाज मे तहलका मचा देलनि तथा परंपरागत सामाजिक संरचनाकेॅं झिंझोरि देलनि।
भारतमे सेहो एहि आंदोलनक आंच पजरल आ विभिन्न भाषामे महिलाक अस्मिता- रक्षणक गप कहल-सुनल, लिखल-पढ़ल जाइत रहल, जाहिमे पुरुष- लेखकक सहभागिता सेहो रहल। महिला-लेखनक केंद्रमे स्त्री अस्मिताक संघर्ष, अदम्य जिजीविषा, स्त्री स्वातंत्र्य, यौन उत्पीड़नक प्रति विद्रोह तथा अपन पहिचानक प्रति जागरूकताक संग सामाजिक यथार्थक अवलोकन आ ओकर बेलाग अभिव्यक्ति अछि आओर ओ समकालीन साहित्यमे सशक्त हस्तक्षेपक माद्दा रखैत अछि।
वर्तमानमे मैथिली भाषामे सेहो बहुत रास स्त्री लेखिका स्वतंत्रता, समानता , न्याय आदि मूलभूत अधिकारक लेल संघर्षरत एवं सक्रिय छथि। लेखनक माध्यमसॅं ओ समाजक संकीर्ण मानसिकताक ऐना देखबैत छथि, समाजसॅं प्रश्न करैत छथि, आत्मविश्वाससॅं अपन सुख-दुख, आक्रोश आ असहमति व्यक्त करैत छथि,स्त्रीवादक वैचारिक साहित्यमे सतत समृद्धि आनि रहल छथि।
आइ हम दीपा मिश्र जीक जाहि पुस्तकक पाठकीय प्रतिक्रिया लिखि रहल छी ओकर शीर्षके वैचारिक घमासान मचब’ लेल पर्याप्त अछि। ई नाम किऐक? झांपल- तोपल नामो देल जा सकैत छलै! कथ्यक संप्रेषण लेल की देह उघाड़ब आ ओकर संपुट करब उचित! ओना एहि प्रश्नक उत्तरमे प्रतिप्रश्न कएल जा सकैछ जे कैशोर्यमे होमए बला हार्मोनल परिवर्तन देहक संग- संग भावनात्मक परिवर्तनक कारण सेहो बनैत छैक,तखन ओहिसॅं उद्वेलित भए ओहि अनुभूतिक वर्णन अग्राह्य किऐक?
विभिन्न भाषाक साहित्यमे कामविह्वला स्त्रीक मनोभावक खुलल वर्णन भेल अछि, महाकविक उपाधिसॅं विभूषित महाकवि कालिदास त’ उमा-महेश्वरक समागमक बखान सेहो कएलनि अछि, तखन दिक्कत कत’ छै? दिक्कत छैक जे स्त्रीक गर्भमे पलि, ओकर रक्तमज्जा सॅं विनिर्मित शिशु जाहि बाटें धरती पर अबै अछि, वयस्क भेला उत्तर अपर स्त्रीक ओहि अंगविशेषमे अपन पुरुषत्वक सार्थकता पबितो ओकरा मात्र अपन संपत्ति मानैत रहल अछि। अस्तु,ई जटिल विषय अछि, अनेक अतंर्विरोधक परिधि मे ओझरायल अछि, तैं एकरा छाड़ि हमर एतबहि कहब अछि जे जहिना अपन संतानक नामकरणक अधिकार माए-बापक होइछ, ओहिना अपन साहित्यिक कृतिक नामकरणक अधिकार साहित्यकारक। एहि अधिकार पर प्रश्न उठाएब सर्वथा अनुचित।
दीपाजीक चेतना मात्र भावनात्मक नहिॅं अपितु बौद्धिकताक मानदंड पर आधारित अछि आ ओ निरंतर यथार्थवादी दृष्टिकोण, गहनता आ आत्मविश्वासक संग लिखि रहल छथि। यद्यपि “योनिक आत्मबोध” शीर्षक कविता छाड़ि देल जाइ त’ अन्यान्य विषय पर गोटेक टापर रचना पहिनहुॅं भेल अछि आ आबहु आन रचनाकार लिखि रहल छथि। किन्तु एक ठाम प्राय: स्त्री-संबद्ध दैहिक,मानसिक आ सामाजिक स्थितिक स्वाभाविक आ मुक्त अभिव्यक्ति लेल दीपाजीक साहस प्रशंसनीय अछि।
