यौ सरकार ,सुनू गोहारि,बड्ड दूर अछि हमर गाम!
अहाँ देल देश निकाला,छीनल रोजगार ,
भूख भय अछि ,नइं कोनो महामारी
भय अछि ऐ कठिन तालाबंदी मे
न रेजकी , न गाड़ी,न कोनो सवारी
मोटरी-चोटरी ढोयब , कि नेना-भुटका,
कोना क’ जायब हम अपन गाम ?
यौ सरकार, सुनू हमर गोहारि,बड्ड दूर अछि हमर गाम!
रतौंधी अछि भेल कि मोतियाबिन्द,
सुझैत अछि अहाँक’ न राति न दिन
नीचा धरती तप्पत,ऊपर धीपल अकाश
देखू हमरा पयरक ओदरल छाल,
भागि रहल छी हम ,दौड़ रहल छी हम,
सुनु सरकार हमर गोहारि !बड्ड दूर अछि ..
कानि रहल छी भोकारि पाड़ि ,
कनिको सुनाइत अछि सरकार !
बहिर छी कि छी भेल मतसुन्न
अहाँ देल धधकल अंगोर जीवन
मिझाउ आगि केना ,ल’ क’ कि आँखिक झहरैत बुन्न !
कठकरेज अहाँ,सुनु गोहारि!बड्ड दूर अछि …
सोना उगलैत गामक धरती ,
बाढ़ि-सुखारि सं पड़ल परती
कुव्यवस्था जारल जीवन ,जारल रोजगार
एत’सं ओत’ भेल सतबा सभ धरती
पहिने छोड़ाएल अपन गाम जबार
केहन निर्दय अहाँ यौ सरकार,
फेर धुरियाएल पयरे घुराक’ गाम ?
कोना क’ जाउ गाम अपन भेल विरान!दूर बड्ड अछि हमर..
सड़क ,महल ,बजार अहाँक महानगर ,
हमही बनेलहुं अहाँक संसद ,अहाँक शहर
ईंटा-गारा ,बोझ उठेलहुँ दिन-राति
अहाँ अकाश सं खसेलहुं खजूर पर
कीड़ा –मकोड़ा नइं मनुक्ख छी हम
मात्र मजदूर नइं बूझू , श्रमिक छी हम
छीटू नइं कीड़ा मार , खून-पसीनाक दिय’ दाम!
यौ सरकार बड्ड दूर अछि हमर गाम …
पढ़लहुं खाली पेटक आगि ,किछ नइं पढल आर
काल बनल करोना नइं ,रोटी-भातक कठिन जोगार
महामारी नइं ,काल बनल छी अहाँ महराज ,
अपनहि देश भेलहुँ परदेशी,कहिया बूझब मनुक्खक मान?
माफ़ नहीं करब , तानाशाही सक्कत यौ सरकार !
करी गोहारि दूर बड्ड अछि हमर गाम,
बड्ड दूर अछि हमर गाम !