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शुभ्रा सिंह

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अप्पन देश में छह गो ऋतु होइ हइ जेकर नाम हइ – गरमी, बरसात, शरद, हेमंत, शिशिर आ वसंत। वैसे त सब मौसम के अप्पन एगो खास जगह हइ लेकिन वसंत खास होइ हइ। किए कि इ समय में न त बेसी जाड़ पड़ै हइ आ न बेसी गरमी। एकर एहे खासियत के कारण एकरा सब मौसम के राजा कहल जाइ हइ।

पुराण के एगो किस्सा में बसंत के कामदेव के बेटा कहल गेलइ हन। एकर अनुसार सुंदरता के भगबान कामदेव के घर जब बेटा भेलइ त पूरा के पूरा संसार झूमे लगलइ। प्रकृति गाबे लगलइ, गाछी आर पर नया नया मंजरी फरे लगलइ, पीयर पीयर तोरी के फूल से पूरा धरती जैसे पीयर रंग के सारी में नयकी कनिया जैसन सज गेलइ।

मंजर के खूश्बू पूरा हवा महके लगलइ आ उ मादकता से बहकल कोयल कू कू करके अपन गीत सुनाबे लगलइ जैसेकि बउआ के आबे के खुशी में सोहर गा रहल हइ। गीता में खुदे भगबान कहलखीन कि हमें ऋतु में वसंत हियइ।

साहित्य, कला में भी बसंत के अप्पन खास स्थान हइ। बसंत पर केतेक साहित्य लिखल गेलै हन आ गीत के त बाते कि हइ। बहुते कलाकार अप्पन चित्र में भी बसंत के रूप रंग के खूब सजल कइ हन। भारतीय संगीत में त एकठो रागो हइ एक्कर नाम पर बसंत राग।

बसंत में मनाबे बाला परब भी बसंते जैसन रंगीन होइ हइ जैसे सरस्वती पूजा, बसंत पंचमी, रंग पंचमी, होली, नवरात्रि, रामनवमी, नव-संवत्सर, हनुमान जयंती आ बुद्ध पूरणिमा। सनातन संस्कृति में नया साल भी एहे मौसम में शुरू होइ हइ।

बसंत पर कवि शिरोमणि विद्यापति जी भी बहुत सुंदर लिखले हथीन

आएल रितुपति – राज बसंत.
धाओल अलिकुल माधव-पंथ.
दिनकर किरन भेल पौगंड .
केसर कुसुम धएल हे दंड .
नृप-आसन नव पीठल पात .
कांचन कुसुम छत्र धरु माथ.
मौलि रसायल मुकुल भय ताल .
समुखहि कोकिल पंचम गाय .
सिखिकुल नाचत अलिकुल यंत्र .
द्विजकुल आन पढ़ आसिष मंत्र.
चन्द्रातप उड़े कुसुम पराग .
मलय पवन सहं भेल अनुराग .
कुंदबल्ली तरु धएल निसान .
पाटल तून असोक – दलवान.
किंसुक लवंग लता एक संग .
हेरि सिसिर रितु आगे दल भंग.
सेन साजल मधुमखिका कूल .
सिरिसक सबहूँ कएल निर्मूल.
उधारल सरसिज पाओल प्रान.
निज नव दल करू आसन दान.
नव वृन्दावन राज विहार .
विद्यापति कह समयक सार .

आबू ,अइ बसंत के सुआगत करू। अपन जीवन में आनंद-उत्साह के संचार करू।

(चित्र : अपला वत्स जीक फ़ेसबुक भीत सं) 

बसंत मने
रंग प्रीत के
प्रेम के
उल्लास के
हास और परिहास के
प्रकृति के नव श्रृंगार के
बसंत मने
गीत मनुहार के
राग और अनुराग के
ढोलक के थाप पर
सजल त्यौहार के
विरहनी आकुल भरल
तान के
बसंत मने
चित्र सजल हिंदुस्तान के
भरल खलिहान के
किसान के जुड़ल आस के
नब  प्रकाश के
नब  साल के

आजुक समयमे मिथिलाक धिया सभ हरेक क्षेत्र  मे अपन धाक जमा रहल छथि। की संगीत, की कला, की खेल, की विज्ञान.. सब ठाम मिथिलाक धिया सभ अपन प्रतिभाक दुदुंभी बजा रहल छथि। इएह कड़ी  मे एकटा नव नाम अछि कलश मिश्राक जिनका एहि वर्ष दिल्ली क्षेत्र मे राष्ट्रीय कैडेट कोर (एनसीसी) केर उत्कृष्ट कैडेट सम्मान भेटल अछि।