मासिकधर्मक आरंभसॅं रजोनिवृत्तिक क्रममे होमएबला शारीरिक-मानसिक परिवर्तन, यौवनक आरंभमे विपरीतलिङ्गीक प्रति सहज आकर्षण, स्त्री-पुरुषक मध्य सामाजिक भेद-भाव, पढ़ल-लिखल स्त्रीक शिक्षाक अनुपयोग आ तज्जन्य स्त्रीक पीड़ा, वैवाहिक बलात्कार आदि ओहि सभ विषय पर दीपा खुलिक’ कलम चलौलनि, जाहि पर लिखबासॅं स्त्री स्वयं बचैत रहैत अछि। हुनक रचना कोनो तरहेॅं पुरुष विरोधी रचना नहिॅं थिक, जकरा एहि पोथीक परिप्रेक्ष्य मे देखबाक क्रममे किछु पांती उद्धृत कए रहल छी-
हमर युद्ध त’ हमरा स्वयंसॅं अछि
हम रोज लड़ै छी
कियैक त’ शब्द छोड़ि हमरा लग कोनो अस्त्र नहिॅं।
हमर युद्ध ओहि हमरासॅं
जे सभ किछु बुझितो
हमरासॅं बाहर नहिॅं निकलैये।
गहना- गुड़ियाक मोहक जालमे ओझरायलस्त्रीक स्थिति हुनका सीदित करैत छनि आ कवयित्री कहि उठैत छथि-
कतेको ओझरायल रहि गेलीह
एहि गहनाक बीच
आ सीपक मोती कहिया हेरा गेलनि
बुझबो नहिॅं केलैथ।
बहुत पहिने महादेवी वर्मा स्त्रीकेॅं सावधान करैत कहने छलीह-
जाग तुझको दूर जाना
बांध लेंगे क्या तुझे ये मोम के बंधन सजीले
पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले
विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन..
मानव-मात्रक सर्वोपरि इच्छा होइत छैक अपन इच्छाक, अपन स्वतंत्र अस्तित्वक,अपन आत्मसम्मानक रक्षा कएल जाए। किन्तु स्त्रीक एहि निजताक कहियो सम्मान नहिॅं भेटलै आ तैं ओकर अन्तर्मनमे धधड़ा धधकैत छै,जकर अभिव्यक्ति भेल अछि एहितरहेॅं-
जीवन व्यक्ति विशेषक अपन थिक
ओ कोनो नैहर सासुरसॅं नहिॅं
हमर गाम हम अपनहि चुनब
समाजसॅं बाध्य भ’ क’ नहिॅं।
भीतरक धधड़ा
ई आगि हमर थिक
ई भीतरक धधड़ा हमर
हम आब डाहब अपन सबटा
मान अपमान पीड़ा उलहन
निकलब तपैत सोन सन
हम जरब की बचब
ओकर उत्तरदायित्व हमर रहत।
कतोक बंधन,कतोक जकड़न स्त्रीकेॅं कोना रक्तरंजित करैत छैक, ओकर छटपटाहटि कवयित्रीकेॅं उद्वेलित करैत छनि आ ओ प्रतिकारक बाट देखबैत कहि उठैत छथि-
सोनाक हो वा लोहा के
चटपटाहटि त’ एके छल ने
परंपराक रूढ़िवादिताक
ओ दंभ जे बाध्य करैत अछि
ओ दंभ जे बाध्य करैत अछि
ओ हमरा मान्य नहिॅं
अपन सामर्थ्य अपने बुझब आब आवश्यक
नहिॅं कहब सेहो सीखब आब जरूरी।
एत’ मोन पड़त अहाॅंकेॅं शिवमंगल सिंह सुमन जीक कवितांश-
हम पंछी उन्मुक्त गगन के
पिंजर पिंजरबद्ध न गा पाएंगे
कनक तीलियों से टकराकर
पुलकित पंख टूट जाएंगे।
कजरी लागल परंपराक खंडनक ओकालति करैतो हुनक लेखन विध्वंसक नहिॅं अपितु योजक छनि,व्रत-उपासक संस्कृतिक पोषक छनि,गामक भाषा-संस्कृतिक अनुरागी छनि, प्राचीन परंपराक नीक तत्वक आधुनिकताक संग समन्वयक आग्रही छनि।ओ स्वयं कहैत छथि-
लेकिन हमर कहब
जे नब घर उठय आ पुरान घर फेरो बसय
हमरा पुराने घरके नव करबाक अछि
ओकरे मजगूत नींव पर
नव मिथिला बसेबाक अछि।
अंतमे एतबहि कहब जे एहि निर्भीक स्वरक स्वागत हयबाक चाही। अनुप्रास प्रकाशनसॅं छपल एहि पोथीमे 64 गोट सशक्त आ सार्थक कविता अछि,जे पढ़ल जयबाक चाही।