दिल्ली विश्वविद्यालयक श्यामा प्रसाद मुखर्जी महिला महाविद्यालयमे स्नातक केर छात्रा कलश कें एहि सत्रमे एनसीसी मे उत्कृष्ट प्रदर्शन लेल एहि सम्मान सं सम्मानित कएल गेल अछि। हुनका 15 सितम्बर 2021 कें श्यामा प्रसाद मुखर्जी महाविद्यालयक प्राचार्या डॉ. साधना गुप्ताक हाथ सं ई सम्मान भेटल।

मधुबनी जिला के भागीरथ पट्टी गामक निवासी कलश 2020 केर गणतंत्र दिवस कार्यक्रम मे सेहो एनसीसी टुकड़ी मे सहभागिता केने छलीह। ओ एखन दिल्लीक प्रेमनगर मे अपन माए (श्रीमती उषा मिश्रा) आ बाबूजी (श्री पशुपति नाथ मिश्रा) संग रहैत छथि।

भविष्यक योजनाक विषयमे कलश कहैत छथि “हमर सपना अछि प्रशासनिक सेवामे जा देशक सेवा केनाइ। हम समाजक सभ वर्ग भलाइ लेल काज करय चाहय छी, प्रशासनिक सेवाक माध्यम सं हम ई काज आसानी सं कय सकय छी।

सब धिया पुता खैले छै, लेकिन सुहानी त कहौं देखाइ नै द रहल छै। कतैक देर भ गेलै। एखन धरि त आबि जाइत रहय। सब ठीक त छै ने? कहीं मन त नै खराब भ गेलै? हम अप्पन बहिनपा सुधा से पुछलौ।

जा! अहाँ नै जनै छियै की?

की? कोनो विशेष बात भे गेल की? हम कनका डरि क पुछलौं।

विशेष कहय छी? सुहानी दायक माय-बाबूजीक त संसारे उजड़ गेलइ। एकहिटा बेटी छलै, सेहो पागल भ गेलय। कालहिये त ओकरा पागलखाना छोड़ि क सब गोटा अयला हन। मातम पसरल छै हुनका घरे।

ई की कहै छी अहाँ? हम अचरज स पूछलौ। अहाँ हमरा पूरा बात बताउ। कि सब भेल छलई?

अहाँ कें सच्चे किछ नै मालूम? सुधा हमरा से पुछली।

नै.. हम किछ दिन गाम स बाहर छलियै न, ताहि स। अब बताबू न। हम्मर मन कोना कोना ने भ रहल। सुधा अप्पन अचरा से नोर पोछैत बोललखिन “एतैक सुनर दाय छल पता नै केकर नजर लागि गेलई.. कोन भूत चढ़ि गेलय.. आ की कोनो डायनक भेट चढ़ गेलय.. किछु दिन से अजबे करैत रहय। केकरो स न बोलनाइ, न किछ। बड़ दिन स खेलतो नै छल। कोनो काज नै.. केकरो स मतलब नै.. बस दिन भर माटी स पता नै की बनाबैत रहय.. आ खुबे बतियाय। फेर कखनौ हसय, त कखनौ खूबे कानय। ओकर माय-बाबूजी त मारिते पूजा पाठ कैलखिन.. झारो फुक करैलखिन लेकिन कोनो असर नै भेलै।

त.. डॉक्टर से नै देखेलखिन की? हम बिचेमे पूछि देलौं।

डॉक्टरो के देखलखिन। मारे सुइया-दवाई परलै। पैसा त पानि जेका बहा देलखीन लेकिन किछू नै भेल। सुहानीकमाय-बाबू के देखब त चिन्हाय नै छै। अच्छा.. अब हम चलय छी, सांझ बत्ती देबे के छै।

सुधा त चलि गेल। एन्ने हमर मनमे पहिले के बात सब घूमय लगलै। रातिमे नीन्नो नै भेलय। भिंसर होयत होयते हम पक्का मन बना लेलू जे आइ त सुहानीक माय-बाबूजी से बात करय के छै। एना ककरो जीनगी मज़ाक थोड़े छै। हम कुछ करि सकै छिये, त करयमे की हरज़ छै। घर के काज निपटा क हम चलि देलौ सुहानीक घरे।

ओतय त सन्नाटा छलइ, तखनो हिम्मत क क घुसि गेलौं। भीतर एकदम अन्हार छलै। के???  सुहानीक बाबूजीक आवाज़ छल। भाइजी, हम छी। अच्छा दुलहिन.. आबू। ई कहैत सुहानीक बाबूजी लाइट जरा देलखिन। कोठरीमे इंजोर भ गेलई।

दीदी कत छथिन? जवाब में पलंग दिश इशारा क भाइजी घर स बाहर निकाल गेलखीन। दीदी हम गोर दबैत बोललौं। के? दुलहीन अहाँ? कत चल गेलिए? देखू न कि भ गेल? अहाँक बेटी त..  एतना कहैत कहैत दीदी फूटि-फूटि क कानय लगलखिन।

अहाँ नइ कानू, सब ठीक भ जायत। अहाँ धीरज धरू। हम हुनका समझा बुझा क कनका पानी पियेली। तखन ओ कनका स्थिर भेलखिन। फेर कहय लगालखिन.. “हे दुलहीन, अहाँ ठीक कहा छलिए मगर हम सब अहाँक बातक मज़ाक उड़ा देलियै। अब देखू की स की भ गेलय।“

“अखनो कुछ नै बिगरलइ हन दीदी।”

सच्चे दुलहिन?? ह्ममर बात सुनि सुहानीक मायक आंख चमकि उठल।

हे यौ! अहाँ सुनए छियै? सुहानीक बाबूजी!

हं, सुनलौ ये सुहानीक माय! भाइजी जे दोसर कोठारीमे सब बात सुनय छलखिन, बोलि उठला “अब अहें बताबु दूलहीन की करे के चाही।“

हमरा विचार स त पहिले त काल्हिये चलू अस्पताल, जहां दाय भर्ती अछि।

“ओ पागलखाना??” दीदी पुछलखिन।

नै नै दीदी.. ई सोच त बदलय परत। ऊहो हस्पताल होए छै।

“ठीक छै जेना अहाँ कहू। अहाँ चलब न संगे?” भाइजी पुछला।

“हां-हां, किएक नै।” सब तैयारी करि के हम सुहानीक माय-बाबूजी संगे मानसिक चिकित्सालय पहुंचलौ। ओतय डाक्टरनी स बात करय पर पता चलल जे सब रिपोर्ट ठीक छै, घर ले जाय के परमिशन भेट गेलय। लेकिन भाइजी कनका हिचकिचाय लगला।

की भेल भाइजी?

“नै दुल्हिन दाय के ल त जेबय लेकिन गोतिया आ गाम के लोक सब की कहत?”

भाइजी! त बेटी के जिनगी भरि एतय छोड़ देबय? मरय लेल? अप्पन सबक देहमे बेमारी होय छै, त की ओतय हस्पतालमे छोड़ दय छी की? नै न? त फेर? एहो त एकटा रोगे छै ने। जखन छुट्टी भेट गेल, त आब कोन परेशानी?

“गामक लोक सब दाय के पागले बुझई छै ने। कतेक शौख छल जे बेटीक बियाह बड़ धूम धाम स करब। अब त पूरा जिनगी एकर…” एतना कह के भाइजी कानय लगलखिन।

अहाँक दुख हम बुझैत छी, अहाँ स छोट त छि लेकिन एकटा बात अहाँ कें कहब जे अहाँ  यदि चाहय छी जे दायक जिनगी सुन्नर बनय त अहाँ कें मजगूत बनय पड़त। अहाँ ढाल बनू ने। आ. अहाँ कोनो गलत काज त नै क रहल छी ने। बात ई नै छी जे दाय बीमार पड़ल, मुदा ई छै जे हुनकर पूरा इलाज कोना होयत।

“बीमार नै न दूलहिन.. पागल..” दीदी हमरा बुझाबैत बोलली।

नै ये दीदी! इहो बेमारी छै। जेना टीबी होय छय, टायफायड होइ छै, इलाजक बाद त सब ठीक भ जाय छै ने। अंतर एतने छै जे ओ सब देहक बेमारी छै आ ई मनक बेमारी।

“तखन की? जिनगी भरि दाय पागल नै रहत।“

नै भाइजी! कनका देखभाल के जरूरत छै बस। आ ककरो त आगू आबय पड़ते ने। तें आहिं आबू ने। आ.. रहल बियाहक बात.. त ओयमे बहहुते समय छै। पहिले दायक देखभाल करू। पूरा ठीक भ जाए, तखन पढ़ाबू, काबिल बनाबू। रिश्ता अपने चलि के आओत।

“अहाँ ठीक कहलौं दुल्हीन, अब त हम सुहानी के खूब पढेबइ और डॉक्टर बनेबय, सेहो, दिमागक डाक्टर।“

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